रथयात्राः2025 से जुड़ी सभी जानकारियां
1 वसंत पंचमीः 03 फरवरीः नये रथ के निर्माण के लिए पवित्र काष्ठ्य(दारु) का संग्रह का श्रीगणेश
2 30 अप्रैलः अक्षयतृतीया के दिन से श्रीपुरी धाम में नये रथों के निर्माण का कार्य आरंभ,उसी दिन से भगवान जगन्नाथ की विजय प्रतिमा मदनमोहन की 21 दिवसीय बाहरी चंदनयात्रा पुरी के चंदन तालाब में तथा ओड़िशा के किसान अपने खेतों में बोआई के कार्य का शुभारंभ करते हैं।
12जून को देवस्नानपूर्णिमा
27जून को भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा.
05 जुलाई को बाहुड़ा(गुण्डीचा मंदिर से वापसी श्रीमंदिर यात्रा)
06 जुलाई को सोना वेश.
07 जुलाई को अधरपणा.
8 जुलाई को नीलाद्रि विजय.
भगवान जगन्नाथ की रथयात्राः
विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक महोत्सव
प्रतिवर्ष आषाढ शुक्ल द्वितीया को श्रीजगन्नाथ धाम पुरी में भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा अनुष्ठित होती है जो विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक महोत्सव है।
वास्तव में भगवान जगन्नाथ विश्व के पालक हैं,पालनहार हैं। वे भक्तों के भाव के इष्टदेव हैं,गृहदेव हैं,ग्राम्यदेव हैं,ओड़िशा प्रदेश के राज्य देव हैं तथा पूरे विश्व की सभी संस्कृतियों के प्राण हैं।गौरतलब है कि हमारे 18 पराणों में सबसे बड़ा पुराण स्कन्द पुराण है जिसमें कुल 81 हजार श्लोक हैं।उस सकन्द पुराण के वैष्णव खण्ड में श्री पुरुषोत्त्म महात्म्य का वर्णन है। भगवान जगन्नाथ महात्म्य की जानकारी सर्वप्रथम भगवान शिव स्कन्दजी को देते हैं,स्कन्दजी महर्षि जैमिनि को देते हैं और जैमिनि जी मंदराचल पर्वत पर समस्त मुनियों को देते हैं। वास्तव में श्रीजगन्नाथ संस्कृति की सात्विक और तात्विक जानकारियों से यह स्पष्ट हो जाता है कि श्री जगन्नाथ महात्म्य में नामगुण,रुप गुण,धाम गुण और लीला गुणों का प्रत्यक्ष प्रमाण है भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा। यही नहीं,ब्रह्मपुराण,पद्मपुराण,मत्स्यपुराण,रामायण,महाभारत और गीता में भी भगवान जगन्नाथ महात्म्य का वर्णन है।भगवान जगन्नाथ की लीलाभूमि है पुरुषोत्तम क्षेत्र और उनकी लौकिक –अलौकिक लीलाओं का यथार्थ प्रमाण है-भगवान जगन्नाथ की प्रतिवर्ष अनुष्ठित आषाढ़ शुक्ल दवितीया को अनुष्ठित होनेवाली विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा जो विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक महोत्सव है। जिस ओड़िशा को कभी उड्र देश भगवान जगन्नाथ के लिए कहा गया। जिस ओड़िशा को उत्कृष्ट कलाओं का प्रदेश कहा गया उसी सांस्कृतिक प्रदेश के भगवान जगन्नाथ का श्रीमंदिर उत्कल स्थापत्य और मूर्तिकला का बजोड़ उदाहरण है जिसके रत्नवंदी पर विराजमान हैं महाप्रभु जगन्नाथ चचुर्धा दारुविग्रह रुप में,चारों वेदों के जीवंत स्वरुप के रुप में।
भगवान जगन्नाथ दारुब्रह्म के रुप में तथा ब्रह्मदारु के रुप में प्रतिदिन स्वरुचि से नये-नये परिधान धारण करते हैं।अपना श्रृंगार करते हैं।56 प्रकार के अन्न के भोग को ग्रहण करते हैं। ओडिशी गायन सुनते हैं।भक्तों की प्रार्थना सुनते हैं। अपने सालमेग जैसे भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं।इस सृष्टि के पालक के रुप में तथा इस सृष्टि के पालनहार के रुप में विश्व संस्कृति के प्राण बनकर मानवता की रक्षा करते हैं उनकी मानवीय लीला रथयात्रा निर्विवाद रुप में विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृति महोत्सव है।
पद्मपुराण के अनुसार आषाढ माह के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि सभी कार्यों के लिए सिद्धियात्री होती है। कहने के लिए तो यह महोत्सव मात्र एक दिन अर्थात् आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को पुरी धाम के बड़दाण्ड(चौड़ी सड़क) पर अनुष्ठित होता है लेकिन सच्चाई यह है कि प्रतिवर्ष वसंतपंचमी(सरस्वती पूजा) के दिन से ही नये रथों के निर्माण के लिए दारु(पवित्र काष्ठ्य संग्रह कार्य आरंभ हो जाता है और रथयात्रा का वास्तव में समापन आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन होता है।
2025 की रथयात्रा के लिए 03 फरवरी,वसंत पंचमी(सरस्वती पूजा) के दिन से रथ निर्माण हेतु काष्ठ्य संग्रह का पवित्र कार्य आरंभ हुआ।अक्षय तृतीया 30 अप्रैल को थी जिस दिन से नये रथों के निर्माण का कार्य आरंभ हुआ।रथ-निर्माण में कुल लगभग 205 प्रकार के श्रीमंदिर के सेवायतगण सहयोग करते हैं। जिस प्रकार पांच तत्वों से मानव शरीर का निर्माण होता है ठीक उसी प्रकार पांच तत्वःकाष्ठ,धातु,रंग,परिधान तथा सजावटी सामग्रियों से भगवान जगन्नाथ आदि देवों के रथों का निर्माण होता है।
अक्षय तृतीया के दिन से ही जलप्रिय भगवान जगन्नाथ की विजय प्रतिमा मदनमोहन की 21 दिवसीय बाहरी चंदनयात्रा पुरी के चंदन तालाब में आरंभ हुई थी। आगामी 12 जून को देवस्नान पूर्णिमा है।उस दिन चतुर्धा देवविग्रहों को क्रमशः भगवान जगन्नाथ को 35 स्वर्ण कलश पवित्र व शीतल जल से,33 स्वर्ण कलश पवित्र और शीतल जल से बलभद्रजी को,22 स्वर्ण कलश पवित्र तथा शीतल जल से माता सुभद्राजी को तथा 18 स्वर्ण कलश पवित्र तथा शीतल जल से सुदर्शन भगवान को,कुल 108 स्वर्ण कलश शीतल और पवित्र जल से
श्रीमंदिर के देवस्नानमण्डप(जो सिंहद्वार के सटा हुआ है।) पर मलमलकर महास्नान कराया जाएगा।उन्हें गजानन वेष में सुसज्जित किया जाएगा। अत्यधिक स्नान करने के कारण चतुर्धा देवविग्रह बीमार पड़ जाते हैं और उनको उनके बीमार कक्ष में अगले 15 दिनों तक रखकर उनका आयुर्वेदसम्मत उपचार होता है। उन 15 दिनों के दौरान जो भी देश-विदेश के जगन्नाथ भक्त पुरी धाम आते हैं वे श्रीमंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन नहीं कर पाते हैं क्योंकि श्रीमंदिर का पाट चतुर्धादेव विग्रह के बीमार होने के कारण बंद कर दिया जाता है। उस दौरान पुरी आने आनेवाले समस्त जगन्नाथ भक्त पुरी से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर ब्रह्मगिरि में जाकर भगवान अलारनाथ के दर्शन करते हैं जो भगवान जगन्नाथ के ही वास्तविक स्वरुप हैं।भक्तगण ब्रह्मगिरि के भगवान अलारनाथ को निवेदित किए जानेवाली खीरभोग को बड़े चाव से ग्रहण करते हैं।
रथयात्रा के एक दिन पूर्व भगवान जगन्नाथ का नवयौवन दर्शन होता है। 2025 वर्ष की भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा आगामी 27 जून को है। उस दिन श्रीमंदिर के रत्नवेदी से पहण्डी विजय कराकर चतुर्धा देवविग्रहों को रथारुढ़ करा दिया जाता है। पुरी के गजपति महाराजा श्री श्री दिव्य सिंहदेवजी महाराजा अपने राजमहल श्रीनाहर से सफेद वस्त्र धारणकर पालकी में आते हैं और तीनों ही रथों पर चंदनमिश्रित जल छिड़कर सोने की मूठवाली झाड़ू से रथों को पवित्र करते हैं। गजपति महाराजा के इस दायित्व को जगन्नाथ संस्कृति में छेरापहंरा कहते हैं।श्री पुरी गोवर्द्धन मठ के 145वें पीठाधीश्वर पुरी के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाभाग अपने परिकरों के संग आकर रथयात्रा की सुव्यवस्था देखते हैं तथा तीनों ही रथों पर जाकर अपना आत्मनिवेदन अर्पित करते हैं।
रथयात्रा में सबसे आगे चलता है तालध्वज रथ,उसके उपरांत चलता है देवदलन रथ और सबसे आखिरी में गुण्डीचा घर के लिए चलता है भगवान जगन्नाथ का रथ नंदिघोष रथ।2025 वर्ष की बाहुड़ा यात्रा(गुण्डीचा मंदिर से वापसी श्रीमंदिर यात्रा) आगामी 05 जुलाई को है।सोनावेष आगामी 06 जुलाई को है,अधरपणा आगामी 07जुलाई को है तथा नीलाद्रि विजय आगामी 08 जुलाई को है।
यह शास्वत सत्य है कि भगवान जगन्नाथ अपने जिस भक्त को अपने दर्शन के लिए बुलाते हैं वे ही भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए पुरी धाम आते हैं।कहते हैं कि रथारुढ़ भगवान के जो एकबार दर्शन कर लेता है उसे पुनः मोक्ष की कामना नहीं होती है और इसीलिए तो भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक महोत्सव माना जाता है जिसके आयोजन में पूरी ओड़िशा प्रदेश सरकार,पुरी श्रीमंदिर प्रशासन तथा स्थानीय प्रशासन के साथ-साथ स्थानीय पुलिस प्रशासन का भी पूर्ण सहयोग रहता है।
भगवान जगन्नाथ की विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा को गुण्डीचा यात्रा, पतितपावन यात्रा,जनकपुरी यात्रा, घोष यात्रा,नव दिवसीय यात्रा तथा दशावतार यात्रा भी कहा जाता है। इन सभी नामों की सार्थकता ही भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा को विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक महोत्सव के रुप में करतीं हैं। वैसे भी भगवान जगन्नाथ जगत के नाथ हैं।वे विश्व मानवता के स्वामी हैं। वे विश्व मानवता के केन्द्र बिन्दु हैं। वे अपने दारुविग्रह रुप में तथा देवदारु विग्रह रुप में सौर हैं, वैष्णव हैं, शैव हैं, शाक्त हैं, गाणपत्य़ हैं, बौद्ध हैं और जैन हैं। वे सभी धर्मों और सम्प्रदायों के जीवंत विग्रह देव समाहार हैं।वे कलियुग के एकमात्र पूर्ण दारुब्रह्म हैं। वे अवतार नहीं अवतारी हैं।वे 16 कलाओं से सुसज्जित हैं। वे अपने चतुर्धा देव विग्रह स्वरुप में चारों वेदों के जीवंत स्वरुप हैं।वे आस्था एवं विश्वास के देव हैं। वे अपनी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के द्वारा विश्व मानवता को शांति,एकता तथा मैत्री का पावन संदेश देते हैं। श्रीजगन्नाथ पुरी धाम वास्तव में एक धर्मकानन है जो देखने में शंख की आकृति के रुप में दिखाई देती है इसीलिए इसे शंखक्षेत्र भी कहते हैं।यह पुरुषोत्तम क्षेत्र है जहां पर आदिशंकराचार्य महाभाग, चैतन्य, रामानुजाचार्य, जयदेव, नानक,कबीर और तुलसी जैसे अनेक कवि, संत-महात्मा और अनन्य जगन्नाथ भक्त महाप्रभु की इच्छा से आये और भगवान जगन्नाथ की लौकिक और अलौकिक महिमा को स्वीकार कर उनके आजीवन अनन्य भक्त बन गये।भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा वास्तविक श्रद्धा,भक्ति,आस्था, प्रेम, आत्मनिवेदन, करुणा,विश्वास का विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक महोत्सव है जो हमें समस्त अहंकारों के त्याग का संदेश देता है।इसप्रकार भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा पूरी तरह से विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक महोत्सव है जिसमें भगवान जगन्नाथ द्वारा अपने भक्तों के लिए सच्ची भक्ति,आस्था,विश्वास,दर्शन,ज्ञान,त्याग,समर्पण,दिव्य लौकिक-अलौकिक लीलाओं के दर्शन होते हैं।
-अशोक पाण्डेय
भगवान जगन्नाथ विश्वप्रसिद्ध रथयात्राः2025
27 जून,2025
प्रयागराज महाकुंभः2025
शाश्वत सनातन,आस्था और भक्ति की त्रिवेणी सिद्ध हुआ प्रयागराज के त्रिवेणी-संगम पर लगनेवाला 144 वर्षों के उपरांत का यह महाकुंभ गौरतलब बै कि 2010,2013,2019 के सभी कंभों से विराट रहा 2025 (13 जनवरी से 26 फरवरी,2025 तक आयोजित महाकुंभ.देश-विदेश से कुल 66.30 करोड़ लोगों ने इस वर्ष महाकुंभ पवित्र स्नान किया. कुल 50 लाख विदेशी लोगों ने महाकुंभः2025 में आस्था की डुबकी लगाई. मौनी अमावस्या के दिन सबसे अधिक 8 करोड़ लोगों ने आस्था की डुबकी महाकुंभ में लगाई.
भगवान जगन्नाथ का सोना वेश उनकी ऐश्वर्य लीला का जीवंत प्रमाण है…
-अशोक पाण्डेय
जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ नर रुप में नारायण हैं। वे कलियुग के एकमात्र पूर्ण दारुब्रह्म हैं जो साल के 365 दिन तक अपनी दो मुख्य लौकिक-अलौकिक लीलाओं के माध्यम से भक्तों की आस्था और विश्वास के इष्टदेव अनादि काल से बने हुए हैं। वे ओड़िशा प्रदेश के आध्यात्मिक राजराजेश्वर हैं। राजाओं के राजा हैं। वे आज भी साल में एकबार रथारुढ़ होकर सोना वेश धारण कर अपनी वास्विक ओड़िया अस्मिता को स्पष्ट करते हैं। एक तरफ उनकी पहण्डी विजय उनकी अपनी सेवायतों के प्रति उनके सखाभाव को स्पष्ट करती है ठीक उसी प्रकार सोना वेश के दिनतीनों रथों(तालध्वज,देवदलन तथा नंदिघोष रथ पर) पर श्रीमंदिर के सिंहारी, पालिया, खुंटिया, भंडार मेकप, चांगड़ा मेकप सेवकों के द्वारा सोना वेश धारण कर वे वास्तविक और यथार्य़ रुप में अपनी ओड़िया अस्मिता (ओड़िशा के आध्यात्मिक राजाधिराज) को स्पष्ट करते हैं।रथारुढ़ होकर सोना वेश धारण करना उनकी उनकी ऐश्वर्य लीला है जिसे आगामी 17 जुलाई को देखा जाएगा। श्रीमंदिर के रत्नभण्डार में रखे कुल बारह हजार तोले के सोने के अनेक आभूषण,हीरे-जवाहरात आदि से उनको सुशोभित किया जाएगा।चतुर्धा देवविग्रह रथारुढ़ उस दिन नख से मस्तक तक स्वर्णाभूषणों से श्रीमंदिर प्रशासन पुरी के पूरे विधि-विधान के साथ सुशोभित किये जाएंगे।सच तो यह भी है कि दारुब्रह्म और ब्रह्मदारु भगवान जगन्नाथ के रुप में अपनी इस ऐश्वर्य लीला के माध्यम से यह भी संदेश देना चाहते हैं कि वे आज भी ओड़िशा के आध्यत्मिक राजाधिराज हैं।दारुब्रह्म का अभिप्राय ऋग्वेद तथा स्कंद पुराण में स्पष्ट है। जीव और ब्रह्म के निरुपाधिक धरातल पर एकत्व का द्योतक है-दारुब्रब्म शब्द और ब्रह्म और जीव के निरुपाधिक धरातल पर एकत्व का द्योतक है-ब्रह्मदारु शब्द।श्रीमद्भागवत में अष्टविध प्रतिमा में दारुमयी प्रतिमा का उल्लेख मिलता है।इसीलिए नील मेघमण्डल के समान श्रीजगन्नाथ जी हैं।शंख तथा चन्द्रमा के समान श्री बलभद्रजी हैं।कुमकुम के समान अरुणा सुभद्राजी हैं तथा लाल वर्ण के सुदर्शनजी हैं।भगवान रुद्र ही कृष्ण जी की वंशी हैं।गौरतलब है कि श्रीमंदिर में भगवान जगन्नाथ के सोने वेश में सुशोभित किये जाने की परम्परा सुदीर्घ है। उनको साल में सिर्फ एक बार जगन्नाथ मंदिर के बाहर रथ के ऊपर सोना वेश में सजाया जाता है।इसके अलावा पांच बार श्रीमंदिर के रत्नसिंहासन पर चतुर्धा विग्रहों को सोना वेश में सजाया जाता है।वे पवित्र अवसर हैःकार्तिक पूर्णिमा, पौष पूर्णिमा, डोल पूर्णिमा अथवा दशहरा तथाकुमारपूर्णिमा के दिन।
भगवान जगन्नाथ के सोना वेश की परम्पराः
ओड़िशा के सूर्यवंशी शासकों ने भगवान जगन्नाथ के लिए कीमती आभूषण और सोना दान किया है।जगन्नाथ मंदिर की दीवार पर एक शिलालेख में लिखा है कि गजपति कपिलेंद्र देव ने 1466 ईस्वी में भगवान जगन्नाथ को बड़ी मात्रा में सोने और रत्नों के आभूषण और बर्तन दान किए थे।हलफनामे के अनुसार, भीतरी कक्ष में 50 किलो 600 ग्राम सोना और 134 किलो 50 ग्राम चांदी है।बाहरी कक्ष में 95 किलो 320 ग्राम सोना और 19 किलो 480 ग्राम चांदी है।
श्रीमंदिर प्रशासन पुरी से प्राप्त जानकारी के अनुसार आगामी 17 जुलाई को श्रीमंदिर में मंगल आरती, मइलम, तड़प लागी, अवकाश, वेश संपन्न, गोपाल बल्लभ भोग, सकाल धूप, महास्नान तथा सर्वांग वेश आदि नीति संपन्न होने के बाद चतुर्धा विग्रहों को सोने के वेश में उन्हें रथारुढ़ ही सजाया जाएगा।सिंहारी, पालिया, खुंटिया, भण्डार मेकप, चांगड़ा मेकप सेवायत उन्हें अनेक प्रकार के स्वर्णाभूषणों से सजाएंगे।
सोना वेष के प्रमुख आभूषणः
महाप्रभु जगन्नाथ को श्रीभुज, श्रीपयर, किरीट, चन्द्र, सूर्य, आड़कानी, घागड़माली, कदम्बमाली, तिलक, चन्द्रिका, अलका, झोबा कंठी, स्वर्ण चक्र तथा चांदी के शंख, हरिड़ा, कदम्ब माली, बाहाड़ा माली, ताबिज माली, सेवती माली, त्रिखंडिका, त्रिखंडिका कमरपट्टी आदि आभूषणों से सजाया जाएगा।इसीप्रकार बलभद्र जी को श्रीपयर, श्रीभुज, कुंडल, चन्द्र,सूर्य, आड़कानी, घागड़ा माली, कदम्ब माली, तिलक, चन्द्रिका, अलका, झोबा कंठी, हल, एवं मुसल, बाहाड़ा माली, बाघनख, सेवती माली, त्रिखंडिका कमरपट्टी आदि आभूषण से सजाया जाएगा।देवी सुभद्रा के विशेष आभूषणों में शामिल है-किरीट, कान, चन्द्र सूर्य, घागड़ा माली, कदम्ब माली, दो तगड़ी, सेवती माली आदि। इसप्रकार महाप्रभु जगन्नाथ अपनी माधुर्य लीला( साल के 12 महीनों में कुल 13 उत्सव का मनाया जाना,प्रतिदिन उनका विभिन्न वेश धारण करना,उनका 56 प्रकार का भोग ग्रहण करना,प्रतिदिन हीतगोविंद सुनना आदि शामिल हैं) तथा सोना वेश में अपनी ऐश्वर्य लीलाकर न केवल अपने लीलाश्रेत्र पुरी धाम को आनंदित करते हैं अपितु रथारुढ़ होकर वे सोना वेश धारणकर अपने राज-राजेश्वर रुप को स्पष्ट करते हैं,अपने आपको ओड़िशा का आध्यात्मिक सम्राट बताते हैं।
अशोक पाण्डेय