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सुविचार

सुविचार

20 मई,2023

मनुष्य के दोष
किसी भी मनुष्य के पास दोष अधिक होता है और गुण कम।
मनुष्य में तीन प्रकार के दोष हैं-शारीरिक, मानसिक और बोलने का दोष।
बोलने के दोष में -कटु बोलना, झूठ बोलना,किसी की ग़लत रुप में शिकायत करना और बिना मतलब के वाद-विवाद करने जैसा दोष।
शारीरिक दोष में शामिल हैं -किसी की संपत्ति हड़प लेना,हिंसा करना और पराई स्त्री से शारीरिक संबंध बनाने जैसा दोष।
मानसिक दोष के अंतर्गत: नकारात्मक सोच,लालच,किसी के विषय में गलत सोचना तथा किसी का बिना कारण अनिष्ट करना।
हमसब वैसे तो तीनों प्रकार के दोषों से भरे हैं लेकिन कोशिश जरूर करें कि इनमें से वाणी के दोष से अवश्य बचें?
-अशोक पाण्डेय

18 मई,2023

क्रोध
क्रोध पाप का मूल कारण होता है।इस सृष्टि में विश्वामित्र मुनि के क्रोध से सभी अवगत हैं।
क्रोध निम्न समय में कभी नहीं करना चाहिए –
सुबह में सोकर उठते समय।
रात को सोने के लिए जाते समय।
घर से काम पर निकलते समय।
वापस घर लौटते समय।
पूजा करते समय।
किसी मेहमान के घर पर आने के समय।
-अशोक पाण्डेय

14 मई,2023

मां
मां ममता की, वात्सल्य की और दुलार की स्रोतस्थली है।
मां अपने व्यक्तिगत जीवन में आजीवन दुखों का वरण करती है लेकिन अपने वात्सल्य भाव से अपनी संतान को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति बना देती है। अगर इस सृष्टि में मां नहीं होती तो न देवता होते,न मानव होता और न ही दानव होते, सच कहा जाए तो कोई नहीं होता।मां ब्रह्मा की सर्वश्रेष्ठ रचना है। मां चाहती है कि वह अपनी संतान को हरप्रकार से सुखी और प्रसन्न रखे। तो आइए,आज यह संकल्प लें कि हम सभी अपनी -अपनी मां को आजीवन प्रसन्न रखकर उसकी सेवा करेंगे तथा उसका सम्मान करेंगे!
-अशोक पाण्डेय

12 मई,2023

स्वस्थ रहने के कुछ उपाय
जीवन का सबसे बड़ा धन आपका स्वस्थ शरीर ही है। इसलिए आप सावन महीने में साग न खाएं!
भादो महीने में आप दही न खाएं!
क्वार(कुआर) महीने में आप दूध न पीएं!
कार्तिक में महीने में आ मट्ठा(छांछ) न पीएं!
अगहन महीने में आप जीरा न खाएं!
पूस महीने में आप धनिया न खाएं!
माघ महीने में आप मिश्री न खाएं!
फागुन(फाल्गुन) महीने में आप चना न खाएं!
चैत (चैत्र) महीने में आप गुड़ न खाएं!
वैशाख महीने आप तेल न खाएं!
जेठ महीने में आप राई न खाएं!
आषाढ़ महीने में आप बेल न खाएं!
ऐसा हमारे पूर्वजों ने कहा है।
गौरतलब है कि हिन्दी महीना अंग्रेजी महीना मार्च से आरंभ होता है।
-अशोक पाण्डेय

08 मई,2023

जीवन में खांसी का आना भी जरूरी होता है।
विचार: अशोक पाण्डेय
मनुष्य जीवन सुख-दुख के दो किनारों के बीच चलता है।इस जीवन में कभी सुख आता है तो कभी दुख। दुख का कारण कभी -कभी खांसी भी होती है।एक व्यक्ति खांसी से काफी परेशान था।वह चार डाक्टरों से इलाज कराया फिर भी उसकी खांसी ठीक नहीं हुई।सभी ने एक ही सलाह दी कि वह खट्टा खाना छोड़ दे। वह व्यक्ति एक और डाक्टर के पास गया। डॉक्टर ने कहा कि वह व्यक्ति खट्टा खाता रहे।इससे उसको खांसी तो होती रहेगी लेकिन वह तीन चीजों से बच जाएगा। पहली कि उसके दिन-रात खांसने से उसके घर में कभी चोर नहीं आएगा।दूसरी चीज कि उसको कुत्ते कभी नहीं काटेंगे क्योंकि उसके हाथ में हमेशा डंडा रहेगा और तीसरी चीज कि वह बहुत जल्द बूढ़ा हो जाएगा। मित्रों,मेरी एक नेक सलाह है आपसे कि आप आजीवन खांसी से बचने केलिए खट्टी चीजों, फ्रिज की चीजों और ठंडे मौसम से अवश्य बचें!
-अशोक पाण्डेय

07 मई,2023

महर्षि वसिष्ठ ने क्रोधी विश्वामित्र को कैसे बनाया ब्रह्मर्षि
जानकार यह अच्छी तरह से जानते हैं कि ऋषि विश्वामित्र बहुत क्रोधी थे।वे हमेशा महर्षि वसिष्ठ की आलोचना करते थे। हम सभी जानते हैं कि क्रोध बहुत बुरी बला है। एक दिन विश्वामित्र वशिष्ठ जी की हत्या के लिए जंगल में आए जहां वशिष्ठ जी एक वृक्ष के नीचे बैठकर अपने शिष्यों को ज्ञान दे रहे थे। शाम हो गई ।आकाश में चांद निकल आया।उसी वृक्ष के ऊपर बैठे विश्वामित्र जी सोचे कि अभी तो सभी विद्यार्थी चले गए होंगे, मैं पेड़ के नीचे उतरता हूं और अपने दुश्मन वशिष्ठ की हत्या कर देता हूं।तभी वसिष्ठ जी के‌ एक शिष्य ने आकाश में निकले सुंदर चांद को देखकर उनसे कहा कि आज की रात का चांद बहुत सुंदर है। जवाब में महर्षि वसिष्ठ ने कहा कि यह चांद विश्वामित्र से सुंदर नहीं है। अगर वे अपने क्रोध का त्याग कर दें तो वे सूर्य की तरह ही चमक उठेंगे। विद्यार्थी ने कहा कि गुरुदेव विश्वामित्र तो आपके दुश्मन हैं । वे हमेशा आपकी शिकायत करते हैं । महर्षि वसिष्ठ द्वारा अपनी प्रशंसा सुनकर विश्वामित्र जी वृक्ष से नीचे उतरे और महर्षि वसिष्ठ के चरणों में गिर पड़े। महर्षि वसिष्ठ ने उनको उठाकर गले लगा लिया और उनको महान बताते हुए उन्होंने उनके क्रोध त्याग के चलते ब्रह्मर्षि विश्वामित्र घोषित कर दिया।
आप भी अगर अपने क्रोध का त्याग दें तो आप भी महान बन सकते हैं।
-अशोक पाण्डेय

11 अप्रैल,2023

का”और”को”में *का” को ही चुनें!
-अशोक पाण्डेय
जीवन में सर्वशक्तिमान ईश्वर ही एकमात्र क्षमा करने वाले हैं।उनके साथ हमारा संबंध दो प्रकार का है:”का और “को”रूप में। वैसे तो दोनों संबंध स्थान,काल और पात्र के अनुसार जरुरी है। व्याकरण जाननेवाले जानते हैं कि कारक के चिन्हों को विभक्ति कहा जाता है।कर्म कारक का चिह्न “को” है जबकि संबंध कारक का चिह्न “का” है।शांतिदूत श्रीकृष्ण से अर्जुन ने उनका साथ मांगा था जबकि दुर्योधन ने श्रीकृष्ण की नारायणी सेना मांगी थी। लेकिन सभी जानते हैं कि युद्ध की समाप्ति के उपरांत जीत पाण्डवों की हुई थी न कि कौरवों की। इसलिए जीवन में “का” और “को” दोनों में से किसी एक को चुनना हो तो “का” को चुनें!
-अशोक पाण्डेय

10 अप्रैल,2023

हमारी सबसे बड़ी पूंजी हमारा आत्मविश्वास है।
अनुचिंतक: अशोक पाण्डेय:
इस भौतिक संसार में धन-संपत्ति, मान- मर्यादा, ख्याति, यश, प्रशंसा, सम्मान और लोकप्रियता ही आपकी सबसे बड़ी पूंजी नहीं है।आपका आत्मविश्वास ही आपकी सबसे बड़ी पूंजी है । जो व्यक्ति दिशाहीन हैं, भ्रमित हैं उनको सबसे पहले अपने पर विश्वास करना होगा। हम क्यों ऐसा सोचते हैं कि दूसरों ने हमारा विश्वास तोड़ दिया? हमें तो अपने आप पर विश्वास करना चाहिए। आप अपने आप पर विश्वास करते रहिए और उसे कभी टूटने नहीं दें। इस संसार में आपकी मनोकामनाओं की पूर्ति के मार्ग में सफलता और सफलता की धूप-छांव अवश्य है।पर आप अपने विश्वास को कभी टूटने न दें। आप किस पर विश्वास करें और कब तक करें,यह आप पर निर्भर है। जबतक आप किसी पर विश्वास करें तबतक उसे बनाए रखें।
-अशोक पाण्डेय

09 अप्रैल,2023

आप जो भी करते हैं ऊपरवाला अवश्य देखता है।
-अशोक पाण्डेय
यह शाश्वत सत्य है कि हम अपने आपको दुनिया का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति समझते हैं। यह भी सत्य है कि व्यक्ति की अपनी “सोच” और अपनी “करनी” दुनिया में उसके लिए सबसे अच्छी लगती है। लेकिन ऊपरवाला हमारे सभी अच्छे -बुरे कर्मों को देखता है। सिर्फ दिखावे के लिए कुछ भी करना ग़लत है। मेरा यह मानना है कि जो कुछ भी आप जनसेवा, समाजसेवा तथा लोकसेवा के लिए करें उसके विषय पहले आत्मचिंतन कर लें, सोच- विचार कर लें कि उससे लोगों का हित होता है या नहीं क्योंकि पर- हित जैसा धर्म कोई नहीं है।
-अशोक पाण्डेय

06 अप्रैल,2023

अयोध्यापति रामचंद्र ने एक बार हनुमान के अहंकार का भी नाश किया था
अनुचिंतन: अशोक पाण्डेय
त्रेतायुग की एक रोचक कथा है। अयोध्यापति मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने अपने परम भक्त हनुमान से कहा कि वे तत्काल चित्रकूट जाएं और वहां रखे तरकश को उठाकर लाएं।उस तरकश में कुल 14 साल का रखा फल है जिसे लक्ष्मण लाल ग्रहण नहीं किए थे। हनुमान जी चित्रकूट गये। हनुमान ने बड़ी कोशिश की लेकिन वह तरकस उनसे नहीं उठा। अंत में,वे अपने बल के अहंकार का त्याग कर अपने इष्ट देव मर्यादा पुरुषोत्तम दशरथनंदन अयोध्यापति श्री रामचंद्र जी को याद किये और अपने इष्ट देव की कृपा से वे तरकस उठाकर ला दिए। अयोध्या आकर वे सबसे पहले अयोध्यापति से क्षमायाचना की। मित्रों, याद रखना श्री रामचंद्र एक शाश्वत, यथार्थ और वास्तविक जीवन-दर्शन है जिसके सच्चे प्रचारक हनुमान जी हैं। आप सभी को हनुमान जयंती की बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं!
-अशोक पाण्डेय

05 अप्रैल,2023

महाराज दशरथ के चारों पुत्रों: राम,भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न ने अपने गुरु वशिष्ठ जी के आश्रम में सबसे पहले अक्षर ज्ञान,फिर व्याकरण तथा काव्य आदि की शिक्षा प्राप्त की। उसके उपरांत राजनीति, व्यवहार काव्य,मारण, उच्चाटन, वशीकरण आदि के मंत्र सीखे। उसके उपरांत चारों वेदों, कर्मकाण्ड और क्षत्रिय धर्म आदि की शिक्षा प्राप्त की। उसके उपरांत संजीवनी विद्या, अस्त्र- शस्त्र,बाण चलाने और चक्रव्यूह की जानकारी प्राप्त की। उसके उपरांत बाण कैसे लौटे, लक्ष्यभेदन आदि सीखे। वे ज्योतिष,रमल तथा वीर विद्या सीखे।
-अशोक पाण्डेय

01 अप्रैल,2023

आज का सच
पौराणिक काल से ही एक नारी की सहायता एक नारी ही करती आ रही है और भविष्य में भी करती रहेगी।
-अशोक पाण्डेय

30 मार्च,2023

राम की शक्ति पूजा और शक्ति की देवी मां दुर्गा के दिव्य आशीर्वाद का वास्तविक नाम है-रामनवमी। आपसभी को रामनवमी की बहुत- बहुत शुभकामनाएं!
-अशोक पाण्डेय

25मार्च,2023

मुस्कुराना सीख लें!
जीवन जीने का एक ही सफल सूत्र है-हमसब मुस्कुराना सीख लें!जीवन में सुख और दुख तो आते -जाते रहेंगे।आपको अपने कर्तव्य पथ पर सतत आगे बढ़ना है। ईश्वर की आराधना करनी है।सदा मुस्कुराते रहना है।
कर्म पथ सदा मुस्कुराते रहने का संदेश है। इसलिए जीवन का आनंद मुस्कुराते हुए लीजिए और प्रेम से बोलिए -जय जगन्नाथ!
-अशोक पाण्डेय

22मार्च,2023

पौराणिक और लौकिक हिन्दू मान्यताओं के द्वारा यह पता चलता है कि आज हिन्दू पंचांग, नववर्ष भारतीय विक्रम संवत 2080 का प्रथम दिवस तथा चैत्र नवरात्र का भी प्रथम दिवस है। श्रीश्री जगन्नाथ जी की असीम कृपा से सभी के जीवन में सुख, शांति, समृद्धि, सफलता और खुशी का संचार हो! जो जहां भी रहें, आपसी भाईचारे और प्रेम को बढ़ावा दें!
-अशोक पाण्डेय

7मार्च,2023

जानिए होली के 6 रंगों के विषय में

अनुचिंतन: अशोक पाण्डेय का वैसे तो कुल सात रंग आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप में मान्य हैं जिन्हें इन्द्रधनुष के सात रंग “बैनीआहपीनाला” अर्थात् बैंगनी,नीला,आसमानी,हरा,पीला, नारंगी और लाल रंग हैं जिनका सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिक और सांकेतिक महत्त्व के साथ &साथ मनोवैज्ञानिक महत्त्व भी होता है। इन में से होली के कुल 6 रंग: लाल रंग -सामाजिक शक्ति का प्रतीक है। हरा रंग -सामाजिक समृद्धि का प्रतीक है। नारंगी रंग -सामाजिक जुनून का प्रतीक है। गुलाबी रंग -सामाजिक प्रेम का प्रतीक है। नीला रंग -सामाजिक वफादारी और संपन्नता का प्रतीक है। और हरा रंग -सामाजिक प्रसन्नता का प्रतीक है। इसीलिए होली एक पारिवारिक, सामूहिक और सामाजिक त्यौहार के रूप में रंग -गुलाल के साथ खेली जाती है, मनाई जाती है।
-अशोक पाण्डेय

3मार्च,2023

आपका एक मात्र सच्चा मित्र आप स्वयं हैं।

जी हां,आपका एक मात्र सच्चा मित्र आप स्वयं हैं। इसके लिए आपको आत्मविश्वासी बनना होगा।अपने आप पर भरोसा करना होगा। अपने आप पर निर्भर होना पड़ेगा। अपनी आत्मा में गहन अभिरुचि रखनी होगी। आत्मावलोकन करना होगा।आत्मविवेचन के महत्त्व को समझना होगा। आप स्वयं ही अपने परम हितैषी हैं,इस बात को आपको समझना होगा। इसके लिए आप अपने प्रेम, धैर्य और निष्ठा को आजीवन बनाए रखें! सबके लिए आपके दिल में दर्द हो, करुणा हो, दया हो, सहानुभूति हो और सहयोग हो,बस इसी बात का चौबीसों घण्टे ध्यान आपको रखना होगा।
-अशोक पाण्डेय

23 फरवरी,2023

जीवन में तीन बातें सदा अपनाएं!
-अशोक पाण्डेय
जीवन में आत्मविश्वासी बनकर, सत्यनिष्ठ बनकर तथा सकारात्मक सोच को अपनाकर सबकुछ प्राप्त किया जा सकता है।साथ ही साथ सफलता के तीन मूल मंत्र:लगे रहो।पूछते रहो।और सावधान रहो।-को आजीवन अपनाएं। एक गुरुकुल में दस वर्ष शिक्षा दीक्षा लेने के बाद भी एक शिष्य फेल हो गया। गुरुकुल के गुरु जी ने सभी सफल शिष्यों को उनके अपने अपने जीवन में आजीवन सफल होने का आशीर्वाद देकर उन्हें विदा कर दिया। जो शिष्य फेल हो गया था उसके समीप जाकर गुरुजी ने कहा कि तुम भी गुरुकुल से जाओ और हमेशा मेरा यह तीन मंत्र अपने जीवन में उतारना -लगे रहो, पूछते रहो और सावधान रहो।फेल शिष्य पैदल अपने घर की ओर चल दिया।चलता रहा।एक दिन एक गांव में वह पहुंच गया। वहां पर वह अपनी जीविका चलाने के लिए कुछ काम करने लगा। एक दिन उसको पता चला कि उस राज्य का शासन एक रानी चला रही है लेकिन जो भी उससे शादी करता वह पहली ही रात में एक नाग के काटने मर जाता।वह शिष्य रानी के दरबार में पहुंचकर रानी से विवाह करने का प्रस्ताव रखा। विवाह हुआ और रात में रानी प्रियतम नाग आया लेकिन शिष्य की बुद्धिमानी से मारा गया। रानी भी उस फेल शिष्य को अपना राजा मानकर उसके साथ रहने लगी। आपभी उपर्युक्त तीन बातों को अवश्य अपनाएं!
-अशोक पाण्डेय

21 फरवरी,2023

ऐसा कर्म करें कि देवता भी प्रसन्न हो जाएं
यह संसार एक कर्म क्षेत्र है। इस संसार में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सभी अपना अपना कर्म करते हैं। कर्म राजा भी करता है और उसकी प्रजा भी। भारतीय लोकतंत्र के प्रधानमंत्री से लेकर आमजनता भी अपना अपना कर्म करती है। एक विदुषक से लेकर अपने सुंदर बदन का सौदा करनेवाली वारंगना(वेश्या) भी अपना रोजगार कर जीवन जीते हैं। लेकिन सभी के काम में सत्यनिष्ठा होनी चाहिए। प्राचीन काल की एक सत्य घटना है। उन दिनों पाटलिपुत्र पर प्रियदर्शी अशोक राज कर रहे थे। जैसा कि सभी जानते हैं कि पाटलिपुत्र गंगा नदी के तट पर बसा है जिसमें समय समय पर भयंकर बाढ़ आती रही है (अब नहीं)। सम्राट अशोक को यह जानकारी दी गई कि गंगा में भयंकर बाढ़ आनेवाली है और उसके प्रभाव में पाटलिपुत्र पूरी तरह से डूब जाएगा। वे अपने साथ अपने सलाहकार ब्राह्मण और मंत्रियों को लेकर गंगा तट पर गये। गंगा की लहरें और अधिक तीव्र हो रहीं थीं। चिंतित और परेशान सम्राट अशोक अपने निजी सलाहकार ब्राह्मण और मंत्रियों से उपाय पूछ रहे थे तभी बिंदुमती नामक एक वैश्या वहां आई। उसने आने के साथ ही सम्राट अशोक को प्रणाम किया और अपना परिचय दी।वह गंगा की तीव्रतम जलप्रवाह को हाथ जोड़कर माता गंगा से यह प्रार्थना कि अगर उसने सत्यनिष्ठा से अपना कर्म किया है तो गंगा माता प्रसन्न होकर पाटलिपुत्र को बचा लें।आपको जानकर आश्चर्य होगा कि गंगा का तीव्रतम जलप्रवाह रुक गया और पाटलिपुत्र डूबने से बच गया। प्रियदर्शी सम्राट अशोक ने बिंदुमती का राजकीय सम्मान किया। मित्रों, कर्म में सत्यनिष्ठा बहुत जरूरी है।
-अशोक पाण्डेय

20 फरवरी,2023

भाव रुप में राधाकृष्ण एक हैं।
प्रेम ही सृष्टि का आधार है। प्रेम ही इस सृष्टि का अनुभव है। प्रेम ही राधाकृष्ण है। प्रेम मन से उपजता है। प्रेम के वास्तविक दर्शन करुणा, दया, सहयोग, सहानुभूति और नि: स्वार्थ सेवा के माध्यम से किया जा सकता है। प्रेम त्याग का स्वरूप है। जबतक जीवन है तबतक व्यक्ति विशेष के लिए जीवन है। मेरी समझ से राधाकृष्ण में अटूट भक्ति रखकर हमें अपने आप से प्रेम करना चाहिए।
-अशोक पाण्डेय

13फरवरी,2023

सीता जी की दयालुता
जनकनंदिनी सीता के मन में नारी जाति के प्रति अथाह सम्मान था।वे किसी नारी को असहाय और बिना आभूषण के देखना नहीं चाहतीं थीं। उनकी दयालुता से जुड़ा एक रोचक प्रसंग रामचरितमानस में आया है। एक बार अयोध्यापति श्रीराम और राजरानी सीता एकसाथ अकेले बैठकर आपस में बातें कर रहे थे। महारानी सीता ने अयोध्यापति श्रीराम से अयोध्या के बाजार देखने की इच्छा प्रकट कीं। अयोध्यापति श्रीराम राजरानी सीता को अपने राजमहल के शीर्ष भाग में ले गये जहां से अयोध्या का बाजार स्पष्ट नजर आ रहा था। सीता जी की नजर अचानक एक स्त्री पर पड़ी जो दुबली- पतली थी और बिना आभूषण के थी।उस स्त्री को सीता जी ने राजमहल बुलाया और उसका कुशल क्षेम जाना। पता चला कि उसके पति एक ब्राह्मण थे जो तीर्थ यात्रा पर गये थे लेकिन लौटे नहीं थे।वह अपने पति का घर छोड़कर अपने पिता जी के घर आकर रहने लगी थी। कुछ दिनों के बाद उसके पिता जी भी चल बसे।वह बेचारी करे तो क्या करे?कैसे जीये और अपने बाल बच्चों का पालन पोषण करे। इसी के लिए वह अयोध्या के बाजार में आई थी। राजरानी सीता जी उससे कहा कि वह लक्ष्मण लाल के पास जाय और उनसे एक लाख स्वर्ण मुद्राएं ले ले और आनंदमय जीवन व्यतीत करे। ब्राह्मण कन्या प्रसन्न होकर एक लाख स्वर्ण मुद्राएं लक्ष्मण से सहर्ष प्राप्त कर ली। इतना ही नहीं अयोध्यापति रामभद्र जी की अनुमति से जगत माता सीता जी ने उसे स्वर्णाभूषण देकर विदा किया। ब्राह्मणी अति प्रसन्न होकर सीता माता के श्री चरणों में गिर पड़ी।
आप भी सुपात्र नारी का सम्मान करें!
-अशोक पाण्डेय

12फरवरी,2023

सादगी मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा श्रृंगार है और विनम्रता ही सबसे बड़ा व्यवहार है।

09फरवरी,2023

देवता को संयम रखना चाहिए, राक्षसों को दया और मानव को दान करना चाहिए
-अशोक पाण्डेय
दो अक्षरों-“से”और *वा”का समाहार है-सेवा। यही सेवा हमारी भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म का मूल मंत्र है। महर्षि व्यास ने 18 पुराणों का सार दो शब्दों में बताया है: पुण्य और पाप कहकर।उनके अनुसार परोपकार ही पुण्य है और दूसरों को कष्ट देना ही पाप है। प्रजापति ब्रह्मा जी ने अपनी तीन संतानों:देवता, राक्षस और मानव को “द”अक्षर को अपनाने के लिए कहा जिसमें देवता “दम”अर्थात संयम को अपनाएं।दानव दया को और मानव दान को अपनाएं! आइए,उसी मानव धर्म को हम भी अपनाएं और दम, दया और दान को सही जीवन मूल्य मानकर अपने आपको प्रभुसेवा, गुरु सेवा,संत सेवा तथा समाज सेवा में लगाएं!
-अशोक पाण्डेय

08फरवरी,2023

आज मैंने भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का 88 मिनट का पूरा भाषण सुना। अच्छा लगा। भाषण आत्मविश्वास से ओतप्रोत था। देश के सर्वांगीण विकास के लिए था। मेरे लिए अनुकरणीय था। मित्रों, दलगत राजनीति से ऊपर उठकर उनके भाषण को आप भी सुनें‌ और जनसेवा और लोकसेवा में अपने आपको यथासंभव लगाएं!
-अशोक पाण्डेय

07फरवरी,2023

नि: स्वार्थ सेवा के प्रेरणा स्त्रोत:बादल, सज्जन, पेड़ और जल

-अशोक पाण्डेय
सेवा एक संस्कार है। सेवा सदा निर्दोष है।सतत दोषमुक्त है। सेवा का अभिप्राय है अपने स्वयं के पास उपलब्ध साधनों तथा अपनी शक्ति का दूसरों की भलाई के लिए लगाना, दूसरों की सेवा के लिए लगाना और दूसरों के बुरे दिनों में काम आने के लिए नि: स्वार्थ भाव से उपयोग करना। पेड़, सज्जन, बादल और जल जैसे नि: स्वार्थ सेवक सेवा के आदर्श हैं, प्रेरणास्रोत हैं। मित्रों,अगर हो सके तो अधिक से अधिक पेड़ लगाएं, जलाशय बनवाएं, सज्जनों की संगति करें‌ और प्रकृति की सुरक्षा करें! आपके जीवन का प्रतिपल आपके हाथ से निकल रहा है।ऐसे में आप प्राणीमात्र की सेवा करें।मेरी समझ से यही जगन्नाथ की आप पर श्रेष्ठतम कृपा है।
-अशोक पाण्डेय

06फरवरी,2023

सच्ची सेवा

सेवा चार की करनी चाहिए।ये हैं: माता-पिता, बुजुर्ग गुरु (ब्राह्मण) और अतिथि। इनकी सेवा भी चार प्रकार से करनी चाहिए:तन से,मन से,धन से और सुमधुर वाणी से। उपर्युक्त चारों को देव तुल्य माना गया है। जैसे:मातृ देवो भव।पितृ देवो भव। आचार्य देवो भव। अतिथि देवो भव। धन सेवा की सार्थकता भी चार प्रकार की बताई गई है:अन्न दान,जल दान,गो दान तथा भूमि दान। मेरा यह व्यक्तिगत मत है कि सबसे बड़ी सेवा सुमधुर वाणी की होनी चाहिए क्योंकि उसमें कुछ खर्च भी नहीं है।सुमधुर वाणी बोलने से अपना मन भी खुश रहता है और दूसरे भी खुश रहते हैं।
-अशोक पाण्डेय

04फरवरी,2023

गंगुबाई और जमुना बाई की नृत्य कला

दो जुड़वां बहनें थीं, गंगुबाई और जमुना बाई। दोनों अपने माता -पिता के साथ रहतीं थीं। एक बार उनके घर में लूटेरे आये। लूटेरों के डर से वे भागकर एक जंगल में जाकर छिप गईं। एक ब्राह्मण दोनों को देखा और उन्हें जंगल से अपने घर लाया और उन्हें नृत्य-गायन सिखलाया। गंगुबाई और जमुना बाई दोनों नामी नर्तकी बनकर जगह-जगह जाकर नाचने-गाने लगीं। उन दोनों से अधिक पैसे कमाने के लोभ में एक दिन ब्राह्मण ने दोनों को बेच दिया। एक दिन ब्राह्मण मर गया। ब्राह्मण के बचे पैसे को लेकर दोनों बहनें एक साधु की कुटिया में चलीं गईं और आजीवन आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करती हुईं भजन-कीर्तन करने लगीं। एक दिन उनके अफरात पैसों को लेने के लिए रात में एक लूटेरा आया। लूटेरे ने देखा कि गंगुबाई और जमुना बाई के धन की रक्षा एक शेर कर रहा था। डरकर लूटेरा वापस चला आया। अगले दिन वह पुनः गंगुबाई और जमुना बाई की कुटिया में गया और दोनों को माता कहकर संबोधित किया और उनके चरणों में गिरकर माफी मांगी।और स्वयं उस कुटिया में रहकर श्रीहरि नाम संकीर्तन में अपने आपको लगा लिया। सच बात यह है कि आज भी कन्याएं और बहनें हों तो गंगुबाई और जमुना बाई जैसी हों।
-अशोक पाण्डेय

02फरवरी,2023

श्रीकृष्ण के मित्र सुदामा

आज भी उज्जैन है।आज भी सांदीपनि मुनि श्री का वहां पर आश्रम है जहां पर द्वापर युग में श्रीकृष्ण और सुदामा एक साथ रहते थे,अपने गुरुश्री की सेवा करते थे और मन लगाकर विद्याध्ययन करते थे। कालांतर में श्रीकृष्ण द्वारकाधीश बन गये और सुदामा दीन-हीन गरीब ब्राह्मण। सुदामा का पूरा नाम था सुदामा पाण्डेय। उनकी पत्नी का नाम था सुशीला। सुदामा के घर में कभी भी एक सेर अनाज नहीं रहा। एक दिन सुशीला ने सुदामा से निवेदन की कि सुदामा अपने मित्र श्रीकृष्ण से मिलने द्वारका जाएं।अपने मित्र द्वारकाधीश के दर्शन करें और उनसे अपने जीवनयापन के लिए कुछ मांगकर लाएं। सुदामा ने अपनी पत्नी सुशीला से कहा कि वह बात तो ठीक कह रही है लेकिन द्वारकाधीश श्रीकृष्ण से कुछ मांगने पर उनकी बदनामी सातों लोकों में हो जाएगी।लोग यही कहेंगे कि सुदामा ने इसीलिए श्रीकृष्ण से दोस्ती की है कि द्वारकाधीश श्रीकृष्ण उनकी मदद करेंगे।फिर भी, वे अपनी पत्नी का मन रखने के लिए द्वारका गये। अपने मित्र द्वारकाधीश श्रीकृष्ण के साथ कुल सात दिन उनके राजमहल में रहे। लेकिन उनसे अपने लिए कुछ नहीं मांगा।जब वे अपने गांव वापस लौटे तो उनका गांव द्वारका जैसा दीखा और उनका घर द्वारकाधीश के राजमहल जैसा मिला। पत्नी सुशीला आभूषणों से लदी थी।घर में सभी भौतिक तथा आध्यात्मिक संसाधना मौजूद थे। लेकिन अपार वैभव पाकर भी सुदामा खुश नहीं थे।उन्हें तो आजीवन चौबीसों घण्टे श्रीकृष्ण के नाम की भूख थी और उसी श्रीकृष्ण नाम संकीर्तन में अपने आप को रमा लिए।
-अशोक पाण्डेय

30जनवरी,2023

कुछ विशेष जानने की बातें

हठी कौन है?
मूर्ख कौन है?
पथिक कौन है?
सहनशील कौन है?
मेहमान कौन है?
उत्तर:
हठी नख और केश है।
मूर्ख हैं राजा और दरबारी। राजा इसलिए मूर्ख है क्योंकि उसे धन-दौलत विरासत में प्राप्त होता है। वह बहुत बड़ा ज्ञानी अथवा राजनीतिज्ञ नहीं होता है। राजा का दरबारी इसलिए मूर्ख है क्योंकि वह अपने राजा को खुश करने के लिए गलत बात को भी सही सिद्ध करने में लगा रहता है।
पथिक दो हैं: सूर्य और चंद्रमा।ये दोनों कभी रुकते नहीं हैं, सदैव चलते रहते हैं।
मेहमान भी दो हैं:धन और जवानी।सच तो यह भी है कि इनके जाने में समय नहीं लगता है।
और सहनशील भी दो हैं:धरती और वृक्ष।धरती इसलिए सहनशील है क्योंकि वह अपने ऊपर पाप और पुण्य दोनों का बोझ सहती है।अपनी छाती से अनाज का भण्डार देती है। पत्थर इसलिए सहनशील है क्योंकि उसपर अगर पत्थर भी मारें तो भी मीठे फल ही देता है।
ये शाश्वत सत्य बातें मां सरस्वती ने महाकवि कालिदास को एक घटना क्रम के दौरान बताईं।
-अशोक पाण्डेय

28जनवरी,2023

पांच आवश्यकताएं

जैसा कि सभी जानते हैं कि मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएं चार हैं :भोजन, वस्त्र,आवास और मनोरंजन और हमसब इन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कार्य करते हैं।
लेकिन आज मैं आपको बताऊंगा कि इन आवश्यकताओं के साथ-साथ आपको स्वस्थ और यशस्वी बनाने के लिए निम्न पांच का नित्य ध्यान दें-
1 शारीरिक आवश्यकता: व्यायाम, टहलना तथा शारीरिक श्रम करना।
2 बौद्धिक आवश्यकता: अध्ययन,अध्यापन, लेखन और आध्यात्मिक कथा का श्रवण।
3 भावनात्मक आवश्यकता: श्रेष्ठतम समय व्यतीत करना।
4 आजीविका
5 आध्यात्मिक आवश्यकता: भजन-पूजन और दरिद्र नारायण सेवा।
-अशोक पाण्डेय

25जनवरी,2023

आपका अपना सच्चा मित्र आपका धीरज है।

आनेवाले कल के दिन भारत अपना राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस मनाएगा।सभी को गणतंत्र दिवस के पूर्व दिवस पर अग्रिम बधाई और शुभकामनाएं! आज हमारे अनुचिंतन का विषय है -धीरज।मेरी समझ से आपका अपना सच्चा मित्र आपका धीरज ही है,और कोई नहीं है।यह दुनिया तो मतलबी है।धीरज आपके जीवन में प्रगति का एक मात्र प्रमुख साधन है।अगर आपके पास अटल धीरज है तो यकीन कीजिए आपको जीवन में सुख, शांति, समृद्धि, आनंद, मान-सम्मान, यश, कीर्ति और ऐश्वर्य आदि सबकुछ मिलेगा। मनुस्मृति में सफलता के कुल 10लक्षण बताए गए हैं जिनमें सबसे प्रथम और प्रमुख लक्षण धीरज ही है जिसकी सच्ची परीक्षा आपके जीवन में आपत्ति और विपत्ति आने पर होती है।
धीरज सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र ने धारण किया। धीरज भारतवासियों ने देश की आजादी के लिए धारण किया। धीरज पर्वतराज हिमालय धारण किये हैं। तो आप भी धीरज को अपना सच्चा मित्र बनाएं और जीवन में सफलता पाएं!
-अशोक पाण्डेय

20जनवरी,2023

ऐसी होनी चाहिए गुरु दक्षिणा…

दक्षिणा देने और लेने की शाश्वत परम्परा रही है।दान में गुरु को शिष्य वह दान में देता रहा है जो गुरु और गुरु माता चाहती रहीं हैं। लेकिन आज मैं आपको एक ऐसे दान की जानकारी देना चाहूंगा जो सचमुच अनोखे दान के रुप में अमर रहेगा। त्रेता युग की बात है।विदेह राजा जनक से व्यासपुत्र शुकदेव जी ज्ञान अर्जित कर उन्हें गुरु दक्षिणा में दान देने के उनकी इच्छा जाननी चाही। राजा जनक ने कहा कि उनको दान में शिष्य का सबसे बेकार चीज चाहिए। शिष्य शुकदेव जी सोचे कि वे अपने गुरु को धरती, मिट्टी, पत्थर और कूड़े-कचरे में से कोई एक दान में दे देंगे। लेकिन जब वे एक -एक के पास गये तो सभी उपयोगी लगे। न केवल व्यक्ति के लिए अपितु सृष्टि के संचालन के लिए।तभी शुकदेव जी को उनके अन्तःकरण से आवाज आई कि उनका अपना अहंकार जगत के लिए बेकार है, मिथ्या है। वे अपने गुरु विदेह राजा जनक के पास गये और अपने अहंकार को दान में दे दिए। गुरु जनक ने शिष्य शुकदेव जी को गले से लगा लिया। मित्रों,आप भी गुरु दक्षिणा में अपने गुरु का सम्मान करते हुए उनको गुरु दक्षिणा में अपने सभी प्रकार के अहंकार को समर्पित कर दें!
-अशोक पाण्डेय

19जनवरी,2023

जयदेव के गीत गोविंद का प्रताप
अनुचिंतक: अशोक पाण्डेय

1986, अगस्त से मैं भुवनेश्वर में रहता हूं। श्री जगन्नाथपुरी नियमित जाता हूं।जगत के नाथ के दर्शन करता हूं। जगन्नाथ जी सेवायत मुझे बताते हैं कि जगन्नाथ जी प्रतिदिन रात को शयन से पूर्व कवि जयदेव की अष्टपदी का सुमधुर गायन सुनते हैं। इस प्रसंग में जब मैंने पता लगाया तो पता चला कि एक बार एक माली कन्या जगन्नाथ जी को फूल निवेदित करने के लिए फूलों के बाग से फूल तोड़ रही थी और खुशी में कवि जयदेव की अष्टपदी के पांचवें सर्ग की ये पंक्तियां -“धीर समीरे यमुना तीरे वसति वने वनमाली”गुनगुना रही थी।श्री जगन्नाथ जी उसके सुमधुर गायन को सुनकर उस कन्या के पीछे -पीछे चलने लगे। संगीत सुनने में वे ऐसे लीन हो गये कि उनको अपने दिव्य परिधान का खयाल तक नहीं रहा।उनका दिव्य परिधान कांटों में फंस गया और जगह-जगह से फट गया। कन्या के गीत गोविंद के पांचवें सर्ग के सुमधुर गायन के बंद करते ही वे अपने श्रीमंदिर लौट आए। श्री जगन्नाथ जी के मुख्य सेवायत के आदेशानुसार तत्काल उस कन्या को श्रीमंदिर में बुलाया गया ।उस माली कन्या ने श्रीमंदिर में श्री जगन्नाथ जी को वही जयदेव की अष्टपदी का सुमधुर गायन कर जगन्नाथ जी को प्रसन्न कर दिया। -यह है कवि जयदेव की अष्टपदी का प्रताप जिसे श्रीमंदिर में श्री जगन्नाथ जी को प्रतिदिन शयन से पूर्व सुनाया जाता है और जिसे सुनकर श्री जगन्नाथ जी रात्रि विश्राम करते हैं।यहां अब तो बोलना ही पड़ेगा -“जय जगन्नाथ”।
-अशोक पाण्डेय

18जनवरी,2023

महाजन हो तो सदाव्रती जैसा
-अशोक पाण्डेय

महाजन का अर्थ सज्जन से होता है लेकिन सामान्य बोलचाल में महाजन बनिया को कहते हैं जिसका स्वभाव एक कंजूस का स्वभाव होता है। बनिया अगर सच्चा बनिया है तो वह दो ही परिस्थितियों:खाट नहीं तो आंट में वह भी लाचार होकर खर्च करता है।अगर किसी व्यासपीठ से कथावाचक बनिया के वास्तविक स्वभाव की कथा सुनाते हैं तो सामने बैठे बनिया जन अपने संस्कारगत स्वभाव के विषय में सुनकर अति प्रसन्न होते हैं। लेकिन आज मैं एक ऐसे बनिया की वास्तविक कहानी सुनाता हूं जो अपनी कमाई से साधु -महात्माओं की दिल खोलकर सेवा करता था और जो अर्जित धन बच जाता था उसी में बड़े ही संतोष के साथ अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करता था। सदाव्रती महाजन के सुनाम की चर्चा चारों तरफ थी। एक दिन एक साधु उसके घर आया।सदाव्रती ने उसका खूब आदर-सत्कार किया। साधु उसके आतिथ्य सत्कार से इतना प्रसन्न हुआ कि वह सदाव्रती महाजन के घर रहने लगा।एक दिन साधु को सदाव्रती के बेटे को आभूषणों से लदा देखकर उसे लालच आ गई। साधु उसके बेटे को पास के जंगल में ले जाकर उसकी हत्या कर दी और उसका सारा आभूषण ले लिया। दूसरे दिन साधु ने यह खबर फैला दी कि सदाव्रती महाजन के बेटे को जंगल के शेर ने खा लिया। यह खबर सुनकर सदाव्रती ने अपने बेटे का अंतिम संस्कार कर दिया। ठीक चार महीने के बाद एक और साधु सदाव्रती महाजन के घर आया और उसके बेटे से मिलने की इच्छा प्रकट की। पता चला कि उसका बेटा चार महीने पहले मर चुका है।उसको एक शेर अपना आहार बना चुका है। साधु को यकीन नहीं हुआ और जब वह अपनी आन्तरिक दिव्य दृष्टि से देखा तो महाजन के अच्छे कर्मों से उसका इकलौता बेटा जीवित था। श्रीहरि ने उसकी परीक्षा ली थी।
वह सदाव्रती को अपने साथ बेटे के अंतिम संस्कार वाली जगह पर ले गया। साधु ने ध्यान किया और सदाव्रती महाजन का बेटा मुस्कराते हुए सामने खड़ा हो गया। सदाव्रती महाजन ने उसे गले लगा लिया।बड़ा होकर सदाव्रती महाजन का बेटा अपने पिता जी से बड़ा दानी बना। मित्रों,जो कुछ भी आपके पास है उसका उपभोग समाजवादी तरीके से करें! वही आपके लिए स्वर्ग की सीढ़ी तैयार करेगा।
-अशोक पाण्डेय

17जनवरी,2023

राम के नाम के उच्चारण का आध्यात्मिक महत्त्व
-अशोक पाण्डेय

हमसभी जानते हैं कि हिन्दी वर्णों के उच्चारण स्थान कण्ठ,जीभ, दांत,होंठ ,मूर्द्धाऔर नाक आदि हैं।
*राम के नाम के उच्चारण में रा” का उच्चारण करते समय मुंह खुलता है और “म”के उच्चारण में मुंह बंद होता है। भगवान शिव हमेशा राम के नाम का स्मरण और उच्चारण किया करते थे जिससे उनके मन से नकारात्मक ऊर्जा और सोच-विचार बाहर निकले और मुंह बंद करने पर वे सब पुनः भीतर प्रवेश न कर सकें। उनके भीतरी मन में सदैव सकारात्मक ऊर्जा,सोच और विचार कायम रहें। इसक्रम में एक रोचक प्रसंग है। जब आदिकवि वाल्मीकि ने कुल एक सौ करोड़ संस्कृत श्लोकवाली रामायण की रचना की तो उसे वे भगवान शिव को भेंट किए। भगवान शिव ने कहा कि यह अद्वितीय रचना तो आपने देवता,दानव और मानव के कल्याणार्थ की है। इसलिए मैं इसे देवता,दानव और मानव तीनों में बराबर -बराबर बांट देता हूं।और भगवान शिव ने वही किया। एक श्लोक बच गया जो उन्होंने अपने पास रख लिया जिसमें सिर्फ “राम”था। मित्रों,राम के नाम का उच्चारण कर, स्मरण कर जब भगवान शिव खुश हो सकते हैं तो आप क्यों नहीं? तो आइए,पूरी आस्था, भक्ति और प्रेम के साथ “राम”के नाम का नित्य उच्चारण करें और अपने अपने जीवन को सफल करें!
-अशोक पाण्डेय

13जनवरी,2023

संस्कृति क्या है?

बड़ा ही कठिन प्रश्न है -संस्कृति और उससे भी कठिन है संस्कृति को परिभाषित करना।
वास्तव में‌ संस्कृति समाज के प्रति व्यक्ति का अपना व्यक्तिगत लगाव और रवैया है । समाज के कल्याणार्थ उसकी विशेष व्यक्तिगत अभिरुचि है। भारतवर्ष की संस्कृति ऋषि -मुनियों की तपस्या, त्याग और साधु(सज्जन) विचार पर आधारित है जिसमें करुणा, दया, सहयोग, परोपकार, शांति, मैत्री और आतिथ्य सत्कार आदि है।उसमें समता, ममता और विश्व मानवता को जोड़ने की क्षमता भी है।
भारतवर्ष की संस्कृति हमें प्रकृति उपासना का मंत्र देती है। भारतवर्ष की संस्कृति आज के “एज आफ कमन मैन” के युग में नि: स्वार्थ भाव से मानव सेवा और मानव प्रेम का संदेश देती है। आइए, हमसब अपनी उस सनातनी संस्कृति को पश्चिम के चकाचौंध से बचाएं!
-अशोक पाण्डेय, राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त

12जनवरी,2023

दान देने से बचे धन का ही उपभोग करें!
-अशोक पाण्डेय

सुनने में आपको अवश्य अटपटा लग रहा होगा कि “दान से बचे धन का ही उपभोग करें!”लेकिन सच यही है कि जो अपने माता -पिता, देवता, अतिथि और आश्रितों का दिल से यथासंभव दान देकर बचे हुए धन से अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करता है वास्तव में उसी पुण्य की प्राप्ति होती है। एक राजा था।उसका जीवन भी उपर्युक्त विचारों पर आधारित था। लेकिन उसने भी अनजाने में एक ग़लती हो गई जिसके फलस्वरूप उसके मरने पर यमराज के दूत आये और कुछ समय के लिए उसे यमलोक ले गये। राजा था तो संतमना दानी, इसलिए उसके पुण्य प्रताप से पूरा यमलोक खुशनुमा हो उठा।बड़े से बड़े पापी जो यमलोक में थे राजा के शरीर से आनेवाली पुण्य की खुशबू से प्रसन्न हो गए और राजा से निवेदन किए कि वह कुछ दिन और यमलोक में रहे जिससे कि यमलोक में भुगत रहे शारीरिक पीड़ा से कुछ देर के लिए उन्हें छुटकारा मिल सके। राजा ने बड़े ही विनम्र भाव से कहा कि उनको भी (राजा को भी)इस यमलोक में पापियों के शारीरिक कष्टों से कष्ट हो रहा है। इसलिए वह तबतक यमलोक से नहीं जाएग जबतक पापी यहां से कष्ट मुक्त नहीं हो जाते हैं। यमराज के दूतों ने राजा से यमलोक से वापस स्वर्ग लोक जाने का आग्रह किया। लेकिन राजा तबतक यमलोक से नहीं गया जबतक सभी पापी अपने अपने पापों से मुक्त नहीं हुए। देवराज इन्द्र राजा पर प्रसन्न हुए और अपने विमान से राजा को स्वर्ग लोक ले गए। अब तो होश में आइए।”चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए”-के विचार से ऊपर उठकर कड़ाके की ठंड से लोगों को राहत दिलाएं। कुछ तो पुण्य कार्य करें!
-अशोक पाण्डेय

10जनवरी,2023

सात ऋषियों के विषय में जानें!

इस सृष्टि में धर्म और मर्यादा की रक्षा के लिए कुल सात ऋषि मानसपुत्रों को ब्रह्मा जी ने भेजा। इन्हीं सप्तर्षि के अपने तप, दिव्य शक्ति और दिव्य ज्ञान से इस संसार में सुख और शांति कायम है। ये सप्तर्षि हैं-मरीचि,अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य,पुलह,क्रतु और वशिष्ठ। महर्षि वशिष्ठ क्षमा की प्रतिमूर्ति हैं। एकबार विश्वामित्र और वशिष्ठ में तपस्या और सत्संग को लेकर तर्क -वितर्क आरंभ हुआ कि दोनों में बड़ा कौन है?
दोनों शेषनाग जी के पास गए। शेषनाग जी ने बताया कि आधे क्षण के सत्संग की बराबरी हजारों वर्ष की तपस्या भी कदापि नहीं कर सकती है। साधुजन, प्रतिदिन सप्तर्षि की पूजा करें और जितना भी समय मिले , सत्संग करें!
-अशोक पाण्डेय

06जनवरी,2023

वसंत का रंग प्रेम है जो सृष्टि को सुन्दर बनाता है।
अनुचिंतक:
अशोक पाण्डेय

पौराणिक मान्यता के आधार पर इस सृष्टि के निर्माण की तिथि चैत्र, शुक्लपक्ष प्रतिपदा है। ऋतुराज वसंत इसको रंगीन और सुन्दर बनाये। इन्द्रधनुषी सातों रंगों से सजाया। सबसे गहरा, गाढ़ा और आधारभूत रंग प्रेम से इसे सजाया।उसी प्रेम का संदेश सीता -राम और राधा -कृष्ण देते हैं। प्रेम ही वह पवित्र भाव है जो मानव और प्रकृति दोनों में सारे रंगों,रसों और सौंदर्यों में समाहित है। इसप्रकार ऋतुराज वसंत और प्रेम जीवन के असली स्वरूप के दर्शन कराते हैं। इसीलिए सुख-दुख,मिलन-वियोग और आशा-निराशा ने हमारा जीवन पूर्ण होता है। आइए, आगामी 26जनवरी को सरस्वती पूजा करें और वसंत पंचमी मनाएं!
-अशोक पाण्डेय

04जनवरी,2023

तीन शत्रु

इस मोह-माया के संसार में अनगिनत शत्रु हैं जिनमें मुख्यत: तीन शत्रु ऐसे हैं जिनसे हमें बचने की आवश्यकता है। पहला है-अधिक से अधिक धन का लोभ। दुनिया के अधिकांश काम धन प्राप्ति के लिए होते हैं। दूसरा शत्रु है-लोगों से मान-सम्मान तथा इज्ज़त पाने की चाह।यह हमारा ऐसा शत्रु है जो हमको बर्वाद कर देता है। हमारा तीसरा शत्रु है- लोकप्रिय बनने अथवा होने की अभिलाषा।इस दुनिया में सभी लोकप्रिय होना चाहते हैं।जैसे: रावण,कंस और दुर्योधन आदि। मेरा यह मानना है कि हमें सदाचारी बनकर अपने आपको भगवान की सेवा -भक्ति में लीन रखना चाहिए। आजीवन कार्यशील, कर्मवीर और संतोषी बनना चाहिए।
-अशोक पाण्डेय

31दिसंबर,2022

हिम्मती बनें!
अशोक पाण्डेय

हिम्मत और साहस रखने वाले ही समाज में परिवर्तन ला सकते हैं।
यह सच ही कहा गया है कि हिम्मत और साहस रखनेवाले की मदद स्वयं जगन्नाथ करते हैं।
एक दिन जंगल का राजा शेर अपनी मांद से निकला ।उसकी मुलाकात खरगोश और लोमड़ी से हुई । शेर ने पूछा कि जंगल का राजा कौन है? दोनों ने कहा कि शेर ।वहीं पर एक हाथी चुपचाप खड़े पेड़ की टहनियां तोड़कर खा रहा था।शेर उसके पास जाकर उससे पूछा कि जंगल का राजा कौन है? हाथी ने शेर को अपने सूंड में लिया और घूमा- घूमाकर जमीन पर पटक दिया।शेर की कमर टूट गई।शेर ने हिम्मत और साहस वाले हाथी से कहा कि वह उसको सूंड में लिए बिना भी मुंह से बता सकता था।
आपके पास भी हिम्मत और साहस है।
-अशोक पाण्डेय

30दिसंबर,2022

सभी के लिए स्वस्थ लंबी आयु तथा आत्मनिर्भरता का वर्ष हो:2023!
-अशोक पाण्डेय
राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त.

समय परिवर्तनशील है।देखते ही देखते वर्ष 2022 अपने बुढ़ापे का दंशन भोगकर समाप्त हो रहा है और नवजात नूतन वर्ष:2023 का शुभारंभ हो रहा है। इसलिए आप सबके लिए तथा अपने लिए भी मैं, पुरुषोत्तम भगवान जगन्नाथ जी से यह प्रार्थना करता हूं कि वे हमसभी को स्वस्थ लंबी आयु तथा आत्मनिर्भरता का आशीर्वाद दें! काल के क्रम तीन हैं:भूत, वर्तमान तथा भविष्य। भूतकाल दुखदाई होता है। इसलिए वर्तमान में जीना सीखें। वर्ष -2023 में आत्मनिर्भर बनने का संकल्प लें!उसके लिए कार्य करें तथा अपने साथ -साथ अपने विकासशील भारत को विकसित और आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग दें! अपने अहंकार और प्रतिशोध का त्याग करें अपने आपको स्वावलंबी तथा आत्मनिर्भर बनाने में अपने को लगाएं!
-अशोक पाण्डेय

29दिसंबर,2022

एक अकेला
इस मोह-माया की दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति अकेला आया है।
लेकिन सामाजिक प्राणी होने के नाते उसका सम्यक विकास समाज में ही होता है। लेकिन प्रतिभा संपन्न व्यक्ति (तीन प्रकार की प्रतिभा : विद्या की, चरित्र की और धन की)अकेले ही अर्जित करता है। लेकिन उसकी तारीफ उसका परिवार,समाज, राष्ट्र और पूरा विश्व करता है। मित्रों,नया साल आ रहा है। जगन्नाथ जी से मेरी एक ही प्रार्थना है कि वे सभी को प्रतिभावान, चरित्रवान तथा ऐश्वर्यवान बनाएं! लेकिन याद रखें हमसब को अकेले ही दुनिया से जाना है।
-अशोक पाण्डेय

28दिसंबर,2022

अपने जीवन को मूल्यवान बनाएं!
-अशोक पाण्डेय
आपके जीवन में किसी से प्रतिशोध लेने और अपनी उन्नति के विचार सदैव रहते हैं। जो व्यक्ति प्रतिशोध की आग में हर पल जलता है,उसका जीवन नरक है और जो व्यक्ति अपने व्यक्तिगत जीवन को मूल्यवान बनाने के लिए प्रति पल प्रयास करता है।उसके लिए मन,वचन और कर्म से काम करता है , वास्तव में उसी व्यक्ति का जीवन मूल्यवान है।एक शिक्षक के दो परम प्रिय शिष्य थे। दोनों को शिक्षित कर शिक्षक ने दोनों को कलश दिये और यह निर्देश दिया कि तुम दोनों के भावी जीवन में जो सबसे अच्छा मिले,इस कलश में डालकर रखदेना। कालांतर में मैं आकर स्वयं देखूंगा। कुछ वर्षों के बाद शिक्षक अपने दोनों परम प्रिय शिष्यों के घर गया और अपने द्वारा दिए गए कलशों को मांगकर देखा। एक शिष्य के कलश में सिर्फ कंकड़-पत्थर थे और दूसरे के कलश में स्वर्ण के आभूषण। शिक्षक ने पहले से पूछा कि ये क्या हैं? उसने उत्तर दिया कि ये उसके जीवन की कठोर प्रतिशोध की स्मृतियां हैं। दूसरे ने बताया कि मेरे जीवन में चार खास खुशियां आईं-पहली, जब मेरा विवाह हुआ।दूसरी, जब मैंने अपने खुद का घर बनवाया।तीसरी, जब मैं आईएएस अधिकारी बना और चौथी, जब मेरे घर मेरा बेटा जन्म लिया।और इन चार खुशियों के लिए मैंने चार स्वर्ण के आभूषण बनवाकर कलश में रख दिया। शिक्षक प्रसन्न हुआ।
मित्रों, प्रतिशोध से कुछ नहीं मिलेगा। आप भी अपने – अपने जीवन को मूल्यवान बनाएं!
-अशोक पाण्डेय

27दिसंबर,2022

प्रेम
प्रेम सृष्टि का आधार है। प्रेम ही शिव और शक्ति है। प्रेम ही विष्णु -लक्ष्मी का संयोग है। प्रेम ही ब्रह्मा की सृष्टि है। प्रेम ही राधा- कृष्ण का मिलन है। प्रेम ही मन का श्रेष्ठतम भाव है। प्रेम चार प्रकार के हैं: ईश्वरीय प्रेम, पारिवारिक प्रेम, मित्र प्रेम और पति-पत्नी प्रेम। जिस मन से प्रेम उपजाता है उसी मन से सौंदर्य भी।यह सच है कि प्रेम की आत्मा सौंदर्य है। सौंदर्य ही भागवत है। प्रेम में आसक्ति होती है। प्रेम समर्पण है। प्रेम त्याग है। आइए,नव वर्ष: 2023 में प्रेम के बहुआयामी स्वरूप को व्यापक रूप में अपनाएं और आत्मनिर्भर बनें!
-अशोक पाण्डेय

26दिसंबर,2022

भरोसा
यह दुनिया मतलबी है। इस दुनिया में सभी मतलब के यार हैं। इस दुनिया में आप जिसपर भरोसा करेंगे वही आपको सबसे पहले धोखा देगा। इस दुनिया की दोस्ती पैसों की है।पैसा जबतक आपके पास है ,आपके एक नहीं हजारों दोस्त मिल जाएंगे लेकिन आपका पैसा जैसे ही खत्म हो जाएगा आपका दोस्त आपसे बात भी नहीं करेगा। दो मित्र थे। दोनों में गहरी दोस्ती थी। लोग दोनों को दो शरीर लेकिन आत्मा एक मानते थे।एक दोस्त धनी था और दूसरा मध्यम वर्गीय।मध्यम वर्गीय दोस्त अचानक धनी मित्र से अलग हो गया और उसके विरुद्ध घूम घूम कर शिकायत करने लगा। उसके व्यवहार, आचरण आदि की शिकायत करने लगा। एक दिन अचानक दोनों की मुलाकात हो गई।धनी मित्र ने कहा कि तुम यह क्या कर रहे हो? मैं आज तुम्हारे लिए इतना बुरा हो गया हूं। मध्यमवर्गीय मित्र ने जवाब दिया कि मित्र यह दुनिया मतलबी है। मैं भी मतलबी हूं। आपने मेरे ऊपर भरोसा किया यह आपका दोष है।
क्या समझे?
-अशोक पाण्डेय

25दिसंबर,2022

अनन्त भगवान की पूजा करें!
अनन्त भगवान स्वयं विष्णु भगवान हैं जिनकी नित्य पूजा आवश्यक है। वे श्रेष्ठ पालनकर्ता, श्रेष्ठ गुणदायक तथा श्रेष्ठ वृद्धिदायक हैं।वे चौदह लोकों का पालन स्वयं चौदह रुपों में करते हैं। अनन्त धागा धारण करनेवाले का वे सभी दुखों, पापों और कष्टों को दूर करते हैं।तो आइए आज से हमसब नित्य अनन्त भगवान की पूजा करने और अनन्त धागा धारण करने का संकल्प लें!
-अशोक पाण्डेय

22दिसंबर,2022

सहानुभूति
जीवन का सबसे अच्छा गुण सहानुभूति ही है। इसीलिए यह सच ही कहा गया है कि सहानुभूति पैसे से भी अधिक मूल्यवान होती है। पैसा किसी से लेकर उसे लौटाया जा सकता है‌ लेकिन सहानुभूति नहीं।
दो मित्र थे। एक धनी और दूसरा गरीब था। एकबार गरीब मित्र बीमार पड़ा। धनी मित्र ने उसे पैसे देकर उसका सही इलाज कराया। कुछ दिनों के बाद गरीब मित्र स्वस्थ हो गया। अगली बार धनी मित्र बीमार पड़ा। गरीब मित्र के पास पैसे नहीं थे कि वह अपने धनी मित्र की पैसों से मदद कर पाता। गरीब मित्र ने अपने धनी मित्र की खूब सेवा- सुश्रुषा की। कुछ दिनों के बाद धनी मित्र गरीब मित्र की सेवा-सुश्रुषा से के चलते स्वस्थ हो गया। एक तरफ धनी मित्र के पास धन‌ था,पैसा था जिससे उसने अपने गरीब मित्र की सहायता की। लेकिन गरीब मित्र के पास भले ही पैसा नहीं था, सेवा और सहानुभूति तो थी ही।
मित्रों,आपके पास धन का होना सौभाग्य की बात है लेकिन किसी के पास सेवा-सहानुभूति का होना संस्कार की बात है।
इसलिए आप धनी होकर भी सहानुभूति अवश्य रखें!
-अशोक पाण्डेय

21दिसंबर,2022

अपनी-अपनी सोच
मनोविज्ञान कहता है कि प्रत्येक मनुष्य के सोचने का दायरा सीमित होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो प्रत्येक व्यक्ति की सोच अपनी होती है और वह उसी अपने दायरे में ही अपना जीवन जिता है। एक कुंए का मेंढक यह सोचता है कि उसके लिए सारी दुनिया सिर्फ उसी कुएं तक ही सीमित है जिसमें वह रहता है।मेरे आज के इस विचार के दो अर्थ हैं। मान लीजिए मैं आपको दिलोजान से चाहता हूं। मैं आपके लिए सबकुछ करता हूं।यह मेरी अपनी सोच है लेकिन आप मुझे उतना ही महत्त्व देते हैं जितना आप मेरे विषय में सोचते हैं। मैं आपके लिए अपनी ओर से वह सबकुछ करता हूं जो मेरे साम्यर्थ से संभव होता है। लेकिन आप मेरे साथ उस अनुपात में व्यवहार नहीं करते जितना कि मैं आपसे मैं अपेक्षा रखता हूं। मुझे तकलीफ़ उस वक्त अधिक होती है जब आप मेरे सामने ही दूसरों को हमसे अधिक महत्त्व दे देते हैं।
सच तो यही है कि जीवन की यही सच्चाई है। मित्रों, तकलीफ़ तो होता है ऐसी स्थिति आने पर फिर भी धैर्य से रहना सीखें।आपका महत्त्व समय आने पर सबको समझ में आ जाएगा।बस अपनी सोच को सकारात्मक बनाए रखें और सदा दूसरों को सम्मान देते रहें!
-अशोक पाण्डेय

20दिसंबर,2022

जीवनोपयोगी कुछ बातें:
हिन्दी कथासम्राट प्रेमचंद की एक बात जो मैंने उनकी कहानियों के पठन-पाठन से जो सीखी वह यह है कि महान पुरुष बनने के लिए मनुष्य को उसी प्रकार विनम्र बनना चाहिए,झुकना चाहिए जैसे:फल से लदी डालियां और जल से भरे आकाश के बादल । ज्ञान और धन पाकर विनम्र बनें! भारतवर्ष के महान राष्ट्रनिर्माता चाणक्य की तरह कुटनीतिज्ञ बनें! आध्यात्मिक गुरु रवीन्द्र नाथ टैगोर की तरह जिज्ञासु बनें!
भरतलाल जी की तरह त्यागी बनें! और “सबपर राम तपस्वी राजा* बनें!
अभिप्राय यह है कि राजा अगर बनें तो मर्यादा पुरुषोत्तम राजा राम की तरह तपस्वी राजा बनें!
-अशोक पाण्डेय

17दिसंबर,2022

नौ ग्रहों की पूजा अवश्य करें!
-अशोक पाण्डेय
हमारे मन, नेत्र, रक्त, ह्रदय, ज्ञान, तेज, शारीरिक स्वस्थता, प्राण वायु और अपान वायु को आजीवन स्वस्थ रखने के लिए नौ ग्रहों: चंद्रमा, सूर्य, मंगल, बुध,वृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु की नित्य पूजा आवश्यक है। हमारा मन चंचल है।हमारी कर्मेंद्रियां दिक्भ्रमित हैं। शरीर अस्वस्थ रहता है। नौ ग्रहों में मन को नियंत्रित चंद्रमा करते हैं। आंखों को स्वस्थ और रोशनी सूर्य प्रदान करते हैं। मंगल ग्रह के द्वारा हमारा रक्त शुद्ध और निरंतर हमारे शरीर में प्रवाहित होते रहता है। हमारे हृदय को बुध ग्रह नियंत्रित करते हैं। हमारे व्यक्तिगत ज्ञान को नियंत्रित करते हैं बृहस्पति ग्रह। हमारी तेज शक्ति को दिशा देते हैं शुक्र ग्रह। हम आजीवन स्वस्थ रहते हैं शनि ग्रह की कृपा से। हमारे प्राणवायु नियंत्रित हैं राहु ग्रह की कृपा से और केतु ग्रह के द्वारा हमारा अपानवायु नियंत्रित होता है। नया साल 2023 आनेवाला है। इसलिए नौ ग्रहों के पूजन का मन बनाएं!
-अशोक पाण्डेय

16दिसंबर,2022

समाज से लुप्त हो रहा है त्याग
त्याग जीवन जीने का एक ऐसा ढंग है जिसमें थोड़े में संतोष करने, रुखा- सूखा खाकर जीने,मोह- माया से दूर रहकर जीवन जीने तथा राजा जनक की तरह विदेह बनने की अनुकरणीय प्रेरणा विकसित ही नहीं होती।
जो त्यागी होता है वह दूसरों के दुख में सहयोग, दया,मदद, सहानुभूति, करुणा और आत्मीय का भाव अपने अंदर विकसित कर नहीं सकता है। दूसरों के लिए जीना सीख ही नहीं सकता है।
राम, कृष्ण, गौतम और गांधी ने हमें त्याग का पावन संदेश दिया है।
एक किसान अपने शारीरिक सुखों का त्याग कर जाड़ा, गर्मी और बरसात में अपने खेतों में अनाज उपजाता है।वह स्वयं भूखा रहता है लेकिन हमसब को अन्न खिलाता है। त्याग का संदेश पक्षी और चींटी आदि भी देते है।मां जैसा त्याग कहां मिलेगा?मां-बाप अपने बच्चों के भविष्य संवारने के लिए अपने समस्त सुखों का त्याग कर देते हैं। त्याग के संबंध में सबसे बड़ी बात तो लालबहादुर शास्त्री जी की रही है।वे बचपन से लेकर आजीवन अगर अपने शारीरिक सुखों का त्याग नहीं करते तो लोग उन्हें “गुदड़ी का लाल” नहीं कहते और वे भारत के प्रधानमंत्री नहीं बनते।उनका अमर नारा-“जय जवान,जय किसान” आज के लिए आदर्श नहीं बनता। भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी अगर त्यागी और तपस्वी जीवन नहीं जीते तो आत्मनिर्भर भारत की ओर हमसब अग्रसर नहीं होते।उनके लिए-“सबपर राम तपस्वी राजा”वाली बात लागू नहीं होती। लेकिन बड़े ही दुख के साथ यह कहना पड़ता है कि आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में तेजी से त्याग में ह्रास हो रहा है और जबतक समस्त भारतवासी त्याग को पूरी तरह से अपनाएगा नहीं तबतक भारत आत्मनिर्भर बन ही नहीं सकता है।
-अशोक पाण्डेय

 

14दिसंबर,2022

किसी की आदत कभी नहीं बदलती है।
-अशोक पाण्डेय
यह सच है कि किसी की अच्छी -बुरी आदत हमेशा और आजीवन उसके साथ रहती है।बचपन से लेकर जवानी तक वह आदत फूलती-फलती है और बुढ़ापे में वह उस व्यक्ति विशेष के स्वभाव के रूप में स्थाई रूप से परिणित हो जाती है। एक चोर था। उसकी आदत थी कि वह हर दिन चोरी करता था। उसकी चोरी करने की आदत ऐसी हो गई कि वह कई दिन सभी के सामने सामूहिक रूप से मार खाया फिर भी चोरी करने की आदत उसकी गई नहीं। एक दिन चोरी करते पकड़ा गया और लोगों ने मारकर उसका हाथ-पांव तोड़ दिया। सभी के सामने उसने प्रतिज्ञा ली कि वह जीवन में कभी चोरी नहीं करेगा। लोगों ने उसे लेजाकर साधुओं के मठ में रख दिया। वह चोर गेरुआ वस्त्र पहनकर साधु हो गया फिर भी चोरी करने की उसकी आदत गई नहीं।रात में जब सभी साधु सो जाते तो वह उठता और साधुओं की खड़ाऊ को बदल देता।एक रात वह पकड़ा गया और उसे मठ से निकाल दिया गया।
मित्रों,अच्छी आदत अपनाओ।
-अशोक पाण्डेय

13दिसंबर,2022

मिलनसार बनें!
मिलनसार बनना एक संस्कार है,एक विलक्षण गुण है जिसके माध्यम से हम दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। मिलनसार व्यक्ति के अंदर अनेक गुण स्वत: आ जाते हैं।
यदि आप हंसमुख हैं और मिलनसार हैं तो अधिकतर अच्छे लोग आपको पसंद करेंगे।
अगर आप दूसरों को पसंद करेंगे,उसकी लोकप्रियता को स्वीकारेंगे तो लोग भी आपको पसंद करेंगे और आपकी लोकप्रियता को स्वेच्छापूर्वक स्वीकार करेंगे तो आइए आज से मिलनसार बनने की कला को अपनाएं!
-अशोक पाण्डेय

5दिसंबर,2022

कुल आठ प्रकार के होते हैं-अहंकार
शास्त्र के आधार पर अहंकार कभी नहीं करना चाहिए।
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि प्रभुता आने पर वह चाहें किसी भी प्रकार की क्यों न हो, अहंकार आ ही जाता है।
कुल आठ प्रकार के अहंकार हैं:
ज्ञान।
ऐश्वर्य।
प्रतिष्ठा।
ताकत।
कुल।
जाति।
तप।
शारीरिक सुंदरता।
बुद्धिमान व्यक्ति अपनी वैचारिक निपुणता के चलते कभी भी अहंकार नहीं करता है।
बड़े दुख के‌ साथ कहना पड़ता है कि इन आठों को मोहरुपी अंधकार (व्यभिचार, झूठ और चोरी) जैसे पाप कर्म समाप्त कर रहे हैं जिन्हें नये वर्ष:2023 में बचाने का संकल्प मन,वचन और कर्म से लेना होगा।
-अशोक पाण्डेय

2दिसंबर,2022

यज्ञ
शास्त्र के अनुसार यज्ञ देव-पूजन के लिए किया जानेवाला समारोह के संग धार्मिक अनुष्ठान है। सृष्टि का निर्माण भी यज्ञ से हुआ है।यज्ञ में अन्न का दान श्रेष्ठतम माना जाता है।यज्ञ कराने से यश और समृद्धि मिलती है।मनोरथ पूर्ण होता है।सच मानिए तो तप भी यज्ञ है। भगवान शिव पृथ्वी के लिए सर्वस्व हैं। गणेशी जी जल के लिए सर्वस्व हैं। सूर्य देव वायु के लिए सर्वस्व हैं। विष्णु भगवान आकाश के लिए सर्वस्व हैं।यज्ञ से प्रसन्न होकर ये हमें सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करते हैं।यज्ञ में द्रव्य दान का अति विशिष्ट महत्त्व है।यज्ञ में शुद्ध मंत्रोच्चारण अवश्य होना चाहिए।यह की सफलता खुले दिल से दक्षिणा पर निर्भर है।यज्ञ करने और कराने वाले के लिए मन की एकाग्रता बहुत जरूरी है। ब्राह्मण को वसंत ऋतु में, राजपूत को ग्रीष्म ऋतु में और अन्य को शरत ऋतु में ही यज्ञ कराना चाहिए। यज्ञ करने और कराने वाले को मोह-माया से अपने को हमेशा अलग रखना चाहिए।
-अशोक पाण्डेय

27 नवंबर,2022

ईश्वर और गुरु के समक्ष चार भाव निवेदित करें!
एक राज की बात यह है कि गुरु जो हमें ईश्वर की जानकारी देता है उसके समक्ष तथा ईश्वर के समक्ष चार निवेदन करना चाहिए-
पहला-प्रार्थना।
दूसरा -पूजा।
तीसरा -याचना।
चौथा -मांग।
सद्गुरु की नित्य वंदना करें! उसके चरित्र, आचरण और ज्ञान पर कभी संदेह न करें! इसी प्रकार ईश्वर पर भी अटूट विश्वास रखें! गुरु के रूप में शिव और कृष्ण को अपनायें! लेकिन तीन के साथ-धीरज, पराक्रम तथा जीवंतता के साथ।
-अशोक पाण्डेय

26 नवंबर,2022

दो पत्थर मित्र की रोचक कहानी
दुनिया का इकलौता देश भारत है जहां पत्थर में भगवान वास करते हैं। दो पत्थर मित्र थे। दोनों में काफी घनिष्ठता थी। एक बार एक शिल्पकार आया।उसने एक पत्थर मित्र को लेकर उससे भगवान की सुंदर मूर्ति बनाना आरंभ कर दिया। दूसरा पत्थर मित्र उस दृश्य को चुपचाप देखता रहा। उधर शिल्पकार के हाथों ईश्वर का रुप धारण करने वाला पत्थर मित्र बहुत दुखी था क्योंकि उसके शरीर पर छेनी-हथौड़ी की चौबीस घण्टे मार पड़ती रही। ईश्वर की सुंदर मूर्ति तैयार हो गई। पूजा के लिए प्रतिदिन हजारों भक्त आते और सबसे पहले मंदिर के सामने पड़े पत्थर मित्र पर पांव साफ करते,उसके आसपास अपना चप्पल -जूता रखकर मंदिर में जाकर पूजा करते। एक रात दोनों पत्थर मित्र मिले।एक-दूसरे का हालचाल पूछे। ईश्वर बना पत्थर काफी प्रसन्न था जबकि मंदिर के सामने पड़ा पत्थर मित्र बहुत दुखी था। ईश्वर बना पत्थर मित्र ने अपने जीवन के दुखों की कहानी अपने मित्र को सुनाकर रो दिया।उसने बताया कि शिल्पकार किस प्रकार उसके शरीर के अंग-प्रत्यंग को काटकर ईश्वर की सुंदर मूर्ति गढ़ा और उसी कष्ट का लाभ उसको मिल रहा है जबकि दूसरे पत्थर मित्र ने अपने भाग्य को कोसा। आप भी ईश्वरत्व को पाने के लिए शारीरिक कष्ट सहें!
-अशोक पाण्डेय

25 नवंबर,2022

मनुष्य का स्वभाव
मनुष्य का स्वभाव तीन प्रकार के होते हैं।
एक, जन्मजात स्वभाव।दूसरा, अपने माता -पिता से प्राप्त स्वभाव। तीसरा, परिवार और अपने आस-पास के लोगों से प्राप्त स्वभाव। मनुष्य की प्रकृति अथवा स्वभाव का विकास उसकी आदत से होती है। एक व्यक्ति का 80 प्रतिशत स्वभाव जन्मजात होता है। केवल 20 प्रतिशत स्वभाव वह अपने माता -पिता, परिवार तथा अपने पड़ोसी से ग्रहण करता है। एक शेरनी अपने शावक की देखरेख तबतक ही करती है जबतक उसका शावक जमीन पर अपना पैर टिकाना नहीं सीख लेता है। अर्थात खड़ा होना नहीं सीख लेता है। लेकिन वह शेर शावक जमीन खड़ा होना सीख लेता है। शेरनी उसे ले जाकर किसी पहाड़ी से नीचे ढकेल देती है और वही शावक एक दिन जंगल का राजा बनता है। उसका भी अपना स्वभाव होता है।वह अपना शिकार स्वयं करता है।वह शिकार करने से पहले दहाड़ता है और स्वयं परिश्रम कर अपना शिकार खाता है। मित्रों, चमचागीरी न करें! किसी की झूठी शिकायत न करें! अपने जन्मजात स्वभाव को परिष्कृत करें,आपका जीवन धन्य हो जाएगा।
-अशोक पाण्डेय

24 नवंबर,2022

अहंकारी न बनें,अपनी वास्तविकता को हमेशा याद रखें!
-अशोक पाण्डेय
एक राजा था।उसकी एक बेटी थी। राजा बूढ़ा हो गया लेकिन उसकी बेटी की शादी नहीं हुई। राजा ने सोचा कि उसका कोई उत्तराधिकारी होना चाहिए। इसके लिए एक दिन उसने अपने मंत्रियों को बुलाकर कहा कि कल सुबह राज्य में जो भी व्यक्ति आएगा उसको सीधे राजा के पास लाया जाय। अगले दिन एक भिखारी सबसे पहले उसके राज्य में आया।उसके कपड़े फटे -चिटे थे। उसको राजा के सामने लाया गया। राजा ने उसका राजतिलक किया और अपने राज्य का राजा अपने उत्तराधिकारी के रूप में बना दिया। साथ ही उसने अपनी बेटी का विवाह भी उस गरीब भिखारी के साथ कर दिया। राजा स्वयं जंगल चला गया। इधर उसके राज्य में चारों तरफ आनंद ही आनंद था। नये भिखारी राजा ने अपने राजमहल में एक छोटा-सा घर बना लिया। उसकी चाबी अपने पास रख लिया। जब कभी भी उसको अपने मिले धन का अहंकार होता,चुपके से उस छोटे से घर में जाता और अपने भिखारी ड्रेस को देखकर अपना अहंकार शांत कर लेता। राजमहल के मंत्रियों ने राजा से पूछा कि राजा उस छोटे घर में क्यों जाता है? राजा ने कोई जवाब नहीं दिया। तब मंत्रियों ने यह बात महारानी को बताई। महारानी ने व्रत लिया कि जब तक राजा उस छोटे से घर के रहस्य को उसे नहीं बताएगा तबतक वह अन्न-जल ग्रहण नहीं करेगी। राजा लाचार होकर अपनी रानी को अपना छोटा -सा घर दिखाया। रानी के साथ सभी मंत्री भी गए। सभी ने देखा कि उस घर में कुछ भी नहीं था। खूंटी पर सिर्फ एक फटा हुआ भिखारी का ड्रेस टंगा था। सभी बाहर निकलकर आए और राजा ने सभी को यह बताया कि वह जब राजा बना था तो उसके पूर्व वह एक भिखारी था।उसके जीवन की यही वास्तविकता है। लेकिन राजा बनने के बाद जब भी उसको अहंकार होता है तो वह चुपके से उस छोटे- से घर का ताला खोलता है और अपने फटे-चिटे भिखारी ड्रेस को देखकर अपने क्रोध को शांत कर लेता है। मित्रों अहंकार अपने धन पर सभी को होता है लेकिन वास्तविकता से कोई मुंह मोड़ नहीं सकता इसलिए आप क्या है आप फ्रेंड जानते हैं और हमेशा अपनी वास्तविकता को पहचाने अहंकार क्या कर दूसरों की सेवा करें
अशोक पांडे

23 नवंबर,2022

क्या आप जानते हैं कि सिकंदर के गुरु अरस्तू थे ?
नहीं न, जानिए कि विश्व विजयी सिकंदर के गुरु विश्व प्रसिद्ध यूनानी विचारक अरस्तू थे। सिकंदर अपने गुरु अरस्तू की तमाम शिक्षाओं का अमल भी करता था। अरस्तू के आदेश सिकंदर को हमेशा मान्य था । एक दिन सिकंदर अरस्तू के साथ कहीं से पैदल लौट रहा था । रास्ते में एक नाला मिला । अरस्तू के मन में अपने परम शिष्य सिकंदर के प्रति अगाध आत्मीयता जगी। अरस्तू ने सिकंदर से कहा कि पहले वह नाला पार करेगा। लेकिन सिकंदर ने सोचा कि वह अपने गुरु से पहले नाला पार करेगा। अरस्तू नाराज हुआ और कहा कि हमेशा तुम अपने गुरु के आदेश का पालन करते हो तो आज क्यों नहीं? सिकंदर ने हंसते हुए कहा कि गुरुदेव अगर नाले में आप डूब जाते तो मैं अपने लिए दूसरा गुरु कहां से लाता? परन्तु अगर मैं डूब जाता तो आप अपने ज्ञान से मेरे जैसे हजारों सिकंदर बना सकते हैं। इसे कहते हैं -गुरुभक्ति। मुझे गुरु जी कहते हो और मेरा ही अपमान करते हो ? ऐसे आचरण से बचो।
-अशोक पाण्डेय

20 नवंबर,2022

धन क्या है?
धन को परिभाषित करना बहुत कठिन है।समय,काल, परिस्थिति और हमारा व्यक्तिगत जीवन पल पल परिवर्तनशील धन है। समय का स्वरूप बहुआयामी है।सही समय और उसका सही उपयोग ही धन है। उत्तम स्वास्थ्य धन है। उत्तम मस्तिष्क धन है।आपकी लायक संतान आपका वास्तविक धन है।आपके माता पिता,भाई -बहन और आपकी सुलक्षणा पत्नी आदि आपके धन हैं।एक किसान का अपने खेतों में अपने द्वारा अर्जित अनाज धन है।एक छात्र के लिए अच्छी पुस्तकें धन हैं। करुणा और पुरुषार्थ धन है। सुंदर काया धन है। सुंदर कर्म धन है। मेरी समझ से समय ही जीवन का सबसे बड़ा धन है। आप समय को नियोजित कर उसका सही उपयोग करें जैसा कि हमारे ऋषियों और मुनियों ने किया।
-अशोक पाण्डेय

19 नवंबर,2022

सच्ची मित्रता
सच्ची मित्रता ही आपका सच्चा धन है, संपत्ति है और समृद्धि है। मित्रता दो विचारों का मेल है। इसमें बड़े-छोटे,अमीर- गरीब तथा ऊंच-नीच आदि का कोई भेदभाव नहीं होता है। मित्रता बचपन की सबसे अच्छी मानी गई है। जैसे: कृष्ण और सुदामा की मित्रता। मित्रता की सही परीक्षा दुख के‌ दिनों में ही होती है। सुख के दिनों की मित्रता में स्वार्थ अधिक होता है। कुछ लोग तो तबतक मित्रता करते हैं जबतक उनके मित्र के पास पैसे रहते हैं। सच्चा मित्र आपका वह है जो आपके दोषों को बताये। झूठी प्रशंसा करने वाला कभी आपका सच्चा मित्र हो ही नहीं सकता है। मित्रता पंचपरमेश्वर कहानी के अलगू चौधरी और जुम्मन शेख की तरह होनी चाहिए। सच्ची मित्रता में एक बात का हमेशा ध्यान रखें कि आप अपने मित्र पर अधिकार न जमायें,अपने विश्वास को बढ़ायें। हमेशा एक -दूसरे के हितों का ध्यान रखें!
-अशोक पाण्डेय

17 नवंबर,2022

अपने घर को प्रथम पाठशाला बनायें!
जी,हां।अपने घर को प्रथम पाठशाला बनायें जहां पर आपका बच्चा अपनी मां, पिता,भाई-बहन, चाचा-चाची और दादा-दादी के साहचर्य में रहकर अच्छे संस्कार को अपना सके।अपने जीवन की पहली गुरु अपनी मां की ममता को प्राप्त कर सके।अपने पिता के दुलार को अपना सके।दादा-दादी की मनोरंजक तथा शिक्षाप्रद कहानियां सुन सके।सही तरीके से बोलना और धरती पर खड़ा होना सीख सके। बच्चा संस्कार को अपना सके। सहयोग को आत्मसात कर सके। अपने घर की प्रथम पाठशाला में बच्चे सत्य,न्याय, अनुशासन और परोपकार को सीख सके।उस पाठशाला में बच्चे की सोच सकारात्मक बन सके ,इसका विशेष ध्यान रखें। बच्चे को धूल में खेलने,अपने दोस्तों से मिलने का भरपूर मौका दें जैसा कि राम और कृष्ण के माता-पिता ने दिया। बच्चे की जिज्ञासा को समझें जैसा कि विवेकानंद की मां ने समझा और अपने बेटे को संसार का आध्यात्मिक गुरु बना दिया।
-अशोक पाण्डेय

16 नवंबर,2022

उपदेश सुनकर उसे व्यावहारिक जीवन में भी अपनायें!
-अशोक पाण्डेय
उपदेश अवश्य सुनें और सुनाएं भी! मंत्र सुनें और सुनाएं भी! भागवत कथा सुनें और सुनाएं भी! लोकाचार की बातें सुनें और सुनाएं भी!ऐसा कहा गया है कि इस प्रकार के जीवन जीने से , इस प्रकार के आयोजन कराने मात्र से सौ यज्ञ कराने का लाभ प्राप्त होता है। ईश्वर साकार और निराकार दोनों है। उसकी अटूट भक्ति के लिए ही तो यह मानव तन आपको मिला है । इसलिए सच्चा और जीवनोपयोगी व्यावहारिक ज्ञान जहां से भी मिले ,ले लें तथा उसे धीरे धीरे अपने जीवन में उतारें! विदेह राजा जनक के राज्य में सभी ज्ञानी,गुणी और राजा जनक की तरह समृद्ध थे। इसीलिए तो देवराज इन्द्र को उस वक्त भ्रम हो गया जब वे श्री राम विवाह देखने के लिए जनकपुर गये और जनकपुर के एक सफाई कर्मचारी के घर को राजा जनक का महल समझ बैठे। मित्रों,ज्ञान आपको प्रकृति से, वनस्पति जगत से,इस भौतिक जगत से,जीव जगत से तथा आपके अपने परिवेश,लोग, परिवार और समाज से उपदेश नित्य और प्रतिपल मिलता है,उसे समझें और दूसरों को समझाएं, देखिए सबकुछ अच्छा ही होगा।
-अशोक पाण्डेय

15 नवंबर,2022

एक सुंदर दासी की सुरक्षा
सुंदरता किसे नहीं भाती? सभी को सुंदर औरत पसंद है चाहे वह दासी ही क्यों न हो। एक मध्यमवर्गीय व्यक्ति के पास एक सुंदर दासी थी। वह घर का काम ईमानदारी और मन लगाकर करती थी।उसका मालिक उसके काम से बहुत खुश था। एक दिन मालिक को कहीं कुछ दिनों के लिए बाहर जाना पड़ा। वह सोचा क्यों न दासी को उस गांव के एक संत के आश्रम में रख दे? जब वापस लौटकर आएगा तो उस दासी को पुनः ला देगा। व्यक्ति जब संत के आश्रम में गया तो संत के पास एक खाली बोतल और एक प्याला देखा।उसको लगा कि संत शराबी है। उसने संत से पूछा कि वह खाली बोतल और प्याला क्यों रखा है तो संत ने जवाब दिया कि दुनिया के लोग उसे तंग करते हैं। चौबीस घंटे उसके पास आकर अपनी अपनी समस्या रखते हैं और उसको ईश्वर भक्ति का समय ही नहीं मिल पाता है।लोग बोतल और प्याले को देखकर उसके पास कभी नहीं आएंगे और वह ईश्वर भक्ति बिना किसी बाधा के करेगा। वह व्यक्ति अपनी सुंदर दासी को आश्रय में रखकर चला गया और जब लौटकर आया तो वह सुंदर दासी विदुषी बन गई थी।उसे लेकर अपने घर लौटा और सभी गांववाले उस सुंदर दासी को विदुषी के रूप में स्वीकार कर उसका प्रवचन सुनने लगे।
-अशोक पाण्डेय

14 नवंबर,2022

बालदिवस
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिन, 14 नवंबर को प्रतिवर्ष बालदिवस के रूप में मनाया जाता है। बच्चे भी पण्डित नेहरू को “चाचा नेहरू” कहकर पुकारते हैं। आज के ऐतिहासिक दिन को यादगार बनाने के लिए बच्चों में बाल संस्कार की आवश्यकता है। संस्कार का अभिप्राय ऐसे कर्म से है जिसमें दोषों का नाश तथा गुणों को जन्म देने वाला कर्म होता हैं। आज, आप भी बाल संस्कार को विकसित करने का संकल्प लें!
-अशोक पाण्डेय

13 नवंबर,2022

अपने अंदर देखें!
बाहर की दुनिया की अच्छाई -बुराई को देखने से पहले अपने अंदर की अच्छाई -बुराई को देखें! एक विदेशी संसार के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति की खोज में भारत आया। लोगों ने बताया कि संसार का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर, ओल्डटाऊन में लिंगराज मंदिर के पास रहता है। विदेशी भुवनेश्वर आया।उस व्यक्ति से मिला और उससे पूछा कि वह सबसे प्रतिभाशाली कैसे बन सकता है? संसार के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति ने विदेशी को अन्तर्मुखी बनने की सलाह दी। विदेशी उस दिन के बाद से अपने अंतर्मन में‌ झांकना शुरू कर दिया और अपने आपको सुधारकर एक दिन सबसे प्रतिभाशाली व्यक्ति बन गया। सच ही कहा गया है कि तेरा साईं तूझ में, ज्यों पुहपन में वास। ठीक उसी प्रकार प्रतिभा आपके अंदर है। उसे आप स्वयं बाहर निकालिए और संसार के सबसे प्रतिभाशाली व्यक्ति बन जाइए।
-अशोक पाण्डेय

12 नवंबर,2022

मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहना सीखें!
जीवन में मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है। एक राजा था।वह र बूढ़ा हो चुका था। उसका मन राजकाज में बिल्कुल नहीं लगता था। एक दिन उसके राजदरबार में एक भविष्यवाणी करनेवाला आया। उसने राजा से कहा कि राजा अब मात्र 1 महीने का मेहमान है। राजा की चिंता और बढ़ गई।तभी दरबार में एक संत पधारे।राजा ने संत का चरणस्पर्श किया। संत ने राजा को अमर रहने का आशीर्वाद दिया और उसकी चिंता निवारण के लिए एक जुलाहे के पास ले गया। बूढ़ा जुलाहा रूई धून रहा था। संत ने जुलाहे से पूछा कि वह रूई के अस्तित्व को क्यों मिटा रहा है? जुलाहे ने कहा कि वह अपना कर्म कर रहा है ,रूई के अस्तित्व को बचाने का और उसे आजीवन निभाता रहेगा। बूढ़ा राजा लौट आया और अपने आपको शारीरिक और मानसिक रूप स्वस्थ रखकर राजकाज में‌ लग गया। वह लगभग 100 वर्षों तक जीवित रहकर जनता की भलाई का काम किया। आप भी स्वस्थ रहें और कुछ न कुछ जन सेवा का कार्य करते रहें !
अशोक पाण्डेय

11 नवंबर,2022

घबराहट
घबराहट वह सबसे कमजोर मानसिक स्थिति है जिसमें बहुत बुरे-बुरे ख्याल आते हैं। जैसे: मैं जिन्दा रहूंगा या नहीं,मेरा धन-दौलत, अस्तित्व आदि बचेगा या नहीं आदि। उस वक्त किसी प्रकार की आशा अथवा उम्मीद कमजोर पड़ जाती है। व्यक्ति का धीरज समाप्त हो जाता है।उस वक्त के उसके लिए गए सभी निर्णय गलत हो सिद्ध हो जाते हैं। जैसा कि हमसब जानते हैं कि धर्म के कुल 10 रुप हैं -धैर्य, आत्मनियंत्रण, आत्मविश्वास, सुबुद्धि,अपनी समस्त कर्मेंद्रियों तथा ज्ञानेन्द्रियों पर नियंत्रण सुविद्या, सत्य और क्रोध आदि न करना। इसलिए घबराहट की स्थिति में धर्म को साथ रखें। धीरज से काम लें, जगन्नाथ जी घबराहट से आपको अवश्य बचाएंगे।
-अशोक पाण्डेय

10 नवंबर,2022

एज आफ लोन
आज का युग एज आफ लोन का है। इसे आधुनिक अर्थ व्यवस्था का वरदान माना जा रहा है। पहले यह कहा जाता था कि जीवन में सुखी वही है जो ऋणमुक्त है। लेकिन आज के इस एज आफ लोन के युग में अधिकांश लोग, व्यापारी, बिल्डर, उद्योगपति, कारोबारी,छात्र,युवा, शिक्षक, इंजीनियर, डॉक्टर, दुकानदार , मोबाइल कंपनी वाले , सेलर-बायर, लैपटॉप सेलर-बायर, बैंकर्स, आधुनिक उपकरण खरीदने वाले,वाहन विक्रेता तथा खरीदार आदि लोन लेने को अपनी शान-शौकत समझने लगे हैं। एक आटो चालक आज चार-चार आटो लोन पर ले रहा है।एक ड्राइवर एक नहीं चार-चार कारें खरीदकर भाड़े पर लगा रहा है। लेकिन ये यह भी नहीं सोचते कि लोन लेने के बदले उन्हें बैंकों तथा लोन देनेवाली संस्थाओं को लोन का इंस्टॉलमेंट मोटी रकम के साथ चुकाना पड़ता है। लोन के व्याज ने आज लोगों की नींद हराम कर दी है। ऐसे में, कबीरदास की एक साखी मुझे याद आती है-रुखा-सूखा खाइके, ठंडा पानी पीव,देख विरानी चुपड़ी,मत ललचाओ जीभ। वास्तव में आज लोन लेने की स्पर्धा -सी बन गई है।देखा-देखी लोन लेने की आदत -सी बन गई है। आइए,लोन रुपी राक्षस से बचने का संकल्प लें और संतोष के साथ उतने में ही संतोष के साथ जीना सीखें जितना हमारे पास है। लोन लेकर व्यापारी संस्थान,घर-द्वार नीलम होते देखना न आपको अच्छा लगेगा और न दूसरों को तो लोन लेने की स्पर्धा ही क्यों करें?
-अशोक पाण्डेय

08 नवंबर,2022

ईश्वर एक है।
“ईश्वर एक है।”-यह बात सिख धर्म के पहले गुरु गुरुनानक देव जी ने कही है। उन्होंने प्रत्येक मनुष्य के जीवन में सद्गुरु के महत्त्व को बताया है। इसलिए उनके जन्मदिन कार्तिक पूर्णिमा को प्रकाशपर्व के रूप में मनाते हैं। गुरु नानकदेव जी का विशेष संदेश यह है कि मेहनत और ईमानदारी के‌ साथ कमाई करें।उस कमाई का कुछ अंश जरुरतमंद लोगों को अवश्य दान करें! उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन से सात्विक और शाकाहारी भोजन का भी संदेश दिया। आइए, कार्तिक पूर्णिमा के दिन हम यह संकल्प लें कि हमसब किसी जाति, धर्म, सम्प्रदाय से ऊपर उठकर एक ईश्वर में विश्वास रखेंगे! सभी धर्मों का आदर करेंगे!जीवन में सद्गुरु को अपनाएंगे!और अपनी ईमानदारी और परिश्रम की ही कमाई खाएंगे और उस कमाई का कुछ अंश जरुरतमंद लोगों को दान में अवश्य देंगे!
-अशोक पाण्डेय

07 नवंबर,2022

उपेक्षा और अपेक्षा
उपेक्षा और अपेक्षा दो ऐसे शब्द हैं जिनका व्यावहारिक जीवन में अति विशिष्ट महत्त्व है। प्रत्येक व्यक्ति की किसी न किसी प्रकार की अपेक्षाएं ईश्वर, गुरु, इष्टदेव,अपनी पत्नी,अपने बाल-बच्चों,सगे-संबंधियों ,हित मित्रों और अपने स्वजनों परिजनों से होती है। ठीक उसी प्रकार उपर्युक्त सभी की अपेक्षाएं आपसे भी हमेशा रहती है। लेकिन दोनों के मधुर संबंधों को उपेक्षाएं अपने विभिन्न स्वरूपों को साथ लेकर बुरी तरह से बर्वाद कर देती है।ऐसे में भूलकर भी ,जाने अंजाने में छोटे से छोटे की उपेक्षा कदापि न करें। मनोविज्ञान के अनुसार छोटे से मस्तिष्क में‌ स्मरण तथा विस्मरण की प्रक्रिया आजीवन चलती रहती है। मस्तिष्क जबतक कुछ भूलता नहीं है तो स्मरण की जगह मस्तिष्क में आती नहीं है। ठीक उसी प्रकार अपेक्षा और उपेक्षा का संबंध है। फिर भी मधुर जीवन, मधुर प्रेम और मधुर संबंध के लिए जीवन में अपेक्षा और उपेक्षा को साथ लेकर चलें!
-अशोक पाण्डेय

06 नवंबर,2022

संबंध
संबंध, ईश्वर के प्रति अटूट भक्ति, व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, आध्यात्मिक, राजनैतिक तथा वैदेशिक संबंध स्थापित करने में सहायक होता है। इसीलिए बड़े -बड़े निगमों आदि में जनसंपर्क विभाग होता है जिसका काम एक दूसरे से मधुर संबंध स्थापित करना होता है। सच तो यह है कि समुदाय कभी युद्ध नहीं लड़ता अपितु दो स्वार्थ आपस में टकराकर युद्ध का रुप दे देते हैं। जैसे: महाभारत,सभी विश्व महायुद्ध और रुस-यूक्रेन आदि युद्ध। संबंध अगर अच्छे बनाये जाएं तो मानवता की रक्षा हो सकती है। चारों तरफ सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो जाएगा। रामराज्य की परिकल्पना साकार हो जाएगी। पति-पत्नी का जीवन आनंदमय हो जाएगा। संयुक्त परिवार की अवधारणा पुनः स्थापित हो जाएगी। सभी मिलकर प्रेम की गंगा बहाएंगे। मान्यवर आज से आप भी अपने संबंधों को मधुर बनाने का सफल प्रयास अवश्य करें।
-अशोक पाण्डेय

03 नवंबर,2022

सदा हंसते रहें!
जीवन में हंसने की आदत डाल लें।हंसने और दूसरों को हंसाने से लाभ आपको मिलेगा और दूसरों को भी। हरेक परिस्थिति में राधाकृष्ण के मुस्कराते चेहरे को देखकर कुछ तो सीखें! वैसे तो हंसना एक संस्कार है फिर भी, कुछ लोगों का चेहरा जन्मजात हंसता नजर आता है। अनेक ऐसे श्रीमद्भागवत और रामायण कथावाचक हैं जिनके व्यासपीठ से हंसता चेहरा कथा श्रवण के लिए हमें विवश कर देता है।
यह जीवन बार- बार नहीं मिलेगा। इसलिए हंसते रहिए और औरों को भी हंसाते रहिए।
-अशोक पाण्डेय

29 अक्तूबर,2022

छठ क्यों मनाते हैं?
वैसे तो हिन्दी महीने का प्रत्येक माह पूजा -पाठ और पर्व -त्यौहार लेकर आता है। कार्तिक महीने पवित्रतम माह माना जाता है ।इस महीने में एक तरफ जहां सबसे अधिक पर्व -त्यौहार मनाया जाता है वही इस महीने में चार दिवसीय छठ महापर्व भी मनाया जाता है। छठ प्रकृति उपासना एक मात्र महापर्व है जिसे त्रेतायुग में राजा श्री रामचन्द्र जी ने अपनी महारानी जनकनंदिनी सीताजी के साथ मनाया था। महाभारत काल में कुंती ने मनाया था।छठ के चारों दिवस हरप्रकार से पवित्रता के संदेश देते हैं तथा मानव-प्रकृति के शाश्वत संबंधों को -“तेरा तूझको अर्पण को” चरितार्थ करते हैं। इसलिए भगवान सूर्यदेव और उनकी बहन छठपरमेश्वरी के चार दिवसीय महापर्व सभी के जीवन की मनोकामना पूर्ति तथा विशेष कर चर्मरोग से मुक्ति प्रदान करने वाला महापर्व है जिसमें खरना प्रसाद एवं ठेकुआ प्रसाद का सबसे अधिक महत्त्व उनके सेवन करने और कराने वाले को मिलता है। ओडिशा का कोणार्क सूर्य मंदिर चर्मरोग से आरोग्य के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
-अशोक पाण्डेय

22 अक्तूबर,2022

“धनतेरस और दिवाली,
बलि चढ़ा के पूजे काली,
सो हम तुमको लेंगे मोल, देंगे मोहर गांठ से खोल।”- यह कथन है डोम चौधरी सरदार की जब वह राजा हरिश्चंद्र हो 500 स्वर्ण मुद्रा में खरीदता है और उसी रात(धनतेरस की रात) उन्हें बनारस के दक्षिणी श्मशान घाट भेज देता है। “जाओ अभी दखिनी मसान,लेव वहां कफन का दान, जो कर तुमको नहीं चुकाए,सो क्रिया करने नहीं पाए।” धनतेरस की यह कहानी एक तरफ जहां समुद्र मंथन की कहानी को चरितार्थ करती है। धनवंतरि के आगमन की कथा को चरितार्थ करती है, वही सत्य की परीक्षा में सफल हुए सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कहानी भी कहती है। सभी को धनतेरस और दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं और अनेकानेक बधाइयां!
-अशोक पाण्डेय

06 अक्तूबर,2022
आत्मविश्वास और अहंकार

आत्मविश्वास का अर्थ है-अपने मन, वचन और कर्म पर पूरी तरह से विश्वास करना और उसी के अनुसार कार्य करना। अहंकार का संबंध भी आपसे ही है। अहंकार आपका अवगुण है।यह आपका सबसे बड़ा दोष है जो आपके विनाश का कारण बन सकता है। आपके अन्दर का आत्मविश्वास अगर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम है तो आपका अहंकार लंकापति रावण है। जिस प्रकार प्रतिवर्ष विजयादशमी के दिन राम के द्वारा रावण का वध होता है ठीक उसी प्रकार आपके आत्मविश्वास की जीत तथा आपके अहंकार के त्याग का भी यह संदेश है। स्वाभिमान आपके व्यक्तित्व की मर्यादा है जबकि आपका अहंकार आपके सर्वनाश की चेतावनी है। इसलिए आज से आप अपने स्वाभिमान को मजबूत बनायें और अहंकार का त्याग करें!
-अशोक पाण्डेय

05 अक्तूबर,2022
विजयादशमी के दिन नीलकण्ठ पक्षी के दर्शन का महत्त्व

विजयादशमी के दिन नीलकण्ठ पक्षी के दर्शन का विशेष महत्त्व है। यह पक्षी भगवान शिव के नीलकण्ठ नाम को आज के दिन दर्शन मात्र से सार्थक करता है। और इसके दर्शन मात्र से भगवान शिव और माता पार्वती दोनों पूरी सृष्टि को सुख-शांति,समृद्धि और प्रेम प्रदान करते हैं।कहते हैं कि भगवान श्रीराम रावण का वध करने से पूर्व नीलकण्ठ पक्षी के दर्शन भगवान नीलकण्ठ मानकर किये थे। समुद्र मंथन के समय भगवान नीलकण्ठ और भगवान नारायण का योगदान अलौकिक था। जब अस्मार नामक राक्षस ने माता पार्वती और श्रीराधा समेत सभी स्त्रियों की अपने अपने पति के विषय में उनकी स्मृति छीन ली थी तो भगवान नीलकण्ठ और भगवान नारायण के क्रमशः डमरू और बांसुरी ने सहायता की थी। मान्यवर, विजयादशमी के दिन तीन काम कमसे कम अवश्य करें,नीलकण्ठ पक्षी के दर्शन करें,शिव-पार्वती के पूजा स्थल पर डमरू तथा राधारानी और श्री कृष्ण के पूजा स्थल पर बांसुरी अवश्य रखें! जीवन में आपको अवश्य सफलता मिलेगी।
-अशोक पाण्डेय

01 अक्तूबर,2022
एक दिन

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक दिन महत्त्वपूर्ण होता है। वैसे तो‌ साल के 365 दिन होते हैं जिसमें एक दिन‌ व्यक्ति विशेष का जन्म होता है। एक दिन उसका नामकरण होता है। एक दिन वह स्कूल जाता है। एक दिन वह अपनी पढ़ाई पूरी करता है।एक दिन वह नौकरी ज्वाइन करता है। एक दिन उसका विवाह होता है। एक दिन उसकी संतान होती है। एक दिन वह विशेष रूप से मान-सम्मान प्राप्त करता है।एक दिन वह अपने जीवन में सबसे अधिक खुश होता है। एक दिन वह अपने निजी जीवन में सबसे अधिक दुखी होता है। एक दिन वह मोह माया में सबसे अधिक फंसता है। एक दिन वह अकेला हो जाता है।एक दिन वह सबकुछ छोड़कर इस दुनिया से चला जाता है। एक दिन ही दुनिया उसे उसके विशेष योगदान के लिए स्मरण करती है। यह कैसी विडम्बना है – एक दिन की? मेरा यह मानना है कि आप भी अगर तेजी से असाधारण सफलता पाना चाहते हैं तो एक दिन अकेले चलने की आदत डाल लें!
-अशोक पाण्डेय

28 सितंबरः,2022
जीवन में कामयाबी के लिए संस्कार और सहकार को अपनायें लेकिन अहंकार का हमेशा त्याग करें!

जी,जीवन में असाधारण सफलता, प्रतिभा तथा कामयाबी के लिए दो बातों का सदा ध्यान रखें! एक तो संस्कार का और दूसरा सहकार का। संस्कार का अभिप्राय अच्छे गुणों को अपनाना और बुरी आदतों का सदा के लिए त्याग कर देना। यह बच्चे को बाल्यकाल में उसके बड़े बुजुर्गो से मिलता है। सहकार दूसरा गुण है जिसमें अच्छे काम के लिए सभी सकारात्मक सोच विचार वालों को साथ लेकर चलना। लेकिन कभी भी अहंकार नहीं करना। प्रेम मानवता के साथ करना। नवरात्रि के तीसरे दिन इसी नये संकल्प के साथ मां दुर्गा की आराधना करें!
-अशोक पाण्डेय

24 सितंबरः,2022
मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं

भाग्यवादी, तत्काल निर्णय लेनेवाले तथा दूरदर्शी मनुष्य -ये मानव के तीन प्रकार हैं।दूसरे शब्दों में जो मनुष्य परिश्रमी,कर्मठ और मेहनती होता है वही मनुष्य अपने जीवन में सफल होता है। तत्काल निर्णय लेनेवाले व्यक्ति अपने जीवन में कभी असफल नहीं होते हैं। और सबसे अच्छे व्यक्ति दूरदर्शी व्यक्ति होते हैं।उनकी पहचान उनके जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियां होती हैं। अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए एक रोचक लघु कथा सुनाता हूं। एक छोटी नदी में तीन मछली सहेलियां थीं।वे आपस में बड़े प्रेम से रहतीं थीं। एक दिन एक मछुआरा आया और ऊंची आवाज में बोला कि यहां पर तो बहुत सारी मछलियां हैं।कल आकर इन्हें पकड़ लूंगा। तीनों सहेली मछलियों ने उस मछुआरे की बात सुन लीं। पहली ने कहा कि हम यही पर सुरक्षित हैं, वह मछुआरा आएगा ही नहीं, सिर्फ बोलता है।दूसरी ने कहा कि जीवन बचाने के लिए हमें कहीं और चलना होगा।और वह दूसरी नदी में चली गई।तीसरी ने कहा कि कल जब मछुआरा आएगा तब सोचूंगी। संयोग से अगले दिन मछुआरा आ गया। नदी में जाल दिया।जाल में पहली सहेली मछली फंस गई।दूसरी तो पहले ही जा चुकी थी।और तीसरी ने मरने का नाटक कर बच गई। मछुआरा ने जैसे उसे मरा समझा,उसे पुनः जल में छोड़ दिया।वह मछली जैसे ही जल में आई तैरकर नदी में दूर चली गई।भाग्यवादी मछली पकड़ी गई और वह उस मछुआरे की शिकार बनी। क्या समझें?
आपको कैसे रहना है,इसका निर्णय आप स्वयं करें!
-अशोक पाण्डेय

22 सितंबरः,2022
आइए, जानते हैं मस्तिष्क के विषय में

मानव शरीर में मन का सीधा संबंध मस्तिष्क से होता है। मस्तिष्क शरीर का मुखिया और मालिक अंग माना जाता है। यह मन के सकारात्मक और नकारात्मक विचारों को नियंत्रित करता है।
मस्तिष्क मुख्यत: तीन प्रकार के होते हैं- सहज, संतुलित और संवेदनशील। सहज मस्तिष्क मन को साधारण जीवन जीने तथा लेन-देन आदि का निर्देश देता है। इस प्रकार के व्यक्ति सामान्य व्यक्ति की श्रेणी में आते हैं। संतुलित मस्तिष्क वाले व्यक्ति मन को अपने हित के साथ-साथ दूसरों के हितों के लिए मन को निर्देश देते हैं। सबसे उत्तम मस्तिष्क संवेदनशील मस्तिष्क होता है जो मन को परमार्थ और आध्यात्मिक विचारों को अपनाने का निर्देश देता है। यह अनुभव मैंने राधा -कृष्ण हिन्दी धारावाहिक देखने के उपरांत अनुभव किया जबकि मस्तिष्क जैसा गूढ़ विषय का मनन तो मनोविज्ञान का है।
-अशोक पाण्डेय

21 सितंबरः,2022

श्रीमन् नारायण के नाम, स्वरुप, लीला और उनके धाम की कथाओं के नित्य श्रवण में,कीर्तन में, उनके पादसेवन में, उनके नाम के स्मरण में, उनके पूजन, वंदन, उनके संग दासभाव से और सखाभाव से जो भक्त भक्ति करता है,श्रीमन् नारायण उसकी प्रत्येक मनोकामना की पूर्ति अवश्य करते हैं।
-अशोक पाण्डेय

17 सितंबरः,2022

हमें प्रतिदिन लेने की मनोवृत्ति का त्यागकर, उदार मन से अर्थ, अन्न, वस्त्र,ज्ञान, विद्या,मानव और मानवता की सेवा करनी चाहिए।
-अशोक पाण्डेय

10 सितंबरः,2022
जानिए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के विषय में

विश्व में आध्यात्मिक क्रांति लानेवाले प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की स्थापना 1937 में हैदराबाद में हुई। आज इस आध्यात्मिक विश्वविद्यालय के पूरे विश्व के लगभग 140 देशों में स्थाई केन्द्र हैं। यह संस्था सभी के मन-मस्तिष्क में आध्यात्मिक शक्ति, शिक्षा तथा मानवीय मूल्यों का सतत विकास अपने कुल 20 अलग-अलग प्रकल्पों के माध्यम से नि: शुल्क करती है।यह संस्था नित्य आध्यात्मिक संगोष्ठी, सम्मेलन,राजयोग शिविर, कार्यशालाएं तथा विचार -विमर्श प्रदान करती है। विश्व मानवता का सफल आध्यात्मिक मार्ग दर्शक कराती है। आध्यात्मिक जीवन यापन के लिए शरीर,मन, मस्तिष्क और आत्मा को संतुलित बनाए रखने के लिए प्रशिक्षित करती है। ओडिशा में भी इसके अनेक केन्द्र हैं। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय का मुख्यालय माउंट आबू में है। आइए, समय निकालकर इस आध्यात्मिक क्रांति का लाभ उठाएं!
-अशोक पाण्डेय

05 सितंबरः,2022
शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!

मान्यवर,आज के ही दिन 2006 में मुझे उस वक्त के महामहिम राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम जी के कर-कमलों से राष्ट्रपति पुरस्कार मिला था।वे तमाम यादें आज भी मेरे मानस पटल पर अंकित हैं।
-अशोक पाण्डेय, राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक

04 सितंबरः,2022
एक विलक्षण व्यक्तित्व की पहचान है -सदाचार, विनम्रता और सत्यनिष्ठा

मनोविज्ञान के अनुसार किसी विलक्षण व्यक्तित्व की पहचान सुंदर- आकर्षक चेहरा और पोशाक कदापि नहीं है।
एक विलक्षण व्यक्तित्व की पहचान उसका सदाचार, विनम्रता और सत्यनिष्ठा है।
श्रीराम हों या श्रीकृष्ण, गौतम हों या गांधी,सभी के व्यक्तित्व की वास्तविक पहचान उसकी सादगी, सरलता, वाणी की मृदुलता, आत्मीयता और उसकी सकारात्मक सोच होती है। ऐसे व्यक्ति दूसरों का सम्मान,उसके अच्छे गुणों की प्रशंसा और उस व्यक्ति विशेष को प्रोत्साहित करते हैं जो उनसे मिलने जाते हैं। वे स्थान,काल और पात्र का विशेष ध्यान रखते हैं।
प्रवचन कराने वाले जितने सत्यनिष्ठ होते हैं,जितनी अधिक उनकी सोच सकारात्मक होती है ,उसका प्रत्यक्ष लाभ लाखों श्रद्धालु श्रोताओं को मिलता है। एक विलक्षण व्यक्तित्व का धनी सत्संग करता भी है और कराता भी है।
सच तो यह है कि ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व की संगति चरित्रवान व्यक्ति को ही मिलती है। दैव संयोग से संस्कारियों को ही ऐसे लोग मिलते हैं।
-अशोक पाण्डेय

03 सितंबरः,2022
श्रीमंदिर का काशी विश्वनाथ मंदिर

श्री जगन्नाथ पुरी धाम के श्री जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से लगी 22 सीढियां हैं जिनको पार कर (भक्त अपने 22 दोषों का त्याग कर) श्री जगन्नाथ भगवान के दर्शन करता है।उन सीढ़ियों में चौथी सीढ़ी की बांयी ओर काशी विश्वनाथ जी का छोटा-सा मंदिर है। घटना सोलहवीं शताब्दी की है। एक ब्राह्मण स्त्री ने चौथी सीढ़ी पर एक सफेद दाढ़ी वाले साधु को बैठा और श्री जगन्नाथ महाप्रभु की आराधना में लीन देखकर उनसे यह निवेदन किया कि वह श्री जगन्नाथ मंदिर में ही काशी विश्वनाथ जी के दर्शन करना चाहती है। साधु महाराज कृपया श्री जगन्नाथ जी से उसके लिए यह निवेदन कर दें कि वे उस ब्राह्मण कन्या के लिए काशी विश्वनाथ जी के दर्शन के लिए श्रीमंदिर में ही व्यवस्था कर दें! अगले दिन उस ब्राह्मण स्त्री के लिए काशी विश्वनाथ जी का मंदिर तैयार हो गया। सच तो यह है कि वह सफेद दाढ़ी वाले साधु और कोई नहीं था, स्वयं श्री काशी विश्वनाथ भगवान थे जो नित्य चौथी सीढ़ी पर बैठकर श्री जगन्नाथ जी महाप्रभु के दर्शन करते थे। जानकार भी यह बताते हैं कि श्री मंदिर के काशी विश्वनाथ जी के मंदिर का निर्माण भी 1611 ई .में हुआ था।
-अशोक पाण्डेय

01 सितंबरः,2022
जानिए सरस्वती जी के अनेक नामों को

विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती हैं। इनके कुल 12 नाम हैं :
भारती, सरस्वती, शारदा, हंसवाहिनी,जगती, वागीश्वरी, कुमुदी, ब्रह्मचारिणी, *बुद्धिदात्री, वरदायिनी, चन्द्रकांति तथा भुवनेश्वरी।
मान्यवर, पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती देवी मां की नित्य आराधना करें, आपका कल्याण अवश्य होगा।
-अशोक पाण्डेय

31अगस्त:,2022
आज गणेश चतुर्थी है।आप आज अपने मन को शांत रखने की आदत डालें!

देवों में प्रथम पूज्य श्री श्री गणेश जी भगवान को आज के पवित्रतम दिवस पर सादर चरणस्पर्श।हे मोदक प्रिय, मंगलदाता,संसारी लोगों को आज के दिन एक ही आशीर्वाद दें कि सभी शांतचित्तवाले बनें! ये संसारी लोग आपकी आराधना करते हुए शांत मन से अच्छे कर्म करें!
एक किसान के पास एक घड़ी थी। किसान की घड़ी खो गई।उसने अपने आसपड़ोस के बच्चों को बुलाया और घड़ी खोजने का आग्रह किया। बच्चे बहुत कोशिश किए लेकिन घड़ी नहीं मिली। किसान रोने लगा।उसी समय एक छोटा और चालाक बालक किसान के पास आया और किसान से यह निवेदन किया कि वह सभी बच्चों को बाहर निकाल दे।सभी बच्चे बाहर चले गए। छोटे चालाक बच्चे ने पूछा कि किसान की घड़ी कहां पर टंगी थी। किसान उस जगह को दिखा दिया। बालक ने किसान से बाहर जाने के लिए कहा। किसान बाहर चला गया। बालक शांतचित्त बैठक घड़ी की टिक-टिक की आवाज सुनने लगा। फिर किसान की काठ की आलमारी के पीछे गया। नीचे में घड़ी गिरी पड़ी थी और उससे टिकटिक की आवाज आ रही थी। घड़ी पाकर किसान बहुत खुश हुआ और उस छोटे चालाक बालक को इनाम दिया। मान्यवर, आपभी आज से प्रतिदिन शांत होकर अच्छा काम करें! गणेशजी आपका मंगल अवश्य करेंगे।
-अशोक पाण्डेय

30अगस्त:,2022
आइए, हमसब हिन्दी माह मनायें!

पहली सितंबर आने में मात्र दो दिन बचे हैं। जैसा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 343 में हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता मिली है जिसकी लिपि देवनागरी है।
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत के केंद्र सरकार के सभी कार्यालयों और उपक्रमों में 14सितंबर,1950 से ही हिंदी दिवस मनाया जाता है।आज तो हमसब हिन्दी सप्ताह, हिन्दी पखवाड़ा और हिन्दी माह मनाते हैं।
सच कहा जाए तो विदेशों में हिन्दी अपनी लोकप्रियता के बदौलत (सिनेमा और फिल्मी गानों के चलते) भारत की राष्ट्रीय भाषा के रूप में जानी जाती है।
कहने के लिए तो हिंदी भारत के संघ की राजभाषा है लेकिन अगर व्यवहारिक रूप से विचार किया जाए तो यह भारत की सबसे लोकप्रिय जनसंपर्क की सशक्त भाषा है। पिछले लगभग 70 वर्षों से हिंदी बोलना, सिखना और पढ़ना विदेशियों का एक विशेष शौक बन गया है।
भारत के अलावे कई ऐसे देश हैं जहां के विश्वविद्यालयों में हिन्दी विभाग हैं(कुल लगभग150 विश्वविद्यालय)। एल विश्वविद्यालय, नॉर्थ कैरोलिना राज्य विश्वविद्यालय, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय, एस ओ एस विश्वविद्यालय लंदन, नेशनल विश्वविद्यालय सिंगापुर, यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी, ऑस्ट्रेलिया, यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन, यूनिवर्सिटी आफ टैक्सास इटली के 5 विश्वविद्यालय में, वेनिस, रोम और मिलान विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाई जाती है। नीदरलैंड में भी हिंदी का बहुत अधिक प्रचार-प्रसार है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि नीदरलैंड में तो हिंदी परिषद, हिंदी प्रचार संस्थान भी है। लाइन विश्वविद्यालय हिंदू स्कूल संस्थाएं, हिंदू ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन आदि हैं। कोरिया के दो विश्वविद्यालयों में हिंदी विभाग हैं। हांगकांग विश्वविद्यालय की एक शाखा राजधानी से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है।
वहां हिंदी का कोर्स 4 वर्षों का है और वहां पर लगभग 500 से लेकर 600 छात्र हिंदी पढ़ते हैं ।
जापान के टोक्यो में, दाईगाकू में भी हिंदी पढ़ाई जाती है।
दूरदर्शन का लोकप्रिय हिन्दी धारावाहिक रामायण और महाभारत का हिंदी प्रसारण विदेशों में बहुत लोकप्रिय है। पोलैंड, रूस मास्को, जहां पर भारतीय दूतावास है वहां के केन्द्रीय विद्यालय में और जवाहरलाल नेहरू कल्चरल सेंटर पर भी हिंदी पढ़ाई जाती है।मास्को स्टेट विश्वविद्यालय में भी हिंदी पढ़ाई जाती है।आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मॉस्को आकाशवाणी पर भी हिंदी की कक्षाएं आयोजित होती हैं।
विदेशों में भारतीय राजदूतावास के सभी सांस्कृति केंद्रों पर हिंदी की पढ़ाई भारत सरकार की ओर से नि: शुल्क होती है ।रूस से प्रतिवर्ष अनेक छात्र हिंदी पढ़ने के लिए आगरा आते हैं। बुल्गारिया में भी हिंदी की पढ़ाई होती है । सोफिया विश्वविद्यालय में भी हिंदी सिखाई जाती है । फिनलैंड के हिलेंस्की विश्वविद्यालय में भी हिंदी विभाग है।
स्वीडन में तो 1968 से हिंदी विभाग है ।स्टॉकहोम विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाई जाती है। डेनमार्क के कोपेनहेगन विश्वविद्यालय में हिंदी है। नॉर्वे के ओस्लो विश्वविद्यालय में भी हिंदी विभाग है। नेपाल में भी हिंदी के साथ-साथ मैथिली भोजपुरी और अवधी आदि का प्रचलन देखने को मिलता है। फीजी भारत से दूर एक छोटा भारत है जहां पर भी हिंदी की पढ़ाई होती है। वहां के लोग रामायण, भागवत गीता और सूरसागर जैसे ग्रंथों का नित्य पाठ करते हैं ।वहां के न्यायालयों में रामायण की शपथ ली जाती है। वहां के शादी- विवाह में भी भारतीय गीतों की बहार रहती है। वहां के अनेक वृक्षों के नाम भी भारत के वृक्षों जैसे नीम, पीपल और आम आदि हैं भारतीय मूल के लोग आपस में बातचीत भी हिंदी में ही करते हैं जैसा कि आपको मालूम है कि*
सितंबर का महीना हिंदी का महीना है इसलिए आइए हिंदी माह सितंबर को हमसब मिलकर हिंदी दिवस, हिंदी सप्ताह, हिन्दी पखवाड़ा तथा हिंदी माह मनाकर यादगार बनायें!
– अशोक पाण्डेय

29अगस्त:,2022
समय परिवर्तनशील है।

समय परिवर्तनशील है- इस कथन में कोई दो राय नहीं है।
समय की परिवर्तनशीलता प्रकृति का भी शाश्वत क्रम है।जाड़ा, गर्मी और बरसात।
इस जीवन में यश-अपयश,लाभ- हानि, जीवन -मरण अवश्यंभावी है।
इस जीवन में सुख -दुख धूप -छांव की तरह हैं।
एक ही समय में कहीं बाढ़ आती है तो कहीं सूखा पड़ जाता है।
एक ही समय में कोई हंसता है तो कोई रोता है।
लेकिन ज्ञानी- अज्ञानी सभी का जीवन परिवर्तन के दौर से गुजरते रहता है। समय हमें धीरज धारण करने का संदेश देता है।
समय परिवर्तनशील अवश्य है लेकिन यह हमें संदेश देता है कि हम अनुकूल समय के साथ चलें।
हां, एक बात और आपके जीवन में सुअवसर सिर्फ एक ही बार आता है। इसलिए आप उसकी प्रतीक्षा करें और उसका भरपूर लाभ उठा लें।इसी में बुद्धिमानी है।
-अशोक पाण्डेय

28अगस्त:,2022
धन बचाएं लेकिन…

धन कमाना मनुष्य जीवन का सपना होता है। धन कमाने से ही यश, कीर्ति,मान -मर्यादा और प्रतिष्ठा सबकुछ अपने आप हमें मिल जाता है। आजकल तो धन से लक्ष्मी और सरस्वती भी एकसाथ मिल जाती हैं।इसके लिए आप अपने शरीर,मन और मस्तिष्क को सदा शांत तथा संतुलित रखें!
अपने संस्कार, संस्कृति और सामाजिक परम्पराओं को आपको इसके लिए आपको अपनाना होगा।
मान्यवर,धन कमाएं
लेकिन पेट काटकर नहीं।खर्च करने से पहले विचार कर लें‌ कि आपके द्वारा किया गया खर्च जब बहुत आवश्यक हो तभी ही खर्च करें। कर्ज लेते समय यह अवश्य सोच लें कि उसे चुकाना तो आपको ही पड़ेगा। किसी को कर्ज देते समय भी यह अवश्य विचार कर लें कि वह व्यक्ति कर्ज चुका सकता है या नहीं।धन निवेश करते समय विचार कर लें कि आप उसका आनंद अवश्य उठाएंगे।
धन कमाइए परन्तु सत्यनिष्ठा, सदाचार और सत्कर्म करके।
-अशोक पाण्डेय

19अगस्त:,2022
“श्रीकृष्ण जन्माष्टमी”

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन को मानते हैं। इस दिन लड्डू गोपाल के रूप में श्रीकृष्ण की पूजा का विशेष महत्त्व होता है। श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं की झांकी भी आज के दिन उनके नैसर्गिक आनंद की याद दिलाती है। जैसा कि हमसब जानते हैं कि 16 कलाओं से युक्त श्रीकृष्ण भगवान युगपुरुष थे जिनकी कुल 16,108 पत्नियां तथा 8 पटरानियां थीं।आपको यह जानकर और अधिक आश्चर्य होगा कि श्रीकृष्ण की प्रियतमा राधारानी उनसे भौतिक रूप में न मिलने का संकल्प ले कर इस मृत्युलोक में रहीं। लेकिन राधारानी और रसिक शिरोमणि श्रीकृष्ण ने हमें नैसर्गिक प्रेम का संदेश दिया है।उनदोनों का र महारास उन आध्यात्मिक आनंद का पावन संदेश है।
एक बार वृंदावन में आधी रात को श्रीकृष्ण चुपके से उस कदंब के पेड़ पर आकर बैठ गये और अपनी बांसुरी बजाने लगे। सुमधुर बांसुरी के स्वर को सुनकर राधारानी भी आईं और 16,100 गोपियां भी अपने -अपने पतिदेव का त्यागकर आधी रात को वहां आईं।सभी गोपियों ने यह महसूस किया कि श्रीकृष्ण एक-एक गोपी की बांहों में हैं।जब उन गोपियों के पतिदेव गण वहां आकर देखे कि उनकीक्षअपनी -अपनी पत्नी श्रीकृष्ण के नैसर्गिक प्रेम में लीन हैं तो वे भी मंत्रमुग्ध हो गये।
आइए, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर उसी श्रीकृष्ण को पूरे मन से याद करें!
-अशोक पाण्डेय

17अगस्त:,2022
आनंदमय जीवन व्यतीत करने के लिए अपने आप पर विश्वास कीजिए

मनुष्य जीवन धूप-छांव की तरह है।सुख-दुख से भरा है। इस जीवन में सुख कम है‌ और दुख अधिक। मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी उसका आत्मविश्वासी न होना है।
एक व्यक्ति भुवनेश्वर नगर में रहता था।वह हमेशा परेशानी में रहता था। उसकी एक परेशानी खत्म नहीं होती कि दूसरी पैदा हो जाती थी। उसके घर में सदा परेशानी ही परेशानी रहती थी।ऊपर से नौकरी की परेशानी अलग से।उस व्यक्ति का जीवन निराशापूर्ण जीवन बन चुका था। अपनी परेशानियां से तंग आकर वह एक दिन आत्महत्या करना चाहा लेकिन उसकी बदकिस्मती ने वहां भी उसको धोखा दे दी।उसके पड़ोसियों ने उसे आत्महत्या करने से बचा दिया। अंत में, वह अपना सामान समेटा और अपने गांव पर जाने के लिए तैयार हो‌ गया।उसी समय एक सुंदर स्त्री उसके सामने प्रकट हुई और उससे कही कि उसे छोड़कर वह कहां जा रहा है? सुंदर स्त्री ने कहा कि वह उस व्यक्ति की भाग्य है। वह तो‌ हमेशा उसके साथ ही रहेगी। तुम अगर खुश रहना चाहते हो तो तुम पहले आत्मविश्वास बनो, वह उसे अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष सबकुछ दे दे देगी। व्यक्ति आत्मविश्वासी बन गया और आनंदमय जीवन जीने लगा ।
-अशोक पाण्डेय

14अगस्त:,2022
आत्मा

आत्मा अजर, अमर और अविनाशी है। यह मानव शरीर में मन, बुद्धि और संस्कार को नियंत्रित करती है।
यह स्वभावत: शांति, प्रेम, शक्ति, आनंद,ज्ञान, सुख तथा पवित्रता स्वरुपा है।
यह सोलहों कलाओं से पूर्ण, सर्वगुण संपन्न, निर्विकार, मर्यादित और अहिंसक होती है।
सत्युग में आत्मा को सोलह कलाएं और आठ जन्म मिले हैं। सत्युग की आयु 1250 वर्ष की है।
त्रेतायुग में आत्मा की आयु दो कलाएं कम हो जाती है (चौदह कलाएं)जबकि त्रेतायुग की आयु भी 1250 वर्ष की होती है।इस काल में आत्मा को बारह जन्म मिला है।
द्वापरयुग में भी आत्मा की आयु 1250 वर्ष की होती है। आत्मा को इस युग में कुल 21 जन्म मिला है। 1250 वर्ष के कलियुग में आत्मा को 42 जन्म मिले हैं।
यह समय कलियुग का है जिसमें आत्मा के सामने अनेक प्रतिकूल परिस्थितियां हैं।सभी कलाएं विलुप्त प्राय हो चुकी हैं। ऐसे में, भक्ति,ज्ञान और वैराग्य तथा जप,तप और दान की आवश्यकता है। आत्मा के अस्तित्व को बचाने की आवश्यकता है।
इसमें आपका सहयोग अपेक्षित है।
-अशोक पाण्डेय

13अगस्त:,2022
कैलाश मानसरोवर

कैलाश भगवान शंकर का निवास स्थाल है।यह उनका दिव्य शिव लोक है जहां पर वे देवी पार्वती के साथ निवास करते हैं। मानसरोवर कैलाश सीमा के अन्दर ही आता है। मानसरोवर झील का जल पवित्रतम जल माना जाता है जिसके पान करने से हमारे बाह्य तथा आंतरिक की शुद्धि हो जाती है।ऐसी मान्यता है कि मानसरोवर का जल भगवान शिव के चरणों का संस्पर्श प्राप्त पवित्रतम जल है।
मानसरोवर झील समुद्र तल से लगभग 15,000 फीट की ऊंचाई पर है।इसकी गहराई लगभग 300 फीट है तथा यह झील लगभग 320 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है।यह उद्गमस्थल है: ब्रह्मपुत्र, सतलुज,घाघरा और इण्डस आदि नदियों का। कैलाश मानसरोवर झील के भोर का प्राकृतिक दृश्य अलौकिक है।यह अद्वितीय देवभूमि है।आप भी कोशिश करें कि जीवन में कम से एक बार मानसरोवर झील के दर्शन करें,वहां के सुरम्य वातावरण का आनंद लें। भगवान शिव शंकर आपका आजीवन कल्याण करेंगे।
-अशोक पाण्डेय

12अगस्त:,2022
कन्या दान

मानव जीवन की सार्थकता जप,तप और दान में है।चारों प्रकार के ऐश्वर्य :अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति में निहित है।
यह भी सच है कि देने से कुछ घटता नहीं है अपितु बढ़ता है।
दान अनेक प्रकार के होते हैं।जैसे: विद्या दान, अर्थ दान,गोदान, अन्न दान, वस्त्र दान,जलदान,फलदान, रक्त दान, नेत्र दान, अंगदान, वृक्ष दान और सम्पूर्ण राजपाट दान आदि।
कर्ण ने तो अपने कवच और कुंडल का दान कर दिया था। एकलव्य ने अपने अंगूठे का दान किया था।सत्य की रक्षा के लिए राजा हरिश्चंद्र ने अपना पूरा राजपाट दान कर दिया था।राजा बलि के दान की कहानी अमर है।किसी खास दिन,महीना, अवसर और उत्सव पर दिए गए दान का अति विशिष्ट महत्त्व होता है।
इस जगत में जो जितना दान करता है उसका हजार गुना उसको इसी संसार में प्राप्त भी हो जाता है।
इन सभी दानों में श्रेष्ठतम दान कन्या दान है। मानव जीवन और गृहस्थ जीवन की सार्थकता सिर्फ और सिर्फ कन्या दान में सन्निहित है क्योंकि कन्या श्री है,शोभा है,धन है, लक्ष्मी है ,मान-मर्यादा है और ऐश्वर्य है। इसीलिए तो विवाह के शुभ अवसर पर कन्या पूजन का प्रावधान वैदिक काल से रहा है।
-अशोक पाण्डेय

11अगस्त:,2022
नकारात्मक विचारों से बचें!

दो प्रकार के विचार हमारे मन में आते हैं, अच्छे विचार और बुरे विचार।अच्छे विचार हमारे अंदर सकारात्मकता को विकसित करते हैं जिसके चलते हम प्रत्येक मनुष्य की अच्छाइयों को ही देखते हैं। लेकिन नकारात्मक विचार हमारे मन को तीन प्रकार से प्रभावित करता है,यह सबसे पहले हमारे विश्वास को तोड़ता है।उसके बाद यह हमारी आशाओं को तोड़ता है और अंत में यह हमारी श्रद्धा को समाप्त कर देता है।वहीं सकारात्मक विचार हमारे विश्वास,आशा और श्रद्धा को बढ़ाते हैं।ये दोनों विचार राम और रावण हैं, श्रीकृष्ण और कंस हैं,पाण्डव और कौरव हैं।
नकारात्मक विचार से हम केवल दूसरों के दोष को, उसकी कमियों को ढूंढ़ते हैं।साथ ही साथ हम सदा भयभीत रहते हैं। शंकालु बन जाते हैं।हम अपने आप को सदा असुरक्षित महसूस करने लगते हैं।हमारा आत्मविश्वास समाप्त हो जाता है और इन सब की चिंता में हमारा जीवन नरक बन जाता है। चिंता और भय से हमारी आयु क्षीण हो जाती है। जीवन के शाश्वत मूल्यों को पहचानने और अपनाने से दूर हो जाते हैं।ऐसे में मेरी यही नेक सलाह है कि आप अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में नकारात्मक विचारों से बचें। रामचरितमानस कथा का श्रवण करें क्योंकि रामचरितमानस समन्वय की एक विराट चेष्टा है जो हमारी नकारात्मक सोच को हमेशा के लिए समाप्त कर देती है।
-अशोक पाण्डेय

10अगस्त:,2022
भोजन अपनी इच्छानुसार करें और ड्रेस दूसरों की पसंद के अनुसार

कहते हैं कि “आप रुचि भोजन,पर रुचि श्रृंगार।”-अच्छा होता है। भगवान जगन्नाथ जी भी अपनी इच्छानुसार 56 प्रकार के अन्न का भोग प्रतिदिन ग्रहण करते हैं और अपने भक्तों की पसंद के अलग अलग ड्रेस प्रतिदिन धारण करते हैं। प्रतिवर्ष देवस्नान पूर्णिमा के दिन जगन्नाथ जी अपने एक गाणपत्य भक्त विनायक भट्ट की इच्छानुसार गजानन वेश धारण करते हैं।
वैसे तो आप पूरी तरह से स्वतंत्र हैं अपनी इच्छानुसार खाने, पहनने और कार्य करने के लिए। मनोविज्ञान भी कहता है कि आदमी जो सोचता है और जो कुछ भी करता है वह सिर्फ अपनी मर्जी से ही करता है।उसकी सोच और कार्य को कोई बदल नहीं सकता है।
फिर भी,नेक सलाह यही है कि आप यथासंभव सात्विक भोजन ही करें और हल्के रंग के ड्रेस पहनें।सबसे मान्य रंग हल्का पीला और सफेद है।इन दोनों रंगों का व्यक्तिगत, सामाजिक, आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक तथा सांकेतिक महत्त्व होता है।
-अशोक पाण्डेय

24जुलाई:,2022
गुस्सा

गुस्सा एक मानसिक अवस्था है जो क्षणिक है।यह अधिक से अधिक कुछ मिनट तक ही रहता है लेकिन इसका दुष्प्रभाव जीवन को बर्वाद कर देता है। बचपन में यह आदत के रूप में और बड़े होने पर स्वभाव के रूप में किसी के साथ दिखाई देता है। गुस्सा हमसे हमारे अपनों से अलग कर देता है।लोग गुस्सा करने वाले व्यक्ति से सदा दूर रहना चाहते हैं। गुस्से का ग़लत प्रभाव पहले परिवार में पति -पत्नी और अन्य सदस्यों पर पड़ता है।उसके उपरांत समाज पर पड़ता है। गुस्सा मन की शांति खत्म कर देता है।
एकबार एक व्यक्ति एक संत के पास आकर गुस्से में उन्होंने खूब गाली गलौज किया।जब उसका गुस्सा शांत हुआ तो संत ने उस व्यक्ति से कहा कि आनेवाले कल के दिन वे उसके गुस्से का जवाब देंगे।
अगले दिन संत आये। गुस्सेवाला व्यक्ति अपने गुस्से के जवाब के विषय में पूछा।संत ने कहा कि कैसा जवाब? मुझे तो कोई जवाब नहीं देना है। मैंने तो यह सोचा कि आज आपका गुस्सा जरूर समाप्त हो गया होगा। व्यक्ति ने अपनी ग़लती मान ली और संत को आश्वस्त किया कि वह आजीवन गुस्सा नहीं करेगा।
आप भी अपने गुस्से पर नियंत्रण रखें।
-अशोक पाण्डेय

14जुलाई:,2022
श्रीराम अपनी इच्छा से जंगल गये
उनकी मदद की देवी लक्ष्मी ने

श्रीराम का कौशल्या की गोद में हंसते हुए प्रगट होना तथा दुराचारी रावण -वध के लिए चौदह वर्ष के लिए जंगल जाना , पूर्व नियोजित था।
अध्यात्म रामायण के अनुसार श्रीहरि विष्णु भगवान ने स्वयं इसकी जानकारी देवर्षि नारद को पहले ही दे दी थी।
और इस कार्य में सहयोग दीं थीं देवी लक्ष्मी ने।
रामायण काल की अलौकिक सभी घटनाएं पूर्व नियोजित थीं।मंथरा और कैकेयी ने भी श्रीराम की इच्छानुसार मात्र अपनी-अपनी सफल भूमिकाएं निभाईं।
श्रीराम ने नारद जी को‌ पूर्व में यह भी बतला दिया था कि वे रावण का वध करने के लिए दण्डकारण्य जाएंगे और वहां पर वे तपस्वी वेष में चौदह वर्ष रहेंगे।
मित्रों, श्रीराम का मर्यादित जीवन आपके लिए प्रेरणा है।आप भी अपने -अपने व्यक्तिगत जीवन में श्रेष्ठ बनें! लोककल्याण कार्य करें‌ और श्रीराम की तरह ही मर्यादित बनें,श्री जगन्नाथ जी से मेरी यही प्रार्थना है।
-अशोक पाण्डेय

08जुलाई:,2022
जीवन -संदेश

जीवन आपका एक रहस्य है। जीवन आपका एक अनबूझ पहेली है। जीवन आपका सत्कर्मों के लिए है।
लेकिन यह भी सच है कि प्रत्येक व्यक्ति की सोच अपनी होती है और उसी सोच को सबसे अच्छा मानकर वह कर्म करता है।
श्रीराम चन्द्र जी की सोच अपनी थी और रावण की भी सोच अपनी थी। लेकिन जीवन के अंतिम दिन रावण ने प्रायश्चित की ।उसने लक्ष्मण को जीवन की सफलता के तीन संदेश दिया-कोई शुभकार्य शीघ्र करें,अपने दुश्मन को कभी छोटा न समझें और अपने जीवन का राज किसी को न बताएं।
एक बात और-आपके जीने, कर्म करने और आनंद का समय केवल आज है। इसलिए अतीत में जीना छोड़कर आज में जीने का संकल्प लें ।श्री जगन्नाथ जी भी वर्तमान के प्रतीक हैं जिनके अपलक नेत्र भी वर्तमान में जीने का संदेश देते हैं।
-अशोक पाण्डेय

03जुलाई:,2022
गांधी जी के जीवन की कुछ खास बातें

गांधी जी भारत के जनमानस के अमर नेता हैं।वे 1888 से 1891 तक लंदन में रहकर कानून की पढ़ाई किये। दक्षिण अफ्रीका में 21 साल रहे।वे 1915 में भारत लौटे।
उनकी दिनचर्या थी :
गांधी जी प्रतिदिन 18 किलोमीटर टहलते थे। यह आदत उनकी 40वर्ष तक चली।वे प्रतिदिन ध्यान करते थे। वे रामनाम में विश्वास करते थे।उनकी सोच सकारात्मक थी।वे व्यसन से दूर रहते थे।दूसरों के प्रति उनके दिल में क्षमा-करुणा थी।वे आजीवन सत्य, अहिंसा और त्याग के पुजारी थे।वे रात में जल्दी सोते थे तथा सुबह में जल्दी उठते थे। उन्होंने हमें सादा जीवन और उच्च विचार का संदेश दिया है। आइए,हमसब भी उनके जीवन की अच्छाइयों का अनुसरण करें!
-अशोक पाण्डेय

29जूनः,2022
अंतर्द्वंद्व से बचें

जीवन का लक्ष्य तीन हैं-विद्या अर्जन,धन अर्जन तथा मान-सम्मान आदि का अर्जन करना और इन तीनों के अर्जन में हमारा पूरा जीवन व्यतीत हो जाता है।
इन तीनों के अर्जन के अंतर्द्वंद्व में मानव घिरा हुआ है।इनके समाधान के लिए हमें महाभारत युद्ध प्रसंग की ओर जाना होगा।
जब अर्जुन महाभारत युद्ध में हिस्सा लेने के समय किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये तो श्रीकृष्ण ने अर्जुन के मानसिक अंतर्द्वंद्व को खत्म किया और उनको अपने कर्मपथ पर चलने के लिए कहा।
आपभी अपने अन्तर्द्वन्द्व से बाहर निकल कर कर्म पथ पर आगे बढ़ें!
-अशोक पाण्डेय

28जूनः,2022
मां का हृदय

मां का हृदय ममतामई, वात्सल्यमई, दुलारमई,दयामई और क्षमामई होता है।उसकी दृष्टि में उसकी संतान दुनिया की सबसे अच्छी संतान होती है। इसलिए इस संसार में अपनी मां का स्थान कोई नहीं ले सकता है।यह भी कहा गया है कि माता कभी कुमाता नहीं होती है। एक मां का बेटा किसी लड़की से बहुत प्यार करता था।वह उससे विवाह करना चाहता था। लेकिन वह लड़की उस लड़के को पसंद नहीं करती थी। लड़के के बहुत जोर जबरदस्ती करने पर एक दिन लड़की ने कहा कि तुम अपनी मां कलेजा मेरे लिए लाओ मैं तुमसे विवाह कर लूंगी।
मां का लाड़ला वह बेटा दौड़ते हुए अपनी मां के पास गया और उससे उसका कलेजा मांगा।मां ने हंसते हुए अपना कलेजा बेटे को दे दिया। विवाह के लिए उतावला बेटा अपने हाथों में खून से लथपथ कलेजा लेकर उस लड़की को देने के लिए जा रहा था कि एक पत्थर के टुकड़े से टकरा गया। कलेजा उसके हाथ से नीचे गिर गया। उसी समय कलेजे आवाज आई कि बेटा चोट तो नहीं लगी?
लड़के ने आवाज को अनसुना कर के उस लड़की के पास गया और कहा कि लो तुम्हारे लिए अपनी मां का कलेजा ला दिया।अब तुम मुझसे विवाह कर लो। लड़की ने कहा कि नालायक,जब तुम अपनी मां के नहीं हुए तो मेरा क्या होगे?
मान्यवर, आप अपनी -अपनी मां की सेवा करें।मां को उचित सम्मान दें!
-अशोक पाण्डेय

26जूनः,2022
आपका शरीर ही देवालय है

मानव शरीर ही देवालय है। यह बात ऐतरिय उपनिषद कहता है।मन, मस्तिष्क और आत्मा का विश्लेषण कहता है।हमारे शरीर में वायु देवता प्राण हैं। नेत्र-ज्योति सूर्य देव हैं।अग्नि देवता हमारी वाणी हैं।नाक,कान, त्वचा दिशाओं, औषधि और वनस्पति का भान कराते हैं। बुद्धि और मन में सात ऋषियों का निवास है। भगवान जगन्नाथ जी की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के दिन पुरी धाम बड़दण्ड पर भक्तों द्वारा खिंचे जानेवाला भगवान जगन्नाथ जी का रथ जो चलते- फिरते देवालय होते हैं वे प्रतीक रूप में इस बात की पुष्टि करते हैं।रथ का निर्माण भी पांच तत्त्वों से होता है जैसे मानव शरीर।
-अशोक पाण्डेय

24जूनः,2022
प्रायश्चित

प्रायश्चित , पछतावा,अपने द्वारा जाने-अन्जाने में किये गये कोई ग़लत काम के लिए अफसोस जताना सज्जन की वास्तविक पहचान है।यह मनोदशा आत्मग्लानि भी कहलाती है ।
कैकेई,राम,भरत जैसे अनेक ने प्रायश्चित का संदेश हमें दिया है।
अपनी ग़लती का एहसास कर,उस ग़लती को दोबारा न करने के संकल्प का नाम प्रायश्चित है।
भगवान श्रीकृष्ण और भगवान जगन्नाथ ने भी समय-समय पर प्रायश्चित का संदेश दिया है।
इसलिए आप भी ईश्वर तथा गुरु भक्ति में रमे रहें और अपनी गलतियों के लिए प्रायश्चित करते रहें!
-अशोक पाण्डेय

22जूनः,2022
धीरज सभी का सच्चा मित्र है

मित्र तो अनेक हैं।जैसै: दोस्त,नारी, धर्म ,अपने लोग, सहपाठी और धीरज आदि। लेकिन इन सभी में सबसे अच्छा मित्र तो हमारा धीरज ही है जो विपत्ति आने पर साथ देता है।
धीरज धारण करने से जीवन में धन,मान, सुख, शांति, आनंद और आंतरिक खुशी हमें मिलती है।
सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र का व्यक्तिगत जीवन यह सिद्ध करता है कि दुख के दिनों‌ में धीरज से बड़ा साथी कोई नहीं है। धन-दौलत,राज-पाट,पत्नी और बेटे तक को राजा हरिश्चन्द्र को दस हजार स्वर्ण मुद्राओं के लिए बेचना पड़ा लेकिन उन्होंने अपना धीरज नहीं खोया।और एक दिन धीरज के बदौलत सभी उनके पास आ गया।
इसलिए जीवन के दुख के वक्त आपभी धीरज रखें!
-अशोक पाण्डेय

19जूनः,2022
कभी-कभी भलाई के लिए झूठ बोलना उचित होता है।

सच बोलना चाहिए। आजीवन सच बोलना चाहिए। सच बोलना हमारे अच्छे संस्कार को स्पष्ट करता है। लेकिन कभी -कभी अच्छे काम के लिए झूठ बोलना भी जरूरी हो जाता है।
एक गांव के सभी लोग झूठ बोलते थे और गलत आचरण करते थे।
उसी गांव में एक संत स्वभाव का व्यक्ति भी रहता था।वह जो कहता सच हो जाता था। एक आश्रम का संत उस व्यक्ति के पास आया और कहा कि उसके अनाथालय में बहुत अनाथ बच्चे रहते हैं जिनके खाने और रहने के लिए पैसौं की जरूरत है। इसलिए संत यह झूठ बोल दें कि तीन दिनों के बाद प्रलय आएगा और सबकुछ नष्ट हो जाएगा। संत बहुत सोचकर और अनाथ बच्चों के कल्याण के लिए झूठ घोषणा कर दिये कि अगले तीन दिनों में प्रलय आएगा। इसलिए सभी अपना धन अनाथालय को दान कर दें। संत की घोषणा से अनाथालय बच गया और उस गांव के सभी लोग ग़लत आचरण छोड़ कर सत्य के मार्ग पर चलने लगे।
-अशोक पाण्डेय

17जूनः,2022
जय जगन्नाथ

मृत्यु का भय धन लोभी को सच्चाई के रास्ते पर ला देता है
एक धन लोभी व्यक्ति था।उसके पास बहुत धन था फिर भी वह धन संग्रह के लोभ में हर प्रकार का ग़लत आचरण करता था।
एक बार एक संत जगन्नाथ के अस्तित्व का गुणगान करते तथा सत्यपथ पर चलने का संदेश देते हुए उस धन लोभी व्यक्ति के पास आये।धनलोभी व्यक्ति ने संत से पूछा कि क्या उनको कभी धन का लोभ नहीं होता है।संत ने कहा कि जब दाता जगन्नाथ हैं तो धन कमाने के लिए वे झूठ क्यों बोलें।फिर भी धन लोभी व्यक्ति ने संत से और अधिक धन कमाने का उपाय पूछा।संत ने कहा कि आपका जीवन तो‌ अब सिर्फ एक सप्ताह का ही है ।मरने से पहले जगन्नाथ जी की सेवा सत्यनिष्ठा से सेवा कर लो।
धनलोभी व्यक्ति उस दिन के बाद से सत्य मार्ग पर चलने लगा।ग़लत तरीके से अपने संचित धन को अपनी भूल मानकर दान करने लगा।उसके दान की चर्चा चारों ओर होने लगी।तभी संत उस व्यक्ति के पास आया और‌ बताया कि वे उसको सही रास्ते पर लाने के लिए ही जानबूझ कर झूठ बोले थे। धनलोभी व्यक्ति उनके चरणों में लेट गया।संत ने उसे शतायु होने का आशीर्वाद दिया।
सत्यनिष्ठा के साथ एक बार पुनः बोलें-जय जगन्नाथ!
-अशोक पाण्डेय

16जूनः,2022
सुमधुर वाणी

अगर बोलना है तो सुमधुर वाणी ही बोलिए,कटु वाणी कदापि नहीं। सुमधुर वाणी बोलने से आपका मन पहले शीतल होगा उसके उपरांत दूसरों का।
एक राजा अपने मंत्री तथा सेवकों के साथ जंगल भ्रमण के लिए निकला। जंगल में कुछ दूर जाने के पास राजा को प्यास लगी। राजा ने देखा कि जंगल में पानी का एक घड़ा रखा है।उस घड़े के पास पानी निकालने का पात्र भी रखा था।वहीं पर एक वृद्ध और अंधा व्यक्ति बैठा था। राजा ने अपने एक सेवक से पानी लाने को कहा।वह गया और वृद्ध अंधे व्यक्ति को डांटकर अपने राजा के लिए पानी मांगा। अंधे व्यक्ति ने पानी नहीं दिया। राजा अपने मंत्री को पानी लाने के लिए भेजा क्योंकि उसकी प्यास बढ़ रही थी। मंत्री भी अंधे से कठोर वाणी में जल मांगा लेकिन अंधे ने नहीं दिया। तब राजा स्वयं अंधे व्यक्ति के पास आये। उसको प्रणाम किया और सुमधुर वाणी में पानी मांगा।अंधे ने कहा कि आप तो एक राजा जान पड़ते हैं। लीजिए पानी ग्रहण कीजिए। राजा ने अंधे व्यक्ति से पूछा कि आप कैसे समझ गये कि मैं एक राजा हूं। अंधे व्यक्ति ने कहा कि आपकी सुमधुर वाणी से।मैं इस सघन जंगल में वर्षां से सिर्फ सुमधुर वाणी सुनकर ही जल पिलाने का काम कर रहा हूं।
मान्यवर,आप भी दूसरों के साथ सदा मधुर वाणी में ही बात करें!
-अशोक पाण्डेय

15जूनः,2022
मोह

मोह,माया और ममता -ये तीनों दुखदाई हैं।इनको छोड़ना आसान नहीं है।
एक बार एक पके आम को अपने आम वृक्ष से आवश्यकता से कहीं अधिक मोह -लगाव हो गया।
आम का रखवाला एक -एक कर सभी पके आमों को तोड़ लिया। लेकिन मोह में फंसा वह पका आम पत्तों में छिप गया। लेकिन उसकी दुविधा बढ़ती गई कि वह पेड़ से लगा रहे अथवा जाकर अपने अन्य पके आम दोस्तों से मिले।धीरे-धीरे वह सूखने लगा।अब उसके पास मात्र गुठली ही रह गई।एक बार तेज हवा चली और वह भी नीचे गिर गई।
इस संसार की भी यही दशा है। निर्णय आपका है कि मोह से आप निश्चित दूरी बनाकर कैसे रहते हैं।
-अशोक पाण्डेय

13जूनः,2022
अपने विचार और ज्ञान को बढ़ायें!

एक व्यक्ति का उत्तम विचार और उसका जिज्ञासु ज्ञान ही उसे निश्चित रूप से महान बनाते हैं।
एक राजा अपने लिए एक सद्गुरु बनाने के लिए पूरे संसार में घोषणा कर दी कि उसे ऐसा एक सद्गुरु चाहिए जिसके पास संसार का सबसे बड़ा आश्रम भी हो। संसार के एक से बढ़कर एक सद्गुरु आये और अपने -अपने आश्रम की बखान राजा के सामने किये। राजा ने धीरज के साथ सभी सद्गुरुओं की बात सुनी। लेकिन संतुष्ट नहीं हुआ।उसी समय एक और संन्यासी सद्गुरु गुरु आये और राजा से कहे कि उनका आश्रम संसार का सबसे बड़ा आश्रम है। संन्यासी सद्गुरु गुरु अपने साथ राजा को एक जंगल में ले गये।वे एक पेड़ के नीचे आसन लगा कर बैठ गये और राजा को अपने सामने बैठने को कहा।राजा ने पूछा कि कहां है आपका संसार का सबसे बड़ा आश्रम? संन्यासी सद्गुरु गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा कि राजन! नीचे यह पृथ्वी है और ऊपर यह नीला आकाश और यही है मेरा संसार का सबसे बड़ा आश्रम। आप चाहें तो माप करा सकते हैं।राजा यह सुनकर अति प्रसन्न हुआ और उसी संन्यासी सद्गुरु गुरु को अपना राज गुरु बना लिया। मान्यवर, आप भी अपना विचार, ज्ञान और दृष्टिकोण बदलें और बढ़ायें! मोक्ष प्राप्ति के लिए आप भी संन्यासी सद्गुरु की शरण में जायें!
-अशोक पाण्डेय

09जूनः,2022
मां सरस्वती ने महाकवि कालिदास और महाकवि दण्डी दोनों को समान रूप से श्रेष्ठ बताया

एक बार महाकवि कालिदास और महाकवि दण्डी के मध्य यह विवाद उत्पन्न हुआ कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है? जैसा कि सभी जानते हैं कि दोनों संस्कृत के कालजई कवि थे। दोनों पर विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की समान और असीम कृपा रही है । अपनी-अपनी श्रेष्ठता का विवाद लेकर दोनों मां सरस्वती के पास गये और उनसे पूछे कि वे दोनों में से सबसे अधिक किसको श्रेष्ठ मानतीं हैं। दोनों में वे सबसे अधिक किसे श्रेष्ठ मानतीं हैं? देवी सरस्वती ने दोनों को समान रूप से श्रेष्ठ बताया।
-अशोक पाण्डेय

08जूनः,2022
गृहस्थ जीवन में भी ईश्वर की प्राप्ति होती है

यह सच है कि गृहस्थ जीवन जीते हुए भी ईश्वर की प्राप्ति संभव है। केवल गृह त्याग करने तथा साधु-संत बनने से ही नहीं।
एक राजा ने अपने मंत्री को बुलाकर पूछा कि क्या गृहस्थ जीवन जीकर भी ईश्वर मिल सकते हैं? मंत्री ने कहा कि हां महाराज। मंत्री ने राजा को लेकर जंगल गया जहां पर एक नामी संत रहते थे। संत का आदेश था कि जो भी उनसे मिलने आएगा नंगे पांव आएगा तथा इस बात का विशेष ध्यान रखेगा कि उसके पांव से एक चींटी तक न कुचले नहीं तो वह शाप दे देगा।राजा ने वैसा ही किया।राजा से संत ने पूछा कि आप जब मेरे पास आ रहे थे तो कोई कीट-पतंग अथवा कोई चींटी तो आपके पांव के नीचे तो नहीं आई! अपने आते समय क्या क्या देखा।राजा ने कहा कि वह आते समय पूरी सावधानी रखा इसलिए वह कुछ भी नहीं देखा न ही उसके पांव से कोई भी जीव नहीं कुचला है। संत प्रसन्न हुआ और राजा को बताया कि जिस प्रकार आपका ध्यान यहां‌ आते समय आपने रखा ठीक इसी प्रकार गृहस्थ जीवन में भी आप सावधानी के साथ ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं।
आप भी गृहस्थ जीवन जीते हुए ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं।
-अशोक पाण्डेय

07जूनः,2022
श्री जगन्नाथ जी चारों तरफ हैं

एक जगन्नाथ भक्त जगन्नाथ जी को जानने के लिए श्री जगन्नाथ पुरी गया।वह मुक्तिमण्डप पर बैठे एक ब्राह्मण से पूछा कि श्री जगन्नाथ जी क्या श्रीमंदिर में है? ब्राह्मण ने विनम्रतापूर्वक जवाब दिया कि श्री जगन्नाथ जी श्री मंदिर में हैं और पूरे संसार में भी। भक्त ने कहा कि वह कैसे मान ले? ब्राह्मण ने भक्त से पूछा कि श्री जगन्नाथ जी की पूजा के लिए वह क्या लाया है? भक्त ने कहा कि महादीप और शुद्ध दुग्ध। ब्राह्मण ने भक्त का दुग्ध थोड़ा -थोड़ा लेकर उसमें अपनी अंगुली डालता और निकाल लेता। भक्त ने कहा कि ब्राह्मण देवता काफी देर से आप दुग्ध में अपनी अंगुली डालकर निकाल रहे हैं।यह क्या है? ब्राह्मण ने विनम्रतापूर्वक जवाब दिया कि वह दुग्ध से मक्खन खोज रहा है। भक्त ब्राह्मण का इशारा समझ गया और उसका चरणस्पर्श कर श्री जगन्नाथ जी के दर्शन किया और जय जगन्नाथ करता हुआ श्रीमंदिर से बाहर आ गया। मित्रों,आप भी श्री जगन्नाथ जी की भक्ति जप,तप और ध्यान से करें।आपका मन प्रसन्न हो कर कहेगा-जय जगन्नाथ जी!
-अशोक पाण्डेय

01जूनः,2022
सत्य की खोज

सत्य की खोज सरल है, आसान है और अन्तर्मुखी है। सत्य की प्राप्ति के उपरांत परम सत्य की प्राप्ति संभव है।
एक संत अकेले ही कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक व्यक्ति मिला और उनसे सत्य के विषय में पूछा। संत कुछ देर तो चुप रहे फिर पूछे तुम अपनी अंगुली में क्या पहन रखे हो? जरा मुझे देना।उस व्यक्ति ने अपनी अंगूठी निकालकर संत को दे दिया। संत ने उस अंगूठी को सामने के लहलहाते खेत में फेंक दिया। व्यक्ति नाराज हुआ और संत से कहा कि वे अच्छा नहीं किये।वह अंगूठी उसके पिता की अंतिम निशानी है। संत ने कहा कि अगर तुम उसे पूरे मन से खोजोगे तो अवश्य मिल जाएगी क्योंकि वह तुम्हारे लिए अत्यंत मूल्यवान तथा महत्त्वपूर्ण है।ठीक इसी प्रकार सत्य है। सत्य की खोज है जिसकी प्राप्ति से परम सत्य की प्राप्ति भी संभव है।हमसब भी सत्य की खोज स्वयं करें और आनंदमय जीवन जीयें।
-अशोक पाण्डेय

31मईः,2022
मन

मन हमारा बहुत चंचल है। यह किसी विषय पर मात्र 43सेकेण्ड ही रहता है।इसीलिए वेदों, पुराणों, उपनिषदों,रामायण, महाभारत और गीता में मन को वश में रखने की बात बताई गई है। मन से ग्रहण करना मनन है।जो हमारा मन लेता है उसे वह मस्तिष्क को देता है और उसी से हमारा शरीर काम करता है।तन विचार शक्ति का पिता है। भावना, विचार, प्रेम, करुणा,दया, सहानुभूति ,वीरता, शौर्य, घृणा-द्वेष मन से ही उत्पन्न होते हैं। आइए,मन को नियंत्रित करें और महान बनें!
-अशोक पाण्डेय

26मईः,2022
हनुमान जैसा भक्त बनें!

जय हनुमान!
एक समय की बात है।नारद जी श्री कृष्ण के घर गये।वहां श्रीकृष्ण ध्यान में मग्न थे और रुक्मिणी जी अकेली बैठी थीं। श्रीकृष्ण के ध्यान के उपरांत नारद ने उनसे पूछा कि भगवान आप किसके लिए ध्यान कर रहे थे। श्रीकृष्ण ने जवाब दिया कि मेरा जो भक्त मेरे दिल के सबसे करीब है और सबसे बड़ा मेरा भक्त है। नारद ने कहा कि क्या वह धरती है? श्रीकृष्ण ने कहा नहीं।नारद ने कहा तब तो वे शेषनाग हैं। श्रीकृष्ण ने कहा नहीं।वह तो शिव के हाथों का कंगना है। नारद ने फिर कहा कि प्रभु तब तो वह शिव होंगे। श्रीकृष्ण ने कहा कि शिव को तो कैलाश ने रहने का स्थान दिया है। कैलाश को रावण ने उठा लिया था।नारद ने कहा कि तब तो वह रावण है? श्रीकृष्ण ने कहा कि रावण को तो‌ बालि ने अपनी कांख में दबा लिया था। और बालि को राम ने मार दिया था। नारद ने कहा कि तब तो राम हैं। श्रीकृष्ण ने कहा- नहीं।बालि को मारने में राम की सहायता हनुमान ने की थी। नारद ने कहा कि प्रभु तब तो निश्चित रूप से हनुमान आपके सबसे बड़े भक्त हैं जिनका आप ध्यान कर रहे थे। श्रीकृष्ण मुस्कराते हुए कहा कि हनुमान ही मेरे सबसे बड़े भक्त हैं जो अपना हृदय चीर कर दिखा दिया।और वहीं हनुमान मेरा सबसे बड़ा भक्त है जिसका मैं ध्यान करता हूं। नारद श्रीकृष्ण के विचार सुनकर प्रसन्न हो गये।
आप भी हनुमान जी का नित्य भजन-पूजन अवश्य करें!
-अशोक पाण्डेय

17मईः,2022
देने की कला प्रोफेसर अच्युत सामंत से सीखें!

आज 17 मई है।आजके ही दिन 2013 में कीट-कीस और कीम्स के प्राण प्रतिष्ठाता तथा कंधमाल लोकसभा सांसद प्रोफेसर अच्युत सामंत ने अपने वास्तविक जीवन दर्शन : “आर्ट आफ गिविंग* का आरंभ किया था।यह आर्ट आफ गिविंग अपने आप में शांति, प्रेम, सौहार्द, मैत्री और भाईचारे का आत्मीयता संदेश है। आप भी प्रोफेसर अच्युत सामंत की तरह निस्वार्थ जनसेवक बनें, लोकसेवक बनें और दुनिया में देने की कला को विकसित करें!
अशोक पाण्डेय

16मईः,2022
बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई !

आज चिंतन का विषय है- धैर्य। “धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी, आपद काल परखिए चारि।” प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में धैर्य की जरूरत है। जिस व्यक्ति के पास धैर्य है ,उसके पास संसार का समस्त सुख, आनंद, शांति, कीर्ति और ऐश्वर्य है। वही व्यक्ति जीवन में सफल भी हुए हैं जिनके पास अटल धैर्य होता है। धैर्य का अर्थ होता है -किसी भी कठिन समय में विचलित न होने वाली शक्ति। धैर्य मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र है। जिसने इससे दोस्ती की उसे जीवन की सारी खुशियां प्राप्त हुईं। मनुष्य का पहला धर्म है वह अपने धैर्य को कायम रखे। किसी भी परिस्थिति में अपने धैर्य को न खोए।जैसे जीवन में रात आती है ,दिन आता है ,रोग आते हैं, आरोग्य आता है, सुख -शांति आती है, दुख आता है लेकिन किसी भी परिस्थिति में हमें इनसे कभी विचलित नहीं होना चाहिए ।इसके लिए हमें धैर्य धारण करने की जरूरत है। इसलिए आज के शुभ अवसर पर एक ही संदेश है कि प्रत्येक व्यक्ति भगवान बुद्ध की तरह धैर्य धारण करे।
-अशोक पाण्डेय

15मईः,2022
।।शरीर और देह।।

शास्त्रों के अनुसार शरीर और देह में अंतर है।शरीर का मतलब है अन्दर की ऊर्जा, प्रवाह।बाहरी शरीर के अंदर भी एक और शरीर है।वह शरीर संवेदना उत्पन्न कर सकता है। लेकिन देह तो इतना ही कर सकती है कि वह अपने जैसा और एक रचना कर दे। देह का मतलब है जो मृत्यु शील हो, गतिशील हो, खत्म होने वाली हो।देह धीरे धीरे गतिशील होकर समाप्त हो जाती है। यह संसार देह है और देही स्वयं जगन्नाथ जी हैं। शरीर और देह के अंतर को समझते रहिए और प्रेम से बोलते रहिए- “जय जगन्नाथ जी!
-अशोक पाण्डेय

13मईः,2022
ज्ञान की आंखों का इस्तेमाल करें!

जीवन में आंखों का विशेष महत्त्व होता है। आंखों से दुनिया देखी जा सकती है। दुनिया के सुखों का उपभोग किया जा सकता है। ‌जिसके पास आंखें नहीं होतीं उसे ज्ञान की आंखों का इस्तेमाल करना चाहिए। एक मंदिर के सामने एक अंधा व्यक्ति भीख मांगकर अपना गुजारा करता था।एक दिन एक दयालु धनी व्यक्ति मंदिर में आया। भगवान के दर्शन के बाद जब वह जाने लगा तो उसकी नज़र अंधे व्यक्ति पर पड़ी।उसने अंधे की झोली में सौ रुपए का एक नोट डाल दिया और चला गया।रात में जब मंदिर बंद होने लगा तो अंधे भिखारी ने अपनी झोली से सिक्कों को निकाल लिया और सौ रुपए के नोट को कागज समझकर फेंक दिया।तभी एक दयालु उधर से गुजरा।उसने सौ रुपए के नोट को अंधे भिखारी को दिया और उससे यह कहा कि सौ रुपए से तुम बहुत कुछ खरीद सकते हो।आज के बाद से हमेशा अपनी ज्ञान की आंखों का इस्तेमाल करना। कागज समझकर सौ रुपए मत फेंक देना। दोस्तों,आप अपनी आंखों तथा अपनी ज्ञान की आंखों का सदा इस्तेमाल करना।
अशोक पाण्डेय

12मईः,2022
“जहां सम्पदा वहां आपदा”

एक विवेकी एक राजा के दरबार में जाकर राजसिंहासन पर बैठ गया। राजदरबारियों ने पूछा कि वह व्यक्ति कौन है जो राजदरबार में आकर सीधे राजसिंहासन पर बैठ गया है। विवेकी ने कहा कि वह राजा की मौसी का बेटा है।राजा को खबर दी गई। राजा ने बताया कि उसकी तो कोई मौसी नहीं है। विवेकी ने कहा कि राजन!मेरी मां का नाम आपदा है और आपकी मां का नाम सम्पदा है। सम्पदा और आपदा दोनों सगी बहनें हैं।इसे सभी जानते हैं। साथियों, सच्चाई को आप भी समझें कि इस संसार में जहां सम्पदा है वहां पर आपदा आएंगी। आपदा पर नियंत्रण कर सम्पदा प्राप्त की जाती है।
-अशोक पाण्डेय

09मईः,2022
“तप करें तो देवी पार्वती जैसा”

भगवान भोलेनाथ को पाने के लिए देवी पार्वती ने घोर तप किया। भोलेनाथ पार्वती जी की परीक्षा ली।वे विकराल रूप धारण कर उनके पास गये लेकिन पार्वती जी ने भोलेनाथ को पहचान लिया और उनसे कहा कि वे उनके पिता हिमालय के पास जाकर उनसे उनका हाथ मांग लें। भगवान भोलेनाथ ने देवी पार्वती से कहा कि हो सकता है तुम्हारे पिता तुम्हारे लिए कोई रूपवान वर पहले से चुन लिया हो ।ऐसा सुनकर पार्वती जी ने अशोक पुष्प देकर उनका वर्णन किया लेकिन भोलेनाथ की परीक्षा अभी भी शेष नहीं थी। भोलेनाथ के अंतर्ध्यान होने के बाद पार्वती जी आने वाले दिनों के बारे में विचार करती हुई एक पर्वत पर बैठ गईं तभी भोलेनाथ एक ब्राह्मण बालक बनकर जल में प्रकट हुए और एक घड़ियाल ने उन्हें दबोच लिया । बालक की पुकार सुनकर पार्वती जी स्वप्नलोक से बाहर आईं और घड़ियाल से कहा बालक को छोड़ दो । घड़ियाल ने कहा बालक उसका आहार है और वह उसे नहीं छोड़ सकता है। इस पर पार्वती जी ने घड़ियाल को अपनी सारी तपस्या का फल बालक के प्राण रक्षा के लिए दे दिया। इसीलिए कहा गया है “मातृरूपेण संस्थिता” ।किसी की प्राण रक्षा के लिए किया गया तप उत्तम दान होता है। आप भी दान करें और बदले में हजारों गुना अधिक लाभ भोलेनाथ से प्राप्त करें!
-अशोक पाण्डेय

08मईः,2022
“रटने से अच्छा है,विवेकी बनना”

एक पेड़ पर कबूतरों का झुंड रहता था। प्रतिदिन एक बहेलिया आता। पेड़ के नीचे जाल बिछा देता।उसमें दाना डाल देता और पेड़ की ओट में बैठ जाता।कबूतर पेड़ से नीचे उतरते और दाना चुगने के लोभ में जाल में फंस जाते। कबूतरों में एक बूढ़ा कबूतर भी था जो विविकी था।एक दिन उसने कबूतरों की मीटिंग बुलाई और समझाया कि अगले दिन कोई भी कबूतर बहेलिया के जाल में नहीं फंसेगा। तुम सभी यह रट लो-“बहेलिया आएगा।जाल बिछाएगा।दाना डालेगा।लोभ से उसमें फंसना नहीं।”बूढ़े कबूतर की सलाह को सभी कबूतर रट गये।अगले दिन भी बहेलिया आया।उसने पेड़ पर एक आवाज एक स्वर में सभी कबूतरों के मुंह से सुनी कि बहेलिया आएगा…उसने सोचा कि आज का दिन ठीक नहीं है।आज तो एक भी कबूतर हाथ नहीं लगेगा,फिर भी वह भगवान का नाम लेकर जाल बिछा दिया।दाना डाल दिया और कबूतर यही रटते हुए कि बहेलिया आएगा… नीचे उतरते और जाल में फंस गए।आपभी विवेकी बनें न कि रटने वाले।

07मईः,2022
सफलता

प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में सफल होना चाहता है। लेकिन प्रत्येक व्यक्ति यह नहीं जानता कि सफलता की सीढ़ी पर धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहिए, जल्दबाजी में नहीं। एक जंगल में एक पेड़ पर दो पक्षी रहते थे । उसी जंगल एक किनारे पर एक स्वादिष्ट फल का बड़ा वृक्ष था। फलों के मौसम आने पर सुदूर प्रदेशों से आकर मीठे फल खाते थे । जंगल के उन दोनों पक्षियों ने सोचा कि वे भी स्वादिष्ट फल खायें।एक तेजी से उड़ा और पेड़ के नजदीक पहुंच गया लेकिन उसके पंख थक जाने के कारण वह पेड़ पर चढ़ने में बिल्कुल असमर्थ हो चुके थे।वही दूसरा पक्षी धीरे -धीरे उड़ा और पेड़ पर पहुंच गया। स्वादिष्ट फल खाया और पुनः अपने घोंसले में लौट आया।तेज उड़कर भी पहला पक्षी स्वादिष्ट फल खाने से वंचित रह गया‌।
आप भी सफलता की सीढ़ी पर धीरे-धीरे चढ़ें,धीरज के साथ चढ़ें!
-अशोक पाण्डेय

04मईः,2022
महोत्सव

महा+उत्सव=महोत्सव। महोत्सव का सीधा संबंध मन से है।मन की खुशी से है।जैसे कल हमने अक्षय तृतीया महोत्सव मनाया। ओडिशा के किसान अपने-अपने खेतों में बोआई का शुभारंभ किया। चंदनयात्रा आरंभ हुई। भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए पुरी धाम में नये रथों के निर्माण का कार्य आरंभ हुआ।
महोत्सव स्व अन्तर्मन की खुशी है। इसलिए कहा गया है कि वसंत आता नहीं,ले आया जाता है। जगन्नाथ मंदिर में चौबीस घंटे महोत्सव रहता है। रथयात्रा के दिन लौकिक -अलौकिक महोत्सव होता है।आपके जीवन का हरेक पल नष्ट हो जाएगा लेकिन आनंद का पल सदैव आपके मानस पटल पर कायम रहता है। इसलिए सबकुछ अच्छा बनाने के लिए अपने मन को आनंदित करें और प्रेम से जय जगन्नाथ बोलें,मन प्रसन्न होकर कहेगा यह महोत्सव का क्षण है।
-अशोक पाण्डेय

02मईः,2022
अक्षय तृतीया

*3 मई को अक्षय तृतीया है। वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया जो हर तरह से फलदायी मानी जाती है ।अक्षय तृतीया के दिन त्रेता युग और सतयुग का आरंभ हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम का अवतरण हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन की ही बलराम जी का जन्म हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन ही सुदामा द्वारकाधीश श्री कृष्ण से मिलने के लिए गए थे । ओडिशा के जगन्नाथ पुरी धाम में जगन्नाथ जी की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए नए रथों के निर्माण का कार्य आरंभ होता है। अक्षय तृतीया मनाने का पौराणिक और ज्योतिषीय महत्व भी है ।इसे युग दिवस भी कहते हैं ।अक्षय तृतीया के दिन ही वेदव्यास जी ने महाभारत कथा लिखने का विचार किया था। अक्षय तृतीया के दिन ही द्रोपदी ने श्री कृष्ण की आराधना कर उनसे अक्षय पात्र प्राप्त किया था।अक्षय तृतीया के दिन ही शक्ति स्वरूपा चामुंडेश्वरी ने असुरों का नाश किया था। अक्षय तृतीया के दिन ही भगीरथ ने गंगा को धरती पर लाया था। आइए ,हम सब भी अक्षय तृतीया के महत्व को समझें! अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदें! गृह निर्माण , गृह प्रवेश तथा प्रत्येक शुभकार्य का शुभारंभ करें!
-अशोक पाण्डेय

25 अप्रैल:,2022
स्वाभिमान

स्वाभिमान नम्र होता है।यही आपको पंख देता है। प्रत्येक अच्छे व्यक्ति को स्वाभिमानी होना चाहिए।
एक पेड़ पर कुछ पक्षी विहार कर रहे थे।उनमें एक नन्हा पक्षी भी था। एक लकड़हारा आया और उस पेड़ को काटने लगा।सभी पक्षी जान बचाने केलिए उड़ गये। लेकिन नन्हा पक्षी आनंद के साथ पेड़ पर बैठा रहा। लकड़हारे ने नन्हे पक्षी से पूछा कि उसको डर नहीं लग रहा है? नन्हे पक्षी ने जवाब दिया कि उसको अपने पंखों पर भरोसा है और अपने आप पर स्वाभिमान है। लकड़हारा हाथ जोड़ दिया।
आप भी स्वाभिमानी बनें , अभिमानी नहीं।
-अशोक पाण्डेय

24 अप्रैल:,2022
दोष

एक राजा चौराहे पर एक सुंदर फोटो लगा दिया। उसके नीचे लिख दिया कि जिसको फोटो में कोई दोष नजर आये तो उसे मार्क कर दे।
कुछ दिनों के बाद आकर राजा देखा कि वह सुंदर फोटो पूरी तरह से दोष मार्क से गंदा हो गया है।
राजा ने फोटो हटा दिया और उसी जगह पर एक सफेद पेपर लगा दिया।लिख दिया कि ऐसा सुंदर फोटो बनायें जिसमें कोई दोष न हो।समय दो महीने का दे दिया।
दो साल के बाद राजा आया ।देखा कि सफेद कागज धूल से भरा था। किसी ने बिना दोष के फोटो नहीं बनाया था।
किसी में दोष निकालना बहुत सरल है।
-अशोक पाण्डेय

23 अप्रैल:,2022
दो मित्र की कहानी

दो मित्र थे। एक पढ़ाई में अव्वल तो दूसरा अति सामान्य। प्रवेशिका परीक्षा में पढ़ाई में अव्वल आने वाला मित्र प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होकर क्लर्क की नौकरी आरंभ किया। वही अति सामान्य मित्र फेल होकर अपने खुद का ईंट बनाने का काम आरंभ कर दिया।काम में खूब मन लगाकर लखपति बन गया।अब उसके पास मोटर, बंगला, नौकर -चाकर सबकुछ आ गया।जो मित्र क्लर्क की नौकरी कर रहा था वह मुश्किल से अपना जीवन जी रहा था।एक दिन बारिश हो रही थी।वह पैदल आफिस जा रहा था। पीछे से एक कार आई और उसे भींगो दिया।कारवाला नीचे उतरा और माफी मांगी। मित्र देखकर दंग रह गया।वह उसका मित्र था जो पढ़ने में अति सामान्य था। दोनों गले मिले और फिल्म देखने का वादा किये। लेकिन कारवाला मित्र अपनी व्यस्तता के कारण आ नहीं सका।
समय -समय की बात होती है। कर्मशील बनें!
-अशोक पाण्डेय

20 अप्रैल:,2022
आशा

आशा, उम्मीद है। उत्साह की माता है। आशा में बल है,तेज है। संसार की संचालक शक्ति है आशा।
जब हम कोई भी काम करते हैं तो‌ हमें उसमें पहले असफलता मिलती है।
बार-बार असफलता मिलती है फिर भी, सफलता के लिए आशा को पकड़ कर रखना चाहिए।
याद रखें, आशा ही आपकी गुरु है। आशा ही आपकी मित्र है। आशा ही आपकी सहयोगी और सहभागी है।
-अशोक पाण्डेय

17अप्रैल:,2022
एकाग्रता

जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए एकाग्रता बहुत जरूरी है।
एक बार द्रोणाचार्य अपने शिष्यों के लक्ष्य संधान की परीक्षा लेने के लिए काठ की एक चिड़िया पेड़ ‌पर रख दी। अपने शिष्यों से कहा कि उनका लक्ष्य चिड़िया की आंख है।उसी पर निशाना लगाना है। केवल अर्जुन को भी लक्ष्य दिखाई दिया।
वास्तव में एकाग्रता का अर्थ मन को नुकीला बनाना जो लक्ष्य पर पूरी तरह से केन्द्रित हो जाय।
एकाग्रता आपके व्यक्तित्व को महान बनाता है।
इसलिए अपने मन को लक्ष्य प्राप्ति के लिए एकाग्र बनायें और प्रेम से बोलें-जय जगन्नाथ!
-अशोक पाण्डेय

16अप्रैल:,2022
सत्य का महत्त्व

एक राजा थे-राजा सत्य देव। एक दिन सुबह जब वे उठे तो वे अपने घर से एक सुंदर स्त्री को निकलते हुए देखा।राजा सत्यदेव ने स्त्री का परिचय पूछा। स्त्री ने बताया कि वह लक्ष्मी है।राजा ने स्त्री को जाने दिया। लक्ष्मी के पीछे एक पुरुष निकला । उसने अपना नाम दान बताया। राजा ने उसे भी जाने दिया।दान भी उनके राजमहल से चला गया।उसके बाद सत्यदेव राजा के घर से सदाचार और यश भी चले गये। लेकिन उनके राजमहल से जब सत्य पुरुष रुप में जाने लगा तो राजा ने बड़े ही विनम्र भाव से सत्य से कहा कि उन्होंने तो सत्य को कभी त्यागा नहीं,फिर भी सत्य आप क्यों जाना चाहते हैं?आपको मैं कदापि जाने नहीं ‌दूंगा। सत्य रुक गया और जो लक्ष्मी,दान, सदाचार और यश बाहर गये थे, तत्काल वापस राजा सत्यदेव के घर लौट आये।
आप भी सत्य के महत्त्व को समझें।
-अशोक पाण्डेय

15अप्रैल:,2022
ज्ञान-अहंकार

ज्ञान का अहंकार कभी न करें! आप चाहें वेदों- पुराणों के ज्ञाता ही क्यों न हों।
एक ग्वालिन नौका से नदी पार कर प्रतिदिन दूध बेचने जाती थी।ग्वालिन को प्रतिदिन नाव से आने-जाने में दो आना देना पड़ता था।ग्वालिन के साथ एक आचार्य भी सत्संग कथा वाचन के लिए प्रतिदिन जाया करते थे।
ग्वालिन जब भी मिलती , आचार्य को प्रणाम करती। आचार्य यही कहते कि “यह राम के नाम रुपी नौका है।इसका जो भी भक्ति रुपी आश्रय लेता है वह स्वत: संसार रुपी समुद्र से पार उतर जाता है।”अगर ग्वालिन भी 6महीने तक रामनाम मंत्र जाप की सिद्धि कर लेगी तो उसको भी इसका लाभ मिल जाएगा। ग्वालिन श्रद्धापूर्वक रामनाम मंत्र का जाप की। भगवान राम प्रसन्न होकर उसे यह वरदान दे दिये कि वह बिना नौका के भी जल पर चलकर नदी पार कर सकती है।अब ग्वालिन बिना खर्च किये दूध बेचने आती-जाती।एक दिन उसने सोचा कि आचार्य जी की कृपा से उसको यह सिद्धि और वरदान मिला है तो वह उनको भी नदी पार उतारेगी। लेकिन वह जैसे ही आचार्य जी को लेकर नदी में प्रवेश की, आचार्य जी डूबने लगे।ग्वालिन ने आचार्य जी को रामनाम मंत्र पढ़कर नदी पार करने का निवेदन किया। पर आचार्य नदी पार न कर सके।वे लज्जित होकर ग्वालिन से माफी मांग लिए और अपने ज्ञान के अहंकार को सदा -सदा के लिए समाप्त कर दिये।आप भी विद्यासागर हैं लेकिन इसका अहंकार कभी न करें! सदा रामनाम मंत्र की सिद्धि में लगे रहें!
-अशोक पाण्डेय

10अप्रैल:,2022
रामनवमी

सभी रामभक्तों को रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं!
सभी राम बनें, रावण नहीं।
क्रोध सदा अशुभ को जन्म देता है जबकि बोध(ज्ञान) सदा राम को जन्म देता है।
श्रीराम के अवतरण का कारण चार समय का शाप रहा।
संत, महर्षि नारद,सती वृंदा तथा ब्राह्मण।
जय-विजय शापवश तीन जन्मों तक राक्षस योनि में आये जिनमें एकबार रावण के रूप में ।
रावण का अर्थ है-जिसके जीवन में फरियाद न हो।
आज, रामनवमी के दिन सभी के मन, आचरण, व्यवहार और विचार श्रीराम जैसे हों , महाप्रभु के चरणों में मेरी यही प्रार्थना है।
-अशोक पाण्डेय

08अप्रैल:,2022
प्रशंसा

प्रशंसा, तारीफ, स्तुति और बड़ाई ये सकारात्मक ऊर्जा हैं जिनके वश में देवता, गुरु और अच्छे लोग रहते हैं।
प्रशंसा करने से सभी प्रसन्न हो जाते हैं। किसी व्यक्ति से मनचाहा काम कराने के लिए साम,दाम, दण्ड और भेद का सहारा लेने की बात चाणक्य नीति भी कहती है।
“साम”का अर्थ ही है-स्तुति। ईश्वर से लेकर देवता और मानव सभी को अपनी प्रशंसा सुनना अच्छा लगता है।
सच ही कहा गया है कि करें प्रशंसा,पायें प्रशंसा।
मधुर बोलने वाला तथा प्रशंसा करनेवाला सभी को अपना दोस्त बना लेता है।
प्रशंसा करना एक सक्षम कला है जो केवल प्रसन्नचित्त तथा सकारात्मक सोचवाले व्यक्ति के पास होती है।
आइए, इस वर्ष रामनवमी के पावन अवसर पर प्रशंसा करने की कला विकसित करें!
अशोक पाण्डेय

07अप्रैल:,2022
श्रीराम

श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम थे।वे अयोध्या के राजा थे। उन्होंने मर्यादा, प्रेम, शांति और आदर्श का शाश्वत संदेश दिया है।
उनका पूरा जीवन धर्म पर आधारित जीवन रहा ।
उनका शासन धर्म का शासन था। उनके राज्य को रामराज्य के नाम से जाना जाता है।
रावण सकल विश्व में फैले,
प्रबल भये अहिरावण,
कुंभकरण भी जाग रहे हैं,
कैसे हो निस्तारण?
असुर विनाशक बनकर रघुवर ,
फिर से धनुष उठाओ,
मैं तो हूं अज्ञानी बालक,
राम मेरे घर आओ।”
(डॉ बनमाली चतुर्वेदी की कविता से साभार)
जिस श्रीराम को गोस्वामी तुलसीदास ने अपने *मानस”के राम को भारत के घर-घर में प्रतिस्थापित कर दिया है।उसी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के अवतरण की रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं!*
-अशोक पाण्डेय

06अप्रैल:,2022
कर्म- पथ पर चलें!

एक राजा था।वह अपने राजसी कर्म से अलग होकर संतों के साथ रहा।घोर तपस्या की। तीर्थ यात्रा की।उसे खूब आदर-सत्कार और प्रशंसा मिली। वह चलते-चलते थक गया । उसे जोरों की भूख भी लगी।उसी समय एक सच्चा कर्मयोगी किसान आया। राजा से राजा के विषय में सबकुछ जाना।वह समझ गया कि राजा थका और भूखा है। उसने राजा को यह चावल लो। पकाओ।जब चावल पक जाए तो मुझे आवाज लगा देना। हम आ जाएंगे। दोनों मिलकर भोजन करेंगे।राजा ने चावल पकाया। किसान को बुलाया। दोनों भोजन किए। किसान अपने खेत में काम करने चला गया।राजा भोजन के उपरांत अच्छी नींद में सो गया।उसे एक सपना आया। सपने में कर्म स्वयं राजा के सामने खड़ा नजर आया और अपने विषय में बताया।उसने कहा कि मेरे सहारे के बिना किसी को शान्ति नहीं मिल सकती। राजा के रूप में आपने बिना परिश्रम किए सबकुछ पाया। इसीलिए तुम्हारे मन में विरक्ति आ गई।जोओ, कर्म करो और शांतिपूर्वक आनंदमय कर्मशील जीवन व्यतीत करो।
राजा उठा और अपने कर्म-पथ पर चल पड़ा।
मान्यवर,आप भी कर्म-पथ पर चलें और पूरी शांति पाएं!
-अशोक पाण्डेय

04अप्रैल:,2022
जानिये अप्सराओं को

समुद्र-मंथन से अप्सराओं का अवतरण हुआ। रम्भा अप्सराओं में श्रेष्ठतम है। अप्सराओं को लक्ष्मी की तरह सम्मान प्राप्त है।
सच यह भी है कि सृष्टि में प्रकृति ने जब नारी की कल्पना की तो उस कल्पना की वास्तविक और सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति अप्सरा ही बनीं।
यह भी माना जाता है कि देवराज इन्द्र ने‌ 108 ऋचाओं की रचना कर अप्सराओं की रचना की जो स्वर्गलोक में रहतीं हैं। मेनका अप्सरा के मोह पाश से महर्षि विश्वामित्र भी नहीं बच पाये।उनका भी तप भी मेनका के समक्ष डोल गया।मेनका के प्रणय के परिणामस्वरूप शकुन्तला हुई जिसका विवाह राजा दुष्यंत से हुआ ‌और उनसे उत्पन्न वीर पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।यजुर्वेद के अनुसार अप्सरा दैवी शक्ति प्राप्त वह सृष्टि है जिसे जल में रहना पसंद है। चिर यौवना अप्सराएं धरती पर बार-बार आना पसंद करतीं हैं जहां प्रेम पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
-अशोक पाण्डेय

03अप्रैल:,2022
स्वयं पर नियंत्रण रखें!

एक संवेदनशील व्यक्ति नदी-तट पर गया।वहां देखता है कि सभी वृक्ष गिर चुके हैं।नदी-तट पर पूरी उदासी है। व्यक्ति ने नदी से विनम्र भाव से पूछा कि ऐसा नदी ने क्यों किया।नदी प्रगट होकर जवाब दी कि ऐसा उसके स्वयं पर नियंत्रण नहीं रखने के कारण हुआ। अचानक मेरे अंदर तरंग आ गई और मैं स्वयं पर नियंत्रण न रख पाई। इसलिए मेरे तट की सुषमा खत्म हो गई है जिसकी जिम्मेदार मैं स्वयं हूं। मान्यवर, आप भी जोश में होश न खोयें, अपने पर नियंत्रण रखें!
-अशोक पाण्डेय

02अप्रैल:,2022
कैसे भगवान विष्णु ने अपने शरीर से माया-मोह को निर्मित किया?

आज नवरात्रि का प्रथम दिवस है। आज आप अपने-अपने घरों में विधिवत महाशक्ति, समस्त देवगण, ऋषि गण,इष्ट देव-देवीगण,
पितृगण और सद्गुरुगण आदि की पूजा अवश्य आरंभ कर दें!
आज आप अवश्य जानिये कि कैसे भगवान विष्णु ने अपने शरीर से माया-मोह की सृष्टि की।
एक बार देवताओं और असुरों में युद्ध हुआ। यह युद्ध लगभग 100 साल तक चला। युद्ध में देवगण हार गये।
देवगण सहायता के लिए श्री विष्णु जी के पास गये और बताये कि वे असुर ह्राद प्रभृति नामक असुर और उसकी शक्तिशाली सेना से हार चुके हैं। असुर त्रिलोक से यज्ञ भाग का अपने तप से हरण कर लिया है। देवगण ने नारायण जी की स्तुति की और अपनी सहायता के लिए उनसे विनम्र अनुरोध किया।
भगवान विष्णु ने जब यह जाना कि असुरों ने यज्ञ का अंश छिनकर ब्रह्मदेव के नियम को तोड़ा है तो उन्होंने असुरों की शक्ति को कमजोर करने के तत्काल अपने शरीर से माया-मोह की सृष्टि की। उसी मोह-माया में फंसकर वे कमजोर हो गये और अगले युद्ध में वे देवताओं से हार गये।
मान्यवर, आप भी मोह-माया से अवश्य बचें!
अशोक पाण्डेय

01अप्रैल:,2022
उत्कल दिवस के उपलक्ष्य में स्वस्थ रहने‌ के कुछ सुझाव:

प्रतिदिन सुबह में पांच बजे उठें!
दैनिक कार्यों को पूरा कर ताजे पानी से स्नान करें। तौलिये से अपनी त्वचा को साफ करें!
साफ-सुथरे वस्त्र पहनें!
अपने विस्तर को साफ रखें! बेडशीट को धूप में सुखाएं!
कम से कम दो बार दांत-मुंह की सफाई अवश्य करें!
रात में मुंह ढककर न सोयें!
अपने घर और कार्यालय को प्रतिदिन साफ करायें!
कार्यालय को हवादार तथा प्रकाशयुक्त रखें!
बासी भोजन न करें!
नाखून को नियमित काटा करें!
केवल मुंह से ही सांस लें!
नियमित पूजा-पाठ करें!
सोच- विचार कर कोई काम करें!
बड़े -बुजुर्ग का सम्मान करें!
काम करते हुए भी अपने इष्ट देव के नाम का स्मरण अवश्य करें!
समय-समय पर हेल्थ चेकअप अवश्य कराएं!
सुबह में अवश्य टहलें!
रात में मधुर संगीत अवश्य सुनें!
केवल आज में ही जीना सीखें!
-अशोक पाण्डेय

31मार्चः,2022
श्रीकृष्ण के करुणामयी स्वरुप जगन्नाथ

मोक्ष प्राप्ति के लिए श्रीकृष्ण के करुणामयी स्वरुप जगन्नाथ जी की नित्य आराधना तन,मन और धन से करनी होगी।
एक भक्त का शरीर रथ है। उसका मन उस रथ का चालक है और उसकी इंद्रियां घोड़े हैं।
भक्त अपने शरीर रुपी रथ पर सवार होकर अपनी बुद्धि रुपी सारथि के रूप में चलाता है।मन और इन्द्रियों के सामंजस्य से उस भक्त की आत्मा सुख और दुख भोगती है।
श्री कृष्ण के रूप में जगन्नाथ जी भी 16कलाओं से पूर्ण दिव्य व्यक्तित्व हैं। जीवन के सभी आयामों का उन्होंने संस्पर्श कर उन्हें समाज के सामने रखा है।
आइए, उत्कल दिवस की पूर्व संध्या पर करुणामयी जगन्नाथ जी के नाम का जयघोष करें जिससे ओडिशा दिवस के माध्यम से पूरे विश्व को शान्ति, मैत्री,एकता और बंधुत्व को घर-घर पहुंचायें।
अशोक पाण्डेय

30मार्चः,2022
मानव -जीवन में यज्ञ अवश्य कराएं!

अगर अपने मानव जीवन को आपको सार्थक बनाना है तो यज्ञ अवश्य कराएं!
जब ब्रह्माजी ने इस संसार की रचना की थी तो उन्होंने अपनी संतानों से यही कहा था कि
मानव, तुम सब यज्ञ के कारण पैदा हुए हो। इसलिए समय- समय पर पूरे विधि-विधान से यज्ञ अवश्य कराना। इससे समस्त देवताओं का तुम्हें आशीर्वाद मिलेगा। तुम्हारी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगी।
मान्यवर,हो सके तो जीवन में कम से कम एक बार नवग्रह पूजा भी अवश्य कराएं!
अशोक पाण्डेय

29मार्चः,2022
वृक्ष

इस संसार में लाखों -करोड़ों प्राणी,पशु, पक्षी,जीव,नभचर और जलचर आदि हैं।
हजारों प्रकार की वनस्पतियां और पेड़-पौधे हैं।
इन सभी में सबसे अधिक नि: स्वार्थ सेवी वृक्ष ही हैं।
वृक्ष पूरी मानव जाति की सच्ची सेवा करते हैं।
श्रीकृष्ण ने भी कहा है कि वे वृक्ष-वनस्पतियों में निवास करते हैं।
एक वृक्ष अपने पूरे जीवन में धरती से थोड़ा पानी और खाद लेता है।
उसके बदले में वृक्ष हमें बहुत कुछ प्रदान करता है।
वृक्ष अपना भरण-पोषण स्वयं करता है और हमको फल-फूल देता है।
वृक्ष के सहारे हजारों पशु-पक्षी पलते हैं।
हजारों उसकी छाया का लाभ उठाते हैं।
जब वृक्ष फलों से लद जाते हैं तो वे हमें विनम्रता का संदेश देते हैं।
तो आइए, हम संकल्प लें कि हम अधिक से अधिक वृक्षारोपण करेंगे और वृक्ष की तरह ही नि: स्वार्थी बनकर सेवा करेंगे।
अशोक पाण्डेय

28मार्चः,2022
व्यक्तित्व

एक व्यक्ति की सुंदर पोशाक,उसका आंतरिक गुण, व्यवहार, आचरण, प्रतिभा और चरित्र आदि ही उसके व्यक्तित्व को स्पष्ट करते हैं।
हमारा व्यक्तित्व निम्न चार से ही पूर्ण होता है:शरीर,मन, बुद्धि और आत्मा से।
सच मानिए, मनुष्य जीवन स्वअनुभवों से आरंभ होता है। जैसे जैसे हम संसार के सम्पर्क में आते हैं तो हमारी खट्टी – मीठी प्रतिक्रिया ही हमारे स्वअनुभव बन जाते हैं।
व्यक्तित्व को सुंदर बनाने में शरीर,मन, बुद्धि और आत्मा के बीच आपसी सामंजस्य की जरूरत होती है।
साथ ही साथ हमारी आध्यात्मिक उन्नति ही हमारे पारदर्शी व्यक्तित्व को सुंदर, आकर्षक तथा प्रेरणादायक बनाती हैं।
-अशोक पाण्डेय

27मार्चः,2022
चैत्र नवरात्रि

हिन्दू नया साल
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से आरंभ हो रहा है।
चैत्र नवरात्रि 02अप्रैल से 10 अप्रैल ‌तक है।11 अप्रैल को समाप्त होगी।
शक्ति, सौभाग्य और साधना का महापर्व है-चैत्र नवरात्रि।
मां दुर्गा आद्या शक्ति हैं। ये नारायण की पालनशक्ति हैं। ब्रह्मदेव की सृजन शक्ति हैं तथा रुद्रदेव की संहार शक्ति हैं।
मान्यवर, आप भी मां का पूजन करें और उनका दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करें!
-अशोक पाण्डेय

सफलता – सोपान

प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने व्यक्तिगत जीवन में सफलता अवश्य चाहता है
वह चाहे ‌व्यापारी, नौकरीपेशेवाला,
डॉक्टर, इंजीनियर तथा कथावाचक ही क्यों न हो।
सभी को असाधारण सफलता चाहिए। इसके लिए
आप अपने व्यक्तित्व को सुंदर बनायें।
क्रोध न करें।
हमेशा अच्छे लोगों के साथ रहें।
कंजूस न बनें।
बुरी आदतों से दूर रहें।
प्रत्येक दिन एक नया मित्र बनायें।
सच्चे मन से जय जगन्नाथ बोलें।
हमेशा प्रसन्न चित्त रहें।
अपनी सोच को सकारात्मक रखें।
नि: स्वार्थ भाव से मानवसेवा करें।
असाधारण सफलता आपको अवश्य मिलेगी।
-अशोक पाण्डेय

कर्ज न लें!

मन खुश रहता है धन से।जब अपने सत्कर्म से धन नहीं प्राप्त होता है तो हम कर्ज से धन लेते हैं।
सत्कर्म से प्राप्त धन लक्ष्मी है। कर्ज से प्राप्त धन अलक्ष्मी है।
यह आज का नग्न सत्य है कि यह वर्तमान समय कर्ज का है।कृषि कर्ज, शिक्षा कर्ज, व्यापार कर्ज, गृह निर्माण कर्ज, स्वास्थ्य कर्ज,वाहन कर्ज और सारे कर्ज ।
धन प्राप्ति के लिए हम अनेक प्रकार से प्रयास करते हैं।
कर्ज लेकर हम कभी अपना स्वाभिमान गिरवी रखते हैं तो कभी अपनी पैतृक संपत्ति तो कभी अपना नैतिक मूल्य।
मान्यवर! याद रखें-कर्ज भूत से बचें।इस भूत से आपको सजग रहने, सचेत रहने और मन से सावधान रहने की जरूरत है।
अशोक पाण्डेय

निम्न प्रश्न नकारात्मक मनोदशा के प्रतीक हैं

प्रतिदिन आपसे जो लोग मोबाइल पर बात करते हैं,आपसे मिलते हैं तो वे अमुमन आपसे ये प्रश्न अवश्य पूछते हैं-
आप कैसे हैं?
सब ठीकठाक है न!
आपकी तबीयत तो ठीक है न?
आपके घर में सब कुशल है न?
आपका कामकाज ठीक है न?
ये सारे प्रश्न नकारात्मक मनोदशा वाले लोगों के होते हैं।
ये लोग स्वयं की जिंदगी में निराश, थके,हारे,बुझे और नकारात्मक विचार वाले होते हैं।
ऐसा मनोविज्ञान मानता है।
मनोवैज्ञानिक मानते हैं।
संतमत कहता है।
* जीवन में अगर शांति, आरोग्य और संतोष चाहते हैं तो आत्मविश्वास के साथ प्रतिदिन आनंद-गंगा में गोते लगायें। आरोग्य -यमुना में महास्नान करें और ज्ञान -सरस्वती पवित्र नदी का सुख भोगें।
और जब किसी से हालचाल पूछें तो अपने प्रश्नों में न का प्रयोग कभी न करें।
जैसे आप ठीक हैं न?
-अशोक पाण्डेय

अच्छी-बुरी संगति

मनुष्य -जीवन में अच्छी-बुरी संगति का अच्छा और बुरा प्रभाव स्वाभाविक है।
एक राजा जंगल में गया।अपने घोड़े को वह तेजी से दौड़ाते हुए डाकुओं के इलाके में आ गया।राजा को देखकर घर का एक पालतू तोते ने कहा-“दौड़ो।पकड़ो।राजा का सबकुछ छीन लो।”तोते की बात सुनकर राजा ने अपने घोड़े को तेजी से आगे दौड़ा दिया।
कुछ दूर आगे जाने पर साधुओं की एक कुटिया मिली। वहां भी एक तोता मिला।राजा को देखकर तोते ने कहा-“आइए राजन।आपका संत-कुटी में हार्दिक स्वागत है। साधुगण,राजन का स्वागत करें। अतिथि सत्कार करें।”
राजा ने साधुओं से दो तोते के स्वभाव के विषय में पूछा। साधुओं ने बताया कि असल में दोनों तोते एक ही माता पिता की संतान हैं।एक को डकैत ले गये और दूसरे को साधु। दोनों पर उनकी संगति का ही बुरा-अच्छा यह प्रभाव है।
इसलिए आप भी अपने जीवन में सोच-विचार कर ही संगति करें।
-अशोक पाण्डेय

अच्छे गुण

सदाचार, सत्यनिष्ठ, आत्मविश्वासी,कुलीन, संस्कारी, चतुर,सभी का भला चाहना, अच्छे विचार रखना, अपने धर्म से प्रेम रखना,अपने माता -पिता का आदर करना,सेवा करना,मन, कर्म, वचन और धन से ईश्वर और गुरु की सेवा करना,अपनी जाति,वंश,धन,ज्ञान, विद्या और अच्छे गुणों का कभी घमंड न करना,नि: स्वार्थ सेवाभाव से गरीबों की सेवा करना, चरित्रवान बनना, कामवासना से दूर रहना और प्रतिकूल-अनुकूल दोनों परिस्थितियों में समभाव से प्रसन्न रहकर दूसरों को प्रसन्नता तथा खुशी देना।
वशिष्ठ, विश्वामित्र, अत्रि,कणाद,बुद्ध, महावीर,नानक, शंकराचार्य,मीरा,
सूर, कबीर और तुलसी की तरह त्यागी बनना,भक्त बनना।
अशोक पाण्डेय

उदारता

उदार का शाब्दिक अर्थ है-दयालु, ईमानदार,भला, विशाल हृदय,दया, दानशीलता।
उदारता भाववाचक संज्ञा है। यह जीवन का एक अच्छा गुण है।
जो अच्छा कर्म करता है जगन्नाथ जी उसे ही उदार मन वाला बनाते हैं।
उदारता मात्र यह नहीं है कि हम दूसरों की धन से कुछ सहायता करें अपितु उदारता हृदय की विशालता है।
उदारता सहानुभूति और सहयोग को साथ लेकर चलता है।
आइए,उदार बनकर हमसब धन, वस्त्र, ज्ञान, यश और सकारात्मक सहयोग दें!
जय जगन्नाथ!
अशोक पाण्डेय

सुख के स्त्रोत

दुख-सुख जीवन के दो किनारे हैं जिनके बीच यह जीवन मस्ती के साथ चलता है।हम छोटे-छोटे सुखों में भी आनंद के साथ जीना सीखें!
मान्यवर! जीवन में सुख के मुख्य स्रोत हैं:धन का लगातार आना, स्वस्थ – निरोगी शरीर,सदा प्रिय, मृदु बोलने वाली विदुषी पत्नी, आज्ञाकारी – विवेकी पुत्र और ऐसी विद्या जो धन प्राप्ति में सदा सहायक हो।
लगभग ढाई साल के बाद होली भी आनंद, उमंग और उल्लास के साथ आज ओडिशा में होली मनाई जा रही है। होली की शुभकामनाएं!
इस विश्वास के साथ कि धन के सभी स्रोतों को जगन्नाथ जी आपको प्रदान करेंगे,आप उनकी भक्ति में आजीवन अपने चंचल मन को लगाये रखें!
अशोक पाण्डेय

सुविचार

अक्षय तृतीया

तीन मुहूर्त ऐसे हैं जो स्वयं सिद्ध हैं। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा,वैशाख शुक्ल तृतीया और अश्विन शुक्ल दशमी और इन तीनों दिन क्रमश: चैत्र नवरात्र का प्रथम दिवस, अक्षय तृतीया तथा विजयादशमी।2022 की अक्षय तृतीया 3 मई को है।
अक्षय तृतीया के दिन से ही पुरी धाम में भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए नये रथों के निर्माण का कार्य आरंभ होता है।
अक्षय तृतीया युग दिवस है।
भगवान परशुराम का जन्म दिन है।
श्री बलराम जी का जन्म दिन है।
अक्षय तृतीया के दिन से ही व्यासजी ने महाभारत लिखना आरंभ किया था।
श्रीकृष्ण ने इसी दिन द्रौपदी को अक्षय पात्र प्रदान किया था।
इसी दिन सुदामा अपने बाल सखा द्वारकाधीश से मिलने के लिए गये थे।
इसी दिन चामुण्डेश्वरी ने राक्षसों का नाश किया था।
इसी दिन से बदरीनाथ धाम का कपाट भक्तों के दर्शन के लिए खुलता है।
अक्षय तृतीया के दिन ही राजा भगीरथ ने गंगा को धरती पर लाया था।
अक्षय तृतीया के दिन जगन्नाथ जी का पूजा-पाठ ,यज्ञ,दान-दक्षिणा देना तथा गोसेवा, दरिद्र नारायण सेवा अवश्य करनी चाहिए। अक्षय तृतीया के दिन सोना,सोने का गहना,स्वर्ण पात्र,रजत पात्र और बर्तन आदि अवश्य खरीदना चाहिए जिससे धन लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहेगी।
जय जगन्नाथ!
अशोक पाण्डेय

विवाह

विवाह दो आत्माओं का पवित्र मिलन होता है। इसलिए यह कहा जाता है कि जोड़ियां स्वर्ग से ही बनकर आतीं हैं।
यह संबंध मात्र कामाचार तथा भोग का साधन नहीं है। चार आश्रमों: ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास में गृहस्थ जीवन का आधार विवाह है‌। सनातनी परंपरा में सृष्टि का पहला विवाह शिव-पार्वती का रहा है जो विवाह के तथा इस सृष्टि के सबकुछ को स्पष्ट कर देता है। सूर्य-अग्नि को साक्षी मानकर विवाह में पत्नी-पति सामाजिक मर्यादाओं के अनुपालन का संकल्प लेते हैं। पति-पत्नी सुसंस्कृत होकर संयमित जीवन का संकल्प लेते हैं।
विवाह में वर विष्णु और वधु लक्ष्मी स्वरूपा होती है। विवाह में कन्या दान का भी सामाजिक और आध्यात्मिक महत्त्व है। विवाह के समय वैदिक मंत्रों तथा होम का महत्व सुखमय वैवाहिक जीवन के मंगल के लिए होता है।
इसलिए पश्चिम के प्रभाव से बचें और सनातनी विवाह परम्पराओं को अपनायें । इससे भारतीयता भी सुरक्षित रहेगी।
अशोक पाण्डेय

अपने द्वारा तैयार शत्रु को पहचानें!

आत्मीय, आपही अपने व्यवहार से अपना मित्र और शत्रु बनाते हैं। यह आपके अच्छे-बुरे संस्कारों का प्रतिफल है।
लोभ,मोह,राग, द्वेष, अहंकार, हिंसा, नींदा, बात-बात में झूठ बोलना , ताक-झाक करना , परनारी से संबंध स्थापित करना, शराब पीना,जुआ खेलना,किसी की झूठी आलोचना करना ,दूसरों का कान भरना और क्रोधित होना आदि आपके अपने द्वारा तैयार दुश्मन हैं।
*कठोर वचन बोलने,किसी को मानसिक कष्ट देने,जोर-जोर से चिल्लाने, अधिक सोने, बातूनी बनने, बात-बात में अपनी तारीफ करने, झगड़ा करने, ईश्वर, पूजा-पाठ, गुरु, परिवार, सगे-संबंधियों,
समाज, राजनेताओं और धनी व्यक्तियों आदि की शिकायत करने से बचें।*
शिक्षा व्यवस्था को दोषी ठहराने से बचें! *जगन्नाथ जी आपका अवश्य मंगल करेंगे।
अशोक पाण्डेय

प्रशंसा

प्रशंसा करना बातचीत की एक अच्छी कला है।
अगर कोई भी आपके पास आता है तो आप उसकी प्रशंसा से ही अपनी बात की शुरुआत करें।
* दुनिया में सबसे कठिन काम है किसी की प्रशंसा करना।
यूरोपीय देशों से सबसे पहले प्रशंसा की कला विकसित हुई।
बातचीत में प्रशंसा के अनेक रूप देखने को मिलते हैं।जैसे:
किसी की असाधारण प्रतिभा, उपलब्धि,यश,मान-सम्मान, धन-दौलत और दान-पुण्य से संबंधित।
किसी से अपना काम निकालने के लिए।
किसी को नीचा दिखाने के लिए‌
किसी को सही रास्ते पर लाने के लिए।
मेरा यह मानना है कि अगर किसी की प्रशंसा करनी हो तो उसकी वास्तविक प्रतिभा,शील,धन , उसकी आध्यात्मिक उन्नति और उसके दिल खोलकर उसके नि: स्वार्थ दान- दक्षिणा की करें।
अपने जगतगुरुओं की करें।
अपने राष्ट्र के प्रधान की करें।
देश की शक्ति, सौंदर्य और समृद्धि आदि की करें।
-अशोक पाण्डेय

मनुष्य-जीवन की बाधाएं

मनुष्य जीवन में पग-पग पर बाधाएं आती हैं जिनको दूर कर मनुष्य आगे बढ़ता है। कुछ बाधाएं स्वनिर्मित होती हैं तो कुछ जगन्नाथ जी द्वारा प्रदत्त जिनको सद्गुरु कृपा से दूर किया जाता है। स्वनिर्मित बाधाएं हमारे आत्मविश्वास और सत्यनिष्ठा की कमी के कारण पैदा होती हैं और उनके जिम्मेदार हम स्वयं हैं लेकिन रोग, शोक, मृत्यु,कर्ज, परिवार का नाश होना, कलह होना,शत्रु का पैदा होना और अज्ञानी होना हमारे भाग्य और हमारे गलत कर्मों का प्रतिफल है। ऐसे में, आशुतोष की नित्य आराधना करें और समस्त बाधाओं पर विजय पायें!
अशोक पाण्डेय

रसेश्वर का रति को आशीर्वाद

कामदेव प्रेम के देवता हैं। उनकी पत्नी का नाम रति है। दोनों पति-पत्नी में अगाध प्रेम था।
कैलाश पर एक दिन जब रसेश्वर (शंकर जी)तपस्या कर रहे थे तो देवताओं के आग्रह पर कामदेव ने रसेश्वर की तपस्या भंग करनी चाही।
रसेश्वर ने कामदेव को भस्म कर दिया। कामदेव की पत्नी रति पति के वियोग में रोती हुई रसेश्वर के पास गई।
क्षमा प्रार्थना करती हुई कि उसके गृहस्थ जीवन का क्या होगा? सृष्टि के गृहस्थ जीवन का क्या होगा?
रसेश्वर ने सोच-विचारकर रति को यह आशीर्वाद दिया कि बिना कामदेव के अंग के भी तुम उनसे जुड़ी रहोगी।
इस संसार में निम्न रुपों में रति अमर रहोगी:आकर्षण, सम्मोहन, स्पर्श, दृश्य,भाव- अभिव्यक्ति और चित्र के माध्यम से।
बन गया अनंग प्रेम का स्वरूप-वसंत। आइए,बाबा खाटुनरेश का फाल्गुनी महोत्सव 14-15मार्च को मनायें और प्रेम से बोलें-जय हो बाबा खाटुनरेश की!
अशोक पाण्डेय

अच्छे कर्म

कर्म दो प्रकार होते हैं, अच्छे और बुरे कर्म‌।
यह सच है कि हम जो व्यवहार और कर्म दूसरों के साथ करते हैं, वह एक न एक दिन लौटकर हमारे पास ही चला आता है।
हमारे दुख-सुख का कारण हमारा कर्म ही है।
आपके कर्म से ही आपके जीवन में हार का आना नियति भले हो सकती है लेकिन सतत कर्मशील बनकर हार को जीत में बदलना ही आपका सच्चा कर्म है।
अच्छे कर्म से ही कार्य की सिद्धि होती है, केवल मनोरथ से नहीं ।
तो आइए, हमसब सत्कर्म करने का व्रत लें!
-अशोक पाण्डेय

घर-परिवार

घर-परिवार सामाजिक गुणों की शाश्वत पाठशाला है।
बालक अनुकरण और ज्ञान ग्रहण सबसे पहले अपनी मां से सिखता है।
बालक की पहली गुरु उसकी मां होती है।
बालक अपने घर-परिवार के बड़े-बुजुर्गों से ,भाई-बहनों से सबसे पहले अच्छा संस्कार ग्रहण करता है।
वह संस्कारी बनकर अपने जीवन-पथ पर आगे बढ़ता है। राष्ट्रनिर्माण में योगदान करता है।
आइए, अपने -अपने घर-परिवार को सकारात्मक सोच के साथ आदर्श बनायें।
-अशोक पाण्डेय

“साधक”

साधक वह है जो अपने मन और तन को साध लिया है।
सच्चे साधक को लक्ष्मी अवश्य प्राप्त होती हैं। उसके लिए उसके पास शांति और संतोष चाहिए।
एकबार विष्णु जी ने मृत्युलोक में यह घोषणा कर दी कि उनके पास अपार धन है जो चाहे ले जा सकता है।
विष्णु जी ने दिल खोलकर अपार धन दान किया ‌।
यह देखकर लक्ष्मी जी चिंतित हो गईं। उन्होंने विष्णु जी से पूछा कि आप अपना सभी धन दान कर देंगे तो हमारे लिए क्या बचेगा? विष्णु जी ने कहा कि तुम तो खुद श्री हो। तुम तो वहीं निवास करती हो जहां पर शांति और संतोष हो।
मेरे पास धन की इच्छा से जो भी आया उनमें से किसी ने भी शांति और संतोष की मांग नहीं की।
इसलिए लक्ष्मी को पाने के लिए मान्यवर लक्ष्मी पुत्रों! मन और तन से सच्चा साधक बनें!
-अशोक पाण्डेय

महाशिवरात्रि का संदेश:
महाशिवरात्रि ज्ञान की रात होती है।इस दिन ही सृष्टि का प्रथम विवाह: शिव और शक्ति का हुआ ।

प्रकृति और पुरुष का हुआ।
शिव और शक्ति दो तत्व हैं।
जहां पर शिव है वहीं पर शुभ है। जहां पर शुभ है वहीं पर उत्साह और उल्लास है।
महाशिवरात्रि स्मरण दिलाती है कि भोग और मोक्ष एक दूसरे से अलग नहीं हैं।
महाशिवरात्रि शिव-पार्वती के माध्यम से पति-पत्नी के बीच प्रतिदिन चलनेवाले आपसी मनमुटाव तथा सच्चे प्रेम का पावन संदेश है ।
गृहस्थी में काम भाव प्रधान होता है।काम अर्थात इच्छा।जीवेष्णा, लोकेषणा और कामेषणा‌।
अज्ञान और अपमान से बचने का संदेश है महाशिवरात्रि।
अज्ञानता है खुद को नहीं समझना और दूसरों से सम्मान की चाह रखना अपमान है।
जय जगन्नाथ!
अशोक पाण्डेय

9प्रकार की भक्ति के आदर्श भक्तगण:
परीक्षित-श्रवण भाव की भक्ति के आदर्श।
शुकदेव-कीर्तन भाव की भक्ति के आदर्श।
प्रह्लाद-स्मरण भाव की भक्ति के आदर्श।
लक्ष्मीजी -पादसेवन भाव की भक्ति की आदर्श।
पृथु-अर्चनभाव की भक्ति के आदर्श।
अक्रुर -वंदन भाव की भक्ति के आदर्श।
हनुमान-दास्य भाव की भक्ति के आदर्श।
अर्जुन-सखा भाव की भक्ति के आदर्श।
बलि -आत्मनिवेदन भाव की भक्ति के आदर्श।
आपसे निवेदन कि आप केवल “जय जगन्नाथ” का जयकारा लगायें!और उनके चरणों में आजीवन अनन्य सेवक बने रहें!
अशोक पाण्डेय

जय शिवशंकर!
महाशिवरात्रि की पूर्व संध्या पर सभी शिवशंकर भक्तों को -हर हर महादेव!
भक्तों,आपका अपना मन ही वास्तव में शिव है। शिवशंकर है। आपके मन के सच्चे संतरी हैं भैरव।
महाशिवरात्रि के पवित्रतम दिन आप अपने मन से भय को दूर करें!
आपके भय को दूर करेंगे भैरव देव।
शिव अर्थात मंगल जो हमारे मन में वास करता है।
अपने मन को सर्व कल्याणकारी कार्यों की ओर उन्मुख करें!
भैरव का अर्थ है-शौर्य, पराक्रम।
इसलिए भयमुक्त होकर हर- हर महादेव का जयकारा लगायें!
अशोक पाण्डेय

पंचदेव
शाश्वत सनातनी परंपरा में पूर्ण ब्रह्म के रूप में निम्न पांच देवताओं की क्रमश: पूजा होती है: श्रीगणेश जी,श्री जगन्नाथ जी,श्री शंकर जी,श्री सूर्य देव जी तथा शक्ति स्वरूपा भगवती पार्वती जी।
ये धर्म की रक्षा तथा अपने भक्तों के कल्याण के लिए समय-समय पर अवतार भी लेते हैं। भगवान शिव के विवाह के विवाह में सर्वप्रथम श्री गणेश जी का पूजन हुआ था।
मेरा यह मानना है कि इन पांच देवताओं के साथ-साथ हमें कलियुग में नवग्रह की भी पूजा अवश्य करनी चाहिए।
इनकी पूजा की विशेष मान्यता है।साथ ही साथ पवनसुत हनुमान जी भी आप नित्य पूजा करें!
जय जगन्नाथ!
-अशोक पाण्डेय

स्नान
मनुष्य जीवन की दिनचर्या में स्नान का शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक महत्त्व है। प्रतिदिन स्नान करने से शरीर स्वच्छ रहता है।पूरे दिनभर मन प्रसन्न रहता है। पूजा-पाठ में मन लगता है। हृदय शांत रहता है। प्रतिदिन स्नान करने से हमारा शरीर ठंडा रहता है।थकान दूर होती है।मन एकाग्र होता है।
पवित्र स्नान को ध्यान में रखकर ही सनातनी व्यस्था में तीर्थ की शाश्वत परम्परा शुरू की गई जहां जाकर भक्त पवित्र नदियों में स्नान करते हैं फिर उस तीर्थ के देवता आदि के दर्शन करते हैं। कुंभ स्नान की वैदिक काल की सुदीर्घ परम्पराएं भी पवित्र स्नान को स्पष्ट करतीं हैं। गंगासागर, प्रयागराज तथा श्री जगन्नाथ धाम के महोदधि स्नान भी हमें शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक महत्त्व का पावन संदेश देते हैं।तो आइए मन को नित्य चंगा बनायें और भक्ति के साथ जयकारा लगायें
जय जगन्नाथ!”

गुण-अवगुण
मनुष्य के शरीर के अंदर बुद्धि, दिमाग, लज्जा और तंदुरुस्ती का निवास है। बुद्धि दिमाग में रहती है। लज्जा आंखों में, हिम्मत दिल में तथा तन्दुरूस्ती पेट में रहती है। लेकिन मनुष्य जैसे ही असावधान हो जाता है,गलत आचरण शुरू कर देता है वैसे ही उसके दिमाग में क्रोध का आगमन हो जाता है। आंखों में लोभ जा जाता है,दिल में भय का निवास हो जाता है तथा ‌उसके पेट में हजार प्रकार के रोगों का आगमन हो जाता है। इसलिए हमें सदैव हमें अपनी बुद्धि,आंख, हिम्मत और पेट को पूरी तरह से स्वस्थ रखने की आवश्यकता है। उनसे हमारे अंदर कभी भी क्रोध,लोभ,भय और रोग न आ सकेंगे।
तो, आइए मेरे साथ प्रेम से बोलिए-जय जगन्नाथ!

प्रेम
इस संसार में मनुष्य सुख, शांति, समृद्धि, आनन्द, भौतिक सुविधाएं,ज्ञान और मौज-मस्ती सभी पा सकता है लेकिन प्रेम सभी को प्राप्त हो ही जाय, यह कदापि संभव नहीं है।
जीवन में मधुर तथा सच्चे प्रेम का मिलना बहुत ही कठिन है।
प्रेम एक अहसास है। प्रेम एक आध्यात्मिक संस्कार है। प्रेम एक अलौकिक सुगंध है।
प्रेम एक पुरवाई है।
प्रेम जीवन का सौंदर्य है।
जीवन की वास्तविक श्रेष्ठता है।
तो क्यों न हम प्रकृति से,मानव से,
समस्त जीव-जगत से, वनस्पति जगत से और अपने आप से प्रेम करना सीखें?
यह संभव है-जगन्नाथ जी के चरणों में नित्य वंदन से। उनके दिव्य आशीर्वाद से।
-अशोक पाण्डेय

पुण्य-पाप
पुण्य-पाप मनुष्य जीवन के कर्मों की सच्चाई है
परोपकार पुण्य है जबकि दूसरों को तकलीफ़ देना पाप है।
स्वतंत्रता पुण्य है जबकि गुलामी पाप है।
दूसरों से प्रेम करना पुण्य है जबकि घृणा करना पाप है।
जगन्नाथ के साथ-साथ अपने आप पर विश्वास रखना पुण्य है जबकि संदेह करना पाप है।
शक्ति पुण्य है जबकि कमजोरी पाप है।
वीरता पुण्य है जबकि कायरता पाप है।
एकता बनाये रखना पुण्य है जबकि एकता को तोड़ना पाप है।
आइए,हमसब अपने-अपने जीवन को आध्यात्मिक बनायें। पुण्य का स्रोत बनायें और प्रेम से बोलें-जय जगन्नाथ जी की!

-अशोक पाण्डेय

आत्मविजय
जो आत्म विजय कर लेता है वह विश्व विजय कर लेता है। इसके लिए आत्मोन्नति की जरूरत होती है। यह सत्गुरु, सत्संग तथा सत्नाम से प्राप्त हो सकता है। इन तीनों को पाने के लिए सत्य, सदाचार, संतोष, धैर्य, प्रेम,विनय,दया, सेवा तथा सकारात्मक सोच के साथ आत्मसंयमी बनने की जरूरत है। मान्यवर, आइए आज हमसब आत्मोन्नति तथा आत्मविजयी बनने के लिए जगन्नाथ जी से प्रार्थना करें।
-अशोक पाण्डेय

जगन्नाथ जी से प्रार्थना
हे जगन्नाथ जी!
हमें असत्य के मार्ग से हटा कर सत्य के मार्ग पर ले चलें!
हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलें!
हमें मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलें!
मेरे सभी प्रकार के अहंकार मिटाकर मुझे अपनी अटूट भक्ति में लगा दें!
-अशोक पाण्डेय

भारतवर्ष
भारतवर्ष को आज भारत और इण्डिया के नाम से जाना जाता है।इसे कभी राम, कृष्ण और गौतम आदि की पावन धरती माना जाता रहा है ।
सच तो यह है कि भारतवर्ष याज्ञवल्क्य,राजा जनक, मुनि वशिष्ठ तथा मुनि विश्वामित्र की पावन धरती है जहां पर दूसरों के दुख में पूरा देश दुखी तथा दूसरों के सुख में पूरा देश सुखी होता रहा है।
रावण की हत्या कर जब श्री राम अयोध्या लौटे तो सम्पूर्ण अयोध्यावासियों ने अपने-अपने घरों में घी के दीये जलाकर खुशी मनाई थी।
आइए, हमसब भारतवासी भारतवर्ष की उन शाश्वत परम्पराओं को अपने- अपने स्तर पर आगे बढ़ायें!
-अशोक पाण्डेय

यथार्थ
यथार्थ आज का समय है। पल-पल का परिवर्तन है।प्रतिपल की नवीनता है।
इस यथार्थ संसार में हमारे अपने कुछ कर्तव्य भी हैं। अपने कुछ अधिकार भी हैं।
एक कछुआ लगभग 150साल तक जिंदा रहता है।
थोड़ा सोचिए कि आप कहीं उसी की तरह तो नहीं जी रहे हैं।
दोस्तों!
जीवन छोटा हो या
बड़ा, परिवर्तन के इस दौर में यथार्थ को समझ कर
सुख-दुख के बीच आनन्द के *साथ जीयें।
-अशोक पाण्डेय

मधुरवाणी
इस धरती पर तीन ही अमूल्य रत्न हैं-
जल
अन्न और
मधुर वाणी।
मधुर वाणी ऐसा अमूल्य रत्न है जो हमारी बात को सरलता,शालीनता, आत्मीयता और स्पष्टता प्रदान करता है।
हमें सदा सोच विचार कर ही बोलना चाहिए।
जो लोग सच्चे मन से मुस्कुराते हुए बोलते हैं उनसे सभी खुश रहते हैं।
मधुर वाणी बोलने से अपने मन को सबसे पहले शीतलता मिलती है।
सज्जनों !
सज्जनों के साथ ही यह मधुर वाणी वाली बात लागू है।
-अशोक पाण्डेय

संसार
संसार अधिक से अधिक भौतिक सुखों के साधनों की इच्छा है।
उनकी उपलब्धियां ही जगन्नाथ जी कृपा है।
इच्छाओं का समर्पण ही जगन्नाथ जी सच्ची भक्ति है।
आप इस नश्वर संसार को अवश्य समझें तथा जगन्नाथ जी भक्ति में अपने मन को रमायें!
-अशोक पाण्डेय

श्रद्धा
श्रद्धा अपने से बड़ों के प्रति आदर और सम्मान का अनूठा स्व हृदय का अच्छा भाव है जो किसी व्यक्ति विशेष के व्यक्तित्व से परिलक्षित होता है।
निम्न तीन आधारों, प्रतिभा,शील और साधन को लेकर हम किसी के प्रति श्रद्धा रखते हैं।
तो आइए, हमसब भी अपने अन्दर असाधारण प्रतिभा,शील और साधन को विकसित करें जिससे दूसरे भी हमारे प्रति श्रद्धा रख सकें!
-अशोक पाण्डेय

युवा
युवा वह है जो विद्यार्थी है। जिज्ञासु है। जो सजग है। जो सच्चाई के रास्ते पर चलता है। जिसने अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण कर लिया है। जो अपने आप को समझ लिया है।
जो अपनी कमजोरियों को जानता है। जो अपने अधिकार की मांग न कर कर्तव्य को निभाता है। जो देश के शक्ति और सौंदर्य बोध से अवगत है।
जो अपने गुरु और बड़े-बुजुर्ग का सम्मान करता है। उनकी आज्ञा का पालन करता है।
-अशोक पाण्डेय

जीवन
जीवन एक अनबूझ पहेली है। इसे जानने और समझने के लिए मनुष्य बार-बार जन्म लेता है फिर समझ नहीं पाता है।
आदि शंकराचार्य का जीवन मात्र 32 सालों का रहा फिर भी उन्होंने 3200 वर्षों का काम कर दिया।
उन्होंने जीवन को कर्मक्षेत्र माना।
वास्तव में जीवन मुस्कुराते हुए सदा साधना-पथ पर चलते रहने है।
-अशोक पाण्डेय

सत्य
सत्य और असत्य आनंदमय जीवन के दो किनारे हैं।
सत्य का मार्ग कठिन है जबकि असत्य का मार्ग आजीवन दुखदाई है।
नेक इंसान सत्य मार्ग पर ही चलते हैं।जैसे सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र।
अगर आप सत्य मार्ग पर हैं,सही हैं तो उसके लिए आपको कोई भी
प्रमाण देने की जरूरत नहीं है। उचित अवसर आने पर समय खुद उसकी
गवाही दे देगा।
जीवन का आधार सच्चाई है , प्रेम है जो विश्वास पर आधारित है।
आप संकल्प लें कि आप आजीवन सत्य मार्ग पर ही चलेंगे।
-अशोक पाण्डेय

सच बात
शांति, विश्वास, प्रेम और आशा जिस मन में रहता है वह मन शिव भाव तुल्य है। क्षमा-दया उस पवित्र मन की वास्तविक पहचान होती है।ऐसे मन का निवास नीरोगी और स