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“अगर हम न कुछ करेंगे न‌ दूसरों को कुछ भला करने देंगे। सिर्फ अच्छे काम करने वाले की टांग खींचने की संस्कृति को विकसित करेंगे तो किसी का भला नहीं होगा।”

-अशोक पाण्डेय

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आज के एक मात्र सामाजिक प्राणी मनुष्य की मनोवृत्ति एक संस्कार और एक नई संस्कृति के रूप में‌ जो पल्लवित और पुष्पित हो रही है कि मनुष्य स्वयं न कुछ करता है और न दूसरों को कुछ करने देता है। वह सिर्फ टांग खींचने का काम करता है।यह आज सुबह में उठकर सोने तक इसी में लगा रहता है। सबसे दुख की बात तो‌ यह देखने को मिलती है कि हमारा समाज भी उस मनोवृत्ति को बढ़ावा दे रहा है। कैसे यह सनातनी परिवार,समाज और राष्ट्र बचेगा और‌ विकसित होगा?
-अशोक पाण्डेय

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