प्रस्तुतिःअशोक पाण्डेय
राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त
ओडिशा के अविभाजित कटक जिले के सुदूरवर्ती गांव कलराबंक मेंओडिशा के वास्तविक देवदूत प्रोफेसर अच्युत सामंत का जन्मएक गरीब परिवार में 1965 में हुआ। उनके माता-पिता स्व.नीलिमारानी सामंत तथा स्व. अनादिचरण सामंत उनके सफल जीवन के सच्चे गुरु थे। अपनी स्वर्गीया मां के आशीर्वाद से प्रोफेसर अच्युत सामंत विश्व के महान शिक्षाविद् हैं तथा उनकी सबसे छोटी बहन डा इतिरानी सामंतएक महान ओडिया लेखिका,सम्पादिका तथा साहित्यकार हैं।उनकी ओडिया मासिक पत्रिका कादंबिनी तथा बच्चों की मासिक पत्रिका कुनी कथा की लोकप्रियता ने उनको ओडिशा की कला,संस्कृतिऔर साहित्य की सच्ची रक्षिका बना दिया है। दोनों भाई-बहन बचपन से ही संवेदनशील संस्कार के अनूठे व्यक्तित्वहैं। प्रोफेसर सामंत तथा डा इति सामंत के बाल्यकाल की गरीबी में उनकी अपनी विधवा मां नीलिमारानी सामंत का सानिध्य मिला। उनदोनों को अपनी मां से आध्यात्मिक जीवन जीने कीप्रेरणा मिली। जीवन के बुरे दिनों में धीरज धारण करने का गुरुमंत्र मिला।दोनों को अनुशासित, सादगीमय,सदाचारी,मर्यादित,परोपकारी तथा स्वावलंबी बनने की कला प्राप्त हुई।दोनों के दिलों में करुणा,दया,प्रेम,अनुशासन तथा संवेदनशीलता का दिव्य आशीर्वाद मिला। मां ने दोनों कोदुख में धीरज धारण करना सिखाया। उन दोनों के दिल में संघर्ष ही जीवन है- को अपनाना बताया।आज उन दोनों भाई-बहन के भगीरथ प्रयास ने उनके पैतृक गांव कलराबंक को अपने बलबूते पर आत्मनिर्भर गांव बना दिया। उनका पैतृक गांव कलराबंक एशिया का स्मार्ट गांव बन चुका है।गांव के लोगों के उत्तम स्वास्थ्य,कृषि तथा रोजगार के पर्याप्त संसाधन कलराबंक में उपलब्ध हैं। उस गांव में वाईफाई सुविधा भी उपलब्ध है। 2006 से कलराबंक माडेल गांव बन चुका है। कलराबंक गांव के साथ-साथ वहां की भाडपुर पंचायत भी 2016 से माडेल पंचायत बन चुकी है। कलराबंक स्मार्ट विलेज में प्रोफेसर अच्युत सामंत तथा डा इति सामंत के द्वारा अनेक स्कूल,कालेज,बैंक,चौबीसों घण्टे बिजली उपलब्ध है। पूजा-पाठ के लिए अति सुंदर तथा भव्य श्रीरामदरबार मंदिर है।स्वास्थ्य सेवा के रुप में 100 बेडवाला अस्पताल है ,सार्वजनिक पुस्तकालय है ,डाकघर है,बैंक हैं,अतिथिगृह है,महिला-युवा क्लब है तथा सौरऊर्जा आदि की सुविधा उपलब्ध है। हाल ही में कीस भुवनेश्वर की कलराबंक नई शाखा का विधिवत शिलान्यास ओडिशा के वर्तमान महामहिम राज्यपाल प्रोफेसर गणेशीलाल द्वारा हो चुका है।उन दोनों भाई-बहनों के कठोर परिश्रम,कार्यसंस्कृति तथा दूरदर्शिता के बदौलत भारत की आत्मा गांवों में बसती है-की उक्ति कलराबंक में साकार हो चुकी है। प्रोफेसर अच्युत सामंत जब मात्र चार साल के थे तभी एक रेलदुर्घना में उनके पिताजी अनादिचरण सामंत का असामयिक निधन हो गया। प्रोफेसर अच्युत सामंत का बाल्यकाल घोर निराशा का काल रहा। यह तो कल्पना से परे की बात है कि किस प्रकार उन्होंने अपनी विधवा मां और 3 भाई और 4 बहनों को पढा-लिखाकर शिक्षित बनाया,उन्हों आत्मनिर्भर बनाया।उनके स्व.पिताजी जमशेदपुर में एक साधारण छोटे-से कर्मचारी थे जो नौकरी के पैसों से चल नहीं पाते थे। अपने परिवार को अपने से चला नहीं पाते थे।मजबूर होकर उन्हें अपना परिवार चलाने के लिए एक फेरीवाले से कर्ज लेना पडा जिसे वे जीते जी चुका नहीं पाए। इसीलिए जब उनके पिताजी का एक रेल दुर्घटना में असामयिक निधन हुआ तो वहफेरीवाला आया लेकिन अपने पैसे की मांगा प्रोफेसर सामंत से इसलिए नहीं की कि प्रोफेसर अच्युत सामंत के पिताजी जीते जी उसको एक सरल,नेक तथा ईमानदार इंसान लगे। प्रोफेसर अच्युत सामंत के पिताजी के निधन के बाद उनकी मां के पास एक से अधिक साडी भी नहीं थी जिसे वे प्रतिदिन स्नान करने के उपरांत बदलकर पहनतीं।उस वक्त प्रोफेसर सामंत की मां को ढाडस बंधानेवाला भी कोई नहीं था। उनकी मां दूसरों के घरों में चौका-बर्तनकर जीवन जीतीं थी,अपने बच्चों का भरण-पोषण करतीं थी। प्रोफेसर सामंत का नामकरण लगभग 6 साल की उम्र में उनके स्थानीय प्राईमरी स्कूल के प्रधानाध्यापक ने किया-अच्युतानन्द सामंत(उसके पूर्व उनके सहपाठी तथा गांववाले उन्हें सुकुठा कहकर पुकारते थे क्योंकि खाने के अभाव में वे दुबले-पतले तथा सुकुठा थे)। प्रोफेसर सामंत अपने से स्नातक किये। रसायन विज्ञान में स्नात्तकोत्तर किये। डाक्टरेट की डिग्री प्राप्त किये। 1992-93 में जब वे महसूस किये कि ओडिशा के युवाओं के पास उत्कृष्ट तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी है ,भारत में शिक्षा तथा नौकरी में कुछ नहीं कर सकते तो उन्होंने अपनी कुल जमा पूंजी मात्र पांच हजार रुपये से दो शैक्षिक संस्थान,कलिंग इंस्टीट्यूट आप इंडस्ट्रियल टेक्नालाजी(कीट)तथा कलिंग इंस्टीट्यूट आफ सोसलसाइंसेज(कीस) की स्थापना एक किराये के मकान में की।पुरुषार्थ तथा भाग्य के धनी प्रोफेसर अच्युत सामंत की दोनों शैक्षिक संस्थाएःकीट-कीस आज जो डीम्ड विश्विद्यालय बन चुकीं हैं। उनकी छोटी बहन डा इति सामंत ओडिशा की सबसे लोकप्रिय साहित्यकार बन चुकी हैं। प्रोफेसर अच्युत सामंत निर्विवाद रुप में आदिवासी समुदाय के जीवित मसीहा हैं। ओडिशा के अमृतपुत्र हैं। विदेह हैं। संतों के संत हैं।ओडिशा धरती-माटी के लाल हैं। उनकी विशेष आत्मीयता कीस से है,कीस के तीस हजार से भी अधिक आदिवासी बच्चों से है।कीस आज विश्व का सबसे बडा आदिवासी आवासीय विद्यालय ही नहीं अपितु विश्व का प्रथम आदिवासी आवासीय डीम्ड विश्वविद्यालय बन चुका है।उनका कीट अगर एक कारपोरेट है तो कीस उसकी सामाजिक जिम्मेदारी है। प्रोफेसर सामंत स्वयं तो अविवाहित हैं लेकिन कीस के उनके तीस हजार से भी अधिक आदिवासी बच्चों के वे पिताकहलाते हैं। वे कीस के आदिवासी बच्चों की भलाई और उनके सर्वांगीण विकास में सदा लगे रहते हैं। प्रोफेसर अच्युत सामंत का कीस भारत का दूसरा शांतिनिकेतन है। विश्व का वास्तविक तीर्थस्थल है जहां पर चरित्रवान,प्रतिभावान,ईमानदार,निःस्वार्थ समाजसेवी तथा सच्चे देशभक्तों का निर्माण होता है। कीस में सही मायने में आदिवासी संस्कार और संस्कृति सुरक्षित है।वहीं डा इति सामंत की कलम की सशक्त ताकत पर सुरक्षित है- ओडिया भाषा,ओडिया संस्कार-संस्कृति,यहां की विभिन्न कलाएं ,बाल प्रतिभाएं और ओडिया साहित्य आदि।
अशोक पाण्डेय
अपनी स्वर्गीया मां नीलिमा रानी सामंत के सपनों को यथार्थ रुप में साकार कर रहे हैं महान शिक्षाविद् प्रोफेसर अच्युत सामंत तथा उनकी छोटी बहन महान लेखिका डा इति सामंत
