-अशोक पाण्डेय
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‘ज्ञान’ तो मां सरस्वती का वरदान है जिसको सबसे पहले ग्रहण किया था आदिकवि वाल्मीकि ने। सद्गुरूओं की परम्परा में सप्त ऋषिगण आए। जगतगुरु आए।संत – महात्मा आए। गुरुकुल बने। और तब जाकर आरंभ हुई बाल संस्कार और बाल संस्कृति की शिक्षा । उसके उपरांत आरंभ हुई अनौपचारिक और औपचारिक शिक्षा का भारतीय सनातनी साम्राज्य।
मित्रवर, भारतीय सनातनी समाज की आपसे सिर्फ एक ही अपेक्षा है कि है कि आप अपने ही जीवन के अनुभवों का व्यावहारिक ज्ञान अपनी संतान को दें!। आप इस उम्र में यथासंभव सत्संग करें! सद्गुरु और सद्गुणों को अपनाकर अपने अहंकार आदि का त्याग करें! एक बुजुर्ग के नाते अपनी संतान को जीवन के शाश्वत मूल्यों को अपनाकर संयुक्त परिवार की अवधारणा को बचाने की दिशा में अनुप्रेरित करने का।
-अशोक पाण्डेय