भुवनेश्वर, 18 जनवरी 2025: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) भुवनेश्वर ने धर्म, इतिहास और पहचान: पवित्र शहरों की विरासत-परिदृश्य का निर्माण विषय पर एक वार्ता का आयोजन किया है। प्रो. प्रलय कानूनगो, लीडेन विश्वविद्यालय, नीदरलैंड। पूर्व में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में प्रोफेसर रहे, उनके पास धर्म और राजनीति, हिंदू धर्म/सार्वजनिक हिंदू धर्म, हिंदू राष्ट्रवाद, शहरीता और धर्म, भारतीय लोकतंत्र, ओडिशा के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक इतिहास, हिंदू प्रवासी और भारत-चीन संबंध, आदि क्षेत्र में समृद्ध अनुभव और ज्ञान है। अपनी बात में प्रो कानूनगो ने कहा : “विरासत कई अर्थों और अभिव्यक्तियों के साथ एक जटिल और विवादित अवधारणा है। प्राचीन से लेकर समकालीन तक धर्म, इतिहास और पहचान की परस्पर क्रिया ने वाराणसी, हरिद्वार, अयोध्या और पुरी जैसे शहरों का विरासत-परिदृश्य बनाया है। धर्म, प्रदर्शन, तमाशा और रोजमर्रा के जीवन-अभ्यास जैसे पहलुओं में, इस शहरी विन्यास के मूल में है। कई पवित्र शहरों की विरासत हिंदू और गैर- हिंदू, ब्राह्मणवादी और निम्नवर्गीय, प्राकृतिक और निर्मित, मूर्त और अमूर्त, प्रदर्शनात्मक और अनुभवात्मक है। विरासत निर्माण के विमर्श से पता चलता है कि कैसे प्रमुख कारकों और एजेंसियों ने, अलग-अलग समय पर, विरासत को नष्ट करने और बनाने के लिए, मिथक और घटना, पाठ और संदर्भ, रीति-रिवाजों और रोजमर्रा की जिंदगी, मिटाने के माध्यम से विरासत-बलात्कार की रूपरेखा को आकार देने और पुनः आविष्कार के लिए धर्म, विचारधारा और शक्ति का उपयोग किया।” प्रारंभ में, प्रोफेसर चंडी प्रसाद नंदा, निदेशक, ओडिशा अनुसंधान केंद्र, (ओआरसी) भुवनेश्वर ने दर्शकों को ओआरसी के प्रमुख लक्ष्यों के बारे में जानकारी दी। इस कार्यक्रम में संस्थान के बड़ी संख्या में छात्र, संकाय सदस्य और कर्मचारी शामिल हुए। इस अवसर पर अन्य लोगों के अलावा, रजिस्ट्रार श्री बामदेव आचार्य उपस्थित थे। डॉ. विजयकृष्ण कारी, प्रोफेसर-इन-चार्ज (सेमिनार) ने कार्यक्रम का समन्वय किया।
आईआईटी भुवनेश्वर ने 'धर्म, इतिहास और पहचान: पवित्र शहरों की विरासत- परिदृश्य का निर्माण' विषय पर चर्चा का आयोजन
