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आगामी 8 जुलाई को है भगवान जगन्नाथ का नीलाद्रि विजय और रसगुल्लाभोग

– अशोक पाण्डेय

आगामी 8 जुलाई को है 2025 वर्ष का भगवान जगन्नाथ का नीलाद्रि विजय और रसगुल्लाभोग महोत्सव।चतुर्धा देवविग्रहों की अपनी जन्मवेदी,गुण्डीचा घर से सात दिवसीय गुण्डीचा महोत्सव मनाकर पुनः उनके श्रीमंदिर के रत्नवंदी पर आरुढ़ कराने की आध्यात्मिक और लौकिक परम्परा का नाम हैः नीलाद्रि विजय।एक शाश्वत संयुक्त परिवार में घर की पत्नी अपने पति पर कितनी आत्मीय दिखाती है उसे देखकर उसे अन्नपूर्णा कहा जाता है,अपने पति की प्रेरणा कहा जाता है। उसे त्याग की देवी कहा जाता है। उसकी भूमिका अपने संयुक्त परिवार को खुशहाल बनाने में अहम् होती है। ऐसे में भगवान जगन्नाथ का अपने बड़ेभाई और छोटी बहन को लेकर अपनी जन्मस्थली गुण्डीचा घर जाना माता लक्ष्मी को बिलकुल अच्छा नहीं लगा इसीलिए बाहुड़ा विजयकर जम वे अपने बड़े भाई बलभद्रजी और छोटी बहन सुभद्राजी के साथ जब पुनः श्रीमंदिर लौटते हैं तो माता लक्ष्मी अपने क्रोध को एक सामान्य गृहिणी की तरह व्यक्त करतीं हैं भगवान जगन्नाथ अर्थात् अपने पतिदेव पर। वे बलभद्रजी और सुभद्राजी को तो अनुमति दे देती हैं पुनः उनके रत्नवेदी पर विराजमान होने के लिए लेकिन अपने पतिदेव भगवान जगन्नाथ को अनुमति नहीं देती हैं। ऐसे में दोनों के मध्य श्रीमंदिर के सिंहद्वार के सामने नोक-झोंक आरंभ हो जाता है। माता लक्ष्मी सिंहद्वार के अंदर से कपाट बंद कर लेती हैं तो भगवान जगन्नाथ सिंहद्वार के बाहर खड़े होकर अनुमति मांगते हैं। सच कहा जाय तो किसी भी संयुक्त परिवार में पति-पत्नी के मध्य यथार्थ वाक् नोक-झोक श्रीमंदिर में लगभग एक हजार वर्षों से देखने को मिलती है भगवान जगन्नाथ के नीलाद्रि विजय दर्शन के क्रम में।भगवान जगन्नाथ के पास अंत में अन्नपूर्णा देवी लक्ष्मी को मनाने का एक ही व्यक्तिगत तरीका काम आता है और वह होता है अपने जीवन की एकमात्र प्रेरणा देवी लक्ष्मी को रसगुल्ला भोग निवेदितकर उनको प्रसन्न करने का और धण्टों नोक-झोक के उपरांत उसी तरीके से वे माता लक्ष्मी को प्रसन्न करते हैं।अपने मानवीय लीलाओं के तहत लीलाधर भगवान जगन्नाथ एक अति साधारण पति के रुप में अपनी पत्नी को मनाते हैं जिसे आगामी 8जुलाई को सभी जगन्नाथभक्त देखेंगे।भक्त बलराम दास,ओडिया रामायण के रचयिता के अनुसार दण्डी रामायण, जगमोहन रामायण के अनुसार भरतलालजी अपने भाई शत्रुध्नजी के साथ श्रीरामचन्द्रजी को उनके वनवास से अयोध्या वापस लौटाने के निवेदन के समय भारद्वाज मुनि के आश्रम में जब जाते हैं तो भारद्वाज मुनिजी माया ब्राह्मणों द्वारा उन्हें दूध से तैयार रसगुल्ला खिलाते हैं। भक्त लेखक ब्रजनाथ बडजेना अपनी रचना अंबिका विलास में,अभिमन्यू सामंत सिंहारी अपनी रचना विदग्ध चिंतामणि में रसगुल्ला भोग का सुंदर वर्णन किये हैं।
यही नहीं,भगवान जगन्नाथ के 2015 के नवकलेवर के दौरान भी नीलाद्रि विजय के क्रम में भगवान जगन्नाथ द्वारा देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए अपने होथों से उनको रसगुल्ला भोग निवेदित किये थे। इसीलिए 2015 से नीलाद्रिविजय को ओडिशा में रसगुल्ला दिवस के रुप में मनाया जाता है।अब तो प्रतिवर्ष ओडिशा में रसगुल्ला दिवस मनाया जाता है।
गौरतलब है कि श्रीमंदिर में कुल लगभग 205 प्रकार के सेवायतगण हैं जिनमें भीतरछु महापात्र सेवायत ही रसगुल्ला भोग तैयार करते हैं।श्रीपुरी धाम के बड ओडिया मठ,उत्तर पार्श्व मठ,नेवलदास मठ,राधावल्लव मठ,राधेश्याम मठ और कटकी मठ आदि में रसगुल्ला तैयार किया जाता है।साथ ही साथ पूरे ओड़िशा में नीलाद्रि विजय के समय रसगुल्ला तैयार करने को पवित्र कार्य माना जाता है।यही नहीं,ओडिशा के पुरी,कटक,नयागढ,भुवनेश्वर, और भुवनेश्वर-कटक राजमार्ग के समीप पहल में बहुतायत मात्रा में रसगुल्ला तैयार कर उसे बेचा जाता है। भारतीय संयुक्त परिवार के जिज्ञासु पति-पत्नी आगामी 8 जुलाई के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि कब और कितना जल्दी नीलाद्रि विजय दिवस आये कि वे एक-दूसरे को आजीवन प्रसन्न करने की कला महाप्रभु जगन्नाथ और माता लक्ष्मी से प्रत्यक्ष रुप में ग्रहण कर सकें।
अशोक पाण्डेय

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