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आज का युग अनिश्चितता और पूनर्मूल्यांकन का युग है.

अशोक पाण्डेय
भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी कहते हैं,संघ प्रमुख डॉ मोहन भागत कहते हैं और सबसे बड़ी बात विश्व पंचायत,यूएन की रिपोर्ट कहती है कि आज का युग युवाओं का युग है।आज पूरे विश्व का अस्तित्व युवाओं की सकारात्मक सोच और बहु आयामी हुनर पर टिका हुआ है। हिन्दू धर्म,बौद्ध धर्म,जैन धर्म और सिख धर्म तथा इनके धर्मगुरुओं आदि का भी यह मानना है कि कालांतर में युग की अनिश्चितता और स्व पूनर्मूल्यांकन को अपनाकर ही भारत को विकसित मनाया जा सकता है। अनिश्चितता तो पल-पल देखने को मिलती है। जिस प्रकार परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है ठीक उसी प्रकार मनुष्य जीवन में प्रतिपल परिवर्तन होते ही रहते हैं।और अपने आचार-विचार,संस्कार और व्यवहार में बदलाव लाकर वर्तमान के साथ चलना ही सबसे बड़ी बुद्धिमानी है। हाल ही में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने विजयादशमीः2025 को अपना 100वां स्थापना दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाया। वह पवित्र दिवस संघ के लिए ही नहीं हमसभी के लिए संकल्प दिवस था।गौरतलब है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का त्यागी राजा का जीवन शाश्वत जीवन मूल्यों पर आधारित जीवन था जिन्होंने दुराचारी रावण का वधकर यह संदेश दिया है कि यह विजय न किसी एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति पर और न ही किसी देश की दूसरे देश पर विजय थी परन्तु यह विजय धर्म की अधर्म पर, नीति की अनीति पर, सत्य की असत्य पर, प्रकाश की अंधकार पर और न्याय की अन्याय पर विजय थी जिसकी आवश्यकता आज भारतीय समाज को है। विजयादशमी का दिवस आज हमारे लिए सतत स्फूर्ति का दिवस है।विजयादशमी का दिवस सतत आत्मगौरव,नई ऊर्जा आत्ममूल्यांकन के साथ पूनर्मूल्यांकन का भी दिवस है।अगर भारतवर्ष की गौरवशाली परम्पराओं को देखें तो भारत एक आत्मनिर्भर समृद्धिशाली, शक्तिशाली और सभी राष्ट्रों के लिए हितकारी राष्ट्र रहा है।यह भारतराष्ट्र का समाज संस्कारी है,समरस है और आज के युग में शक्तिशाली भी है। आज के भारतीय समाज में रामराज्य जैसा अमन-चैन अगर लाना है तो सबसे पहले अपने आपको चरित्रवान बनाना होगा,अनुशासित और शिष्टाचारी बनाना होगा।और इसके लिए सबसे पहले स्व की समीक्षा करनी होगी जिससे संस्कारी भारतीय परिवार बने और उससे सशक्त भारतीय समाज तैयार हो सके। अगर राष्ट्रपिता बापू के अमर संदेशा को भारत में पुनः प्रतिष्ठ करना है तो सबसे पहले आज के युग में हमसभी भारतवासी को स्व के भाव के साथ-साथ स्व निरीक्षण-परीक्षण का समय बनाना होगा।स्वदेशी विचार अपनाना होगा, भारतीय संस्कृति,इसकी शाश्वत परंपरा और उसके गौरव को पुनः प्रतिष्ठित करना होगा और यह दायित्व आज सिर्फ और सिर्फ देश के युवाओं को परिवर्तन को अपनाकर स्व का पूनर्मूल्यांकन करके ही संभव है।उन्हें अपने व्यवहार और आचरण में भारतीयता को आत्मसात करना होगा।भारत के सौंदर्यबोध तथा शक्तिबोध को आज के परिपेक्ष्य में समझ-बुझकर अपनाना होगा। स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी का कहना है कि जब कमल खिलता है तो वहां पर भंवरे स्वतः आ जाते हैं। अगर आज के पश्चिमी सभ्यता के चकाचौंध तथा आणविक संकट के युग से भारत को बचाना है तो हम देश के युवाओं को स्व मूल्यांकनकर और उसी के अनुसार अपने आजार-विचार-संस्कार और संस्कृति को अपनाना होगा। हमारे सप्त ऋषिगणःमहर्षि अगस्त्य,महर्षि अत्रि,महर्षि वसिष्ठ,महर्षि विश्वामित्र,महर्षि जमदग्नि-परशुराम,महर्षि भृगु और यहां तक कि महर्षि दुर्वासा आदि ने भी परिवर्तन के साथ स्व समीक्षा तथा स्व मूल्यांकन को अपनाने का संदेश दिया है। शांतिदूत भगवान श्रीकृष्ण ने भी महाभारत युद्ध में महापराक्रमी अर्जुन को परिवर्तन के दौर को स्वीकार करते हुए स्व के पूनर्मूल्यांकन का अमर संदेश दिया है। अपने बाल्यकाल में परम जिज्ञासु स्वामी विवेकानंद ने भी परिवर्तन के क्रम में स्व मूल्यांकनकर पूरे विश्व को जगतगुरु के रुप में स्व मूल्याकन तथा परिवर्तन को अपनाने का संदेश दिया है। राष्ट्रकवि स्वर्गीय रामधारी सिंह दिनकर ने अपने पूरे जीवन में भारतीय संस्कृति और भारतीय इतिहास का गुणगान किया परन्तु उनके जीवन का सच तो यह है कि उन्होंने भी अपने जीवन के आखिरी समय में परिवर्तन की वास्तविकता को स्वीकारकर तथा स्व समीक्षाकर -हारे को हरि नाम-लिख डाला।इसीलिए तो उनके अनुसार संस्कृति की परिभाषा संसार भर में जो भी सर्वोत्तम बातें जानी या कही गईं हैं उनसे अपने आपको परिचित करना ही संस्कृति है।और यह हमेशा परिवर्तन के दौर को सहर्ष स्वीकार कर तथा स्व मूल्याकन से ही संभव है। हाल ही में जैन धर्म के प्रचारक संतमुनि चन्द्र प्रभ जी का यह संदेश है कि सम्पूर्ण मानवता के भगवान हैं-महावीर और उन्होंने भी युग अनिश्चितता को स्वीकरने और पूनर्मूल्यांकन के युग में अपना मूल्यांकन स्वहित,परिवारहित,समाजहित और राष्ट्रहित के लिए अनिवार्य बताया है। राजयोगी ब्रह्मकुमार निकुंज का भी हाल ही में यह कहना है कि हमें परिवर्तन से डरना नहीं चाहिए अपितु उसे सहर्ष अपनाना चाहिए।सत्य तो यह है कि आज का युग अनिश्चितता और पूनर्मूल्यांकन का युग है-विषय निश्चित रूप से शोध का विषय है जिसपर अनवरत शोध की आवश्यकता है और उसी के अनुसार भारतीय जीवन-शैली को अपनाने की आवश्यकता है।
-अशोक पाण्डेय

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