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आज की बोधात्मक लघुकथा

मनुष्य जीवन और संतुष्टि जैसा सुख और आनंद और कुछ भी नहीं है।

-अशोक पाण्डेय
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देवराज इन्द्र एक दिन मृत्युलोक के लोगों की वास्तविक जानकारी प्राप्त कर यह घोषणा की कि जिस किसी को भी धन की जरूरत हो तो वह उनसे ले सकता है। मृत्युलोक से जो भी देवराज इन्द्र के पास गया सभी को उन्होंने खूब धन दिया। फिर पता किये कि एक संन्यासी जो जंगल की एक झोपड़ी में रहता है वह बहुत ही गरीब है लेकिन वह देवराज इन्द्र के पास धन की लालसा से नहीं आया था। यह जानकार देवराज इन्द्र स्वयं उस संन्यासी की झोपड़ी में आये और धन के लिए पूछा। संन्यासी ने देवराज को बताया कि वह सबसे सुखी है क्योंकि वह मनुष्य जीवन पाया है और जो कुछ भी उसके पास है उससे वह संतुष्ट है। आप भी मानव जीवन में संतुष्ट रहना आनंद के साथ सीखें!
-अशोक पाण्डेय

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