मौलिक विचार: अशोक पाण्डेय
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मान्यवर,
जय जगन्नाथ!
अंग्रेजी नववर्ष का आज चौथा दिन है। आज ओड़िया कादंबनी के वार्षिक समारोह में रामायण टेलीविजन धारावाहिक के रावण की सफल भूमिका निभाने वाले श्री अमरेन्द्र मिश्र का ओजस्वी वक्तव्य मैंने सुना। उन्होंने ऋग्वेद का उल्लेख करते हुए साहित्य के उद्गम की बात उसी ऋग्वेद को बताया। उनके विचार-आचार-
व्यवहार पूरी तरह से मुझे आध्यात्मिक लगे।
मान्यवर, कबीरदास,रहीम, तुलसीदास और गुरु नानक देव जी आदि के विचारों को पढ़कर मुझे ऐसा लगा कि इस मृत्युलोक में प्रत्येक व्यक्ति का सत्कर्म ही अमर रहता है। ऐसे में,आप स्वयं अच्छी तरह से जानते हैं कि आप क्या हैं? आपका व्यवहार, आचरण, मनोवृत्ति और वास्तविकता क्या है? फिर भी, दूसरों से झूठी प्रशंसा सुनकर गर्व का अनुभव करते हैं। यह एकदम ठीक नहीं है। रामायण टेलीविजन धारावाहिक के रावण की सफलतम भूमिका निभानेवाले श्री अमरेन्द्र मिश्रा जी के ज्ञान, व्यवहार, आचरण और समदर्शी विचारों को सुनकर व्यक्तिगत रूप से मेरा यह मानना है कि हमें अंदर और बाहर से सिर्फ स्व मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। अपने आपको वास्तविक के ठोस धरातल पर आंकने और सुधार करने की आवश्यकता है और तब जाकर यह दुनिया और हमारा अपना भारतवर्ष निश्चित रूप से राममय भारतवर्ष बन पाएगा ।
शुभ संध्या!
-अशोक पाण्डेय