-अशोक पाण्डेय
आज का युग सोसलमीडिया का युग है। 21वीं सदी का भारत सूचना तकनीक संपन्न भारत है।इसीलिए आज हमारी समस्त सनातनी शाश्वत परम्पराएं,हमारे सोलहों संस्कार,पूजा विधि-विधान,समस्त लौकिक रीति-रिवाज आदि पर आधुनिकता का स्पष्ट प्रभाव दिखाई दे रहा है जो भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में सबसे बड़ा बाधक है।सच कहा जाय तो हमारा तन-मन पूरी तरह से आधुनिकता में रंग चुका है। आज का दो साल का शिशु भी बिना वीडियो देखे-सुने मां का दूध नहीं पीता है। कुछ महीने पहले भारत के मशहूर पूंजीपति मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी की शादी में कुल लगभग पांच सौ करोड़ रुपये मात्र खर्च हुए जबकि हमारी शाश्वत वैवाहिक परम्पराओं का पूरा-पूरा खयाल रखा गया जो एक प्रशंसनीय और अनुकरणीय पहल रही। आज सबसे बड़ी चिंता तो शादी-विवाह के नाम पर आधुनिकता को लेकर है जो वास्तव में फिजूलखर्ची का पर्याय बन चुका है।अब तो पांच सितारे होटलों में नहीं सात सितारे होटलों में शादी-विवाह का आयोजन लड़का-लड़कीवाले पक्ष के लिए शान-शौकत और गौरव-गरिमा बन चुका है।आज का विवाहोत्सव आधुनिकता से पूरी तरह से प्रभावित हो चुका है।दुल्हा-दुल्हिन के साज-श्रृंगार पर ही लाखों रुपये आज खर्च किए जा रहे हैं।ऊपर से घरवालों तथा समस्त सगे-संबंधियों के श्रृंगार-पटार का खर्चा तो अलग से लाखों में हो रहा है। पहले विवाह के लिए लड़की पक्षवाले लड़के को देखने के लिए आते थे लेकिन आज तो सबसे पहले लड़की अपने योग्य वर की तलाश स्वयं करती है उसके उपरांत लड़के पक्षवाले लड़की पक्षवाले के घर आते हैं। पहले शादी-विवाह करानेवाले की चांदी रहती थी लेकिन अब तो शादी-विवाह के ऐप पर भी लड़की-लड़का अपनी पसंद से तलाश फ्री करते हैं फाइनल होने पर ही विवाह-शादी ऐपवाले अपनी फीस लेते हैं।
एक समय वह भी था जब गांव- घर में शादी-विवाह पूरी तरह से एक सामाजिक जिम्मेदारी होती थी,नाई,धोबी,दर्जी,कुम्हार से लेकर शादी का माड़ो(मण्डप) तैयार करनेवाले,उसे सजानेवाले सभी गांव के बालक-युवा होते थे।विवाह करनेवाले परिवार को लगता था कि उसकी सामाजिक मर्यादा उसके बेटे-बेटी के विवाह में समाज के लोगों के सामूहिक रुप से हिस्सेदारी से ही मिलती है। लेकिन आज विवाहोत्सव के नाम पर दिन-प्रतिदिन बढ़नेवाली फिजूलखर्ची चिंता का मुख्य कारण बन चुकी है। आज तो लड़कीवाले की आमदनी अठन्नी तो खर्चा रुपैया हो चुका है।आज तो गावों में भी अत्याधुनिक टेन्टवाले,डीजेवाले,डांसपार्टीवाले और डेकोरेटर आदि आसानी से परन्तु महंगे दर पर उपलब्ध हैं। गांवों में आज शादी-विवाह के लिए किराये पर कीमती-चमचमाती कारें भी उपलब्ध हैं जो जब लड़कीवाले के घर पर बाराती को लेकर पहुंचती हैं तो पूरा गांव बाराती के साथ-साथ कारों को देखने के लिए उमड़ पड़ता है।आजकल गांव के धोबी,हजाम,कुम्हार और दर्जी आदि का स्थान क्रमशः ड्राईक्लीनर्स,सैलून और रेडीमेड कपड़े की दुकानवाले ले चुके हैं।आज तो चट मंगनी,पट विवाह हो चुका है जिसमें लाखों-करोड़ों का खर्चा आ रहा है। सबसे बड़ी चिंता तो यह है कि विवाह के कुछ ही दिनों के बाद तलाक का प्रचलन भी तेजी से बढ़ रहा है। आज धूमधाम से शादी हुई और ठीक एक महीने के बाद तलाक के लिए अदालत का चक्कर शुरु हो गया जिसमें लड़केवाले अधिक पीस रहे हैं।
आधुनिकता के नाम पर विवाहोत्सव में फिजूलखर्ची के लिए आज जनजागरण की आवश्यकता है।विवाह से संबंधित गांव तथा जातीय संगठन को मजबूत बनाने की आवश्यकता है।विवाह में लेन-देन को पूरी तरह से बंद की आवश्यकता है।बच्चों के स्कूली पाठ्यक्रम में तथा युवाओं के उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम में सादगीपूर्ण विवाह के महत्त्व को स्पष्ट रुप में रखना होगा।भारत के मध्यम वर्ग को अधिक से अधिक सचेत करना होगा।विवाह के नाम पर फिजूलखर्ची के अंधाधुंध अनुकरण को बंद करना होगा।जिसप्रकार अरबपति मुकेश अंबानी ने अपनी बेटी ईशा अंबानी की शादी पूरी सादगी के साथ किया था उसी प्रकार सभी अरबपतियों को सनातनी संस्कार-संस्कृति को ध्यान में रखकर पूरी सादगी के साथ विवाहोत्सव मनाना जाहिए।हमारी केन्द्र की श्री नरेन्द्र मोदी जी लोककल्याणकारी सरकार तथा राज्य की समस्त सरकारों को भी सादगीपूर्ण विवाह के आयोजन के लिए तथा विवाहोत्सव के नाम पर फिजूलखर्ची को बंद करने के लिए कारगर कानून बनाने होंगे।सबसे बड़ी पहल तो यह होनी चाहिए कि लड़का-लड़की को शादी-विवाह और तलाक आदि से संबंधित सोसलमीडिया मंच को विवाह से पूर्व बंद करना होगा।देश के युवा-युवती की विवाह से संबंधित अपनी-अपनी गलत सोच को बदलना होगा क्योंकि जोड़ियां तो ऊपर से बनकर आती हैं जिसे पूरी सादगी के साथ विवाह-संस्कार में अपनाना चाहिए और तभी जाकर विवाहोत्सव की फिजूलखर्ची बंद होगी और 2046 तक भारत पूरी तरह से एक विकसित राष्ट्र बन सकता है।
-अशोक पाण्डेय
आधुनिकता बनाम फिजूलखर्चीः आज के विवाहोत्सव के परिपेक्ष्य में
