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“आर्ट आफ गिविंगःप्रेम का पैगाम तथा मानवीय संवेदनाओं का आईंना है।”

– अशोक पाण्डेय,राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त
ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर स्थित कीट-कीस, दो विश्व स्तरीय शैक्षणिक संस्थाओं के प्राणप्रतिष्ठाता तथा कंधमाल लोकसभा सांसद प्रोफेसर अच्युत सामंत का वास्तविक जीवन-दर्शनः अन्तर्राष्ट्रीय आर्ट आफ गिविंग एक तरफ जहां पूरे विश्व में लोकप्रिय बन चुका है वहीं यह शाश्वत रुणा, दया, प्रेम, सहानुभूति, भाईचारे,आत्मीयता तथा सहयोग का यथार्थ पैगाम बन चुका है। 17मई,2013 को प्रोफेसर सामंत ने आरंभ किया थाः आर्ट आफ गिविंग(देने की कला) जो एक सामाजिक आन्दोलन बन चुका है। इसका अनुपालन स्वेच्छापूर्वक प्रोफेसर अच्युत सामंत को आदर्श मानकर भारत समेत पूरे विश्व के लोग प्रतिवर्ष 17मई को स्वेच्छापूर्वक करते हैं। प्रोफेसर अय्चुत सामंत से जब यह पूछा गया कि उन्होंने अपने वास्तविक जीवन-दर्शनःआर्ट आफ गिविंग को क्यों आरंभ किया तो उन्होंने मुसकराते हुए यह बताया कि वे अपने जीवन के अनुभव से यह कह सकते हैं कि इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति लेना चाहता है,देना कोई नहीं चाहता है। उनके पास भी जितने आते हैं,वे भी सिर्फ लेना चाहते हैं। उनके अनुसार देना एक विशिष्ट आध्यात्मिक गुण है जो बाल-संस्कार से माता-पिता,भाई-बहन आदि के साहचर्य से आता है। देने में दाता की सहृदयता, उदारता, आत्मीयता, परोपकार, करुणा, दया, सहानुभूति तथा दानशीलता निहित होती हैं। इसमें दाता यथाशक्ति अन्न,वस्त्र और अर्थ आदि देकर अपने आप प्रसन्न रहता है। प्रोफेसर सामंत ने बताया कि उनके व्यक्तिगत जीवन में-देना, जीवन का वह अनुभव होता है जिसमें दाता अपने वास्तविक जीवन में अभावों में पला-बढा होता है जैसे वे स्वयं खुद अपने बाल्यकाल में घोर आर्थिक अभावों से गुजरे।जब प्रोफेसर सामंत मात्र चार साल के नवजात शिशु थे तभी उनके पिताजी का 19मार्च,1969 को एक रेल दुर्घटना में असामयिक निधन हो गया। घर में उनकी विधवा मां और प्रोफेसर सामंत के 3-3 भाई-बहन। कभी-कभी तो भोजन के अभाव में उन्हें बिना खाये ही सो जाना पडता था। उनकी विधवा माताजी के पास सिर्फ एक ही फटी-चीटी साडी थी जिसे वे प्रतिदिन सूखाकर पहनतीं थीं। प्रोफेसर सामंत की सबसे छोटी बहन इति सामंत उन दिनों मात्र एक साल की थी। बाल्यकाल से ही आत्मविश्वासी तथा सत्यनिष्ठ प्रोफेसर सामंत अपनी विधवा मां स्वर्गीया नीलिमारानी सामंत के सानिध्य में तथा उनके कठोर अनुशासन में अपने आपको तैयार किया जो दुनिया के लिए एक महान शिक्षाविद् तथा निःस्वार्थी लोकसेवक के आदर्श मिसाल बन गये। वे अपने असाधारण कामयाब जीवन की पहली गुरु अपनी मां को मानते हैं। अपनी मां की सेवा कर तथा उनके घर के कामों में सहयोग कर के ही वे एक असाधारण कामयाब इंसान बने हैं।अपनी मां की स्मृति में प्रोफेसर अच्युत सामंत ने अपनी पहली कृतिः माई मदर,माई हीरो लिखी जिसे दुनिया के पाठकों ने सराहा। प्रोफेसर अच्युत सामंत की ऐतिहासिक तथा विश्वस्तरीय शैक्षिक पहल कीट-कीस की स्थापना(1992-93) के मूल में इंसानीयत,मानवता और दयाभाव ही रहा जिनकी कमी प्रोफेसर अच्युत सामंत ने अपने बाल्यकाल में महसूस की और यह निर्णय लिया कि वे आजीवन अविवाहित रहकर समाज के दलित,उपेक्षित,विकास की मुख्यधारा से वंचित आदिवासी,अनाथ,बेसहारे बच्चों को कीस के माध्यम से निःशुल्क शिक्षित कर,उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करेंगे। उन्हें अपनी तरह ही स्वावलंबी बनाएंगे तथा अपनी तरह उन्हें भी निःस्वार्थ भाव से जनसेवक बनाएंगे। प्रोफेसर अच्युत सामंत को उनके बाल्यकाल में जो प्यार-दुलार,आर्थिक सहयोग, सहृदयता,आत्मीयता और अपनत्व समाज से नहीं मिला उसे वे अपने जीवन-दर्शनःआर्ट आफ गिविंग के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाएंगे। आर्ट आफ गिविंग को पूरी तरह से कामयाब बनाने के लिए प्रोफेसर अच्युत सामंत ने ओडिशा की वास्तविक धरोहर ओडिया भाषा,संस्कृति,आदिवासी संस्कार-संस्कृति,ओडिशा की परम्परागत विभिन्न कलाओं,साहित्य,शिक्षा,तकनीकी शिक्षा,विज्ञान तथा खेल आदि को प्रोत्साहन के लिए कीट-कीस में सभी प्रकार से संसाधन अत्याधुनिक तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के तैयार किये। कीट-कीस आज पूरे विश्व के आकर्षण का केन्द्र बन चुका है ।दोनों डीम्ड विश्वविद्यालय हैं।मानव-निर्माण के शैक्षिक कारखाने हैं जहां पर सच्चे मानव गढे जाते हैं। उन्हें सच्ची मानवता का पाठ पढाया जाता है।कीट-कीस आधुनिक तीर्थस्थल हैं। भारत का दूसरा शांति निकेतन हैं। अन्तर्राष्ट्रीय आर्ट आफ गिविंग के जन्मदाता,प्रणेता,प्रवर्तक तथा प्राणप्रतिष्ठाता तथा कंधमाल लोकसभा सांसद प्रोफेसर अच्युत सामंत इसके माध्यम से सभी के चेहरे पर हंसी देना चाहते हैं,खुशी देना चाहते हैं।समाज,ओडिशा राज्य,भारत तथा पूरी दुनिया में आनन्द का माहौल तैयार करना चाहते हैं। सभी के लिए अनिवार्य रुप से शिक्षा उपलब्ध कराना चाहते हैं। आदिवासी तथा महिला सशक्तिकरण करना चाहते हैं।सामाजिक सचेतनता लाना चाहते हैं। यह कहना कोई अतिशयोक्ति की बात नहीं होगी कि प्रोफेसर सामंत एक सच्चे शांति योद्धा हैं। कुल 48मानद डाक्टरेट की उपाधि पानेवाले प्रोफेसर अच्युत सामंत को 2015 में बहरीन के सर्वोच्च नागरिक सम्मानः गुस्सी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें मंगोलिया के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी विभूषित किया गया। भारतीय संसद की लोकसभा में वे अपनी दीप्ति विखेरते हुए निःस्वार्थ मानवता की सेवा का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। आदिवासी तथा गरीबों की वे आवाज बन चुके हैं। अन्तर्राष्ट्रीय आर्ट आफ गिविंग के माध्यम से वे वे महिला तथा आदिवासी सशक्तिकरण को प्रोत्साहित कर रहे हैं।उनका अन्तर्राष्ट्रीय आर्ट आफ गिविंग वास्तव में मानवीय संवेदनाओं का आईंना बन चुका है। निःस्वार्थ मानव-सेवा का यथार्थ आदर्श बन चुका है।उसके माध्यम से एक-दूसरे को सहयोग कर दया-करुणा का पैगाम पूरे विश्व को प्रोफेसर सामंत दे रहे हैं। दुनिया की वास्तविक पहचान इंसान तथा इंसानियता को बचा रहे हैं। सहानुभूति और सहयोग को साकार कर रहे हैं। आपसी प्रेम और सद्भाव को बढा रहे हैं। शाश्वत जीवनमूल्यों की हिफाजत कर रहे हैं। लोकाचार को मजबूत कर रहे हैं। आइए,हमसब भी “प्रोफेसर अच्युत सामंत के वास्तविक जीवन-दर्शनःआर्ट आफ गिविंग को प्रेम का पैगाम तथा मानवीय संवेदनाओं का आईंना बनाने में तन,मन और धन से सहयोग दें।

अशोक पाण्डेय

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