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आलोकपुरुषः प्रोफेसर अच्युत सामंत के स्वयं का ब्लोग 1 “ शिक्षा-प्राप्ति की कोई सीमा नहीं “


मेरा जीवन एक खुली किताब के जैसा है। आपसभी जानते हैं कि मेरा लालन-पालन ओडिशा के कटक जिले के एक सुदूरवर्ती गांव कलराबंक के एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ जहां पर उनदिनों बिजलीबत्ती की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। जब रात को भोजन उपलब्ध होता था तो भोजन भी जल्दी करना पडता था क्योंकि उसके उपरांत लालटेन के नीचे बैठकर भाई-बहन एकसाथ पढते थे और जल्दी सो जाते थे जिससे कि भूख फिर दुबारा न लगे। जब मैं चौथी-पांचवीं कक्षा में पढता था,उनदिनों की एक रोचक घटना सुनाता हूं। मेरे घर के बगल में मेरे अपने दूर के एक रिश्तेदार अपनी विधवा मां के साथ रहते थे। मेरी मां कभी-कभी उनके घर जाती थी। उनके साथ बैठकर बातचीतकर अपना मन बहलाव करती थी। एक दिन वह मौसी मेरे घर पर आई और मुझे देखकर बोली कि मौसी का बेटा बहुत पढा-लिखा है। वह ओडिया में एम.ए. किया है।लेक्चरशिप की तैयारी कर रहा है। उसने ये सारी बातें बडे ही हैरत तथा आश्चर्य के साथ एक ही वाक्य में कह डाली – “ वह बहुत पढा है ।उच्चतर से भी अधिक उच्चतम तक शिक्षाप्राप्त किया है। “ क्या मेरे भी बच्चे ऐसा कर पाएंगे ?” हमलोग आजकल काफी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। मेरी मां हमलोग की ओर देखे बिना सहज रुप में मौसी से बातें करती रही और जवाब में बस इतना ही कही कि क्या सबसे अधिक शिक्षा ? सच तो यह है कि शिक्षाप्राप्ति की कोई सीमा नहीं है।मैं यहां पर स्पष्ट कर दूं कि हमलोग उस अच्छी बात को समय पर नहीं समझ पाते हैं जो मेरी मां ने कहा। मैं खुश हूं कि मैंने घोर आर्थिक संकटों के बीच पल-बढकर रसायन विज्ञान में एम.एससी करके पीएच.डी. किया है। मेरी सबसे छोटी बहन ने भी अलग-अलग तीन-तीन विषयों में एम.ए. करके पीएच.डी. किया है। मैंने अपने द्वारा 1992-93 में भुवनेश्वर में स्थापित कलिंग इंस्टीट्यूट आफ सोसलसाइंसेज,कीस के माध्यम से प्रत्येक गरीब आदिवासी बच्चे को निःशुल्क उच्चतम शिक्षाप्राप्ति का अवसर प्रदान किया है। कीस से आज लाखों बेसहारा ,अनाथ तथा गरीब आदिवासी बच्चे स्नातक,एम.ए.,एम.काम तथा पीएच.डी.करके स्वावलंबी बनकर समाज के विकास की मुख्य धारा के साथ जुड रहे हैं और मेरी तरह दूसरों को भी जोड रहे हैं। यह सबकुछ मेरी स्वर्गीया मां नीलिमारानी सामंत के दिव्य आशीर्वाद तथा शिक्षा के प्रति उसकी सोच का प्रतिफल है कि शिक्षा प्राप्ति की कोई सीमा नहीं।मेरी मां यह कभी नहीं सोची होगी कि एकदिन मैं उसका लायक बेटा लाखों गरीब आदिवासी बच्चों को निःशुल्क उच्च,उच्चतर तथा उच्चतम शिक्षा उपलब्ध कराने में समर्थ हो पाऊंगा। मैं खुश हूं कि मैं आज मैं अपनी मां की उम्मीदों पर खरा उतरकर शिक्षा उपलब्ध कराने का एक समर्थ माध्यम बनकर काम कर रहा हूं।
हिन्दी रुपांतरणः अशोक पाण्डेय

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