अनुचिंतक: अशोक पाण्डेय
“कई बार आई- गई है यह दीवाली, मगर तम जहां था, वहीं पर खड़ा हैं।”यह कथन आज के संदर्भ में भी शतप्रतिशत सही है। प्रतिवर्ष दीयों को अपने -अपने घरों में छोटे -छोटे दीयों को जलाकर और गणेश जी और लक्ष्मी जी की पूजा कर हमसब दीवाली मनाते हैं। जाता है कहते है कि त्रेतायुग में जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम दुराचारी लंकापति रावण का वध कर जब अयोध्या लौटे थे उनके आगमन की खुशी में समस्त अयोध्यावासियों ने अपने-अपने घरों में घी के दिए जलाकर पहली बार दीवाली मनाई थी।वह खुशी जन-मन की खुशी थी।राजा के कर्तव्य बोध की खुशी थी। सभी जानते हैं कि दीवाली अंधकार पर प्रकाश की विजय का पावन संदेश है। अज्ञानता पर ज्ञान की विजय का द्योतक है। दुराचार पर सदाचार की जीत का पैगाम है।हमारे और हमारे समाज के नकारात्मक विचारों पर सकारात्मक विचारों के प्रभाव का संदेश है। दीवाली मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है लेकिन जिस अंधकार को दूर करने के लिए यह प्रकाश और जगमगाते दीपों का त्यौहार मनाते हैं उसका उद्देश्य कभी भी पूरा नहीं हो सका। इस त्यौहार के मनाने का आज के संदर्भ में एक ही उद्देश्य होना चाहिए कि हम अपने घर में खुशियां मनाएं! सुख -शांति और समृद्धि लाएं !आनंद के साथ व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन जिएं और यथासंभव अपनी ओर से सभी को खुशहाल बनाएं! वास्तव में अंधकार हमारे मन में है। अज्ञानता हमारे मन में है। गलत विचार हमारे मन में हैं। इसलिए इस वर्ष दीवाली के शुभ अवसर पर अपने गलत विचारों को मन से निकालना होगा। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम दुराचारी रावण का वधकर न केवल उसका अंत कर दिए अपितु यह भी संदेश दे दिए कि हम दीवाली के दिन देवों के देव गणेश की पूजा अवश्य करें! धन की देवी माता लक्ष्मी की पूजा अवश्य करें! लेकिन अपने आत्मविश्वास को सजोकर मन, वचन और कर्म के साथ दीवाली पूजन करें! लेकिन अपने मन के अंदर में छिपे हुए अहंकार रूपी रावण का भी वध अवश्य करें! कलियुग के एकमात्र पूर्ण दारुब्रह्मा भगवान जगन्नाथ भी दीवाली के पवित्र अवसर पर यही संदेश देते हैं। अपने भक्तों की भक्ति स्वीकार करते हैं जो अपने सभी प्रकार के अहंकारों का त्याग करते हैं। अपने जीवन के 22 दोषों का जो त्याग करते हैं। उनको जो भक्त महादीप दानकर सच्चे मन से उनकी आराधना करता है। आज तो पूरे विश्व में दीवाली मनाई जाती है ।भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का अभी-अभी दीवाली का संदेश आया है कि हमसब दीवाली मनाएं लेकिन स्वदेशी दीवाली मनाएं। उसमें उपयोग की जानेवाली समस्त सामग्रियां भारतीय हों! कोई भी सामग्री विदेशी न हो। आज के परिप्रेक्ष्य में दीवाली मनाने का औचित्य आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को हरप्रकार से साकार करना है जिसकी शुरुआत इस वर्ष की दीवाली से होनी चाहिए। दीवाली में पर्यावरण की सुरक्षा भी बहुत जरूरी है ।ध्वनि प्रदूषण से लोगों को बजाएं ।दीकभी ऐसा न करें कि अपनी व्यक्तिगत खुशी के लिए सामाजिक के दिन किसी के हित का नुकसान न करें! आज के परिपेक्ष्य में दीवाली मनाने के संकल्प को सभी अपनाएं! इस वर्ष के दीवाली के पावन पर्व पर हमारा यही वास्तविक संकल्प होना चाहिए कि हमसब मिलकर भारत की धरा को उठाएं और गगन को झुकाएं!आज दीवाली के दिन आर्थिक समानता की जरूरत है। सृष्टि के आरंभ से ही लक्ष्मी और लक्ष्मी के बीच संघर्ष चलता आया है। अंधकार और प्रकाश की लड़ाई चलती रही है।हमारी यह कोशिश होनी चाहिए जिस प्रकार एक छोटा -सा दीया अपनी छोटी -सी रोशनी से यथाशक्ति हमें प्रकाश देता है ठीक उसी प्रकार हम भी अपनी आर्थिक स्थिति की सीमाओं में रहकर दूसरों की सहायता करें दूसरों को सहयोग दें। गणेश जी मोदक ही प्रिय है और मोदक हमारे कृषि प्रधान भारतवर्ष कि अपनी पहचान है क्योंकि यह अन्न से तैयार होता है। जब किसान के खेतों की फसल तैयार होकर उसके घर आती हैं तो वह दीवाली मनाता है ।
-अशोक पाण्डेय
आलोक पर्व: दीवाली मनाने का औचित्य:आज के संदर्भ में
