व्याख्या: अशोक पाण्डेय
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हमारे वेद, पुराण, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, गीता एवं समस्त सद्ग्रंथ आदि में एक व्यक्ति के लिए अच्छे आचरण करने, उसके शाकाहारी भोजन करने (जैसा अन्न वैसा मन),उसको मधुर वाणी बोलने और उसको सादगीपूर्ण जीवन जीने का संदेश देते हैं। स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है कि अगर किसी व्यक्ति के चरित्र की जांच करना चाहते हैं तो उसके बड़े कार्यों से न करें अपितु उसके साधारण से साधारण कार्य से करें!
कैसी विडम्बना है कि लोग धन,जन,जमीन, यौवन,पद और झूठी शान -शौकत को अपनी अलग मानवीय पहचान बना लेते हैं। जिसके फलस्वरूप वे अपने आपको दंभी, घमंडी, दुराचारी, क्रोधी, व्यभिचारी और सबसे अधिक ताकतवर मान लेते हैं।
मैं जब छोटा बालक था तब हमारे विद्यालय की नित्य प्रार्थना यह थी –
“हे प्रभो! आनंददाता, ज्ञान हमको दीजिए। लीजिए हमको शरण में ,हम सदाचारी बनें!”
-अशोक पाण्डेय
