एक समय की बात है। दो मित्र थे। एक मित्र अपने घर पर अच्छी संगति करता था। दूसरा मित्र अपने घर पर गलत संगति। जो अच्छी संगति करता उसका प्रभाव ऐसा रहा कि उसके घर पर प्रतिदिन सदाचारी और ईश्वर भक्तों की भीड़ लगी रहती थी। उस मित्र का दैनिक जीवन सज्जनों की सेवा में व्यतीत होने लगा। वहीं गलत संगति की भीड़ इकट्ठा करने वाले मित्र के घर पुलिस आती और चोरों, शराबियों और जुआ खेलने वालों को सभी के सामने पीट-पीटकर ले जाती। एक दिन बड़ी मुश्किल से दोनों मित्र मिले। अच्छी संगति वाले मित्र का पैर पकड़कर बुरी संगति वाले मित्र ने क्षमा मांग ली और तभी से वह अच्छा बन गया और वह स्वयं अपने अच्छी संगति वाले मित्र के साथ रहने लगा।
-अशोक पाण्डेय
