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ओड़िशा का विश्व विख्यात सूर्यमंदिर,कोणार्क

अशोक पाण्डेय.

एक तरफ ओड़िशा जहां भारत के अन्यतम धाम श्रीजगन्नाथ पुरी धाम के लिए विश्व विख्यात है वहीं यह विश्व विख्यात है सूर्यमंदिर,कोणार्क के लिए भी।2023 में नई दिल्ली के भारत मण्डपम में जब जी-20 शिखर सम्मेलन का आयोजन हुआ था तब वहां पर आकर्षण का मुख्य केन्द्र ओड़िशा के विश्व विख्यात सूर्यमंदिर,कोणार्क के कालचक्र के पहिये की बनावट थी जहां पर जी-20 के अध्यक्ष के रुप में भारत के माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खड़े होकर जी-20 शिखर सम्मेलन में पधारे सभी शासनाध्यक्षों का भारतीय परम्परानुसार स्वागत किए थे। कहते हैं कि प्रकृति के एकमात्र प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्यदेव ही हैं जो अपने 24 पहियोंवाले रथ पर कोणार्क में आरुढ़ दिखाए गए हैं। ये 24 पहिये प्रत्यक्ष रुप में कालचक्र के प्रतीक हैं। यह विश्व प्रसिद्ध कोणार्क सूर्यमंदिर बंगोपसागर(बंगाल की खाड़ी) के तट पर चन्द्रभागा नदी के समीप आज भी भग्नावशेष के रुप में अवस्थित है। इस मंदिर की अनुपम छटा सूर्योदय और सूर्यास्त के समय अनुदेखते ही बनती है। ऐसा लगता है जैसे सूर्य की समस्त किरणें सबसे पहले धरती पर यहीं पर उतरत आई हों। यह कोणार्क सूर्यमंदिर ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से लगभग 53 किलोमीटर की दूरी पर तथा श्री जगन्नाथपुरी धाम से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पूर्व दिशा में अवस्थित है।इसका निर्माण 13वीं शताब्दी में गंगवंश के प्रतापी राजा नरसिंह देव ने किया था जिसे 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रुप में मान्यता प्रदान की गई। इस अनूठे कोणार्क सूर्यमंदिर के निर्माण में कुल लगभग 2वर्ष लगे। इसके निर्माण में कुल लगभग 1200 शिल्पकारों तथा कारीगरों ने योगदान जिया।यह मंदिर ओडिशा की प्राचीनतम स्थापत्य और मूर्तिकल का बोजोड उदारण है।यह सूर्यमंदिर सभी प्रकार से पूरे विश्व में कालचक्र के प्रतीक के रुप में विख्यात है।मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त लाल पत्थर भी अपनी मोहकता से जैसे मानव की भाषा से कहीं अधिक मुखर नजर आते हैं।ऐसा लगता है कि जैसे भगवान सूर्यदेव की समस्त किरणें भगवान सूर्यदेव तथा उनकी पत्नी देवी छाया देवी के प्रथम दर्शन यहीं पर कर रहीं हों।यह सूर्य मंदिर कुल 24 पहियों पर टिका हुआ है जिसके एक तरफ 12 पहिये तथा दूसरी तरफ 12 पहिये हैं। खण्डहर बने आज के सूर्यमंदिर के चार पहिये आज भी धूपघडी के रुप में इस्तेमाल किये जाते हैं।सूर्यमंदिर के मुख्य द्वार को गजसिंह द्वार कहा जाता है।यहां पर पत्थर के दो विशाल सिंह की मूर्तियां हैं जिसमें अपने पैरों से हाथी को कुचलते दिखाया गया है। मंदिर में प्रवेश करते ही सबसे पहले नाट्य मंदिर आता है।मंदिर की सीढियां चौडी-चौडी हैं जो आनेवाले पर्यटकों को सूर्यमंदिर के जगमोहन मंदिर तक ले जाती हैं।सीढियों के दोनों तरफ विशालकाय घोडे बने हैं जो देखने में ऐसे जीवंत लगते हैं जैसे वे तत्काल युद्ध के लिए दौड जाएंगे।मंदिर में तीन अति सुंदर मूर्तियां हैं जिनके स्थान को काफी सोच-समझकर रखा गया है।तीन मूर्तियों में एक है उगते सूरज की मूर्ति ,दूसरी दोपहर के सूरज की मूर्ति तथा तीसरी ढलते हुए सूरज की मूर्ति।मंदिर के प्रवेशद्वार के बगल में नवग्रहदेव की मूर्तियां हैं जिनके पूजन का व्यक्तिगत सुख-शांति के लिए विशेष महत्त्व बताया गया है। सूर्यमंदिर के दक्षिणी भाग में निर्मित दो विशालकाय घोडे ताकत और ऊर्जा के प्रतीक हैं। ये मूर्ति ओडिशा सरकार के राजकीय चिह्न हैं। मंदिर के निचले भाग में तथा मंदिर की दीवारों पर बनी कलाकृतियां अद्भुत हैं।कोणार्क में प्रतिवर्ष कोणार्क महोत्सव संगीत-नृत्य कला प्रेमियों के लिए अत्यंत आनंददायक होता है। मंदिर प्रांगण में कुल 22 अन्य मंदिर भी हैं। मंदिर की नक्काशियां मनमोहक हैं।सूर्यदेव की पत्नी छाया देवी के मंदिर में सबसे पहले एक सुंदर औरत की मूर्ति है जो अपने पति के आगमन की प्रतीक्षारत नजर आती है।और उसे ही देखने के लिए कोणार्क आनेवाले लोगों में अधिकतर नव दंपत्ति ही होते हैं जो वहां पर जीवन में प्रतीक्षा के महत्त्व को प्रत्यक्ष रुप में समझने का अहसास करते हैं।तस्वीरें खीचाते हैं।प्रकृति के खुले वातावरण में निर्मित इस सूर्यमंदिर की दीवारों की छटा मोहक तथा दर्शनीय हैं जिन पर कामुक कलाकृतियों को भी बडी बारीकी से उकेरा गया है।यहां पर एक मगरमच्छ की भी मूर्ति है जो अपने मुंह में मछली दबाये हुए है। 1779 में कोणार्क के अरुण स्तंभ को लाकर पुरी के जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार के सामने स्थापित कर दिया है जो प्रतिदिन भगवान सूर्यदेव की प्रथम किरणों के साथ श्रीजगन्नाथ मंदिर के रत्नवेदी पर विराजमान महाप्रभु जगन्नाथ के प्रथम दर्शन करता है। एक समय था जब कोणार्क सूर्यमंदिर के रथ के चौबीस पहिये थे जिसे कुल छः घोड़े खींच रहे होते दिखाया गया था लेकिन आज मात्र एक ही घोडा वहां पर दिखता है।कोणार्क सूर्यमंदिर को विरंचि-नारायण मंदिर भी कहा जाता है।पद्मपुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का पुत्र साम्ब जब शापग्रस्त होकर कोढ रोग से ग्रसित हो गया तब वह यही आकर बंगोपसागर के चन्द्रभागा सागर-संगम नदी तट पर पवित्र स्नानकर लगातार 12 वर्षों तक भगवान सूर्यदेव की घोर तपस्या की जिससे सूर्यदेव प्रसन्न होकर उसे कोढमुक्त का वरदान दिये। ऐसी जानकारी मिलती है कि तभी से इस मंदिर में सर्योपासना आरंभ हुई।निर्विवाद रुप में सत्य यह है कि पिछले लगभग 700 वर्षों से देश-विदेश के हजारों कुष्ठरोगियों का इलाज ओड़िशा का विश्व विख्यात सूर्यमंदिर भगवान सूर्यदेव की भोर की प्रथम किरणों तथा सायंकाल की अस्ताचलगामी होती किरणों के माध्यम से होता है।कोणार्क सूर्यमंदिर की सबसे अनोखी विशेषता यह भी है कि इसमें भगवान सूर्यदेव की तीन मूर्तियां हैं जो जीवन के शाश्वत सत्य बाल्यावस्था,युवावस्था और प्रौढावस्था की सच्चाई को स्पष्ट करतीं हैं।
-अशोक पाण्डेय

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