ओडिशा प्रदेश जिसे महाप्रभु जगन्नाथ का देश कहा जाता है उस अतिथिदेवोभव प्रदेश ओडिशा में बोलचाल की भाषा के रुप में तथा जनसम्पर्क की सबसे सशक्त बोलचाल की भाषा के रुप में हिन्दी को माना गया है क्योंकि जितने भी जगन्नाथ भक्त अनादिकाल से पुरी धाम आते हैं उनमें हिन्दीभाषी भक्तों की संख्या सबसे अधिक है। वहीं लगभग 1930 के दशक से जितने भी कारोबारी विभिन्न प्रदेशों से ओडिशा आये उनमें हिन्दीभाषी कारोबारियों की संख्या सबसे अधिक है जो आज भी ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर,व्यापारी केन्द्र कटक, जटनी, संबलपुर, बालेश्वर, भद्रक, राउरकेला, पारादीप, पुरी, राजगंगपुर तथा टाल्चर आदि शहरों में स्थाई रुप से रहकर अपना कारोबार करते हैं। उनकी बोलचाल की भाषा हिन्दी है। सबसे अच्छा तो यह देखकर लगता है कि हिन्दीभाषी प्रदेशों जैसेः बिहार, उत्तरप्रदेश, झारखण्ड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, राजस्थान और हरियाणा आदि से ओडिशा आनेवाले सभी कारोबारी और उद्योगपति आदि ओडिया भाषा फर्राटे के साथ बोलते हैं और बच्चों को ओडिया मीडियम स्कूलों में भी पढाते हैं। आज ओडिशा में रह रहे हिन्दीभाषी लोगों के बच्चों का शादी-विवाह भी ओडिया परिवारों में होने लगा है। जब से सोसल मीडिया का प्रचलन ओडिशा में बढा है तब से ओडिया-हिन्दी भाषा साथ-साथ बोलचाल के रुप में चल रही है। भारत की आजादी के पूर्व भी ओडिशा से स्वतंत्रता सेनानियों की संख्या में अभिवृद्धि के लिए मध्यप्रदेश से विन्देश्वर पाठक नामक हिन्दी प्रचारक को कटक बुलाया गया। उन्हें अपने हिन्दी प्रशिक्षण केन्द्र खोलने के लिए कटक में जमीन दी गई तथा वह महान हिन्दीसेवी कटक में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति का गठन कर ओडिशा के अनेक स्वतंत्रता सेनानियों को हिन्दी सिखाया जो महात्मागांधी के नेतृत्व में ओडिशा में आरंभ स्वतंत्रता आंदोलन जैसेः सत्याग्रह आंदोलन,हरिजन आंदोलन,चरखा आंदोलन,असहयोग आंदोलन,नमक सत्याग्रह(डंडी मार्च),सविनय अवज्ञा आंदोलन तथा भारत छोडो आंदोलन में ओडिशा का प्रतिनिधित्व किये और गांधीजी के सच्चे अनुयायी बनने में उन्हें बोलचाल की हिन्दी ने ही उनकी भरपूर मदद की।गांधीजी कुल मिलाकर लगभग 8 बार ओडिशा आये और उनसे प्रभावित होकर उन दिनों संबलपुर नगरपालिका के वार्ड नं.1 भात्रा गांव जो आज भी हरिजनों का एकमात्र गांव है वहां पर अभिमन्यू कुमार नामक एक हरिजन युवक ने गांधीजी से प्रभावित होकर सत्तर के दशक में गांधीजी को भगवान मानकर ओडिशा का इकलौता गांधी मंदिर अपने गांव भात्रा में बनवा दिया जो आज भी भारत का इकलौता गांधी मंदिर है।अनेक हिन्दीभाषी आज भी उस मंदिर पर शोध करने के लिए भात्रा आते हैं।ओडिशा का राउरकेला इस्पात कारखाना,पारादीप पोर्ट,टाल्टचर,बालेश्वर और भद्रक आदि शहरों में अनेक प्लांटों के खुल जाने से ओडिशा में हिन्दी बोलचाल की सबसे सरल भाषा के रुप में विकसित हुई।1934 में कोलकाता से एक मारवाडी उद्योगपति देवकरण झुनझुनवाला आकर कटक से सटे बारंग में ओडिशा के पहले अपने कांच का कारखाना लगाया जहां पर हिन्दीभाषियों को भी नियुक्त किया जिनके साथ में रहकर ओडिशा के कर्मचारी भी हिन्दी बोलना सीखे।आज तो सच्चाई यह है कि राजस्थान और हरियाणा से ओडिशा आनेवाले सभी कारोबारी ओडिशा में गल्ले,कपडे,परिवहन,दवाई और आज तो रियलइस्टेटवाले भी ओडिशा में हिन्दी को बढावा दे रहे हैं।ओडिशा के लौहपुरुष के नाम से अमर ओडिशा के स्वर्गीय मुख्यमंत्री बीजू बाबू कहा करते थे कि ये राजस्थानी तथा हरियाणा के लोग आरंभ में ओडिशा के गांव-गांव में जाकर अपना कारोबार आरंभ किये तथा बोलचाल में हिन्दी का भी प्रचार-प्रसार किये। आज भी ओडिशा में कहा जाता है कि जहां न जाय गाडी,वहां जाय मारवाडी। स्वर्गींय बीजू बाबू ने भी ओडिशा में अपनी अमर कीर्तियों के माध्यम से बोलचाल के रुप में हिन्दी को विकसित किया।प्रतिवर्ष ओडिशा के पुरी में आयोजित होनेवाली भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा महोत्सव, कटक बाली यात्रा,कोणार्क नृत्यमहोत्सव,पुरी बेलाभूमि महोत्सव,धवली महोत्सव तथा भुवनेश्वर का केदारगौरी महोत्सव आदि के आयोजनों से भी हिन्दी को ओडिशा में बोलचाल की सबसे सरल भाषा के रुप में बढावा मिल रहा है।यही नहीं, राजधानी भुवनेश्वर में समय-समय पर आयोजित होनेवाले ट्रेड फेयरों के माध्यम से भी ओडिशा में हिन्दी का प्रयोग बढा है। दूसरी तरफ, आज ओडिशा के सभी केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों,विभागों,अनुभागों तथा सभी केन्द्रीय उपक्रमों में सितंबर महीने को हिन्दी महीना मानकर हिन्दी दिवस,हिन्दी सप्ताह तथा हिन्दी पखवाडा के रुप में मनाया जाता है। गौरतलब है कि 1918 में महात्मागांधी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में पहली बार हिन्दी को राजभाषा बनाने की बात कही थी क्योंकि उनके अनुसार हिन्दी भारतीय जनमानस की भाषा है।इसीलिए जब भारत का लिखित संविधान तैयार हुआ तथा उसे 26 नवंबर,1949 को स्वीकार किया गया तो संविधान के भाग 17 के अनुच्छेद 343(1) में भारतीय संघ की राजभाषा के रुप में हिन्दी को स्वीकार कर लिया गया जिसकी लिपि देवनागरी है जबकि अंकों को अंग्रेजी रुप में ही मान्यता प्रदान की गई।14 सितंबर,1949 को संविधानसभा ने यह भी निर्णय लिया कि हिन्दी एक तरफ जहां भारतीय संघ की राजभाषा होगी वहीं केन्द्र सरकार की आधिकारिक भाषा हिन्दी ही होगी।हिन्दी को प्रत्येक क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए इसे 14 सितंबर,1953 को पूरे भारत में हिन्दी दिवस के रुप में सबसे पहले मनाया गया। हिन्दी साहित्यकारों में काका कालेलकर, हजारीप्रसाद द्विवेदी तथा सेठ गोविंद दास आदि ने इसका पूर्ण समर्थन किया। हिन्दी भाषा प्रेम की भाषा है।इसे भारत के लगभग 77 प्रतिशत लोग समझते और बोलते हैं।यह भारत की गौरव और गरिमा की पहचान है।इस भाषा में जैसा बोला जाता है वैसा ही लिखा जाता है।यह भारत के अनेक प्रदेशों की मातृभाषा तथा राजभाषा है।भारत के लगभग 77 फीसदी लोग हिंदी बोलते और समझते हैं। पूरे विश्व में बोली जानेवाली तीन प्रमुख भाषाओं में अंग्रेजी भाषा तथा चीनी भाषा के बाद हिंदी तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। हिन्दी की शब्दसम्पदा सबसे अधिक समृद्ध है। हिन्दी में चार प्रकार के शब्द हैं-तत्सम,तत्भव,देशज तथा विदेशी शब्द।यह भी सत्य है कि जब तक हिन्दी का प्रयोग पूर्ण रूप से नहीं किया जाएगा तबतक हिन्दी भाषा का पूर्ण विकास असंभव है। भारत सरकार के सभी मंत्रालयों, विभागों, अनुभागों, राष्ट्रीयकृत बैंकों,केन्द्रीय विद्यालयों,नवोदय विद्यालयों तथा सैनिक स्कूलों आदि में जबतक हिन्दी को वैकल्पिक विषय की जगह अनिवार्य विषय नहीं बनाया जाएगा तबतक हिन्दी का पूर्ण विकास संभव नहीं होगा। साथ ही साथ दूरदर्शन तथा आकाशवाणी के प्रसारित होनेवाले कार्यक्रमों में हिन्दी को बढावा जबतक नहीं दिया जाएगा तबतक हिन्दी की स्थिति भारत में नहीं सुधरेगी।रही बात ओडिशा में सरकारी कामकाज के रुप में हिन्दी के प्रयोग को बढावा देने की तो यह जानकर खुशी होती है कि ओडिशा में अनेक केन्द्रीय विद्यालय हैं,नवोदय विद्यालय हैं,भुवनेश्वर में सैनिक स्कूल है,केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षाबोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय है,एनसीइआरटी का क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान है,केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय का क्षेत्रीय कार्यालय है तथा अनेक केन्द्र सरकार के उपक्रम तथा राष्ट्रीयकृत बैंक आदि हैं जहां पर प्रतिवर्ष सितंबर महीने में हिन्दी दिवस,हिन्दी सप्ताह तथा हिन्दी पखवाडा औपचारिक रुप से मनाया जाता है।लेकिन आजादी के अमृतमहोत्सव वर्ष 2023 में हिन्दी से अपने अपनत्व की भावना को बढाना होगा। हिन्दी को भारत की राष्ट्रीय भाषा के रुप में अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता दिलाना होगा। हिन्दी की लोकप्रियता को ओडिशा जैसे सभी अहिन्दीभाषी प्रदेशों में सभी राजभाषाओं के साथ-साथ बढावा देना होगा और तभी गांधीजी का सपना- हिन्दी भारतीय जनमानस की भाषा बने- साकार होगा।
-अशोक पाण्डेय
