-अशोक पाण्डेय
——————-
आज सनातनी हिन्दू मास के पवित्रतम कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा है। श्रीपुरा धाम में जहां पर भगवान जगन्नाथ जी का त्रयोदशी के दिन त्रिविक्रम वेश हुआ है वहीं कटक बाली यात्रा का शुभारंभ हुआ है। ओड़िशा की सभी नदियों और तालाबों में सुंदर सुंदर- नौकाओं को प्रवाहित किया गया है वहीं समस्त गुरुद्वारों में विशेष पूजन के साथ लंगर की व्यवस्था की गई है। गौरतलब है कि खिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल,1469 को तलवंडी गांव की एक छोटी -सी कुटिया में हुआ था।2024 में गुरु नानक देव जी की 555वीं जयंती नगर संकीर्तन के साथ मनाई गई। जब गुरु नानक देव जी की शिक्षा समाप्त हुई तो उनके पिता जी उनको गाय चराने की जिम्मेदारी सौंपी दी। लेकिन गुरु नानक देव जी गाय चराने के समय किसी पेड़ के नीचे बैठकर गूढ़ चिंतन में लग जाते थे। एक बार उनके पिता जी ने उनको बीस रुपए दिए और कहा कि वे उन रुपयों से कुछ लाभ का काम करें। गुरु नानक देव जी ने उन रुपयों से साधुओं को भोजन करा दिया। गुरु नानक देव जी ने सम्पूर्ण भारत की यात्रा की। वे मक्का, मदीना जहां भी गये वे सत्यनिष्ठा का पावन संदेश दिए।उनके जीवन के 44वें साल में उनको ‘सत्गुरु’ के रूप में मान्यता मिली और उनके अनुयायी सिख कहलाए। गुरु नानक देव जी को हिन्दू और मुसलमान दोनों मानते हैं। वे जब 1539 में परलोक सिधारे तो हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उनके पार्थिव शरीर पर अपना -अपना अधिकार जताया।जब चादर हटाई गई तो पार्थिव शरीर की जगह पर फूल थे। सच कहा जाय तो गुरु नानक देव जी पवित्रता की मूर्ति थे जिन्होंने पवित्रता का पावन संदेश दिया है। वे नम्रता की मूर्ति थे और उन्होंने ने नम्रता का संदेश दिया है। वे प्रेम की मूर्ति थे और उन्होंने ने प्रेम का संदेश दिया है। एक वाक्य में अगर कहा जाय तो गुरु नानक देव जी न्याय और शांति के दिव्य संदेश वाहक थे जिन्होंने पूरी दुनिया को शांति और न्याय का संदेश दिए हैं।
-अशोक पाण्डेय
