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कार्तिक मास में रामलीला मंचन …

-अशोक पाण्डेय
कार्तिक मास के आगमन के साथ ही उत्तर भारत के गांव-गांव में रामलीला मंचन आरंभ हो जाता है। पश्चिम बंगाल में यह परम्परा तो प्रतिवर्ष दशहरा से ही आरंभ हो जाती है।इसका एकमात्र आधार है फसल की कटाई के उपरात खेतों में काम करनेवाले श्रमिक कुछ दिनों के लिए आराम के साथ घर-घर अपने रामलीला अभियन से मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन की गाथा को रामलीला अभिनय के साथ व्यक्त करते हैं जिसका अनुकरण भारत के बाल-बच्चे,युवा आदि देखकर अपनाते हैं।अगर रामलीला मंचन की व्यावहारिकता की बात करें तो रामलीला के पात्र मुख्यतः खेती करनेवाले श्रमिक ही होते हैं जो फसल की कटाई के बाद कार्तिक मास में खाली बैठ जाते हैं उनमें से ही कुछ श्रमिक अपने आपको रामलीला मंचन से जोड लेते हैं। वे अपने खाली समय का सदुपयोग गांव-गांव में जाकर रामलीला करके आनंदमय तरीके से व्यतीत करते हैं। बिहार के दरभंगा आदि क्षेत्रों में यह प्रतलन एकसमय में बहुत अधिक था । वे कार्तिक मास में बिहार के भोजपुर, सासाराम, आरा, रोहतास,मोतीहारी,गोपालगंज आदि जिलों के गांव-गांव में जाकर रामलीला करते हैं। सबसे रोचक बात इस क्रम में यह देखने को मिलती है कि जिस किसी भी गांव में रामलीला मंचन होता है उस गांव के लोग जब रामलीला देखने के लिए इक्ट्ठे होते हैं तब रामलीला पार्टी का हेड व्यक्ति रामलीला मंच पर खड़े होकर आग्रह करता है कि रामलीला के कलाकारों को प्रतिदिन खर्च वहन के लिए कोई न कोई दाता आगे आए।उस वक्त दर्शकों में से कुछ धनी रामलीला प्रेमी व्यक्ति आगे आते हैं जो रामलीला पार्टी को अपनी-अपनी ओर से प्रतिदिन के भोजन आदि की व्यवस्था के लिए अपनी सहमति प्रदान कराते हैं।तब रामलीला पार्टी का प्रमुख मंच से उस दाता की जयकारा लगाता है।गगनभेदी वाद्ययंत्र बजते हैं।मंच से दाता के बाल-बच्चों की जयकारा लगता है।तालियां बजती हैं और उसके उपरांत ही रामलीला मंचन आरंभ होता है।
रामलीला-मंचन की परम्परा भारत के विभिन्न राज्यों के साथ-साथ दक्षिण-पूर्व एशिया, कंबोडिया, थाईलैण्ड, श्रीलंका, इण्डोनेशिया,म्यांमार और लावोस आदि देशों में आज भी देखने को मिलती है जहां पर रामलीला का मंचन नृत्य-नाटिका अभिनय रुप में होता है।रामलीला देखनेवालों की पहली पसंद श्रीराम और दूसरी पसंद हनुमान होते हैं। रामलीला का अभिनय सबसे अधिक भावग्राही होता है,संवेदनशील होता है तथा देखनेवालों को अत्यधिक पसंद होता है।रामलीला अभिनय में जिस शाम धनुष यज्ञ,सीता-स्वयंवर,सीता-राम विवाह, रामवनगमन, रामकेवट-संवाद आदि का प्रसंग रहता है उन दिनों दर्शक भी अधिक आते हैं। वहीं जिस शाम रावण द्वारा सीता-हरण तथा राम-रावण युद्ध प्रसंग का मंचन होता है उस शाम सबसे अधिक लोग रामलीला देखने आते हैं।रामलीला के अभिनय की सबसे खास बात यह होती है कि एक परिवार के सभी सदस्य जैसे परिवार के बडे-बूढे,पति-पत्नी,युवा-युवती आदि सभी रामलीला एकसाथ बैठकर कड़ाके की ठंड के बावजूद भी बडे आनंद के साथ कंबल-चादर ओढ़कर देखते हैं।रामलीला अभिनय में पात्रों के चमचमाते और आकर्षक वस्त्र, उनके आभूषण और मुकुट की मनोहारी छटा भी देखते ही बनती है।ऐसे में, रामलीला अभिनय करनेवाले सभी पात्रों के वस्त्रों के रंग, उनके मुकुटों के आकार—प्रकार आदि दर्शकों के लिए पहले ही सुनिश्चित हो जाता है कि मंच पर कौन पात्र आ रहा है।दर्शक उन्हें उनके नाम के स्वतः पहचान जाते हैं।रामलीला में संगीत की लय और ताल पर थिरकते सुवर्ण मृग, उछल—कूद करते वानर आदि का अभिनय आदि भी अनायास ही दर्शकों के दिल जीत लेते हैं।
इण्डोनेशिया में तो रामलीला मंचन में सीता की अग्रि—परीक्षा प्रसंग को सबसे अधिक लोग देखते हैं क्योंकि वहां पर इस प्रसंग के अभिनय के दौरान कुल लगभग 200 से 250 पात्र एकसाथ मंचन करते हैं।सीता-अग्नि-परीक्षा प्रसंग के मंचन के समय पात्रों की मुखमूद्रा उदास,अत्यंत दुखी नजर आती है वहीं सीता के अभिनय करनेवाले पात्र के चेहरे पर दिव्य तेज झलकता है।सीता जब अग्नि में प्रवेश करती है तो साक्षात अग्निदेव प्रकट हो जाते हैं और बोलते हैं कि आज सीता के अग्नि में प्रवेश करने से ही अग्नि पवित्र हो गई। इसीप्रकार रामलीला में जब कैकेयी राजा दशरथ से तीन वर मांगती है तो राजा दशरथ जो पहले से ही बीमार थे और अधिक दुखी नजर आते हैं। इसीप्रकार सीता की खोज के प्रसंग में हनुमान, जाम्बवंत और अंगद जटायु के भाई से मिलने जाते है और पक्षियों की पीठ पर बैठकर वायुमार्ग से लंका जाकर शत्रु के राज्य को अच्छी प्रकार देखते हैं। वहां से लौटकर जटायु की गुफा में आ जाते हैं।–ये भी अभिनय लोगों को अच्छा लगता है। लावोस की रामलीला के मंचन में तो लक्ष्मण की प्रधानता देखने को मिलती है।वहीं लव-कुश प्रसंग को भी अधिक वाहवाही मिलती है।
उत्तरप्रदेश के अयोध्या में लगभग 500 वर्षों के उपरांत भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा राममय भारतवर्ष की 2024 की दीपावली मनाये जाने के साथ ही भगवान श्रीराम को भारतीय जीवन का यथार्थ आदर्श मानकर रामलीला अभिनय द्वारा रामायण और रामचरितमानस की कथाओं को नया जीवन मिल गया है।इसप्रकार आये दिनों रामलीला मंचन परम्परा में स्थायित्व आ गया है जो कुछ भी बचाकुछा रह गया है उसे श्रीमद् रामायण टेली धारावाहिक पूरा कर रहा है।आवश्यकता इस बात की है कि रामलीला मंचन की सुदीर्घ परम्परा को जीवित रखने के लिए हमारी केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारें मिलकर सामूहिक प्रयास करें जिससे भारतीय राजनीति की दशा और दिशा रामलीला मंचन से राममय हो सके।साथ ही साथ रामलीला मंचन के कलाकारों को भी अधिक से अधिक प्रोत्साहित किया जाय।रामलीला पार्टी को मान्यता प्रदान किया जाय।
अशोक पाण्डेय

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