आज के गलत अनुकरण के युग में हमें हमेशा अच्छी मानसिकता और प्रसन्नता के साथ कोई भी काम करना चाहिए। मेरा यह मानना है कि कोई भी काम छोटा -बड़ा नहीं होता है अपितु हमारी मानसिक छोटी-बड़ी होती है। आज प्रसन्नता की कमी है। अगर अनुकरण करना ही है तो स्वामी विवेकानंद जी का करें! एक किसान था। वह खेती करके अपना गुजारा करता था। गांव में शिवजी एक मंदिर था। वहां एक फूल बेचने वाला रहता था। वह सभी को फूल हंसते -हंसते देता था। शिवजी की कृपा से जो भी आमदनी होती,उसी में वह प्रसन्न रहता था। किसान उस फूलवाले के पास कुछ देर खड़ा रहता, शिवजी की पूजा करता और वापस अपने खेती-बाड़ी के काम में लग जाता था। धीरे -धीरे किसान की आर्थिक स्थिति खराब होती चली गई। एक दिन वह शिवजी के सामने नतमस्तक होकर अपने दुख के निवारण के लिए शिवजी से प्रार्थना कर ही रहा था कि वह फूलवाला उसके सामने आकर खड़ा हो गया और कहा कि शिवजी चाहते हैं कि उनके किसान भक्त भी मुझ फूल बेचने वाले की तरह अपना छोटा खेती का काम करे और प्रसन्नता के साथ रहे। किसान अपने काम पर लौट आया और एक दिन वह एक बड़ा जमींदार बन गया।
-अशोक पाण्डेय
