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“गंगा का आध्यात्मिक एवं लौकिक महत्त्व “

विश्लेषक: अशोक पाण्डेय
6 अक्टूबर,24
भगवान शिवजी की जटाओं से निकलकर धरती पर कलकल निदान करती हुई तथा अपने पवित्रतम जल से धरती को अनादि काल से सिंचती हुई गंगा मां की कृपा अपरंपार है। गंगा के आध्यात्मिक महत्त्व को सभी प्रकार के यज्ञों में व्यवहरित होने वाले पवित्रतम जल से लेकर सभी तीर्थों,सभी कुंभ मेलों आदि में गंगा के पवित्रतम जल के महत्त्व को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। उत्तरप्रदेश के बनारस शहर जिसे काशी और वाराणसी भी कहा जाता है उस शहर के विषय में यह भी कहा गया है कि वह शहर भगवान शिव जी के त्रिशूल पर अवस्थित है जिसके चारों तरफ गंगा का अस्तित्व स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। हमारे घर-परिवार के बुजुर्ग जब जीवन की अंतिम अवस्था में आ जाते हैं तो उनकी इच्छानुसार उन्हें काशी में निवास कराया जाता है। यही नहीं, शादी- विवाह आदि शुभ कार्यों में गंगा के पवित्रतम जल का उपयोग अवश्य होता है। मान्यवर,आज मैं गंगा मां के धरती पर अवतरण का विशेष अभिप्राय स्पष्ट करता हूं और वह यह है कि जो अविकसित है उसे विकासशील बनाना,जो विकासशील है उसे विकसित बनाना और जो विकसित है उसे जीवनोपयोगी बनाना।
आज नवरात्र का चौथा पवित्र दिवस है इसलिए मां कूष्माण्डा को प्रणाम करते हुए जय मातु गंगे अवश्य कहें!
-अशोक पाण्डेय

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