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“गोस्वामी तुलसीदास जी ने संतों के दर्शन और उनके सत्संग की व्याख्या तीर्थराज प्रयाग से की है।”

-व्याख्या: अशोक पाण्डेय की.

उत्कल अनुज हिन्दी पुस्तकालय में आज शाम कुछ दिनों के अंतराल के उपरांत शाम में आया। मेरे टेबल पर पूज्य ‘भाईजी’ किरीट महाभाग का सद्ग्रंथ “मानस सिंधु ” रखा हुआ था जिसका गहन अध्ययन मैं आजकल कर रहा हूं। अचानक उस सद्ग्रंथ की पृष्ठ सं.62 पर मेरी नज़र गई। “राम भक्ति जहं सुरसरि धारा।सरसइ ब्रह्म विचार प्रचारा।।”गोस्वामी तुलसीदास जी के अनुसार संत और उनकी संगति मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की भक्ति रूपी पवित्रतम नदी गंगा, यमुना और सरस्वती जैसी है। गोस्वामी तुलसीदास जी के अनुसार गंगा मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की भक्ति रूपी है। यमुना जी सत्कर्म रूपी हैं और सरस्वती जी सद्बुद्धि रूपी हैं। भारतवर्ष की ये तीनों पवित्रतम नदियां ज्ञान, भक्ति और सत्कर्म की त्रिवेणी -संगम हैं। ये तीर्थराज हैं। इसलिए हो सके तो जीवन में एकबार कम-से-कम संगम में पवित्र आस्था की डुबकी अवश्य लगाएं!
-अशोक पाण्डेय

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