: अशोक पाण्डेय
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छठ महापर्व मनाने की यह एक आर्य परम्परा है। इसकी चर्चा ऋग्वेद, विष्णु पुराण, भागवत पुराण, ब्रह्म पुराण, वैवर्त पुराण और उपनिषद आदि में हुई है। बिहार के मुंगेर के समीप गंगा के बीच में एक शिला खण्ड है जिसका नाम है: सीता चरण।ऐसी मान्यता है कि सीता ने मुंगेर में ही पहली बार वहीं पर छठ महापर्व मनाईं थीं।छठ साल में दो बार मनाई जाती है। एक चैत्र मास में और दूसरी कार्तिक मास में। गौरतलब है कि सूर्यदेव की दो पत्नियां हैं, एक का नाम उषा और दूसरी का नाम प्रत्यूषा है।छठ में शाम को जो पहला अर्घ्य पवित्र नदी में डुबते सूर्य की ओर मुंह कर खड़े होकर दिया जाता है वह तीन के लिए’एक सूर्यदेव के लिए,दूसरा उनकी बहन छठ(षष्ठी परमेश्वरी) के लिए और तीसरा सूर्यदेव की दूसरी पत्नी जो सूर्य किरणों में प्रकट होतीं हैं-प्रत्यूषा देवी के लिए। छठ के अंतिम दिवस अर्थात् चौथे दिवस भोर में जो अर्घ्य दिया जाता है वह भी तीन के लिए। एक उगते हुए सूर्यदेव के लिए,दूसरा उनकी बहन छठ परमेश्वरी के लिए और तीसरा सूर्यदेव की पहली पत्नी उषा के लिए।ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को जब कुष्ठ रोग हो गया था तब वे भ प्रकृति के प्रत्यक्ष देवता सूर्य भगवान की प्रथम किरणों का सेवनकर ही कुष्ठ
रोग से मुक्त हुए थे।
-अशोक पाण्डेय
