डूबते सूर्यदेवतथा छठ परमेश्वरी की न्यू बाली यात्रा मैदान मंचेश्वर पवित्र कुआखाई छठघाट पर
नदी जल में पश्चिम की ओर मुंहकर खडे होकर उनकी आराधना एवं पवित्र सायंकीलन प्रथमअर्घ्य का पर्व
भुवनेश्वरः29अक्टूबरः अशोक पाण्डेयः
वैसे तो भारतीय संस्कृति तथा भारतीय सामाजिक जीवन में वैदिक तथा पौराणिक काल से पर्व-त्यौहारों के मनाने का महत्त्व है फिर भी छठ महापर्व के तीसरे दिवस अर्थात् कार्तिक मास की षष्ठी,छठव्रत का अति विशेष महत्त्व है।आज के दिन डूबते सूर्य तथा छठ परमेश्वरी की पवित्र नदी जल में खडे होकर आराधना तथा उन्हें सायंकीलन प्रथमअर्घ्य अर्पण का तो सांस्कृतिक,पौराणिक तथा सामाजिक महत्त्व हो जाता है।उस दिन पवित्र नदी जल में खड़े हो कर सूर्य को अर्घ्य देनेवालों के मन से सांसारिक मोह-मायाप्रत्यक्ष देव सूरज भगवान तथा छठ परमेश्वरी देवी समातप्त कर देतीं हैं। साथ ही साथ उनके मन में प्रकृति के प्रति सच्चीश्रद्धा भाव जगा देते हैं। उस शाम सभी प्रकार के भेद-भाव भाषा,लिंग,वर्ण तथा प्रदेश के समाप्त हो जाते हैं। छठ के घाट पर सभी डूबते सूरज की आराधना करते हैं। छठ के दिन सिंदूर धारणकर घाट पर बैठी छठव्रती स्त्रियां अपनी कई पीढियों की विरासत को जैसे धारण कीं होतीं हैं।वे साक्षात तथा प्रत्यक्ष रुप में सीता,सावित्री और कुंती जैसी दीखतीं हैं जो नदी जल में खडे होकर डूबते हुए सूर्यदेव तथा उनकी बहन छठ परमेश्वरी को पहला सायंकालीन अर्घ्य अर्पित करतीं हैं।डूबता सूरज हमारा इतिहास होता है जिसको बचाने का संदेश भी है यह षष्ठी की शाम का पहला अर्घ्य।छठ का चौथा दिवस अर्थात् पवित्र नदी जल में खडे होकर उगते हुए भोर के सूरज देव तथा उनकी बहन छठ परमेश्वरी की आराधनाकर उनको अंतिम अर्घ्य अर्पण करने का जो हमारे भविष्य को बचाने का संदेश देता है। वैदिक और पौराणिक काल से ओडिशा को नदियों का प्रदेश कहा गया है जहां की प्रत्येक नदी पवित्र मानी गई है। ऐसे में न्यू बालीयात्रा,मंचेश्वर पवित्र कुआखाई नदी तट पर बिस्वास,भुवनेश्वर की यह पहल 2022 से वहां के छठ के घाट पर सामूहिक अर्घ्य का विराट और सुव्यवस्थित आयोजन करना हर प्रकार से एक शुभ संकेत है।वहां पर छठव्रती सुरक्षित रहकर डूबते सूरज देव तथा उगते सूरज देव तथा छठ परमेश्वरी की जल में खडे होकर उन दोनों की आराधना तथा अर्घ्य अर्पण की इस वर्ष से अति सुंदर व्यवस्था की गई।
अशोक पाण्डेय