आत्मानुभूतिः प्रोफेसर अच्युत सामंत
मेरा व्यक्तिगत जीवन अति सरल और अति सामान्य है। सच कहूं तो मेरा जीवन एक खुली किताब के पन्ने की तरह है जिसे कोई भी सरलता तथा सहजता से पढ सकता है। सच कहूं तो, मैं पूरी तरह से आध्यात्मिक जीवन जीता हूं। वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमणकाल में भी मैं चौबीसों घण्टे अपनेआपको व्यस्त रखता हूं फिर भी विगत लगभग दो सालों में जो कुछ भी थोडा-बहुत समय मुझे मिला,उसका उपयोग मैंने हिन्दी धारावाहिकों को देखने में व्यतीत किया। मैं जब मात्र चार साल का था तभी मेरे पिताजी का एक रेल दुर्घटना में असामयिक निधन हो गया। घोर आर्थिक संकटों में मैंने अपना बचपन गुजारा। मेरे जीवन की प्रथम गुरु मेरी स्वर्गीया मां ,नीलिमारानीः माई मदर माई हीरो रहीं। मैंने अपने आरंभिक जीवन के 25 वर्ष अपने तथा अपने सभी भाई-बहनों को घोर आर्थिक संकटों के बीच उच्च शिक्षा प्रदान करने में व्यतीत किया और अपने जीवन के अगले 25 वर्ष मैंने भुवनेश्वर स्थित अपनी विश्वस्तरीय शैक्षिक संस्थाएःकीट-कीस को तैयार करने में लगाया। अब लगभग 6 सालों से वृहद लोकसेवा कार्य के रुप में ओडिशा के मान्यवर मुख्यमंत्री श्री नवीन पटनायकजी के निर्देश पर सांसद के रुप में व्यतीत कर रहा हूं,पहले राज्यसभा सांसद रहा तदोपरांत बीजेडी से कंधमाल लोकसभा सांसद के रुप में लोकसेवा कर रहा हूं। मेरे पास स्वयं के लिए कुछ अध्ययन करने, संदर्भग्रंथों को पढने, हिन्दी मुवी देखने अथवा कोई भी धारावाहिक देखने का बिलकुल ही समय नहीं रहता है। ऐसे में 2020 और 2021 में वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमणकाल में जय जगन्नाथ, जय हनुमान, शनिदेव, रामायण, महाभारत, राधाकृष्ण और देवों के देव-महादेव जैसे अनेक हिन्दी धारावाहिकों को मैंने गौर से देखा। अकेले रहकर नवग्रह पूजा कराया। विश्व शांति यज्ञ कराया। अपने वाणीक्षेत्र जगन्नाथ मंदिर का अतिभव्य तथा अति सुंदर आऊटलुक तैयार कराया। अभी मैं अपने द्वारा स्थापित उस जगन्नाथ मंदिर के 15वें वार्षिकोत्सव को मनाने में लगा हूं जहां पर अब भारत के अन्यतम धाम पुरी के श्रीमंदिर की तरह ही सिंहद्वार के ठीक सामने अरुणस्तंभ लगवाया है। पुरी श्रीमंदिर की तरह ही मंदिर में प्रवेश के लिए पत्थर की 22 सीढियां लगवाया। पूरे वाणीक्षेत्र जगन्नाथ मंदिर में जगन्नाथ भक्तों की बेहतर सेवा के लिए पत्थर लगवाया। आगामी 24जून को भगवान जगन्नाथ का जन्मोत्सव ज्येष्ठपूर्णिमा एवं देनस्नानपूर्णिमा के रुप में मनाने हेतु पूरी तैयारी कराई है। हां, तो मैं बात कर रहा था अपने जीवन की वास्तविक सीख की। उसे मैंने अब अनेक आध्यात्मिक हिन्दी धारावाहिकों को से सीखा। मेरे लिए रामायण के श्रीराम मर्यादापुरुषोत्त्म राम हैं जो मुझे जीवन की मर्यादा का ज्ञान देते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने मुझे जीवन में प्रेम के महत्त्व को बताया। अपनी बुद्धि से एक व्यक्ति को जीता जा सकता है लेकिन प्रेम से पूरे विश्व को। धारावाहिक महाभारत के द्वारा मैंने सीखा धर्म और सत्य के पथ पर चलते हुए कर्मयोगी बनना।महाभारत देखने पर मैंने यह जाना कि किस प्रकार गणेशजी संयम तथा एकाग्रता के देव हैं। महाभारत ने सदैव सकारात्मक सोच को अपनाना मुझे सिखाया। सच कहूं तो देवों के देव, महादेव के अन्दर नारी सम्मान, सच्चे गुरु का एक सफल जीवन में महत्त्व, सप्तऋषिःमहर्षि वसिष्ठ, महर्षि भरद्वाज, महर्षि जमदग्नि, महर्षि गौतम, महर्षि अत्रि, महर्षि विश्वामित्र तथा महर्षि अगस्त्य आदि के विषय में विस्तार के साथ जाना। ज्योतिर्लिंग तथा शक्तिपीठ के विषय में जाना। भगवान शिव को चढाये जानेवाले वेलपत्र के विषय में जाना।क्यों महादेव तीनपत्रवाले ही वेलपत्र सबसे अधिक पसंद करते हैं। वेलपत्र वृक्ष की उत्पत्ति देवी पार्वती के ललाट से गिरे पसीने से हुई है जब उनका पसीना मंदार पर्वत पर गिरा तब वही वेलवृक्ष बन गया। उसकी जड मां गिरिजा, तना महेश्वरी, पत्तियों पार्वती,तीन पत्तोंवाला वेलपत्र शिव के तीन नेत्र हैं जिसे भोलेनाथ सबसे अधिक पसंद करते हैं। देवों के देव, महादेव में यह देखकर अच्छा लगा कि किसप्रकार से नारायण के लिए उनकी पत्नी लक्ष्मी,ब्रह्मा के लिए उनकी पत्नी सरस्वती तथा महादेव के लिए उनकी पत्नी पार्वती त्रिदेवों की प्रेरणास्त्रोत रहीं। प्रसंगवश एक दिन ब्रह्माजी ने देवी सरस्वती के बोलने पर जब रोक लगा दिया तो किस प्रकार पूरे ब्रह्माण्ड में अविद्या छा गई।फिर उसका निवारण स्वयं महादेव ने किया। भगवान शिव और देवी पार्वती के आपसी सुझ-बुझ से किस प्रकार ब्रह्माण्ड में संतुलन बना रहता है यह मुझे देवों के देव महादेव देखने से मालूम हुआ। उस धारावाहिक के एक एपीसोड में प्रसंगवश सभी देवता और दानवगण महादेव को अपनी-अपनी सेवाएं देने के लिए कैलास पर उपस्थित हुए । उस वक्त नारायणजी कुछ विलंब से वहां पर उपस्थित हुए और अपने विलंब से आने का कारण बताने लगे । साथ ही साथ उन्होंने यह भी बताया कि जो भोग वे महादेव के लिए ला रहे थे उसे वे रास्ते में भूखों को खिला दिये जिसके लिए वे क्षमा चाहते हैं। तब महादेव ने कहा कि नारायण जो कुछ आज तुमने मेरे लिए लानेवाले थे और उसे आपने भूखों को खिला दिया,वह मैंने स्वीकार कर लिया। मैं आपसे नाराज बिलकुल ही नहीं हूं अपितु आप पर अति प्रसन्न हूं।उसी वक्त मेरी आत्मानुभूति ने मुझे बताया कि मैं भी पिछले लगभग 30 वर्षों से कीस के माध्यम से लगभग 30हजार आदिवासी अनाथ, बेसहारा, समाज के विकास से वंचित और उपेक्षित बच्चों को निःशुल्क समस्त आवासीय सुविधाओं के साथ-साथ केजी कक्षा से लेकर पीजी कक्षा तक उत्कृष्ट शिक्षा देता हूं। आदिवासी सशक्तिकरण कर उन्हें स्वावलंबी बनाता हूं। मैंने अपने द्वारा स्थापित कीट के माध्यम से एडुकेशन फार आल अभियान को सार्थक बना रहा हूं। जिसप्रकार का संदेश महादेव ने पूरी सृष्टि को सर्वशिक्षा तथा कोई भी भूखा न रहे,उसका अक्षरशः पालन मैं गत 30 वर्षों से करते आ रहा हूं। हिन्दी धारावाहिकः देवों के देव, महादेव के एक एपीसोड में महादेव ने नारी सम्मान का संदेश दिया है,उसे भी मैं पिछले लगभग 30 सालों से अपनी संस्थाएःकीट-कीस-कीम्स के माध्यम से करते आ रहा हूं। मेरे विदेह जीवन का आजीवन एकमात्र लक्ष्य यही है-मेरी जानकारी में कोई भी भूखा न रहे। सभी को निःशुल्क शिक्षा मेरी ओर से मिले और हरतरह से मेरी ओर से नारीजाति का सम्मान हो। दुनिया जानती है कि मैं एक सकारात्मक सोचवाला अति सरल व्यक्ति हूं जो वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमणकाल में चार-चार कोविद-19 अस्पताल खोला। उन अस्पतालों में दक्ष डाक्टरों, नर्सों तथा पारामेडिकल स्टाफ की तैनाती की। सभी प्रकार के मेडिकल संसाधन अपनी संस्था कीम्स की ओर से उपलब्ध कराया। कोरोना योद्धाओं की पूरी सेवा की। कोरोना मरीजों से एक-एककर सभी से बातचीत की। उनके प्रति सच्ची सहानुभूति रखकर उनका मनोबल बढाया। ठीक उसी प्रकार से अपने सभी कोविद-19 डाक्टरों,नर्सों तथा पारामेडिकल स्टाफ से भी एक-एककर बातचीत की । उनका हाल-चाल जाना तथा उनके कार्यों की सराहना की। कोरोनाकाल में भारत क्या पूरे विश्व में ऐसा कोई कोविद-19 अस्पताल का कोई ऐसा मालिक नहीं होगा जिसने कोरोना मरीजों को तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराकर प्रत्येक मरीज, डाक्टर, नर्स तथा पारामेडिकल स्टाफ से एक-एककर सभी से बातचीत की हो और सभी को संतुष्टकर अपनी जिम्मेदारी वखूबी निभाई हो। मुझे इसबात की खुशी है कि यह सबकुछ मैंने कोरोनाकाल में आध्यात्मिक धारावाहिकों को देखकर तथा उससे प्रेरणा लेकर किया हूं। मैं अपने सभी चाहनेवालों से एक ही बात कहना चाहता हूं कि प्रत्येक मानव के जीवन के लिए वास्तविक सीख है- अपने इष्टदेव, अपनी मां, अपनी मातृभूमि, अपने गुरुजन, अपने बडे-बुजुर्गों का सदा सम्मान करें तथा सकारात्मक सोच के साथ निःस्वार्थ समाजसेवी बनें।
प्रस्तुतिःअशोक पाण्डेय
“ जीवन की वास्तविक सीख “
