भुवनेश्वर
आत्म शोधन की प्रक्रिया है-तप
दुनियां में अनेक प्रकार की वस्तुएं मिल सकती है। धन वैभव सत्ता भी मिल सकती है। ज्ञातिजन बंधु, पुत्र आदि की भी प्राप्त हो सकती है लेकिन धर्म का मिलना कठिन है। धर्म ही दीपक है जो अज्ञान रूप अंधकार का नाश करता है। धर्म एक अमोघ संजीव – नी है। जिसे धारण करने वाला व्यक्ति अलौकिक ऊर्जा शक्ति, प्रकाश को प्राप्त होता है। धर्म दिशा दर्शक, पथ प्रदर्शक व आत्म प्रकाशक है। धर्म के चार प्रकार है ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप तपं आत्म शोधन की प्रक्रिया है। तप से काया कुंदन होती है उपरोक्त विचार **आचार्य महाश्रमण जी* के सुशिष्य मुनि जिनेश कुमार ने जय दुर्गा नगर स्थित बेबीलॉन गार्डन में तेरापंथ सभा के तत्वाव -धान में आयोजित तप अभिनंदन कार्यक्रम में कहे। उन्होंने आगे कहा- तप करना कठिन होता है। एक उपवास में भी तारे की दिखने लग जाते है इस गर्मी के मौसम में 9 की तपस्या करके धनराजजी पुगलियां ने मानो शासन माता साध्वी प्रमुखा जी को सच्ची श्रद्धाञ्जलि दी है। उन्होंने आगे कहा- जीवन विकास में सम्यग दर्शन की महत्त्वपूर्ण भूमि का रहती है। ज्ञान के साथ श्रध्दा हो श्रद्धा, के साथ चारित्र,हो चारित्र के साथ तप हो तो सोने में सुहागा जैसी कहावात चरितार्थ होती है इससे पूर्व रोशन पुगलियां व अल्पना दूगड़ ने भी आठ की तपस्या की है और वनिता दुघोड़िया ने एकासन का मासखमण किया है इस अवसर पर महासभा के अध्यक्ष मनसुख जी सेठिया, तेरापंथ सभा अध्यक्ष बच्छराज जी बेताला, रोशन पुगलियां हीना भव्या, रक्षा पुगलिया ने अपने भावों की प्रस्तुति दी** मुनि कुणाल कुमार** ने गीत प्रस्तुत किया **मुनि परमानंद जी ** ने संचालन किया तेरापंथ सभा के द्वारा तपस्वी का अभिनंदन किया गया
तप अभिनंदन कार्यक्रम संपन्न, मुनि जिनेश कुमार
