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दिवाली में गरीब बच्चों का घर हुआ रौशन, डॉक्टर बनने का सपना हुआ साकार

*रिक्शा-चालक, दैनिक मज़दूर, चरवाहा के बच्चे डॉक्टर बनने की राह पर, नीट में सफलता का परचम लहराया *

मेहनत, लगन और जिंदगी फाउंडेशन के साथ ने गरीबी को मात दी, फाउंडेशन के सभी छात्र नीट में सफल

जाने-माने शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता अजय बहादुर सिंह के जिंदगी फाउंडेशन ने शानदार सफलता हासिल की है। फाउंडेशन के सभी 18 छात्रों ने नीट 2021 की परीक्षा सफलतापूर्वक पास कर ली है और डॉक्टर बनने के अपने सपने को पूरा करने के कगार पर हैं। ये छात्र समाज के अत्यंत गरीब वर्ग के हैं और दिहाड़ी मजदूरों, सड़क किनारे के विक्रेताओं, दूध बेचने वालों आदि के बच्चे हैं। उनमें से कई के लिए हर दिन एक समय का भोजन प्राप्त करना बेहद मुश्किल था। ओडिशा के प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश पाना एक असंभव सपने के सच होने जैसा है।

इस असंभव सपने को अजय बहादुर सिंह द्वारा संचालित जिंदगी फाउंडेशन ने संभव बनाया है जो खुद डॉक्टर बनने के अपने सपने को पूरा नहीं कर पाए थे। एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे अजय को अत्यधिक गरीबी से गुजरना पड़ा क्योंकि उनके पिता किडनी की विफलता के कारण गंभीर रूप से बीमार हो गए थे। इलाज का खर्चा उठाने के लिए परिवार की पूरी संपत्ति बेच दी गई। परिवार के भरण-पोषण के लिए, अजय ने अपनी मेडिकल कोचिंग छोड़ दी और चाय और शरबत बेचने लगे।

जिंदगी फाउंडेशन के बारे में अजय बताते हैं – “जब मैं अपने छात्रों को डॉक्टर बनते देखता हूं, तो मुझे लगता है कि मैं डॉक्टर बनने के अपने सपने को पूरा कर रहा हूं। जिंदगी फाउंडेशन में हम यह सुनिश्चित करते हैं कि एक प्रतिभाशाली छात्र गरीबी के कारण डॉक्टर बनने का अपना सपना न छोड़े। जिंदगी फाउंडेशन इन छात्रों को मेडिकल कोचिंग, स्टडी मटेरियल, रहने और भोजन जैसी सभी सुविधाएं बिल्कुल मुफ्त प्रदान करता है।”

लॉकडाउन के दौरान भी बच्चे लगातार मेहनत करते रहे और ऑनलाइन क्लास के जरिये अपनी तैयारियों में लगे रहे। छात्रों ने बताया की उस समय पर अजय सर ऑनलाइन मीटिंग के ज़रिये सबको प्रोत्शाहित करते थे और हमेशा अपने लक्ष्य पाने की प्रेरणा देते थे। छात्रों ने अपनी सफलताओं का श्रेय अजय सर को दिया।

साल दर साल शानदार सफलता के साथ जिंदगी फाउंडेशन ने समाज में सकारात्मक बदलाव लाने वाले संस्थान के रूप में वैश्विक ख्याति प्राप्त की है। वर्ष 2017 से शुरू होकर, कई छात्रों ने सफलतापूर्वक NEET पास किया है। 2017 में 18, 2019 में 14, 2020 में 19 और 2021 में 18 बच्चों ने सफलतापूर्वक नीट क्वालीफाई किया है । इस वर्ष कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियां में छोटी सी प्राइवेट नौकरी करने वाले के बेटे सुनील कुमार साहू (नीट 2021 स्कोर – 675), भूमिहीन किसान के बेटे चंदन शंखुआ (नीट 2021 स्कोर – 642), दूध विक्रेता के बेटे सुभाष चंद्र बेहरा (नीट 2021 स्कोर – 630), गरीब किसान के बेटे सत्य प्रकाश बेहेरा (नीट 2021 स्कोर – 620) और दिहाड़ी मजदूर के बेटे प्रिय रंजन नायक (नीट 2021 स्कोर – 620) शामिल हैं। इनके अलावा, रिक्शा चालाक के बेटे मुर्शिद खान (नीट 2021 स्कोर – 610), भूमिहिन किसान के बेटे राधा बल्लव बेहेरा (नीट 2021 स्कोर – 595), दिहाड़ी मज़दूर के बेटे प्रदीप्त सुन्दर साहू (नीट 2021 स्कोर – 595), दिहाड़ी मज़दूर के बेटे दया सागर स्वाइन (नीट 2021 स्कोर – 591), गरीब बुनकर की बेटी शिवानी मेहर (नीट 2021 स्कोर – 577) ने भी शानदार प्रदर्शन कर सफलता के परचम लहराए।

सुनील कुमार साहू के पिता डॉक्टर बनना चाहते थे लेकिन संसाधनो के आभाव में वह अपनी पूरी पढाई भी नहीं कर पाए। जीवन से समझौता कर वह एक छोटी सी नौकरी कर परिवार चलाने लगे. बेटे को वह डॉक्टर बनते देखना चाहते थे. लेकिन महंगे कोचिंग पैसे कहाँ थे. बेटे ने जी जान से कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाया। अंततः ज़िन्दगी फाउंडेशन की मदद से उसने फिर से तैयारी की. आज सुनील ने अपने पिता के सपने को साकार कर दिया है।
चन्दन के पिता लकड़ी का काम कर बहुत मुश्किल के 4-5 हज़ार कमा कर घर चलाते हैं। बहन के शादी में पिता को थोड़ी – बहुत जो जमीन थी वह भी बेचनी पड़ी। घर की हालत ऐसी की हर रोज खाना मुश्किल से मिलता है. चन्दन के पिता कभी लकड़ी का काम करते है, कभी दूसरों के खेत में मज़दूरी करते हैं. उसी घर का लड़का चन्दन अब डॉक्टर बनने के राह पर है।
सुभाष चंद्र बेहरा के पिता जो दूध बेच कर घर चलाते हैं, बेटे को पढ़ाने के लिए उनको अपने कुछ मवेशियों को बेचना पड़ा था। बेटे की प्रतिभा को देख पिता ने सब कुछ न्योछावर करने का सोच लिया लेकिन फिर भी महंगे मेडिकल कोचिंग के लिए आखिर करे तो करें. ज़िन्दगी फाउंडेशन ने सुभाष का हाथ थमा और सब सुबिधायें प्रदान की. आज सुभाष और उसके पिता की मेहनत रंग लायी है और सुभाष डॉक्टर बनने जा रहा है।
सत्य प्रकाश बेहेरा के पिता दिहाड़ी मज़दूरी का काम करते हैं। अत्यधिक गरीबी में सत्य प्रकाश ने अपने अपने नज़दीकी रिश्तेदारों को इलाज़ नहीं मिलने के कारण दम तोड़ते देखा है। गांव में दूर दूर तक कोई डॉक्टर नहीं है. लड़का प्रितभाशाली था तो पुरे गांव को आस जगी की बड़ा होकर डॉक्टर बनेगा तो सबका भला होगा. लेकिन यह सब इतना आसान तो नहीं है. कोचिंग के लिए पैसे नहीं थे. घर पर पढाई कर नीट की परीक्षा दी लेकिन सफल नहीं हो पाया. ज़िन्दगी फाउंडेशन के मार्गदर्शन में उसने फिर से तैयारी की. अब वह अपने डॉक्टर बनने के सपने को साकार करने जा रहा है।
प्रिय रंजन नायक के पिता दिहाड़ी मज़दूरी हैं लेकिन अपनी बिमारी के कारण वह हर रोज़ काम पर भी नहीं जा सकते। हर दिन दो वक़्त की रोटी के लिए तरसता हुआ बच्चा मेडिकल की तैयारी करे तो कैसे. एक अच्छा मेडीकल कोचिंग तो जैसे इनके लिए सपना ही है. लेकिन ज़िन्दगी फाउंडेशन के साथ गरीबी और भूख को पीछे छोड़ कर वह आज डॉक्टर बनने की राह पर है.
मुर्शिद खान के पिता रिक्शा चलाते हुए दुर्घटना के शिकार हो गए थे और परिवार का भरण पोषण मुश्किल हो गया था। पिता कभी कभी ही रिक्शा चला पाते थे. परिवार की थोड़ी बहुत आमदनी भी बंद हो गयी. बड़े भाई ने मज़दूरी कर के घर चलाने का जिम्मा उठाया. पिता और बड़े भाई नहीं चाहते थे की मुर्शिद भी उनकी तरह जिए. मुर्शिद ने भी जी जान से कोशिश की लेकिन लक्षय तक नहीं पहुंचा. अंततः ज़िंदगी फाउंडेशन के मार्गदर्शन में मुर्शिद ने जबर्दश्त सफलता प्राप्त की और अब डॉक्टर बनने जा रहा है।

गरीब बुनकर की बेटी शिवानी मैहर ने अपने परिवार में बहुत सी बिमारी देखी है। माँ को बचपन से ही बीमारी से जूझते देखा. बचपन से डॉक्टर बनने का मन तो बना लिया, लेकिन कोचिंग कैसे करे. पिता की सालाना ३०-30 -40 हज़ार की आमदनी से तो घर भी नहीं चलता है. ज़िन्दगी फाउंडेशन साथ जी तोड़ मेहनत कर के आज वह अपने डॉक्टर बनने के सपने को साकार करने जा रही है।

“हम सभी मेडिकल कोचिंग और अन्य सुविधाओं के लिए किसी भी छात्र से एक भी पैसा नहीं लेते हैं। इन छात्रों को सब कुछ बिल्कुल मुफ्त में प्रदान किया जाता है। इसके अलावा, हम किसी भी व्यक्ति या संगठन से किसी भी प्रकार का दान नहीं लेते हैं। मैं इन छात्रों से एक ही गुरुदक्षिणा माँगता हूँ कि वे जितना हो सके समाज में गरीब और जरूरतमंद लोगों की सर्वोत्तम चिकित्सा उपचार के साथ सेवा करें। ”- जिंदगी फाउंडेशन के बारे में अजय ने कहा।

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