-अशोक पाण्डेय
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मनुष्य का जीवन दु:खों का बसेरा है। सामान्यत: सभी के जीवन में लगभग अस्सी प्रतिशत दु:ख ही होता है। हमसब मात्र लगभग बीस प्रतिशत सुख के लिए कठोर मेहनत करते हैं, त्याग करते हैं, तपस्या करते हैं, पूजा पाठ -करते हैं,प्रवचन व यज्ञ आदि कराते हैं फिर दु:खों से निकल नहीं पाते हैं। एक दु:ख जाता नहीं कि दूसरा दु:ख स्वत: आ जाता है और इस प्रकार इस मोह -माया के संसार में हमसब के जीने का सहारा एक दु:ख को भुलाकर दूसरे दु:ख को अपनाने का ही है। सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र सपने में देखते हैं कि वे अपना पूरा राजपाट किसी ब्राह्मण को दान कर दिए हैं। अगली सुबह वे ब्राह्मण को बुलाकर अपना पूरा राजपाट दान कर देते हैं। दु:ख की शाश्वत आदत को देखिए उन्हें अपनी पत्नी, इकलौते बेटे और स्वयं को बेचना पड़ता है। और दु:ख को देखें उन्हें श्मशान घाट में रखवाली करनी पड़ती है और अपनी ही पत्नी से अपने मृतक पुत्र के अंतिम संस्कार के लिए कफ़न का आधा हिस्सा मांगना पड़ता है। मान्यवर, ऐसे अनेक दृष्टांत हैं जिससे स्पष्ट होता है कि दु:ख से दु:ख जाता है। परमपिता परमेश्वर सभी को दु:खों से बचाएं!
-अशोक पाण्डेय
