भुवनेश्वर राममंदिर में चल रही देवी भागवत कथा के पांचवें दिवस पर कथाव्यास श्रीकांत शर्मा जी ने मां जगदम्बा की आराधना करते हुए उन्हें विचार शक्ति,वाक्शक्ति, समग्र शक्ति की प्रदायिनी बताया।वहीं समग्र चेतनाओं की केंद्र बिंदु है।वही उन्होंने मां की शरण में आने हेतु सभी को संदेश दिया। व्यास जी ने बताया कि विद्यार्थी को फेल हो जाने पर बड़ा दुख होता है लेकिन हमारी ,आपकी जिंदगी बिना भजन के समाप्त हो रही है लेकिन कोई पश्चाताप नहीं है। *सीताराम चरण रति मोरें। अनूदित बढ़ऊ अनुग्रह तोरें* ।। प्रार्थना करें कि हमारे मन में परमात्मा के प्रति भाव जागे हम भगवती मां का भजन करें भजन तब ही होगा जब आप सत्संग करेंगे दही से मक्खन तभी निकलेगा जब हम मथानी से मंथन करेंगे। यदि भजन का दीपक जलते देखना है, भक्ति का दीपक जलते देखना है ,तब सत्संग रूपी तेल डालते रहना और स्वयं को कुसंग की हवा से बचा कर रख लेना । हमारे जीवन में हमसे भजन सदा होता रहे, इसका उपाय यही की सत्संग करते रहना और कुसंग से स्वयं को बचा कर रखना। भजन *बीज* है, जो एक बार तुम्हारे मन में पड़ जाने पर कभी न कभी अंकुरित जरूर होंगे ,पल्लवित होंगे और फलित होंगे। इसी प्रकार संतो के उपदेश रुपी शब्द वे बीज हैं, जो आपकी मन रूपी भूमि पर पड़ गये हैं और जब उपयुक्त समय आता है तब वे भक्ति और वैराग्य के रूप में अंकुरित हो जाते हैं। *बीज* के दो प्रकार हैं भक्ति ज्ञान और वैराग्य और काम क्रोध लोभ और वासना के जब आप संसार की ओर ज्यादा ध्यान देते हैं तब आपके हृदय की भूमि में काम क्रोध लोभ और मोह के बीज बोए जाते हैं और वह अंकुरित होकर आपके मन में वासना जागृत करके आप को नीचे गिरा देते हैं। मनुष्य के अंदर जो काम क्रोध और लोभ हैं ,यहि व्यक्ति से पाप कराते हैं । न मां भगवती पाप कराते हैं ,न जीव पाप करना चाहता है, लेकिन ये जो नैसंगिक दोष है, इनके कारण ही मनुष्य द्वारा पाप कृत्य होते हैं और नरक जाना पड़ता है।आज की कथा को विराम देने से पूर्व उन्होंने सभी से देवी भागवत श्रवण का संदेश दिया।
अशोक पाण्डेय
देवी भागवत कथा का पांचवां दिवस कथा व्यास ने राजा जनक के विदेह रुप को स्पष्ट किया तथा मां दुर्गा के विभिन्न रूपों का वर्णन किया।
