-अशोक पाण्डेय
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जब राजा जनक की मृत्यु हुई तब यमराज स्वयं उनको लेने आये। स्वर्ग जाने के रास्ते में नरक आया। राजा जनक ने देखा कि वहां पर लोगों को मारा-पीटा जा रहा है। बहुत कष्ट दिया जा रहा है। राजा जनक ने यमराज से पूछा कि इनको ये कष्ट यहां पर भी क्यों मिल रहा है? यमराज ने कहा: हे धर्मराज! ये अपने जीवन में बहुत अधिक पाप कर्म किए हैं जिसके चलते इन्हें इस नरक में हमेशा ऐसा ही कष्ट इन्हें मिलेगा। राजा जनक ने पूछा कि इसका कोई उपाय है? यमराज ने कहा कि अगर कोई धर्मात्मा अपने जीवन के सभी पुण्य फल का दान कर दें तो ये इस कुकर्म से और नरक से मुक्त हो सकते हैं। राजा जनक ने इस प्रकार स्वर्गीय होने पर भी अपना सभी धर्म -कर्म को पापियों और नरक वासियों को मुक्त करने के लिए दान कर दिया।
मान्यवर, आप भी धर्मात्मा विदेह राजा जनक की तरह बनें!
-अशोक पाण्डेय
