भुवनेश्वर: 24 जून :अशोक पाण्डेय
कोरोनावायरस की दूसरी लहर के दौरान एक बड़ा ही सुंदर -सुहाना सफर रहा श्री जगदीश मिश्रा जी ,श्री गजानन शर्मा जी ,भाई किशन खंडेलवाल तथा श्री शिवकुमार शर्मा जी का। पंचवटी अनुसंधान केंद्र खंडपाडा अपने आप में प्रकृति के सुरम्य वातावरण में अवस्थितपंचवटी गौ अनुसंधान केंद” भुबनेश्वर से 110 किलोमीटर दूर खण्डपड़ा सुदूर जंगल के बीच हरेभरे पेडों से आच्छादित पहाड़ों से घिरा हुआ अत्यंत मनोरम तथा आध्यात्मिक केंद्र है जहाँ रोज अग्निहोत्र यज्ञ का आयोजन किया जाता है। लगभग 100 गायों के साथ आयुर्वेदिक,गौ गव्य औषधियों से कैंसर का सफल इलाज करते हुए प्राकृतिक माहौल में पंचवटी केंद्र की स्थापना करना इतना आसान नहीं था फिर भी बिहार सीतामढ़ी , सीता का जन्म स्थान में जन्मी कमल दास की पत्नी के अथक प्रयास से सचमुच सीता की पंचवटी की स्थापना की गई है। प्रकृति की गोद में बसी अद्भुत सीता पंचवटी के दर्शनकर श्री जगदीश मिश्रा के नेतृत्व में वहां पहुंची टीम पूरी तरह सेअभिभूत हो उठी। 22 जून, मंगलवार को यह यात्रा कार से भुनेश्वर से की गई। पंचवटी का विषविहीन खाद्य खाकर सबों का मन तृप्त हो गया जिसका वर्णन किया नहीं जा सकता। एक अनौपचारिक बातचीत में श्री गजानन शर्मा लिंगराज मार्बल वाले ने बताया कि यह पंचवटी की यात्रा वहां का भाई कमल शर्मा और उनके परिवार के सभी सदस्यों का आत्मीयता पूर्ण आओ भगत आदर सत्कार उन्हें बहुत अच्छा लगा। श्री जगदीश मिश्रा के अनुसार यह सच कहा गया है कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है उन्होंने भी अपनी ओर से गांव को स्वर्ग बनाने का भरपूर प्रयास किया है फिर भी पंचवटी की वह यात्रा उनके जीवन की एक यादगार यात्रा रही। श्री शिवकुमार शर्मा के अनुसार करोना काल में यह यात्रा अत्यंत आनंददायक सिद्ध हुई। भाई किशन खंडेलवाल के अनुसार भुनेश्वर में जिस तरह से पिछले लगभग डेढ़ सालों से कोरोना महामारी के चलते लोगों के मन में तनाव उत्पन्न हो गया था और वेश में यह महसूस कर रहे थे कि इस तनाव से मुक्त रहने का एक ही आधार है खंड पाड़ा पंचवटी की यात्रा करना और यह यात्रा करके अभी बहुत प्रसन्न है। लगभग 5 एकड़ भू भाग पर अवस्थित यह पंचवटी और उसका गुरुकुल अपने आप में एक ऐसी व्यवस्था है जहां बालकों को प्रकृति के खुले वातावरण में समस्त आवासीय सह शैक्षिक लाभ और वह भी प्रकृति के सान्निध्य में सभी को उठाना चाहिए। खंडपाड़ा पंचवटी और वहां का गुरुकुल आज भी भारतीय गुरुकुल परंपरा को जीवित रखा है।
अशोक पाण्डेय