-अशोक पाण्डेय
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भारतीय पुरुष प्रधान समाज में पुत्र -मोह सबसे खराब और खतरनाक है। मनोविज्ञान कहता है कि एक मां को सबसे प्रिय उसका बेटा होता है जबकि एक पिता को सबसे प्रिय उसकी अपनी बेटी। यूरोपीय देशों में पुत्र से कहीं अधिक बेटी को महत्त्व दिया जाता है। मेरा यह मानना है कि पुत्र -मोह अगर सीमा के अंदर हो तो ठीक है लेकिन पुत्र -मोह अगर आवश्यकता से अधिक हो जाए तो महाभारत का घर -घर होना स्वाभाविक है। एक प्रतिष्ठित संयुक्त परिवार का टूटना अवश्यंभावी है। आज का भारतीय समाज और परिवार एकाकी होते जा रहा है। ऐसे में हमारे व्यक्तिगत संस्कार दादा -दादी की सच्ची कहानियों से वंचित होते जा रहा है। आज की हमारी चौथी पीढ़ी यह नहीं जानती कि उसके दादा -दादी और उनके माता-पिता कौन थे? इसीलिए संयुक्त परिवार की अवधारणा को बचाने के लिए सबसे पहले पुत्र -मोह से बचना होगा।
-अशोक पाण्डेय