-अशोक पाण्डेय
पुरी गोवर्द्धन पीठ के 145वें पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी हैं।ये पिछले लगभग 28 वर्षों से दिव्य गोवर्द्धन व्यासपीठ को सुशोभित कर रहे हैं। वे एकमात्र ऐसे पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य हैं जो अपनी दिव्य मेधाशक्ति के बल पर भारतीय सनातनी परम्परा तथा भारतीय संस्कृति के शाश्वत जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए सद्गुरु,भगवान जगन्नाथ और सद्ग्रंथ को ही मूल रुप में मान्यता देते हैं।ये साक्षात भारतीय आध्यात्मिक चेतना के प्राण हैं। ये पिछले लगभग आठ दशकों से समस्त सांसारिक सुखों का त्यागकर भारतीय सनातनी शाश्वत आध्यात्मिक परम्पराओं,गंगा,रामसेतु,गोमाता तथा अयोध्या राम-जन्मभूमि बचाओ अभियान के सच्चे संरक्षक तथा मार्गदर्शक बने हुए हैं।इनके दिव्य आध्यात्मिक दृष्टिकोण तथा दिव्य संदेश विश्व मानवता की रक्षा,एकता,शांति,मैत्री आदि कायम करने के लिए दिव्य आलोक-स्तम्भ के रुप में हजारों वर्षों तक मार्गप्रशस्त करता रहेगा।स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी का आविर्भाव भारत के मिथिलांचल में हुआ जहां पर विदेह राजा जनक,जनकनंदिनी सीता,गौतमबुद्ध, कणादि, कुमारिल, मण्डन मिश्र, शंकर मिश्र, उदयन, गणेश उपाध्याय,मैथिलीकोकिल विद्यापति, गार्गी, मैत्रेयी,सुलभा और उभयभारती आदि का आविर्भाव हुआ। जगतगुरु जब मात्र दो साल के थे तभी से ये रात के 12-12 बजे तक पढते थे।इन्होंने अपने बाल्यकाल की 6साल की उम्र में ही भारतीय धर्म,दर्शन और अध्यात्म से जुड गये। जगतगुरु जब 10 साल की उम्र के हुए तभी से इनका मन संन्यासी –जीवन में रम गया।उसी समय से ये समस्त वेदों, पुराणों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत,महाभारत तथा गीता पढ डाली।बचपन में ये एकबार एक सपना देखे कि इनके गांव के समीप के राधा-कृष्ण मंदिर से देवताओं के आभूषण चोरी हो गये हैं।सुबह जब हुई तो इनका सपना सच निकला कि उस मंदिर के देवता के सारे कीमती आभूषण चोरी हो गये हैं।ऐसी जानकारी इनके विषय में मिलती है कि जब ये छोटे बालक थे तो एकबार श्रीकृष्ण भगवान स्वयं प्रगट होकर इनके कंधे पर हाथ रखकर इन्हें अपना सखा स्वीकार किया था। जगतगुरु के सच्चे अनुयायी इसीलिए यह मानते हैं कि ये भगवान जगन्नाथ के पूजा-पाठ आदि का नीति-निर्धारण करते हैं क्योंकि पुरी धाम में जगन्नाथ जी स्वयं श्रीकृष्ण के एक रुप हैं ।कल क्या होना है यह जानकारी जगतगुरु को एक दिन पहले ही हो जाती है।सहज तथा वितरागी जीवन जीनेवाले जगतगुरु जगन्नाथ संस्कृति तथा भारतीय संस्कृति के सच्चे संरक्षक तथा आजीवन प्रचारक हैं। जगतगुरु जी प्रतिवर्ष श्रीमंदिर में अनुष्ठित होनेवाली महाप्रभु जगन्नाथ जी की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के दौरान अपनी सेवाएं देते हैं। जगतगुरु वास्तव में आध्यात्मिक चेतना के पुरोधा हैं।ऋग्वेद के अनुपालक हैं क्योंकि श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर विराजमान भगवान जगन्नाथ साक्षात ऋग्वेद स्वरुप हैं। शंकराचार्य जी भारतीय युवा विवेक,भारतीय मेधाशक्ति तथा यूएन से भारत,नेपाल तथा भूटान को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने के निवेदन करनेवाले प्रथम जगतगुरु हैं।ये चाहते हैं कि भारत का विकास हो लेकिन हमारी शिक्षा व्यवस्था पर भारतीयता की पहचान सदैव बनी रहे।ये सदैव चाहते हैं कि सनातनी शाश्वत जीवन मूल्यों,नैतिक मूल्यों,सामाजिक मूल्यों और प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा हो। और इसके लिए ये साल के 365 दिनों में से कुल लगभग 222 दिन ओडिशा से बाहर जाकर अपनी आध्यात्मिक दृष्टकोण पूरे भारत को बताते हैं,दुनिया को बताते हैं।ये अच्छे संस्कार के संरक्षक हैं।इनके अनुसार आज न वसिष्ठ जैसा गुरु है न ही राम जैसा छात्र है इसलिए ऐसे में दिशाहीन भारतीय युवावर्ग को गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था,संयुक्त परिवार की अवधारणा,जातीय विवाह,विभिन्न कौशलों के विकास को अपनाने के साथ-साथ भारत के साधु-संतों के प्रवचन सुनने आदि का दिव्य संदेश देते हैं।ये आनंदवाहिनी तथा आदित्य वाहिनी जैसे अपने संगठनों के माध्यम से सभी को अच्छे संस्कार और अच्छी संस्कृति से जोडे रखना चाहते हैं।इनका यह दिव्य संदेश-“एक सुसंस्कृत, सुशिक्षित,सुरक्षित,समृद्ध, सेवापरायण स्वस्थ व्यक्ति तथा समाज की संरचना में विश्व मेधा-रक्षा-वाणिज्य और श्रमशक्ति का उपयोग एवं विनियोग हो। विश्व को धर्मनियंत्रित,पक्षपातविहीन-सर्वहितप्रद शासन सुलभ कराने में सत्पुरुषों की प्रीति तथा प्रवृत्ति परिलक्षित हो। सेवा और सहानुभूति के नाम पर किसी वर्ग के अस्तित्व और आदर्श को विलुप्त करने के समस्त षडयंत्र विश्वस्तर पर मानवोचित शील की सीमा में जघन्य अपराध उद्घोषित हो। विकास के नाम पर पर्यावरण को विकृत और विलुप्त करनेवाले समस्त प्रकल्प निरस्त हों। स्थावर,जंगम प्राणियों के हितों में पाश्चात जगत विनियुक्त हो। पृथ्वी,पानी,प्रकाश,पवन और आकाश सर्व शांतिप्रद और सुखप्रद हों।“ आगामी 20जून को पुरी में आषाढ शुक्ल द्वितीया को निकलनेवाली महाप्रभु जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध -रथयात्रा के दिन परम्परानुसार जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी अपने परिकरों से साथ आकर तीनों रथों तालध्वज(बलभद्रजी के रथ) देवदलन(सुभद्रा देवी के रथ) तथा नंदिघोष रथ(भगवान जगन्नाथ जी के रथ) की सुव्यवस्था आदि का अवलोकन करेंगे तथा तीनों रथों पर एक-एककर जाकर चतुर्धा देवविग्रहों को अपना दिव्य आत्मनिवेदन भेंट करेंगे तथा महाप्रभु से यह प्रार्थना करेंगे कि वे अपनी रथयात्रा भक्त-कल्याणार्थ,लोक-कल्याणार्थ तथा विश्व-कल्याणार्थ आरंभ करें।स्वर्गीय राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के भगवान राम के विषय में यह लिखा है-संदेश नहीं में स्वर्ग का लाया,भूतल को स्वर्ग बनाने आया। परमपाद स्वामीजी का त्यागी,तपस्वी और मनीषी जीवन भी यही संदेश देता है।स्वामी जी के दण्डी स्वामी के रुप में यह भी संदेश है कि निज हेतु बरसता नहीं व्योम से पानी,हम हों समष्टि के लिए व्यष्टि-बलिदानी।उनके सानिध्य में रहनेवाले यह अच्छी तरह से जानते हैं कि स्वामी जी समष्टि के हित के लिए व्यष्टि का बलिदान चाहते हैं और यहीं वास्तव में भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र भी है। पुरी गोवर्द्धन पीठ के 145वें पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी यही चाहते हैं कि भारत विश्व का आध्यात्मिक चेतना का केन्द्रबिंदु बना रहे। उनके अनुसार शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य अर्थ और काम पी प्राप्ति न हो अपितु अपनी जननी,जन्मभूमि भी से अटूट लगाव हो।स्वामी जी सदा यही चिंता रहती है कि भारत सुरक्षित हो।भारत के समस्त लोगों का कल्याण हो।सभी भारतीय सनातनी संस्कार और संस्कृति को बचाये रखें तथा आध्यात्मिक चेतना को जगाये रखें।–यही पुरी गोवर्द्धन पीठ के 145वें पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी का दिव्य संदेश है।
अशोक पाण्डेय
पुरी गोवर्द्धन पीठ के 145वें पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती
