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पुस्तक –समीक्षा

शकुन्तला की बेटी
ओडिया-लेखिकाः डा इति सामंत
हिन्दी अनुवादकः डा.शंकरलाल पुरोहित
प्रकाशकः मेधा बुक्स
नवीन शाहदरा,दिल्ली-110032
समीक्षकः अशोक पाण्डेय,
राष्ट्रपति पुरस्कार हिन्दी शिक्षक

ओडिशा कला, साहित्य, धरोहर, परम्परा और सांस्कृतिक की अपनी कमाल की लेखनी द्वारा बचाये रखने और उसकी श्रीवृद्धि हेतु सतत प्रयत्नशील लेखिका डा इति सामंत ओडिया साहित्य-जगत की एक सशक्त युवा हस्ताक्षर हैं जिनके ओडिया उपन्यास शकुन्तला की बेटी को आद्योपांत पढने का मौका मुझे पहली बार मिला। ओडिया मूल उपन्यास शकुन्तला की बेटी का हिन्दी अनुवाद ख्यातिप्राप्त अनुवादक डा शंकरलाल पुरोहित ने किया है। उपन्यास कुल 204 पृष्ठों का है जिसकी कीमत मात्र 400 रुपये है। 2020 में प्रथम प्रकाशित इस उपन्यास का कलेवर,छपाई तथा प्रस्तुतिकरण आकर्षक है। पाठक आसानी के साथ उपन्यास को पढ सकता है। समझ सकता है और लेखन के मूल उद्देश्य- बिना व्याही शकुन्तला की बेटी भारती का नामांकन स्कूल का हेडमास्टर उसके पिताजी के नाम के बगैर ही अंत में कर लेता है।–इस संदेश से भी अवगत हो सकता है। भारती,शकुन्तला की बेटी का स्कूल में दाखिले के लिए उसकी मां के नाम पर करने में हेडमास्टर पहले तो अपनी असमर्थता व्यक्त करता है,आना-कानी करता है लेकिन अंत में परिस्थिति के तकाजे से मजबूर होकर ,अपने अन्तःकरण की पुकार पर अति संवेदनशील होकर लीक से हटकर भारती का नामांन अपने स्कूल में कर लेता है। शकुन्तला की बेटी भारती की उम्र 6साल है। उपन्यास में लेखिका के ग्रामीण अंचल की अनुभूति , ओडिशा के गांवों के घर-घर में मनाये जानेवाले पर्व-त्यौहारों,अतिथिदेवोभव के तहत रिश्तेदारों-मेहमानों का आतिथ्य-सत्कार, इष्टदेव, गृहदेव और ग्राम्यदेव के रुप में जगन्नाथ की पूजा-अर्चना,ओडिया परम्परा के तहत शादी-विवाह आदि की सुन्दर जानकारी दी है। उपन्यास में लेखिका डा इति सामंत की आंचलिकता से परिपूर्ण भावनाओं को भी पाठक स्पष्ट पढ सकता है जैसाकि हिन्दी उपन्यासकार फणिश्वर नाथ रेणु ने मैला आंचल में किया है। उपन्यास में ओडिशा के ग्रामीण परिवेश,प्राकृतिक सुषमा सानिध्य तथा लोक परम्पराओं को साथ-साथ लेकर लेखिका उपन्यास के अंतिम चरण तक चलती है। उपन्यास को पढने से ऐसा लगता है कि ग्रामीण परिवेश की स्कूली शिक्षा और गांव के बच्चों में एक-दूसरे को पढने के लिए स्कूल जाते समय देखकर बच्चों के कोमल मन में उठनेवाली संवेदनाओं आदि का भी शकुन्तला की बेटी उपन्यास में विशेष खयाल रखा गया है। उपन्यास,पृष्ठ संख्याः174- “ये क्या? मुझे देर हो रही है। सामने दल के दल बच्चे स्कूल ड्रेस पहने जा रहे हैं। पीठ पर बस्ता । भारती के समकक्ष उम्रवाले रिंकू, नीकू, टुटला, रीकी-सभी तो स्कूल जा रहे हैं फिर मैं क्यों नहीं ? मुझे स्कूल क्यों नहीं जाने दोगी?” शकुन्तला अपनी बेटी भारती को आश्वस्त करती है कि वह भी अपनी लाडली बेटी को स्कूल अवश्य भेजेगी।बेटी कहती है कि उसकी मां सदा यही कहती है कि समय होने पर वह खुद गांव के स्कूल के हेडमास्टर के पास जाकर उसका नामांकन कराएगी। उपन्यास,पृष्ठः178- शकुन्तला अपने आप विचारकर दूसरे अच्छे विद्यालय नीलिमा विद्या निकेतन में अपनी बेटी भारती को दाखिले के लिए ले जाती है। उसकी बेटी भावना पहली बार स्कूल के बच्चों की प्रार्थना-आहे दयामय विश्वविहारी.. सुनती है। स्कूल की कक्षाओं के नाम ओडिशा के महापुरुषों,मधुसूदन कक्ष,गोपबंधु कक्ष, आचार्य हरिहर कक्ष तथा राष्ट्रपिता महात्मागांधी कक्ष के रुप में जानती है। शकुन्तला की बेटी भारती स्कूल में स्थापित गांधीजी और ओडिशा के अनेक महापुरुषों की प्रस्तर की मूर्ति के सामने जाकर उन्हें प्रणाम करती है। स्कूल की दीवारों पर टंगी अनेक महापुरुषों की तस्वीरों को देखती है।मन ही मन उन्हें भी प्रणाम करती है। स्कूल में नामांकन की परम्परा के तहत पिता के नाम पर ही उसके बच्चे का दाखिला स्कूल में होता है जिसे बडी ही शालीनता के साथ लेखिका डा इति सामंत तोडने में कामयाब होती हैं। स्कूल का हेडमास्टर बिन व्याही शकुन्तला की बेटी का दाखिला स्कूल में कर लेता है और शकुन्तला उपन्यास समाप्त हो जाता है। उपन्यास की लेखिका डा इति सामंत हरप्रकार से अपनी कमाल की लेखनी के माध्यम यथार्थ रुप में आदर्श लेखिका मानी जानी चाहिए जिन्होंने शकुन्तला उपन्यास के माध्यम से ओडिशा के ग्रामीण स्कूली शिक्षा के नामांकन तथा परम्परागत शिक्षा प्रणाली में बदलाव का कारगर संदेश देने में सफल सिद्ध हुईं हैं। उनके अनुसार आज लीक से हटकर गांवों की स्कूली शिक्षा-व्यवस्था में बदलाव की सख्त जरुरत है।उनके अनुसार गांवों में उत्कृष्ट नीलिमा विद्या निकेतन जैसे अनेक विद्यालय खोलने की आवश्यकता है। उन विद्यालयों में नीलिमा विद्या निकेतन जैसा परिवेश देने की जरुरत है। चरित्रवान तथा मेधावी शिक्षक तथा हेडमास्टर तैनात करने की आवश्यकता है।अब 21वीं सदी में यह देखना बडा दिलचस्प होगा कि आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को साकार करने में शकुन्तला की बेटी के दूरगामी संदेशों को अपनाकर ओडिशा के ग्रामीण स्कूली शिक्षा को कबतक स्वावलंबी बनाया जाता है।
अशोक पाण्डेय

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