प्रत्येक व्यक्ति के अंदर विष है उसका अज्ञान, अहंकार और भय. प्रत्येक व्यक्ति में अमृत के समान है-प्रेम, करुगा, ज्ञान. शाश्वत काल से विष और अमृत में संघर्ष चलते आ रहा है जिसका समाधान शिव जैसा गुरु ही कर सकता है.एकबात और, शिव इच्छा, भावना और पात्रता देखते हैं. शिव श्रद्धा को महत्त्व देते हैं, वे भक्त की पात्रता को परखते हैं फिर वरदान देते हैं. शिव कृपा नहीं सम्यक निर्णय लेते हैं. शिव मौन रहकर सुनते हैं.
प्रतिवर्ष सावन आकर यह सिखाता है कि
कामना में करुणा,
इच्छा में आत्म विकास और
प्रार्थना में ही सत्य, शिव और सुन्दर है.
जय जगन्नाथ!
प्रत्येक व्यक्ति के अंदर विष है उसका अज्ञान, अहंकार और भय
