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प्रोफेसर अच्युत सामंत का जीवन-दर्शनःअन्तर्राष्ट्रीय आर्ट आफ गिविंग बना जन-जन में लोकप्रिय

प्रस्तुतिः अशोक पाण्डेय
राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त
ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर स्थित कीट-कीस दो डीम्ड विश्वविद्यालयों के प्राणप्रतिष्ठाता तथा कंधमाल लोकसभा सांसद प्रोफेसर अच्युत सामंत का वास्तविक जीवन-दर्शनः अन्तर्राष्ट्रीय आर्ट आफ गिविंग आज भारत समेत पूरे विश्व के जन-जन में लोकप्रिय बन चुका है। 17मई,2013 को उनके द्वारा आरंभ किया गया आर्ट आफ गिविंग अब तो एक सामाजिक आन्दोलन बन चुका है जिसका पालन प्रोफेसर अच्युत सामंत के चाहनेवाले पूरे विश्व के लोग प्रतिवर्ष 17मई को स्वेच्छापूर्वक करते हैं। यह कितना बडा नग्न सत्य है कि इस संसार में सभी लेना चाहते हैं,देना कोई नहीं चाहता है।मनोविज्ञान कहता है कि देना भी एक विशिष्ट कला है जिसमें दाता की सहृदयता,उदारता,आत्मीयता,परोपकार तथा दानशीलता निहित होती है। इसमें दाता अर्थ,अन्न,वस्त्र,मांगनेवाले की जरुरत की सभी सामग्रि देकर प्रसन्न रहता है। देना जीवन का वह अनुभव है जिसमें दाता अपने वास्तविक जीवन में अभावों में पला-बढा होता है। उसके अभावग्रस जीवन में किसी ने कुछ देकर उसे अनुहीत किया हो। प्रोफेसर अच्युत सामंत का बाल्यकाल घोर आर्थिक संकटों का काल रहा।(1969 से लेकर 1979 तक)।जब प्रोफेसर मात्र चार साल के नवजात शिशु थे तभी उनके पिताजी का 19मार्च,1969 को एक रेल दुर्घटना में असामयिक निधन हो गया। घर में विधवा मां और प्रोफेसर सामंत के 3-3 भाई-बहन। कभी-कभी तो भोजन के अभाव में उन्हें बिना खाये ही सो जाना पडता था। उनकी विधवा माताजी के पास सिर्फ एक ही फटी-चीटी साडी थी जिसे वे पहनतीं थीं। सबसे छोटी बहन उन दिनों मात्र एक साल की थी। आत्मविश्वासी तथा सत्यनिष्ठ प्रोफेसर सामंत अपनी विधवा मां स्वर्गीया नीलिमारानी सामंत को अपने कामयाब जीवन की पहली गुरु मानकर,उनकी सेवा कर तथा उनके घर के कामों में सहयोगकर एक कामयाब इंसान बने। उनकी शैक्षिक शिक्षण संस्थान कीट-कीस की स्थापना के मूल में इंसानीयत,मानवता और दयाभाव ही रहा जिनकी कमी प्रोफेसर अच्युत सामंत ने अपने बाल्यकाल में अनुभव किया और यह निर्णय लिया कि वे आजीवन अविवाहित रहकर समाज के पददलित,उपेक्षित,समाज में विकास की मुख्यधारा से कटे आदिवासी,अनाथ,बेसहारे बच्चों को शिक्षित कर,उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकासकर उन्हें अपनी तरह ही स्वावलंबी तथा निःस्वार्थी जनसेवक बनाएंगे।उनको अपने बाल्यकाल में जो प्यार-दुलार,आर्थिक सहयोग,सहृदयता,आत्मीयता और अपनत्व समाज से नहीं मिला उसे वे आर्ट आफ गिविंग के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाएंगे। इसीलिए वे 17मई,2013 को अपने वास्तविक जीवन-दर्शन की शुरुआत की। आर्ट आफ गिविंग को पूरी तरह से कामयाब बनाने के लिए प्रोफेसर अच्युत सामंत ने ओडिशा की धरोहर ओडिया भाषा,संस्कृति,आदिवासी संस्कार-संस्कृति,ओडिशा की परम्परागत विभिन्न कलाओं,साहित्य,शिक्षा,तकनीकी शिक्षा,विज्ञान तथा खेल आदि को प्रोत्साहन के लिए कीट-कीस में सभी प्रकार से संसाधन अत्याधुनिक तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के तैयार किये। कीट-कीस आज पूरे विश्व के आकर्षण का केन्द्र बन चुका है । आधुनिक तीर्थस्थल बन चुका है। भारत का दूसरा शांति निकेतन बन चुका है। आज के अन्तर्राष्ट्रीय आर्ट आफ गिविंग के प्रणेता,प्रवर्तक तथा संस्थापक प्रोफेसर अच्युत सामंत इसके माध्यम से सभी के चेहरे पर हंसी देना चाहते हैं।समाज में आनन्द का माहौल तैयार करना चाहते हैं। सभी के लिए अनिवार्य रुप से शिक्षा उपलब्ध कराना चाहते हैं। आदिवासी तथा महिला सशक्तिकरण करना चाहते हैं।सामाजिक सचेतनता लाना चाहते हैं।प्रोफेसर सामंत एक सच्चे शांति योद्धा बन चुके हैं। कुल 48मानद डाक्टरेट की उपाधि पानेवाले प्रोफेसर अच्युत सामंत को 2015 में बहरीन का सर्वोच्च नागरिक सम्मानः गुस्सी शांति प्ररस्कार मिला। प्रोफेसर सामंत को मंगोलिया के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी उन्हें विभूषित किया गया। आज भारतीय संसद की लोकसभा में वे अपनी दीप्ति विखेरते हुए निःस्वार्थ मानवता की सेवा का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। आदिवासी तथा गरीबों की वे आवाज बन चुके हैं। अन्तर्राष्ट्रीय आर्ट आफ गिविंग के माध्यम से वे वे महिला तथा आदिवासी सशक्तिकरण को प्रोत्साहित कर रहे हैं।उनका अन्तर्राष्ट्रीय आर्ट आफ गिविंग वास्तव में मानवीय संवेदनाओं का आईंना बन चुका है। निःस्वार्थ मानव-सेवा का यथार्थ आदर्श बन चुका है।उसके माध्यम से एक-दूसरे को सहयोग कर दया-करुणा का पैगाम पूरे विश्व को प्रोफेसर सांत दे रहे हैं। इंसाव तथा इंसानियता को बचा रहे हैं। सहानुभूति को साकार कर रहे हैं। आपसी प्रेम और सद्भाव को बढा रहे हैं। शाश्वत जीवनमूल्यों की हिफाजत कर रहे हैं। लोकाचार को मजबूत कर रहे हैं। आइए,हमसब भी उनके अन्तर्राष्ट्रीय आर्ट आफ गिविंग जन-आंदोलन में पूर्ण सहयोग दें।
अशोक पाण्डेय

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