अशोक पाण्डेय
महाप्रभु जगन्नाथ के प्रदेश ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर स्थित कलिंग इंस्टिट्यूट ऑफ इण्डस्ट्रियल टेक्नालॉजी ‘‘कीट डीम्ड विश्वविद्यालय’’ तथा विश्व के सबसे बड़े प्रथम आदिवासी आवासीय विश्वविद्यालय ;कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ सोसल साइंसेज,‘‘कीस डीम्ड विश्वविद्यालय’’ के संस्थापक तथा कंधमाल लोकसभा के माननीय सांसद हैं महान् शिक्षाविद् प्रोफेसर अच्युत।वे सचमुच एक आलोक पुरुष हैं,दिव्यपुरुष हैं,ओडिशा के अमृतपुत्र हैं तथा आदिवासी समुदाय के कल्याण के लिए जीवित मसीहा भी हैं।वे एक सरल, सहज,उदार,परोपकारी,सहृदय तथा आत्मीय स्वभाववाले सज्जन पुरुष हैं।उनका पैतृक गांव कलराबंक उनके भगीरथ प्रयत्नों से एशिया का स्मार्ट विलेज बन चुका है जहां पर ग्राणीणों तथा बच्चों के सेवार्थ सबकुछ उनकी ओर से उपलब्ध है।उनकी स्वर्गीया मां नीलिमारानी सामंत ही उनके असाधारण सफल जीवन की वास्तविक प्रेरणा रहीं।वे आजीवन एक वात्सल्यमी आदर्श माँ रहीं प्रो अच्युत सामंत के लिए।प्रोफेसर अच्युत सामंत सचमुच श्रेष्ठता के आदर्श हैं और विनम्रता और सादगी के जीवंत प्रमाण भी हैं।
प्रो.अच्युत सामंता का पारदर्शी सरल व्यक्तित्व एक ऐसा तीर्थ है जहाँ शब्द मौन हो जाते हैं और भावनाएँ उनके साक्षात दर्शन के लिए हिलोरें लेने लगतीं हैं।
प्रो. अच्युत सामंताः हजार हाथोंवाले आधुनिक देवता हैं जो बिना मांगे जरुरतमंदों को सबकुछ दे देते हैं।
यह एक सहज मानव स्वभाव है कि प्रत्येक व्यक्ति को उसके अपने कटु अनुभव सदैव याद रहते हैं लेकिन वह अपने जीवन के सभी सुखद अनुभवों को भूल जाता है। प्रत्येक व्यक्ति सबसे पहले अपना जीवन संवारता है,अधिक से अधिक भौतिक सुखों का उपभोग करना चाहता है लेकिन प्रो अच्युत सामंत राजा जनक की तरह विदेह हैं। वे आज भी भुवनेश्वर,नयापली में दो कमरों वाले किराये के मकान में रहते हैं तथा साग-भात खाकर वे लाखों युवाओं का रोलमॉडल बनकर उनका सर्वांगीण विकास करते हैं।उनके जीवन को संवारते हैं।प्रो अच्युत सामंत एक दिव्य पुरुष तथा आलोक पुरुष हैं। उनकी विनम्रता ,सहजता तथा उनके चेहरे पर सदैव छाई रहनेवाली भगवान बुद्ध-जैसी शांति तथा मुस्कराहट उनके पारदर्शी व्यक्तित्व को प्रेरणादायक बना देतीं हैं। प्रो अच्युत सामंत जब मात्र चार साल के शिशु थे तभी उनके पिताजी अनादि चरण सामंत का एक रेलदुर्घटना में असामयिक निधन हो गया।प्रो अच्युत सामंत के व्यक्तिगत जीवन के आरंभ के लगभग 25 साल उनको अपने आपको स्वावलंबी बनाने में लगे तथा शेष 25 साल आदिवासी समाज तथा लोकसेवा में व्यतीत हुए हैं।59 वर्षीय प्रो अच्युत सामंत ने कीट-कीस-कीम्स तथा अपने सभी शैक्षिक संस्था समूहों के माध्यम से अबतक जो कुछ भी किया है वह सचमुच कल्पना से परे है। उन्होंने कीट-कीस-कीम्स का इतना विशालतम स्वरुप खडा कर दिया है जो किसी भी एक गरीब युवा के लिए असंभव है। प्रो अच्युत सामंत स्वयं यह मानते हैं कि इस असाधारण उपलब्धियों के लिए वे तो सिर्फ एक निमित्त मात्र हैं ,किया तो उनके इष्टदेव जगन्नाथ जी और हनुमान जी ने हैं। प्रो अच्युत सामंत को कामयाबी के इस मुकाम तक पहुंचने में उन्हें पग-पग पर अनेक मुशीबतों, समस्याओं, अपमानों, आलोचनाओं, तिरस्कारों तथा बेवजह के विवादों से गुजराना पड़़ा। लेकिन वे लक्ष्य तथा अपने कर्तव्य-पथ पर अबाध गति से चलते रहे।भगवान भोलेनाथ की तरह वे अपने जीवन में आनेवाले सभी हलाहल को पीते रहे।15नवंबर,2019 को वे कर्मवीर अच्युत सामंत के रुप में ‘कौन बनेगा करोड़पति’’के हॉट सीट पर बैठे। दुनिया प्रो अच्युत सामंत को जानी।कौन बनेगा करोडपति द्वारा प्रो अच्युत सामंत को मिले मानपत्र में लिखा था- ‘‘समर्पण के प्रतीक,मानवता की बेहतरीन मिसाल,कर्म ही जिसका धर्म है, सेवा ही जिसकी निष्ठा है, उनके जैसे कर्मवीर प्रो अच्युत सामंत को सम्मानित करके ‘केबीसी’स्वयं को सम्मानित महसूस कर रही है।सच तो यह है कि प्रो अच्युत सामंत सभी से प्यार करते हैं और सभी उनको प्यार करते हैं।2020 की वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण काल में एक तरफ जहां सभी अपने-अपने घरों में एकांतवास कर रहे थे वहीं प्रो अच्युत सामंत ओडिशा सरकार तथा ओडिशा के माननीय मुख्यमंत्री श्री नवीन पटनायक जी की प्रेरणा तथा सहयोग से ओडिशा में चार-चार कोविद-19 अस्पताल खोले। कोरोना योद्धाओं आदि की हर प्रकार के सेवा तथा सहायता की। साधु-महात्माओं से लेकर बौद्ध भिक्षुओं तक उन्होंने अपनी ओर से अनवरत भोजन आदि उपलब्ध कराया। 2020 मार्च से लेकर जुलाई 2020 तक अपने द्वारा स्थापित कीस के कुल तीस हजार से भी अधिक आदिवासी बच्चों को उनके गृहगांव में सूखा राशन से लेकर चूड़ा-चीनी,दाल तथा सूखा फल आदि अपनी ओर से निःशुल्क उपलब्ध कराया। उन आदिवासी बच्चों को उनकी पाठ्य-पुस्तकें तथा अन्यान्य शैक्षिक संसाधान आदि उपलब्ध कराये।अगर कोई उनसे कुछ सिखना चाहे तो उनके जीवन-दर्शनःआर्ट ऑफ गिविंग(जिसकी शुरुआत उन्होंने 17मई,2013 से बैंगलुरु से किया)।गौरतलब है कि 1992-93 में मात्र पांच हजार रुपये से ‘‘कीट-कीस’’ की उन्होंने स्थापना की । ‘‘कीस’’ आज भारत का प्रथम आदिवासी आवासीय विश्वविद्यालय बन चुका है जबकि कीट पहले से ही डीम्ड विश्वविद्यालय है जहां पर लगभग चालीस हजार से भी अधिक बच्चे उच्च तथा तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। प्रो अच्युत सामंत का कीस आज दुनिया का वास्तविक तीर्थस्थल है जहां पर आदिवासी बच्चे समस्त आवासीय सुविधाओं का निःशुल्क उपभोग करते हुए केजी कक्षा से लेकर पीजी कक्षा तक फ्री पढ़़ते हैं तथा प्रो अच्युत सामंत को अपना आदर्श मानकर अपने व्यक्तित्व का सम्यक विकास करते हैं। हिन्दी समालोचक स्वर्गीय रामचन्द्र शुक्ल ने अपने ’श्रद्धा‘ पाठ में यह बताया है कि किसी के प्रति श्रद्धा के आधार तीन हैं। पहली श्रद्धा व्यक्ति की असाधारण प्रतिभा, दूसरी श्रद्धा व्यक्ति का शील अथवा पारदर्शी चरित्र है तथा तीसरे प्रकार की श्रद्धा व्यक्ति विशेष की साधन-संपन्नता है। ये तीनों प्रकार की श्रद्धा के वास्तविक हकदार हैं प्रो. अच्युत सामंत।प्रो अच्युत सामंत को ‘‘गरीबों की सुनो,वो तुम्हारी सुनेगा,तुम एक पैसा दोगे,वह दस लाख देगा।–हिन्दी फिल्मी गाना बहुत पसंद है और उसे ही वे अपने कर्मयोगी जीवन का आधार बना लिए हैं।कुल लगभग 25 देवालय बनानेवाले प्रो अच्युत सामंत प्रतिदिन स्वयं तीन-तीन घण्टे पूजा-पाठ करते हैं। उनसे मिलनेवालों में साधु-महात्माओं की संख्या अधिक है जो उनको आशीर्वाद देने के लिए भारत के विभिन्न प्रदेशों से आते हैं और अपने आपमें गौरवान्वित महसूस करते हैं।वहीं प्रो अच्युत सामंत कंधमाल लोकसभा सांसद के रुप में अपनी छवि निःस्वार्थ जननायक और लोकनायक के रुप में प्रतिष्ठित कर चुके हैं। प्रो. अच्युत सामंत प्रतिमाह पहली तारीख को श्रीजगन्नाथ धाम पुरी जाकर भगवान जगन्नाथ के दर्शन अवश्य करते हैं।वे प्रतिमाह के अंतिम शनिवार को सिरुली महावीर के दर्शन अवश्य करते हैं। वे अपने गांव स्मार्ट विजेल कलराबंक जाकर अपने द्वारा निर्मित रामदरबार में सभी देवी-देवताओं की पूजा अवश्य करते हैं। वे अपने भुवनेश्वर नयापली स्थित किराये के मकान में प्रत्येक महीने की संक्रांति के दिन सुंदरकाण्ड का अखण्ड संगीतमय पाठ अवश्य कराते हैं। सच कहा जाय तो प्रो अच्युत सामंत का जीवन सहज रुप में आध्यात्मिक जीवन बन चुका है।उनके द्वारा स्थापित कीट -कीस का पूरा परिवेश भी उनके मार्गदर्शन में पूरी तरह से आध्यात्मिक लगता है। वे पुरी गोवर्द्धन मठ के 145वें पीठाधीश्वर और पुरी के जगतगुरु शंकराचार्य परमपाद स्वामी निश्चलानन्दजी सरस्वती महाराज के परम शिष्य हैं।प्रो सामंत सच्चे ईश्वरभक्त हैं, गुरुभक्त हैं, ब्राह्मणभक्त हैं तथा वे पूरी तरह से आध्यात्मिक जीवन जीनेवाले संत हैं। वे समाज के उपेक्षित और विकास से वंचित आदिवासी समुदाय के बच्चों के लिए देवदूत हैं। उनकी सोच सदैव सकारात्मक है।प्रो अच्युत सामंत के वास्तविक विदेह जीवन के अवलोकन से ऐसा जान पडता है कि प्रो अच्युत सामंत सचमुच एक महान् शिक्षाविद् तथा निःस्वार्थी राजनेता हैं।
-अशोक पाण्डेय
प्रो.अच्युत सामंतः एक महान् शिक्षाविद् तथा एक निःस्वार्थी राजनेता
