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प्रो.अच्युत सामंत का कठोरतम बाल्यकाल तथा अनुकरणीय उनका जीवन-दर्शन

-अशोक पाण्डेय,राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त
मां,मातृभूमि और मातृभाषा के सच्चे संरक्षक तथा आजीवन प्रचारक हैं प्रो.अच्युत सामंत,माननीयसांसद,लोकसभाकंधमाल(ओडिशा),भारततथा प्राणप्रतिष्ठाताःकीट-कीस, भुवनेश्वर,ओडिशा। उन्होंने मात्र 22साल की उम्र से अध्यापन कार्य आरंभ किया।उनके पास आज कुल लगभग 33 वर्षों के शिक्षण का लंबा अनुभव भी है।वेसबसे कम उम्र के कीट डीम्ड विश्वविद्यालय,भुवनेश्वर के संस्थापक कुलाधिपति हैं।विश्व के प्रथम आदिवासी आवासीय कीस डीम्ड विश्वविद्यालय,भुवनेश्वर के संस्थापक कुलाधिपति भी रह चुके हैं। वे आजाद भारत के कीर्तिमान 50 ऑनरेरी डॉक्टरेट की डिग्री पानेवाले प्रथम महान शिक्षाविद् हैं।वेआज से करीब 28 वर्ष पूर्व कीस को आत्मनिर्भर बनाकर भारत को भी आत्मनिर्भर बनाने में लगे हुए हैं।वे अपने पैतृक प्रदेश ओडिशा की धरती के सच्चे देवदूत हैं। सच्चे मानवतावादी हैं।ये अपनी मां,अपनी मातृभूमि ओडिशा तथा अपनी मातृभाषा ओडिया के सच्चे संरक्षक तथा आजीवन प्रचारकहैं।प्रोफेसर अच्युत सामंत का यह मानना है कि भारत की आत्मा गांवों में रहती है इसीलिए गांवों को आत्मनिर्भर बनाने की जरुरत है। गांवों को स्मार्ट गांव बनाने की जरुरत है। जाननेवाले जानते हैं कि प्रोफेसर अच्युत सामंत का अपना गांव कलराबंक आज उनके प्रयासों से एक स्मार्ट गांव बन चुका है जहां पर बच्चों के सर्वांगीण विकास के समस्त शैक्षिक तथा खेल संसाधन आदि उपलब्ध हैं। गांव के लोगों के उत्तम स्वास्थ्य,कृषि तथा रोजगार के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं। उस गांव में वाईफाई सुविधा भी उपलब्ध है। 2006 में कलराबंक माडेल गांव का उद्घाटन ओडिशा के तात्कालीन राज्यपाल द्वारा किया गया। आज कलराबंक गांव के साथ-साथ वहां की पंचायत भी मॉडेल पंचायत है। कलराबंक स्मार्ट विलेज में स्कूल,कालेज,बैंक,चौबीसों घण्टे सेवा के लिए 100 बेडवाला अस्पताल,सार्वजनिक पुस्तकालय,डाकघर,महिला-युवा क्लबसौरऊर्जा तथा वाईफाई आदि उपलब्ध है। कीस भुवनेश्वर की कलराबंक नई शाखा है।
प्रो. अच्युत सामंत नेअपने संसदीय क्षेत्र कंधमाल को आत्मनिर्भर संसदीय क्षेत्र के रुप में परिणित करने में जुटे हुए हैं।कीस अभिभावक महाकुम्भ-2023 में लगभग एक लाख आदिवासी अभिभावकों ने हिस्सा लिया।विलक्षण व्यक्तित्व अच्युत सामंत के सामने पिछले लगभग 30 वर्षों में कई बाधाएं आईं हैं लेकिनवे न कभी विचलित हुए, न डिगे और न रुके। स्वयं को आदिवासी बच्चों की सेवा में समर्पित कर दिया है।विश्व के सबसे बडे आदिवासी आवासीय विद्यालय कीस आज पूरे आदिवासी समुदाय के भीतर एक आंदोलन बन चुका है। प्रो. अच्युत सामंत का वास्तविक जीवन-दर्शनःआर्ट आफ गिविंग आज सारा विश्व स्वेच्छापूर्वक प्रतिवर्ष 17मई को मनाता है।अपने बाल्यकाल में अनाथ,गरीब,बेसहारा बालक अच्युत सूखे पत्ते बटोरने में अपनी विधवा मां की मदद करके तथा अपनी विधवा मां को अपना पहला गुरु मानकर लीफ टेकर से भारतीय संसद में नीति-निर्धारक असाधारण व्यक्तित्व बन चुके हैं।2015 में प्रो. अच्युत सामंत को बहरीन का सर्वोच्च शांति नागरिक सम्मान गुस्सी सम्मान प्रदान कियागया। अपने असाधारण सफल जीवन की पहली गुरु माननेवाले अपनी स्व. मांनीलिमारानी सामंत पर अंग्रेजी में प्रो.सामंत ने एक पुस्तक लिखी माई मदर माई हीरो जो सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत है।प्रोफेसर अच्युत सामंत ने ओडिशा के अविभाजित कटक जिले के सुदूर अपने कलराबंक गांव को स्मार्ट गांव बना चुके हैं।उनकी पंचायत माणपुर आज एक आदर्श पंचायत बन चुकी है।प्रोफेसर अच्युत सामंत का बुलंद इरादा है – कीस की उत्कृष्ट शिक्षा के माध्यम से इस दुनिया सेगरीबी का उन्मूलन करना,भूखमरी तथा निरक्षरता को समाप्त करना। सामाजिक न्याय दिलाना ,आदिवासी,आदिवासी महिला,महिला सशक्तिकरण करना और उसके लिए वे दिनरात सेवाभाव तथा समर्पणभाव से लगे रहते हैं।इनके मन में मानव सेवा में ही माधव सेवा का आत्मविश्वास जगाया।उनको आध्यात्मिक जीवन जीना सिखाया। दुख में धीरज धारण करना सिखाया। संघर्ष ही जीवन है- का मंत्र प्रोफेसर सामंत को दिया।गौरतलब है कि प्रोफेसर अच्युत सामंत जब मात्र चार साल के थे तभी उनके पिताजी अनादिचरण सामंत का असामयिक निधन एक रेलदुर्घना में हो गया। प्रोफेसर बाल्यकाल के सुकुमार जीवन में घोर निराशा छा गया। यह तो कल्पना से परे की बात है कि किस प्रकार उन्होंने अपनी विधवा मां और 3 भाइयों और 4 बहनों को पढा-लिखाकर शिक्षित बनाया,आत्मनिर्भर बनाया।प्रोफेसर सामंत का नामकरण-अच्युतानंद सामंत लगभग 6 साल की उम्र में उनके स्थानीय प्राईमरी स्कूल के प्रधानाध्यापक ने किया। प्रोफेसर सामंत अपने से स्नातक तथा स्नात्तकोत्तर तथा डाक्टरेट की डिग्री प्राप्त की। 1992 में जब वे महसूस किये कि ओडिशा के युवाओं के पास उत्कृष्ट तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी है ,भारत में शिक्षा तथा नौकरी में कुछ नहीं कर सकते तो उन्होंने अपनी कुल जमा पूंजी मात्र पांच हजार रुपये से दो शैक्षिक संस्थान,कलिंग इंसटीट्यूट आप इंडस्ट्रियलटेक्नालाजी(कीट)तथा कलिंग इंस्टीट्यूट आफ सोसलसाइंसेज(कीस) की स्थापना एक किराये के मकान में की।सच तो यह भी है कि कीट में उपलब्ध समस्त अत्याधुनिक तथा विश्वस्तरीय खेल संसाधन,इंफ्रास्ट्रक्चर,कोचेज आदि किसी भी सरकारी तथा निजी विश्वविद्यालयों के सबसे अधिक है।यह भी सत्य है कि जैसे-जैसे कीट का विकास होता गया वैसे-वैसे कीस भी विकासित होता गया।यह कहना कोई अतिशयोक्ति की बात नहीं होगी कि कीस ने नक्सलवाद पर लगाम लगा दिया है क्योंकि आदिवासी बच्चों को कीस के माध्यम से अगर शिक्षित नहीं किया जाता तो अधिकतर आदिवासी बच्चे नक्सली बन जाते।यह भी सच है कि ओडिशा भारत का एक गरीब राज्य है जहां की कुल आबादी के लगभग 25 प्रतिशतआदिवासी हैं जो अनादिकाल से पहाडों पर रहते आ रहे हैं। वे गरीब,अनाथ,बेसहारा,दुखी,अज्ञानी,अंधविश्वासी हैं। वे जंगलों में रहते हैं।उनका जीवन पूरी तरह से अविकसित है। कीस की उत्कृष्ट तालीम के माध्यम से वरदान के रुप में आज उनका विकास हो रहा है।प्रोफेसर अच्युत सामंत के भगीरथ प्रयत्नों से आज ओडिशा का आदिवासी बच्चा अपने हाथों में तीर-धनुष तथा तलवार न लेकर कलम धारण किया है। प्रोफेसर अच्युत सामंत का लक्ष्य है कि 2030 तक कीस की निःशुल्क तथा जीवनोपयोगी शिक्षा के माध्यम से आदिवासी समुदाय की गरीबी और भूखमरी को वे समाप्त कर देंगे।कीस आज आत्मनिर्भर कीस है। स्वपोशित कीस है।स्वच्छ कीस है। प्रगतिशील कीस है। जन-जन की आकांक्षाओं का कीस है।बापू के सपनों का कीस है। रवीन्द्र नाथ टैगोर की परिकल्पना का कीस है।भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के सपनों का साकार स्वरुप कीस है। ओडिशा के लौहपुरुष स्व.बीजू पटनायक के सपनों को साकार करनेवाला कीस है। ओडिशा के लगभग 22 वर्षों से मुख्यमंत्री पद पर आसीन श्री नवीन पटनायक की आकांक्षाओं का कीस है जिसके लिए अविवाहित रहकर तन,मन और धन से 18-18 घण्टे काम करनेवाले प्रोफेसर अच्युत सामंत का अपना सबसे प्यारा कीस है।कीस नई शिक्षा नीतिः2020 के कार्यान्वन का वास्तविक प्रकाशस्तंभ है।प्रोफेसर अच्युत सामंत ने 2000 में ओडिया मासिक पत्रिका कादंबिनी तथा बाल प्रतिभा के विकास के लिए बच्चों की पत्रिका कुनीकथा का श्रीगणेश किया जो आज पूरे विश्व में सबसे लोकप्रिय ओडिया मासिक पत्रिका हैं।प्रो. अच्युत सामंत की असाधारण सफलता की कामयाबी शून्य से शिखर तक, सूखे पत्ते बटोरनेवाले से लेकर लोकसभा सांसद तक उनको आदिवासी समुदाय के जीवित मसीहा के रुप में प्रतिष्ठित कर दिया है।प्रो. अच्युत सामंत के जीवन की वास्तविक कहानी धोर गरीबी से आरंभ होती है।जीर्ण-शीर्ण दो छप्परवाले कमरे के घर में प्रोफेसर अच्युत सामंत के अपना बाल्यकाल बिताया। प्रो. सामंत की अपनी विधवा मां,तीन भाई और चार बहनें उसी धर में रहते थे। लालटेन के टूटे शीशे से निकलती रोशनी की टिममटिमाती रोशनी में रात कैसे गुजरती थी,यह सोच से परे की बात है। घर में किरासन का तेल खरीदने के लिए पैसे नहीं था कि लालटेन जलाकर रात गुजार सके प्रोफेसर अच्युत सामंत का गरीब परिवार। कब रात कटे की परिवार के जीवन में उजाला आये इसी की प्रतीक्षा रहती थी।प्रोफेसर सामंत बताते हैं कि रातभर सांप,बिच्छू और गोजर से बचने की प्रार्थना पूरा परिवार जगन्नाथ से करता था। अगर बारिश हो जाय तो बारिश का पानी सीधे उनके घर में आता था।रात में तेज हवाएं चलने से ,आंधी-तूफान में उनके परिवार के सभी एक-दूसरे से चिपककर बैठ जाते और जगन्नाथ से सुबह होने की प्रतीक्षा करते। ठण्ड से बचने के लिए कोई गर्म कपडा भी नहीं था। दांत कटकटाकर रह जाते परिवारवाले। सभी अन्दर ही अंदर दुखित रहते। साहस और धैर्य की परीक्षा हर वक्त होती। खाने को घर में कुछ भी नहीं होता।सुबह में किसी प्रकार गीला चावल तथा जंगली पालक की सब्जी नसीब होती थी। प्रतिदिन खाना नहीं मिलने से खाने के प्रति रुचि धीरे-धीरे समाप्त –सी हो गई। घर में सरसों का तेल भी नहीं था जिससे कि सब्जी बनती। बडी मुश्किल से आटा खरीदकर घर आता और चार-चार दिनों के बाद घर में रोटी पकती थी। वहीं 59वर्षीय प्रो.अच्युतसामंत आज विश्व के महान शिक्षाविद् हैं। निःस्वार्थ लोकसेवक हैं जो पूरी दुनिया के युवाओं के आदर्श हैं।
-अशोक पाण्डेय

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