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भगवान परशुराम की जन्मस्थली जानापांव से तपोस्थली महेन्द्रगिरि पर्वत तकःएक विश्लेषणः

अशोक पाण्डेय,
राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त

विश्व का एकमात्र देश भारत ही है जहां पर ब्राह्मण,गाय,देवता तथा सज्जनों की रक्षा के लिए नारायण अवतार लिए हैं। भारत और भारतीयता रक्षा हुई है। विश्व को शांत,खुशहाल और आनंदमय जीवन जीने की प्रेरणा मिली है। भगवान परशुराम इक्ष्वाकु कुल के एक तेजस्वी ब्राह्मण थे।वे भगवान विष्णु के छठे अवतार थे। उनका जन्म अक्षय तृतीया के दिन मध्यप्रदेश की एक पहाड़ी पर(इंदौर के समीप) स्थित जानापांव की एक झोपड़ी में हुआ था उनके पिता का नाम जमदग्नि और माता का नाम रेणुका था। वे सभी ब्राह्मणों के गुरु हैं। जाननेवाले जानते हैं कि भगवान परशुराम भीष्म,द्रोण,रुक्मी और कर्ण के गुरु थे।यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भगवान परशुराम जैसा गुरु और उनके जैसा योद्धा इस सृष्टि में कोई पैदा ही नहीं हुआ। भगवान परशुराम की तपोस्थली ओड़िशा प्रदेश का महेन्द्रगिरि पर्वतश्रृंखलाएं रही थीं।वहां के स्थानीय लोगों का यह कहना है कि भगवान परशुराम आज भी उस महेन्द्रगिरि पर्वत पर चलते-फिरते नजर आते हैं। उत्तरप्रदेश सरकार के माननीय श्रम कल्याण राज्य मंत्री पण्डित सुनिल भराला का मानना है कि भगवान परशुराम बड़े ही त्यागी, तपस्वी, शूरवीर और धर्मात्मा थे। वे सामाजिक न्याय और राष्ट्रीय संतुलन के आदर्श थे। वे भगवान भोलेनाथ के कैलास लोक में जाकर तपस्या किए। शस्त्रों का ज्ञान प्राप्त किए और विद्युद्भि परशु को भी प्राप्त किया था।गौरतलब है कि मंत्री पण्डित सुनिल भराला अपनी संस्था राष्ट्रीय परशुराम परिषद् के माध्यम से पूरे संकल्पित भाव से भगवान परशुराम विश्वविद्यालय की स्थापना करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि भारत के कुल 56 स्थलों का जीर्णोद्धार अपनी राष्ट्रीय परिषद् की दो शाखाओं के माध्यम से करें जहां से भगवान परशुराम का किसी न किसी रुप में संबंध रहा था। वहीं गत 30 अप्रैल,2025,अक्षय तृतीया के दिन ओड़िशा सरकार के परिवहन तथा खनिज मंत्री माननीय विभूति भूषण जेना ने भगवान परशुराम की तपोस्थली महेन्द्र गिरि पर्वत पर जाकर भगवान परशुराम की विधिवत पूजाकर यह संदेश दिया कि आज के परिपेक्ष्य में भगवान परशुराम के संदेशों को अपनाना परम आवश्यक है। मंत्री विभूति भूषण जेना के अनुसार वे जो कुछ भी भगवान परशुराम के विष्य में जानते हैं उसके अनुसार राष्ट्रधर्म तथा सामाजिक न्याय की रक्षा के लिए शस्त्र का प्रयोग शास्त्र सम्मत होना चाहिए। वेदशास्रानुमोदित यथार्थजीवनचर्याहै।अहंकार का परित्याग व मानवता का परिपालनहै।आसुरी प्रवृत्ति का परित्याग और जीवों पर दयाहै।आत्म सम्मान की रक्षा, सुरक्षा व सजगता है। धार्मिक प्रवृत्ति का प्रचार व संरक्षण है। परमात्मा व प्रकृति में आस्था और विश्वास है। समस्त विश्व के मंगल की कामना है। गौरतलब है कि महेन्द्र गिरि पर्वत पर विप्र फाउंडेशन ओडिशा जोन-10 के सौजन्य से भगवान परशुराम जयंती मनाई गई थी जिसमें अध्यक्ष महेश शर्मा,संरक्षक जगदीश मिश्र,राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओमप्रकाश मिश्रा आदि उपस्थित थे जबकि परशुराम जयंती को सफल बनाने में महेन्द्रगिरि पर्वत स्थित भगवान परशुराम मंदिर के पूजक महंत लक्ष्मी बाबा का योगदान अतुलनीय था।अवसर पर विप्र फाउण्डेशन ओड़िशा जोन-10 के प्रदेश संगठन महामंत्री श्री शरद शर्मा मुख्य यजमान के रूप में योगजान दिए। भगवान परशुराम की तपोस्थली महेंद्रगिरि पर्वत समुद्र तल से लगभग 5000 फीट की ऊँचाई पर है। वहां के एक पूजक 70 वर्षीय लक्ष्मी बाबा का कहना है कि महेन्द्र गिरि पर्वत पर जाने से पहले एक पवित्र कुण्ड है जिसका नाम परशुराम कुण्ड है जिसका जल शीतल तथा पवित्र है। महेन्द्रगिरि पर्वत पर भगवान शिव का भी एक छोटा मंदिर है। प्रतिवर्ष शिवरात्रि के अवसर पर वहां पर एक मेला लगता है। वहां पर एक एक जगन्नाथ मंदिर भी है जिसे दारुविग्रह मंदिर कहा जाता है। महेन्द्र गिरि पर्वत पर उन मंदिरों में जनेऊ संस्कार आदि विधिवत होता है। इसक्रम में सबसे उल्लेखनीय और प्रशंसनीय बात यह है कि भारत सरकार के माननीय गृहमंत्री श्री अमित शाह ने लगभग तीन साल पूर्व अरुणाचल प्रदेश में लोहित नदी के तट पर भगवान परशुराम की 54 फीट की अष्टधातु निर्मित प्रतिमा का शिलान्यास भी कर चुके हैं। सच कहा जाय तो भगवान परशुराम आज भी उच्चतम जीवन आदर्शों और शाश्वत जीवन-मूल्यों के संस्थापक हैं। उनकी जन्मस्थली मध्यप्रदेश के जानापांव से लेकर उनकी तपोस्थली ओड़िशा के महेन्द्र गिरि पर्वत की यात्रा करनेवाले यह मानते हंं कि भगवान परशुराम के संदेशों को अपनाना आज भी एक छात्र,एक शिक्षक और भारत के एक सच्चे सिपाही के लिए बहुत आवश्यक है।
-अशोक पाण्डेय

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