-अशोक पाण्डेय
सृष्टि की उत्पत्ति जल से हुई है।सृष्टि का विकास भी जल से ही हुआ है।कहते हैं कि पूरे विश्व में भारतवर्ष ऋषियों का एकमात्र देश है जहां पर ऋषियों ने बहुत सोच-समझकर इस सृष्टि के सबसे विवेकशील मानव को उसके कल्याण के लिए स्वस्तिक तथा अन्य मांगलिक चिह्न प्रदान किये हैं। कुल 8 मांगलिक शुभ चिह्न हैं।ये हैः शंख, चक्र, कमल, मीनयुगल, मंगल कलश,श्रीवत्स,पंचागुलक तथा स्वस्तिक।स्वस्तिक इनसभी में सबसे शुभ तथा मंगलकारी शुभ चिह्न माना जाता है जो प्रत्येक सनातनी देवालयों तथा घर के प्रवेशद्वार तथा पूजाघर के सामने लगाया जाता है। ओम को सनातन धर्म में पहला शुभ प्रतीक चिह्न माना गया है। इसे ओंकार भी कहते हैं।
शंख
शंख जल से प्राप्त हुआ है।लेकिन ध्वनि प्रदान करने के चलते इसे आकाश तत्त्व माना जाता है।यह सौभाग्यवृद्धि का प्रतीक है।शंख को स्वयं भगवान विष्णुजी धारण करते हैं इसीलिए शंख का अपना एक आध्यात्मिक महत्त्व है।शंख की पवित्र ध्वनि किसी भी शुभ कार्य के समय बजनी अत्यंत शुभ मानी जाती है।इसके लगाने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और मन-चित्त को शांति मिलती है।समुद्रमंथन के समय कुल 14रत्न मिले थे जिनमें छठा रत्न शंख ही था।वेदों में इसे विजय का प्रतीक माना गया है।घर में शंख को रखना धन की देवी लक्ष्मी जी को प्रसन्न करना माना जाता है।
चक्र
सनातनी परम्परा के अनुसार समय(काल) चक्रीय है। चक्र को मानव शरीर का प्राण माना गया है।मानव शरीर में कुल 7 ऊर्जा केन्द्र(चक्र) हैं जिनमें निरंतर संतुलन की जरुरत होती है।ये हैःमूलाधार चक्र,स्वाधिष्ठान चक्र,मणिचक्र,अनाहत चक्र,विशुद्ध चक्र,आज्ञाचक्र,सहस्त्र चक्र।चक्र प्रगति का प्रतीक है।यह जीवन को गति प्रदान करता है।यह जीवन को आनंद के साथ आगे बढाने में सहायक माना जाता है।
कमल
कमल को पद्म भी कहा जाता है।कहते हैं कि इस सृष्टि का निर्माण भी कमल से हुआ है ऐसा भागवत पुराण कहता है। कमल देवी लक्ष्मी का आसन है।भगवान विष्णु की नाभि से इसकी उत्पत्ति हुई है।इसी कमल पर बैठकर ब्रह्माजी ने इस सृष्टि की रचना की थी।उपनिषदों में कमल को भारतीय संस्कृति का प्रतीक माना गया है।यह कोमलता तथा सौंदर्य का प्रतीक है।यह भी कहा जाता है कि समुद्रमंथन के समय 14 रत्न निकले जिनमें एक कमल पर विराजमान लक्ष्मीजी थीं।कमल का फूल हमारी पौराणिक धरोहर भी है।ज्ञान,विद्या,कला और संगीत की देवी सरस्वती जी भी कमलासना हैं जो श्वेत कमल पर विराजमान रहतीं हैं।
मीनयुगल
भगवान विष्णु का पहला अवतार मीन अवतार है।मीनयुगल खुशी,सौभाग्य तथा सफलता का प्रतीक है।युगलमीन देखने से ही हमारे कार्य सफल हो जाते हैं।यह ईश्वर के प्रति तथा अपने इष्टदेव के प्रति भक्ति तथा प्रेम बढता है।यह सम्मान तथा निर्माण का भी प्रतीक है।
मंगल कलश
जल से भरा कलश सबसे शुभ माना जाता है।यह समृद्धि तथा हरप्रकार की संपन्नता का प्रतीक है।लोकमान्यता के अनुसार निवासस्थल के प्रवेशद्वार के दोनों तरफ अगर मंगलघट हो तो उस घर में सभी प्रकार से मंगल ही मंगल होता है।मंगल कलश से प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठानों तथा मांगलिक कार्यों में पूजन से हरप्रकार का लाभ मिलता है।घर में मंगल कलश रखते ही सारी परेशानियां दूर हो जातीं हैं।
श्रीवस्त
यह शुभ जिह्न भगवान विष्णुजी के वक्ष पर सुशोभित है।इसीलिए इसका नाम श्रीवस्त है।इसका अर्थ सुंदर भी होता है।यह करुणामय हृदय का भी प्रतीक है। यह भी कहा जाता है कि श्रीगणेश जी और लक्ष्मीजी की पूजा एकसाथ की जाती है इसलिए उस समय अगर इस शुभ चिह्न का प्रयोग किया जाता है तो घर-परिवार के सारे कष्ट और विध्न-बाधाएं दूर हो जातीं हैं।
पंचागुलक
हमारी प्राचीन सनातनी लौकिक परम्परा में पंचागुलक का सामाजिक और धार्मिक महत्त्व है। एक गांव का किसान अगर गांव से बाहर जाता है तो उसकी पीठ पर हल्दी की पांच अंगुलियों का शुभ चिह्न लगाया जाता है जिसे पंचागुलक कहते हैं।गौरतलब है कि यह शुभ चिह्न केवल दाहिने हाथ की पांच अंगुलियों से मनाया जाता है। विवाह के समय तथा घर में पुत्र पैदा होने के समय इसका प्रयोग किया जाता है।पंचागुलक मानव शरीर के पंचतत्त्वों का भी प्रतीक माना जाता है।
स्वस्तिक
यह मंगल,शांति,सुख तथा समृद्धि का प्रतीक है जिसे साथिया भी कहते हैं। यह सभी दिशाओं से शुभ तथा मंगलकारी होता है।यह सबसे पवित्र तथा शुभ चिह्न माना जाता है जो घर में शुभ-लाभ,वैभव और मंगलगायक है। सनातनी लोग इसे इसे अपने पूजा घरों,निवासस्थल के प्रवेश द्वारों,व्यापारीवर्ग अपने बही-खातों के ऊपर पर दीवाली के दिन लगाते हैं। स्वस्तिक की कुल चार लकीरें चार दिशाओं की प्रतीक हैं।इसे अपनी तिजोरी में भी लगाते हैं।