-अशोक पाण्डेय
——————
‘गीता’ में वक्ता हैं शांतिदूत श्रीकृष्ण और श्रोता हैं अर्जुन। दोनों के वार्तालाप को अगर ध्यान से सुनें तो आपको विश्वास हो जाएगा कि भाषण देने में सबसे पहले ‘आप’ संबोधन का क्या महत्त्व होता है। आप आदर सूचक संबोधन है जिसमें सम्मान और आदर का भाव है। ‘मैं’ अहंकार को बताता है। भाषण देने वाले को इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि उसके वक्तव्य से अहंकार भाव न निकले। यह भी सच है कि आपकी असाधारण उपलब्धियों के विषय में तो आपके प्रशंसक निश्चित रूप से करेंगे। मित्रों, बातचीत और भाषण एक अच्छी कला है जिसको अपनाने से आपकी वास्तविक प्रतिभा को दुनिया स्वत: जानेगी।
-अशोक पाण्डेय
