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भुवनेश्वर कीस जगन्नाथ मंदिर जहां पर स्वयं जगन्नाथजी अपनी इच्छा से निवास करते हैं

प्रस्तुतिः अशोक पाण्डेय
ओडिशा प्रदेश की राजधानी भुवनेश्वर को मंदिरों के शहर के रुप में जाना जाता है जहां पर एक समय में लगभग पांच हजार सनातनी मंदिर हुआ करते थे। वे भुवनेश्वर के आकर्षण के केन्द्र थे । लेकिन महाप्रभु लिंगराज की नगरी भुवनेश्वर में अब लगभग पांच सौ मंदिर ही हैं। भुवनेश्वर में अनेक जगन्नाथ मंदिर हैं लेकिन एक जगन्नाथ मंदिर भुवनेश्वर स्थित विश्व के सबसे बडे आदिवासी आवासीय विद्यालय कीस प्रांगण में है जिसकी स्थापना कीट-कीस-कीम्स के प्राणप्रतिष्ठाता तथा कंधमाल लोकसभा सांसद प्रोफेसर अच्युत सामंत ने भगवान जगन्नाथ की इच्छा से की है। वैसे तो प्रोफेसर सामंत अपने बाल्यकाल से ही अनन्य जगन्नाथभक्त रहे हैं। उन्होंने अबतक कुल लगभग 25 सनातनी देवालयों का निर्माण कराया है जबकि अनेक जगन्नाथ मंदिरों के निर्माण में भी यथासंभव आर्थिक सहयोग दिया है। प्रोफेसर सामंत के अनुसार बात 1999 की है जब वे पुरी जाकर भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर वापस लौटे। एक रात उनको स्वप्न आया । उनके सपने में स्वयं भगवान जगन्नाथ आकर उनसे यह कहते हैं कि तुम मेरे लिए कीस प्रांगण में ही मेरा एक मंदिर बनाओ,मैं भुवनेश्वर में भी रहना चाहता हूं। और सुबह जहां तुम आदिवासी बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदानकर उन्हें स्वावलंबी मनाते हो। सच्चा इन्सान बनाते हो। वे अनाथ मच्चे प्रतिदिन मेरी पूजा करेंगे। प्रोफेर सामंत ने अपने लोगों से विचार-विमर्श किया कीस जगन्नाथ मंदिर निर्माण के लिए। फिर पुरी के गजपति महाराजा जो पुरी धाम के भगवान जगन्नाथ के प्रथम सेवक हैं ,उनकी व्यक्तिगत दिव्य राय ली। और कुछ ही महीनों के भीतर कीस में पहला छोटा जगन्नाथ मंदिर प्रोफेसर अच्युत सामंत ने बनवाया और नित्य वहां पर वे भगवान जगन्नाथ की इच्छानुसार उनकी विधिवत पूजा-पाठ भी आरंभ कर दिये लेकिन पुरी के गजपति महाराजा श्री दिव्य सिंहदेवजी महाभाग के आदेश पर कीस के अति भव्य जगन्नाथ मंदिर के निर्माण कार्य को युद्धस्तर पर आरंभ कर दिया। कीस जगन्नाथ मंदिर स्थापित हो गया। श्री जगन्नाथधाम पुरी से चतुर्धा देवविग्रहों को लाकर मंदिर में शुभ मुहुर्त में देवविग्रहों की प्रतिष्ठित कर दिया गया। पुरी के गजपति महाराजा श्री दिव्य सिंहदेवजी की गरिमामय और पावन उपस्थिति में 28जून,2007 को उस जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ तथा अन्य सभी देवी-देवताओं की प्राणप्रतिष्ठा अनुष्ठित हुई। पुरी के पण्डित सूर्यनारायण रथशर्मा के अनुसार कीस जगन्नाथ मंदिर के प्राणप्रतिष्ठा समारोह में भगवान इन्द्रदेव का भी बहुत बडा सहयोग रहा। लगातार वर्षा होती रही और पूरे भारत से आमंत्रित आचार्यों द्वारा कीस जगन्नाथ मंदिर में चतुर्धा देवविग्रहों की प्राणप्रतिष्ठा संपन्न हुई। भुवनेश्वर कीस जगन्नाथ मंदिर की सबसे बडी बात तो यह है कि उस मंदिर के सभी सेवायतगण पुरी धाम के हैं। नित्य जो वहां पूजा होती है वह पुरी जगन्नाथ मंदिर की रीति-नीति के तहत ही। मंदिर में 12 महीनों में भगवान जगन्नाथ के 13 पर्व पुरी श्रीमंदिर की पूजा विधि के आधार पर ही मनाये जाते हैं। अक्षयतृतीया, रथनिर्माण,चंदनयात्रा,देवस्नानपूर्णिमा, रथयात्रा,बाहुडा यात्रा,सोनावेष तथा नीलाद्रि विजय आदि सभी पुरी जगन्नाथ मंदिर की तरह ही पूरी रीति-नीति के साथ संपन्न होती है। मंदिर में प्रतिदिन महाप्रसाद तैयार होता है जिसे हजारों जगन्नाथभक्त ग्रहण करते हैं। मंदिर स्थापना दिवस पर प्रतिवर्ष धर्मसभा का आयोजन होता है। भगवान जगन्नाथ को प्रसन्न करने से संबंधित भजन समारोह आयोजित होता है।मंदिर प्रांगण में एक सार्वजनिक कैरे आध्यात्मिक पुस्तकालय भी है। प्रोफेसर अच्युत सामंत बताते हैं कि ये सबकुछ जगन्नाथजी की इच्छा से हुआ है । इसीलिए तो प्रोफेसर सामंत प्रतिदिन अपनी कीट-कीस-कीम्स सेवा दिनचर्या आरंभ करने से पहले कीस जगन्नाथ मंदिर में स्वयं वे पूजा-पाठ करते हैं। भगवान जगन्नाथ की असीम कृपा है कि प्रोफेसर सामंत द्वारा स्थापित कीट-कीस-कीम्स दुनिया के आकर्षण का केन्द्र बन चुका है और प्रोफेसर अच्युत सामंत दुनिया के महान शिक्षाविद्। मैं ,जगन्नाथभक्त,अशोक पाण्डेय आभारी हूं दिव्य वैदिक संदेश,नई दिल्ली के मुख्य सम्पादक व अनन्य जगन्नाथभक्त श्री विजेन्दर गोयलजी का जो आगामी 06 दिसम्बर,2021 को सपरिवार भगवान जगन्नाथ के दिव्य दर्शन के लिए पुरी आने से पहले दिव्य वैदिक संदेश का श्री जगन्नाथ विशेषांक अपने साथ ला रहे हैं जिसमें कीस जगन्नाथ मंदिर का यह विवरण दुनिया के समस्त जगन्नाथभक्त पढेंगे और इस बात को सहर्ष स्वीकार करेंगे कि भगवान जगन्नाथ कलियुग में आस्था के एकमात्र जगत के नाथ हैं जो अपने भक्तों के मन की बात जान लेते हैं तभी उसको अपने दर्शन के लिए पुरी बुलाते हैं।
अशोक पाण्डेय

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