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मलमास है वैचारिक क्रांति का संदेश

-अशोक पाण्डेय
जिसप्रकार भारत का सर्वांगीण विकास हरितक्रांति, औद्योगिक क्रांति,शैक्षिक क्रांति तथा सूचनातकनीकी क्रांति के द्वारा ही संभव है,ठीक उसी प्रकार प्रत्येक सनातनी का पूर्ण विकास वैचारिक क्रांति से ही संभव है।यह वैचारिक क्रांति प्रत्येक तीन वर्षों के अंतराल में प्रत्येक सनातनी को अधिक मास अर्थात् मलमास ही देता है।गौरतलब है कि वर्षः2023 का श्रावण मास विगत 04 जुलाई से आरंभ हुआ और ठीक 59 दिनों के बाद 31 अगस्त को समाप्त होगा।ठीक उसी प्रकार इस वर्ष का अधिक मास(मलमास) 18 जुलाई से आरंभ हुआ और 16 अगस्त को समाप्त हो गया। यह मलमास हमें वैचारिक क्रांति का संदेश देता है जिससे भारत के प्रत्येक सनातनी का आध्यात्मिक विकास होता है और भारत विश्व में आध्यात्मिक जगतगुरु कहलाता है। वैचारिक क्रांति को अपनाते समय हमें संकल्पित मन से निंदा,आलस्य और अभिमान का त्यागकर सत्य, ज्ञान,धर्म,दया,शांति और क्षमा आदि को अपनाना होगा। हमें सत्य के मार्ग पर चलकर धर्म की रक्षा करनी होगी।हमें ईश्वर-भक्ति,अच्छी संगति,चरित्र की निर्मलता तथा उदारता को मनसा,वाचा तथा कर्मणा अपनाना होगा।हमें मानव-सेवा को सच्ची माधव सेवा मानरकर आध्यात्मिक जीवन जीना होगा। हमें सांसारिक सुखों की प्राप्ति की चिंता का त्यागकर आत्मचिंतन के साथ जगन्नाथ चिंतन को अपनाना होगा।हमें अपने मानव जीवन को सार्थक बनाने के लिए दान और परमार्थ में अपने आपको लगाना होगा क्योंकि हमारे सभी शास्त्रों ने हमें नर से नारायण बनने का संदेश दिया है।हमें समुद्र की तरह गंभीर बनना होगा। हमें पृथ्वी की तरह सहनशील, क्षमाशील और पालनहार बनना होगा। हमें गोमाता की तरह दानी तथा परोपकारी बनना होगा। हमें पवित्र नदी गंगा आदि की तरह सतत क्रियाशील बनना होगा क्योंकि आज हमारे चारों तरफ पाप,अन्याय,हत्या,बलात्कार,दुराचार,चोरी और अपहरण का गंदा वातावरण व्याप्त है जिनको समाप्त करने के लिए हमें अपने अहंकार,क्रोध और निराशा का त्यागकर आगे बढना होगा। यह तभी संभव होगा जब हम अधिक मास जिसे व्यावहारिक रुप में मलमास कहते हैं उसके आध्यात्मिक महत्त्व को सही तरीके से जानना होगा। कहते हैं कि सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही अधिक मास की उत्पत्ति हुई। अधिक मास में सूर्य की संक्रांति न होने के कारण यह मास मलमास कहलाया और तभी से वह मास व्यक्तिगत रुप में अस्तित्व में आया।लेकिन वह यह देखकर तथा अनुभव कर कि मलमास किसी भी प्रकार से देवगण तथा पितरगण आदि की पूजा के लिए शुभ नहीं है। यहां तक कि पूरी तरह से यह सभी पवित्र कार्यों के लिए त्याज्य है तो मलमास अत्यंत दुखी होकर विष्णुलोक गया। वह भगवान विष्णुजी का चरणस्पर्शकर उनसे यह प्रार्थना की कि उसका नाम मलमास है जिसकी पृथ्वीलोक के सभी निंदा करते हैं,उसे अपवित्र मानते हैं। उसका तिरस्कार करते हैं। उसने श्रीहरि से बडे ही विनम्रभाव से कहा कि अब वह उनकी शरण में आया है और वे उसकी रक्षा करें।इतना सुनकर श्रीहरि विष्णु भगवान मलमास को लेकर गोलोक गये। श्रीकृष्ण को श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। उन्होंने मलमास से भी कहा कि वह भी श्रीकृष्ण को प्रणाम करे और अपनी आत्मव्यथा उन्हें स्वयं सुनाए। मलमास की करुण व्यथा सुनकर श्रीकृष्ण ने तत्काल उसे यह वरदान दिया कि श्रीकृष्ण भगवान अपने जिन सद्गुणों, कीर्तियों,प्रभावों,समस्त ऐश्वर्यों,पराक्रमों आदि के बदौलत अपने समस्त भक्तों को वरदान देकर तीनों लोकों में पुरुषोत्तम कहलाते हैं ठीक उसी प्रकार मलमास तुम भी पृथ्वी पर इस एक महीने के लिए पुरुषोत्तम मास कहलाओगे।यही नहीं, श्रीकृष्ण ने मलमास से यह भी कहा कि श्रीकृष्ण के पास जितने भी सद्गुण हैं वे सभी आज वे मलमास को सौंप रहे हैं।श्रीकृष्ण ने यह भी आशीर्वाद दिया कि मलमास पृथ्वीलोक में सदा-सदा के लिए पुरुषोत्म मास के रुप में प्रसिद्ध हो जाएगा।और तब से लेकर आजतक प्रति तीसरे वर्ष के अंतराल पर पुरुषोत्तम मास आता है और हमसभी सनातनीजन को वैचारिक क्रांति का संदेश देता है,आध्यात्मिक जीवन जीने का पावन संदेश देता है।गौरतलब है कि भारत का एकमात्र क्षेत्र पुरुषोत्तम क्षेत्र(पुरी धाम) है जहां पर मलमास के सभी दिन प्रातःकाल महोदधि स्नान कर महाप्रभु जगन्नाथ भगवान के दर्शन पुरुषोत्तम भगवान के रुप में करने का आध्यात्मिक महत्त्व है।यही नहीं,पुरुषोत्तम मास में पुरुषोत्तम धाम के श्रीमंदिर में प्रतिदिन विधवाओं और वृद्ध महिलाओं-माताओं आदि के लिए पुरुषोत्तम भगवान के दर्शन आदि के लिए विशेष सुविधाएं श्रीमंदिर प्रशासन की ओर से उपलब्ध हैं। यह भी कहते हैं कि सावन मास भगवान भोलेशंकर का मास है जिसमें वे अपने भक्तों द्वारा मात्र जल और बेलपत्र ग्रहणकर ही उनपर अतिप्रसन्न होकर उन्हें मनवांछित वरदान प्रदान कर देते हैं जिनमें वैचारिक क्रांति का भी वरदान शामिल है।
-अशोक पाण्डेय

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