प्रस्तुतिः अशोक पाण्डेय
एक समय की बात है। देवर्षि नारद महाप्रसाद सेवन की लालसा से बैकुण्ठ धाम पहुंचे। नारायणजी और माता लक्ष्मी नारद से मिले। अपने बैकुण्ठ आगमन की बात बताई। माता लक्ष्मी ने नारदजी से कहा कि यहां पर तो महाप्रसाद उतना ही पकता है जितना नारायणजी और वे प्रतिदिन ग्रहण करते हैं।नारदजी ने फिर भी निवेदन किया कि किसी भी प्रकार से उन्हें महाप्रसाद सेवन करना ही करना है। माता लक्ष्मी ने कहा कि ठीक है जिस दिन अधिक महाप्रसाद पकेगा मैं तुम्हें अवश्य सेवन कराऊंगी। एक दिन संयोगवश अधिक महाप्रसाद पका और माता लक्ष्मी ने देवर्षि नारद को महाप्रसाद का सेवन कराया। देवर्षि नारद ने चुपके से एक मूट्ठी महाप्रसाद छिपाकर ले लिया और आ पहुंचे कैलास। कैलास पहुंचकर उन्होंने महाप्रसादसेवन वाली बात भगवान शंकर को बतायी और वह महाप्रसाद उन्हें खाने को दिया। भगनान शंकर महाप्रसाद सेवन करते ही खुशी से ताण्डव नृत्य करने लगे। माता पार्वती को चिंता हो गई की भगवान शंकर किस खुशी में ऐसा नृत्य कर रहे हैं। जब उनको नारदजी ने सच्चाई बताई तो उन्होंने भी महाप्रसाद खाने की लालसा प्रकट की। भगवान शंकर और माता पार्वती दोनों बैकुण्ठ पधारे और माता लक्ष्मी के लिए महाप्रसाद की मांग भगवान नारायण और माता लक्ष्मी से की। नारायणजी ने उन दोनों को आश्वस्त किया कि वे कलियुग में पूर्णदारुब्रह्म के रुप में महोदधि के तट पर श्री पुरी धाम में अवतार लेंगे और प्रतिदिन महाप्रसाद तैयार होगा। भक्तों कहते हैं कि तभी से महाप्रसाद सेवन की यह परम्परा महर्षि नारद के सौजन्य से कलियुग में श्री जगन्नाथ पुरी धाम के श्रीमंदिर की पाकशाला में उपलब्ध है।
प्रस्तुतिः अशोक पाण्डेय
स्त्रोतःउद्योगपति श्री सुरेन्द्र कुमार डालमिया,भुवनेश्वर
