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मोबाइल संस्कृतिः कितनी लाभकारी,कितनी घातक

-अशोक पाण्डेय
आज की दुनिया एज ऑफ कमन मैन की दुनिया है जिसे मोबाइल की दुनिया के नाम से अधिक जाना जाता है।विश्व की कुल आबादी के लगभग आधी आबादी के लोगों के पास आज छोटा-बडा मोबाइल फोन अवश्य है। नई सदी की यह सबसे बडी उपलब्धि है। 1973 में मोबाइल का आविष्कारअमरीकी मार्टिन कूपर ने किया था जिसे देखकर सभी चौंक गये। मार्टिन कूपर ने भी कभी यह सोचा नहीं होगा कि उनका यह नव्यतम आविष्कार 21वीं सदी में मोबाइल संस्कृति बनकर पूरी दुनिया में अपना दबदबा बढा देगा।गौरतलब है कि मार्टिन कूपर ने अपने द्वारा तैयार मोबाइल को न्यूयार्क की सडकों पर जब पहली बार खडे होकर उसका प्रयोग किया तो पूरा न्यूयार्क नगर आश्चर्यचकित हो उठा। उस पहले मोबाइल की कीमत लगभग 10लाख अमरीकी डॉलर था तथा उसका वजन कुल दो किलोग्राम था।मोबाइल की दुनिया में स्मार्ट फोन के आगमन ने तो जैसे सूचना तकनीकी की दुनिया में क्रांति ही ला दी है।सच तो यह भी है कि प्रत्येक दो महीने के अंतराल में मोबाइल मार्केट में एक नया स्मार्ट फोन आ जा रहा है।भारत में पहला सेल्यूलर फोन 23अगस्त,1995 को कोलकाता में आया।आज का विकासशील भारत तथा भारत की लोककल्याणकारी सरकार अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रही है जिसमें मोबाइल फोन की भूमिका भी स्पष्ट रुप से देखी जा सकती है। भारत की नई शिक्षा नीतिः2020 में भी मोबाइल फोन की आवश्यकता को रेखांकित कर दिया गया है।आज जल,थल,नभ में मोबाइल संस्कृति का साम्राज्य है। लेकिन यह भी अकाट्य सच है कि मोबाइल संस्कृति से जितना लाभ है उससे कहीं अधिक नुकसान हमारे बच्चों को हो रहा है,हमारे युवाओं कोहो रहा है।हमारी युवा पीढी को हो रही है। मोबाइल फोन ने भारतीय शिक्षा की शाश्वत गुरुकुल परम्परा को समाप्तप्राय कर दिया है। इसने हमारे जीवन के सभी शाश्वत मूल्यों को समाप्तकरने की दिशा में अग्रणी भूमिका निभाई है। यह भारतीय संस्कार और संस्कृति को समाप्त कर रही है। मोबाइल फोन के चलते स्कूली बच्चों के भाषा-कौशल-सुनना,बोलना,पढना और लिखना-समाप्ति की राह पर चल पडा है। लेखन-कौशल तो करीब-करीब समाप्त हो चुकी है। रही बात पठन कौशल की तो उसको भी इस संस्कृति ने धराशायी कर दिया है। भाषा-कौशल सिखने की मानसिकता को इसने समाप्त कर दिया है।यही नहीं,मोबाइल संस्कृति तो आज हमारी भारतीय संस्कृति को ही नष्ट करने पर आमादा है।हमारे स्कूली बच्चों तथा युवाओं में मोबाइल संस्कृति की ऐसी बुरी लत लग गई है कि वे मोबाइल को अपने से कभी दूर नहीं रखते हैं।ऐसा लगने लगा है कि डिजिटल इण्डिया का रास्ता भी मोबाइल से होकर ही आगे बढ रहा है।भारत के युवाओं में मोबाइल की बुरी लत उनको चिडचिडा बना रही है।उनको गुस्सैल बना रही है।अनुशासनहीन बना रही है। उनको सिरदर्द,आंखदर्द,अनिद्रा,रक्तचाप तथा उनके अन्दर हृदयरोग को भी विकसित कर रही है।यह उनमें दुराचार और अनाचार को बढावा दे रही है। बच्चों के संस्कार,आचरण और व्यहार को यह गंदा बना रही है।एक परिवार में अगर पांच सदस्य हैं तो सभी के अपने-अपने मोबाइल भी हैं। वे जब एकसाथ मिलते हैं तो आपस में अपने दुख-सुख की बात नहीं करते हैं अपितु वे अपने-अपने मोबाइल पर गैरों के साथ बात करने में लगे होते हैं।इससे आज हमारा पारिवारिक तथा सामाजिक संबंध कमजोर हो रहा है,टूट रहा है।मोबाइल ने युवाओं की मेधाशक्ति,कौशलशक्ति,उनकी दूरदर्शिता तथा उनकी कार्यसंस्कृतिआदि को तेजी से समाप्त करती जा रही है।बडी विचित्र बात तो यह देखने को मिल रही है कि आज का युवा अब कंप्यूटर,लैबटॉप आदि के प्रयोग का त्यागकर सिर्फ मोबाइल का ही इस्तेमाल कर रहा है।और यही कारण है कि आज भारतीय युवाओं की सोच नकारात्क होती जा रही है।वह सेल्फसेण्टर्र्ड होते जा रहा है। मोबाइल पर उल्टा-सीधा देखकर वह अब गलत आचरण करने लगा है।आज का युवावर्ग नोमोफोबीया का शिकार होते जा रहा है। फिर भी, निर्विवाद रुप से मोबाइल संस्कृति आज के युग के लिए वरदान तुल्य है।मोबाइल आज संचार का सबसे सशक्त तथा सस्ता माध्यम बन चुका है। यह सारी जुनिया मेरी जेब में है -को सत्य सिद्ध कर रहा है। यह जीवन से जुडी हुई तमाम जानकारियां इंटरनेट के माध्यम से सुगमता के साथ हमें घर बैठे ही उपलब्ध कराता है। मोबाइल मनोरंजन का भी सबसे सरल,सस्ता,सुगम तथा अच्छा माध्यम है।मोबाइल पर इंटरनेट के माध्यम से हम किसी भी प्रकार की महत्त्वपूर्ण जानकारियां आसानी से प्राप्त कर लेते हैं।इससे इंटरनेट बैंकिंग सेवाएं,टिकट बुकिंग,शॉपिंग आदि आसानी से हम कर सकते हैं।बच्चों और युवाओं को वॉट्सऐप,फेशबुक,ट्वीटर और गेम्स आदि के अधिक प्रयोग से बचना चाहिए।यह देखकर आश्चर्य हुआ कि एक रेस्टूरेंट में एक बच्चा बडा मोबाइल लेकर बात कर रहा था तो वहीं उसके पिताजी एक सस्ते नोकिया मोबाइल से बात कर रहे थे। यह भी सच है कि मोबाइल संस्कृति से बाल अपराध,यौनशोषण,लूट-खसोट,चोरी-डकैती,इंटरनेट अपराध जैसे अनेक दुष्कर्मों को बढावा मिल रहा है। आज आवश्यकता इस बात की है कि मोबाइल संस्कृति पर अधिक से अधिक शोधकार्य हों।सचेतनता फैलाई जाए। मोबाइल के उचित तथा सीमित प्रयोग आदि की जानकारी बच्चों,युवाओं तथा उनके अभिभावकों को अधिक से अधिक दिया जाय। भारत की भावी पीढी को अपने भारतीय संस्कार और संस्कृति को बचाये रखकर किस प्रकार मोबाइल संस्कृति का इस्तेमाल बच्चें कम से कम करें इसका ध्यान सरकार,पब्लिक तथा अभिभावक को अवश्य होना चाहिए। गैरजिम्मेदारी से जिम्मेदारी में कूद पडना एक प्रकार से हनुमान कूद है इसीलिए मोबाइल संस्कृति के संरक्षकों को इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि देश के बच्चे तथा युवावर्ग मोबाइल का इस्तेमाल सकारात्मक सोच के साथ अपने सर्वांगीण विकास में लगाएं।

अशोक पाण्डेय

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