अनुचिंतनः अशोक पाण्डेय
श्रीकृष्ण भगवान के अवतार के रुप में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के दर्शन का महत्त्व 100 यज्ञ कराने के पुण्य के बराबर माना जाता है। रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ को दशावतारों के रुप पूजा जाता है।वे पुरी धाम में अवतार नहीं अपितु अवतारी के रुप में पूजित होते हैं। वे कलियुग के एकमात्र पूर्णदारुब्रह्म हैं जो 16 कलाओं से पूर्ण हैं। श्रीमंदिर के चार महाद्वारःपूर्व का प्रवेशद्वार सिंहद्वार कहलाता है जो धर्म का प्रतीक है जहां से जगन्नाथभक्त श्रीमंदिर की 22सीढियों को पारकर अर्थात् अपने 22 दोषों को दूरकर श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर विराजमान भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए जाते हैं। पश्चिम का द्वार व्याघ्रद्वार है जो वैराग्य का प्रतीक है। श्रीमंदिर के उत्तर दिशा के द्वार का नाम हस्ती द्वार है जो ऐश्वर्य का प्रतीक है और श्रीमंदिर के दक्षिण दिशा के द्वार का नाम अश्व द्वार है जो ज्ञान का प्रतीक स्वरुप है। भगवान जगन्नाथ शबर जनजातीय समुदाय से जुडे हैं और शबर समुदाय में यह प्रथा है कि उनके देवता काठ के होते हैं शबर समुदाय उनकी पूजा गोपनीय रुप में करते हैं। भगवान जगन्नाथ स्वयं कहते हैं कि जहां सभी लोग मेरे नाम से प्रेरित हो एकत्रित होते हैं,मैं वहां पर अवश्य विद्यमान होता हूं।रथयात्रा भक्त के शरीर तथा आत्मा का मेल है।रथयात्रा आत्मावलोकन की प्रेरणा देती है।स्कन्द पुराण,ब्रह्मपुराण,पद्मपुराण तथा नारद पुराण आदि में भगवान जगन्नाथ तथा उनकी नगरी श्रीजगन्नाथपुरी का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। यहां के श्रीमंदिर में चतुर्धा देवविग्रह रुप में विराजमान जगन्नाथजी वास्तव में सगुण-निर्गुण,साकार-निराकार,व्यक्त-अव्यक्त और लौकिक-अलौकिक के समाहार स्वरुप हैं इसीलिए तो उनको पुरी धाम में वैष्णव,शैव,शाक्त,सौर,गाणपत्य,बौद्ध और जैन रुप में पूजा जाता है। भगवान जगन्नाथ आनन्दमय चेतना के प्रतीक हैं जिनकी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा धर्म,भक्ति और दर्शन की त्रिवेणी है जिसमें भक्त उनके दर्शन के गोते लगाकर भक्ति,शांति,एकता,मैत्री,सद्भाव,प्रेम और करुणा का महाप्रसाद प्राप्त करता है।
रथयात्राःसात्विक-तात्विक विवेचन
श्री जगन्नाथ तत्व से जुडा है रथयात्रा का सात्विक-तात्विक विवेचन इसीलिए रथयात्रा के दिन रथ मानव-शरीर का,रथि आत्मा का,सारथी बुद्धि का,लगाम मन का और अश्व मानवीय इन्द्रियों के प्रतीक होते हैं।जगत के समस्त देवरुपों के समाहार हैं श्री जगन्नाथ भगवान। जगन्नाथ पुरी अपने आपमें तीर्थ है,क्षेत्र है और धाम है। जाननेवाले यह जानते हैं कि जहां के पवित्र जल से पापी पवित्र हो जांय,उसे तीर्थ कहते हैं। जहां पर देवी-देवता का निवास होता है उसे क्षेत्र कहते हैं और धाम वह होता है जहां के आधारभूत देवता स्वयं भगवान होते हैं जो स्वयं मुक्तिप्रदाता होते हैं। पुरी धाम का स्वर्गद्वार प्रलयकाल में भी कभी समाप्त नहीं होता है। हिन्दू धर्म के रक्षक होने के कारण पुरी गोवर्द्धन पीठ के 145वें पीठाधीश्वर परमपाद स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महाभाग पुरी के जगतगुरु शंकराचार्य हैं।भगवान जगन्नाथ को रविवार को लाल परिधान,सोमवार को शुभ्र बूटियोंवाला परिधान,मंगलवार को 12पट्टियोंवाला परिधान,बुधवार को नीला परिधान,गुरुवार को पीला परिधान,शुक्रवार को सफेद परिधान और शनिवार को काले परिधान में सुशोभित किया जाता है। श्रीमंदिर के गुंबज पर प्रतिदिन लहरानेवाला पतितपावन पताका क्षमाशील तथा दयाशील होता है। श्रीमंदिर के रत्नवेदी के निर्माण में काला मुगुनी पत्थर लगा है जिसे अन्तरवेदी भी कहा जाता है जो वास्तव में श्री जगन्नाथ भगवान का हृदय है।चतुर्धा देवविग्रहों में जगन्नाथ जी ऋग्वेद के, बलभद्रजी सामवेद के,सुभद्राजी अथर्वेद की तथा सुदर्शनजी यजुर्वेद के जीवंत स्वरुप हैं। भगवान जगन्नाथ को प्रतिदिन निवेदित होनेवाला महाप्रसाद साक्षात अन्नब्रह्म है जिसे महालक्ष्मीजी सभी जीवों के लिए अन्नपूर्णा के रुप में स्वयं पकातीं हैं। श्रीमंदिर के सिंहद्वार की मंदिर की दीवारों पर दशावतार के मध्य अंकित महालक्ष्मी वास्तव में अष्टलक्ष्मीःआदिलक्ष्मी,महालक्ष्मी,गजलक्ष्मी,धनलक्ष्मी,धैर्य लक्ष्मी,संतान लक्ष्मी,जय-विजय लक्ष्मी और विद्या लक्ष्मी का जीवंत समाहार स्वरुप हैं जिनके रथयात्रा के दिन प्रथम दर्शन का अपना विशेष महत्त्व है। रथयात्रा के दिन भगवान जगन्नाथ का शरीर भक्त के स्थूल,सूक्ष्म तथा कर्मशील शरीर का वास्तविक स्वरुप होता है जिसके लिए रथयात्रा के दिन पहण्डी विजय के साथ-साथ चतुर्धा देवविग्रहों के रथारुढ कराते समय देव विग्रहों के शरीर की पूरी सुरक्षा तथा आरामदायाक यात्रा के लिए हरसंभव उत्कृष्ट व्यवस्था की जाती है। ऐसे में प्रत्येक जगन्नाथभक्त को रथयात्रा की सात्विक-तात्विक जानकारी परम आवश्यक है। इस वर्ष की रथयात्रा 12जुलाई को है लेकिन कोरोना संक्रमण से बचने के लिए रथयात्रा का पुरी से सीधा प्रसारण दूरदर्शन तथा अन्य टेलीविजन चैनल करेंगे जिसके माध्यम से देश-विदेश के करोडों जगन्नाथभक्त अपने-अपने घर पर ही रथयात्रा देख सकते हैं और अपने-अपने मानव-जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
अशोक पाण्डेय
रथयात्राःसात्विक-तात्विक विवेचन
