-अशोक पाण्डेय
——————-
मध्य काल की बात है। एक राजा के पास रसीले आम का एक बगीचा था जिसमें हजारों किस्मों के रसीले आम थे। गर्मी के दिनों में उस आम के बगीचे की सुंदरता पेड़ों पर पके और लटके आमों से बढ़ जाती थी। गर्मी का दिन आया। राजा ने अपनी प्रजा समेत अपने सभी दरबारियों को बगीचे में आम खाने के लिए आमंत्रित किया। राजा ने एक शर्त रख दी कि सभी लोग रसीले आम सिर्फ काटकर ही खाएंगे, कोई चूस कर नहीं खाएगा। जो कोई भी चूस कर खाएगा,उसकी गर्दन काट दी जाएगी। राजा का निमंत्रण पाकर सभी आये। आम काटकर खाने लगे। राजा एक -एक के पास जाकर देखता रहा और यह निवेदन करता रहा कि और खाइए। राजा कुछ देर के पास अपनी एक प्रजा के पास गया और देखा कि वह आम चूस -चूस कर और राजा की तारीफ करते हुए बड़े मजे से खा रहा था। राजा ने पूछा कि वह राजा का आदेश नहीं सुना था। राजा की वह व्यक्ति विशेष प्रजा बड़ी विनम्रता से जवाब दिया कि मेरे पालक श्री आपतो एक विवेकी राजा हैं और आप यह भी जानते हैं कि रसीले आम चूस- चूस कर ही खाया जाता है। राजा प्रसन्न होकर अपनी उस प्रजा को अपना निजी सलाहकार नियुक्त कर दिया और दावत पर पधारे सभी को रसीले आम चूस -चूस कर खाने को कहा। मान्यवर, वाल्मीकि रामायण और श्रीरामचरितमानस की कथा का श्रवण भी रसीले आम की तरह है। इन कथाओं के जीवनोपयोगी संदेशों को रसीले आम की तरह ही ग्रहण करें!
-अशोक पाण्डेय
