भारत के इस इकलौते छठ महापर्व में एकसाथ
सूर्य,जल और वायु तीनों की पूजा होती है।
-अशोक पाण्डेय
लोक आस्था के चार दिवसीय कठोरतम महापर्व छठ का सर्वप्रथम शुभारंभ बिहार प्रांत से ही हुआ जिसे पहली बार पवित्र नदी गंगा के तट पर सामूहिक अर्घ्य से शुभारंभ हुआ था। आज भारत के सभी मेट्रो सिटीज से लेकर विदेशों में भी प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से आरंभ होकर कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी तक चलता है। यह कठोरतम महापर्व पूरी आस्था तथा विस्वास के साथ मनाया जाता है। गौरतलब है कि भारतवर्ष में जितने भी पर्व-त्यौहार मनाये जाते हैं उनमें एकमात्र छठ महापर्व ही ऐसा है जो कठोरतम महापर्व है जिसमें व्रतधारी महिलाएं और पुरुष 36 घण्टे तक निराजल रहकर यह महापर्व मनाते हैं। इस महापर्व का पौराणिक, सामाजिक तथा व्यक्तिगत महत्त्त्व भी है।भुवनेश्वर की पंजीकृत सामाजिक कल्याण संस्था विस्वास भुवनेश्वर के नये अध्यक्ष इंजीनियर राजकुमार के अनुसार पहली बार 2024 के छठ महापर्व की शुरुआत 05 नवंबर से नहाय-खाय,06 नवंबर को खरना, 07नवंबर को सूर्यदेव के सायंकालीन प्रथम सामूहिक अर्घ्य से तथा 08 नवंबर को भोर के अंतिम अर्घ्य से हो रही है।सामूहिक अर्ध्य के लिए भुवनेश्वर बालीयात्रा मैदान के समीप कुआखाई छठघाट पर 7-8 नवंबर को भगवान सूर्यदेव के क्रमशः प्रथम एवं अंतिम अर्घ्य हेतु सभी प्रकार की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। इस वर्ष बिस्वास,भुवनेश्वर के अध्यक्ष इंजीनियर राजकुमार ने पहली बार इस सामूहिक आयोजन को सफल बनाने के लिए बिस्वास,भुवनेश्वर की महिला समिति तथा युवा वींग का भी गठन किया है जिनके सामूहिक सहयोग से इस वर्ष का दोनों सामूहिक अर्ध्य दान शानदार सफलता के साथ संपन्न होगा ऐसी उम्मीद की जा रही है। इस कठेरतम महापर्व को प्रकृति के प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्यदेव की बहन छठ परमेश्वरी की पूजा का भी महापर्व कहा जाता है। बिहार के औरंगाबाद जिले में पूरे भारत का इकलौता छठ पूजा मंदिर भी है जहां पर छठव्रती पहले दिन नहाय-खाय,दूसरे दिन खरना,तीसरे दिन शाम को भगवान सूर्यदेव को सायंकालीन पहला अर्घ्य देते हैं तथा चौथे दिन भोर में उगते हुए सूर्यदेन को अंतिम अर्घ्य देकर पारन करते हैं अर्थात् अपना व्रत तोड़ते हैं। छठ व्रतकरनेवालों को छठ परमेश्वरी संतान का आशीष देती हैं। चर्मरोगी को चर्मरोगों से मुक्त करतीं हैं। कुमारी कन्याओं को सुंदर,कुलीन तथा धनवान पति का आशीर्वाद देतीं हैं।सभी छठव्रतियों की मनोकामना भगनान सूर्यदेव तथा उनकी बहन छठ परमेश्वरी अवश्य पूरी करतीं हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीराम और माता सीता ने भी छठ पूजन किया था। महाभारत काल में कुंती ने भी संतान प्राप्ति के लिए छठ व्रत किया था। इसीलिए उनका पुत्र कर्ण सूर्यदेव का बहुत बड़ा भक्त था।द्रौपदी ने भी छठव्रत की थी। प्रियवंद नामक एक भक्त ने पुत्र प्राप्ति के लिए पहली बार छठ व्रत किया था। थी। ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में भी लगभग तीन दशकों से छठ पूजा घर-घर तथा सामूहिक रुप से की जाती है जबकि ओड़िशा के राउरकेला,कटक तथा पारादीप आदि शहरों में लगभग चार दशकों से छठ महापर्व मनाया जाता है। इस महापर्व के मनाने का एकमात्र आधार एकसाथ सूर्य,जल और वायु तीन की पूजा होती है।कहते हैं कि भगवान सूर्यदेव धरती के एकमात्र प्रत्यक्ष देव हैं जिनकी पूजा डुबते और उगते हुए दोनों रुपों में की जाती है।भुवनेश्वर में बिस्वास के सौजन्य से इसबार भी छठ के ठेकुआ प्रसाद के फ्री वितरण की व्यवस्था भुवनेश्वर बालीयात्रा मैदान के समीप कुआखाई छठघाट पर 08 नवंबर को भोर में की गई है।
अशोक पाण्डेय