जिस प्रकार इस धरती पर तीन ही रत्न हैं -शीतल जल, शाकाहारी भोजन (अन्न) और मधुर वाणी ठीक उसी प्रकार आजीवन आनंद प्राप्त होता है अपने स्व विवेक,धीरज और संतोष से। इस आनंद मंत्र की पुष्टि सनातनी वेद, पुराण, उपनिषद्, गीता, रामायण और महाभारत आदि भी करते हैं। एक और रोचक लघु कथा सुनें! एक गांव का मुखिया जिसके पास सभी प्रकार के सुख थे लेकिन वह आनंद में नहीं रहता था। उसका नाम था सुखिया। उसका एक मित्र अयोध्या में रहता था। उसने सुखिया को खत लिखा कि वह उससे मिलने आ रहा है । वह उसके लिए अयोध्या से क्या लाए? सुखिया ने अपनी ओर से अपने अयोध्या वाले मित्र को लिखा कि वह उसके लिए आजीवन आनंद की दवा लाए। मित्र सुखिया के गांव आया और उसको एक छोटा कागज का टुकड़ा दिया जिसपर लिखा था कि सुखिया अगर आजीवन आनंद में रहना चाहता है तो वह विवेकी, संतोषी और धैर्यवान बने!
मान्यवर आप भी जीवन में विवेकी, संतोषी और धैर्यवान बनें!
-अशोक पाण्डेय
